वह स्त्री जो बोलती है
वह मैं नहीं
मैं,
चुप रहना चाहती हूँ !
...पर, सहजता का लिबास पहने
वह मौन स्त्री
जो बोलती ही जाती है ...
बोलने के बाद
खुद को देखती है हिकारत से
... "मान गए तुम्हें !
हद हो
हर दर्द को जूस की तरह पी जाती हो
यूँ तरोताजा दिखने का स्वांग रचती हो
कि शुद्ध हवा भी अवाक रह जाए !
परेशानी का थोड़ा अभिनय ही कर लो
... किस मिट्टी से खुद को गढ़ लिया है
और ठोस बनाती जा रही हो !
कभी देखा है औरों की नज़रों से खुद को
-कितनी हास्यास्पद लगती हो !
हर कोई सोचता है
कि यदि तकलीफ होती तो नींद हराम हो जाती
भूख मर जाती
......
परेशानी है
तो परेशान दिखना चाहिए न
खाने से पहले सौ बार सोचना चाहिए
कोई राह दिखे ना दिखे
उससे पहले,
सभी रास्तों को बंद कर देना चाहिए
... लेकिन तुम !
नहीं सुधरोगी ... "
5 टिप्पणियाँ:
यदि तकलीफ होती तो नींद हराम हो जाती
भूख मर जाती
......
परेशानी है
तो परेशान दिखना चाहिए न
उम्दा प्रस्तुतीकरण सदा की तरह
"वह उठा लाया" को यहाँ तक लाने के लिए आभार !
- कौशल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
सुधरना जरूरी भी नहीं है :)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
हास्यास्पद ही ठीक है....
नहीं क्या!
स्मरण रखने का आभार!
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