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रविवार, 23 सितंबर 2018

मानवीयता की प्रतिमूर्ति रवि शाक्या को नमन : ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार दोस्तो,
आज आपके सामने एक ऐसे व्यक्ति की कहानी लाना चाहते हैं, जो सरकारी सेवा में है और जिम्मेवार पद पर है. इसके बाद भी सामाजिक कार्यों में जमकर रुचि लेते हैं, सक्रिय रहते हैं. यूँ तो उन्हें हमारे जनपद जालौन के लोग ट्री-मैन कहकर सम्मान देते हैं पर यह कहानी उससे कुछ अलग है. पहले आपको कुछ बता दें उनके ट्री-मैन संबोधन के लिए. असल में आप रेलवे में पदासीन हैं किन्तु पर्यावरण के लिए, पौधारोपण के लिए लगातार, नियमित रूप से सक्रिय रहते हैं. वे न केवल सक्रिय रहते हैं वरन पौधारोपण के लिए पौधे भी उपलब्ध करवाते हैं, उनकी सुरक्षा करवाते हैं, उनके पल्लवित-पुष्पित करवाते हैं. जगह का चयन करके वे पौधारोपण करवाने के बाद उनकी सुरक्षा का ख्याल रखते हैं.

इसके अलावा रेलवे में अपनी सेवाएँ देने के कारण वे लाखों-लाख लोगों के संपर्क में भी आते हैं. सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय होने के कारण वे यहाँ भी अपने सक्रिय मन-मष्तिष्क के चलते कार्यशील रहे. नौकरी को महज नौकरी न मानते हुए उसके अन्दर से भी सामाजिकता निकालते रहे. ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व माननीय रविकांत शाक्या जी के इस कार्य को आप सब उन्हीं की जुबानी पढ़ें तो ज्यादा आनंद आएगा. हम तो इस बुलेटिन के माध्यम से सम्पूर्ण बुलेटिन परिवार की तरफ से उनका हार्दिक वंदन-अभिनन्दन करते हैं. लीजिये, देखिये, वे क्या कार्य कर रहे हैं, उन्हीं की जुबानी.

बांये रवि शाक्या जी 

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कभी कभी जिंदगी में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घट जाती हैं जिन के कारण जीवन मे काफी बदलाव आ जाता है। ऐसे ही लगभग 35 वर्ष पूर्व मेरे फुफेरे भाई का बेटा मनोज जो मुझसे लगभग 3 वर्ष बड़ा था और इंटर में पढ़ रहा था अचानक घर मे पड़ी डांट के कारण घर से चला गया। जिसे आज तक परिवारीजन ढूंढ रहे हैं उसके लौट आने का विश्वास अभी भी है उन्हें। भाई के परिवार का दुख देखकर मुझे भी एक लक्ष्य प्रदान कर दिया और इसकी शुरुआत मेरी रेलवे में जॉब लगने के वर्ष 1995 से हुई।
ट्रेन में टिकट जांच के दौरान घर से भागे, बिछुड़े बालक, बालिकाएं, युवक, युवतियां मिले, जिनमे मध्य-प्रदेश, उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, बिहार, नेपाल, बंगाल , हरियाणा इत्यादि से भागे हुए थे। उन्हें येन-केन-प्रकारेण, साम, दाम, दंड, भेद से इमोशनली ब्लैकमेल कर उनके घर से सम्पर्क स्थापित कर उन्हें स्वयं के खर्च पर उनके परिवारीजनों का सौंपा। परिवारीजन के आने तक अपने घर मे रखा। आज भी बहुत से परिवार ऐसे हैं जो जुड़े हुए हैं। कई बार कुछ परिजनो ने पैसे देने का प्रयास किया पर उनकी आंखों की तरल दृष्टि ही मेरा परितोष होती है लगता है कि मेरा भतीजा वापस मिल गया।
इसी कड़ी में दिनांक 20 सितंबर को सिरौली (खागा) निवासी रामजी उर्फ पुष्पराज सिंह सेंगर को उसके घर पहुंचाया। अब तक कुल 79 बच्चे सकुशल घर पहुंच चुके हैं और उनके परिवार की अप्रतिम खुशी मेरे लिए भी मुस्कुराहट का कारण बनी।

शनिवार, 8 अगस्त 2015

पश्चाताप के आंसू

आदरणीय ब्लॉगर मित्रों नमस्कार,

आज की बुलेटिन कटूपहास के साथ एक सामजिक सन्देश देती मेरे द्वारा लिखी हुई नई लघुकथा  के रूप में आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कहानी का मुद्दा आप सभी को समझ आएगा और आप अपने आस पास में घटने वाली ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रयास अवश्य करेंगे। 


लघुकथा: पश्चाताप के आंसू
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नीशू अभी-अभी बाहर से आवारागर्दी करके वापस लौटा था और घर के दरवाज़े से अन्दर दाख़िल हो ही रहा था कि उसे अपनी छोटी बहन रेवती के सुबक-सुबक कर रोने की आवाज़ आई। बहन को रोता सुन दौड़ा-दौड़ा कमरे में आया और पुछा, "क्या हुआ? ऐसे रो क्यों रही है? किसी ने कुछ कहा तुझे? बता मुझे मैं मुंह तोड़ दूंगा उसका - बता तो क्या हो गया?" - और बड़े ही विचिलित मन से और सवाल भरी नज़रों से रेवती की ओर देखता रहा।

"अब बोलेगी भी या टेसुए ही बहाए जाएगी, मेरा दिल बैठा जा रहा है। बता भी हुआ क्या है?"

रेवती ने आंसू थामते और सुबकते हुए कहा, "भैया...! कल से हम कॉलेज नहीं जायेंगे। हमें उसकी हरकतें पसंद नहीं। वो लड़का रोज़ हमें परेशान करता है। गंदे-गंदे जुमले कसता और इशारे भी करता है। आज तो हद ही हो गई हम स्कूटी पर मीना के साथ कॉलेज जा रहे थे और वो पीछे से अपनी मोटरसाइकिल पर आया और मेरा दुपट्टा ज़ोर से खींच कर ले भागा। देखो, मैं सड़क पर गिर भी गई मेरे कितनी चोट आई है, खून भी निकला कितना। मैं कल से नहीं जाऊँगी वरना वो कमीना फिर से परेशान करने आ जायेगा।"

इतना सुनते के साथ ही नीशू सन्न रह गया, मानो उस पर घड़ो पानी पड़ गया हो। ऐसे कमीनेपन में तो वो भी माहिर था। सारा दिन वो भी तो यही सब करता था अपने आवारा मित्रों के साथ मिलकर, मोहल्ले के चौराहे पर खड़े रहकर। आती-जाती, राह चलती लड़कियों को छेड़ना, फितरे कसना, परेशान करना, सीटियाँ बजाना, फ़िरकी लेना और भी ना जाने क्या-क्या। छिछोरपन में कोई कमी थोड़ी छोड़ी थी उसने कभी। उसकी करनी का नतीजा आज ख़ुदकी छोटी बहन के साथ हुए दुर्व्यवहार के रूप में उसके सामने था।

उसे यह अहसास और आभास कभी ना हुआ था कि, ऐसा कुछ उसकी बहन के साथ भी हो सकता है। अब उसे समझ में आया कि जिनके साथ वो बदसलूकी करता था वो भी किसी की बहन, बेटी, पत्नी या किसी के घर की इज्ज़त थीं। आज अपने आप से नज़रे मिलाने लायक नहीं रहा था वो, आत्मग्लानि होने पर उसका वजूद उसे धिक्कारने लगा और उसका दिल स्वयं अपने मुंह पर थूकने को करने लगा। शर्म से मुंह लटकाए, सर झुकाए, धक से वहीँ बहन के पास बैठ गया और पश्चाताप के आंसू उसकी आँखों में भर आए।

#तुषारराजरस्तोगी  #लघुकथा #सामाजिकसमस्या  #बदतमीज़ी  #छेड़छाड़  #लड़कियां  #पश्चाताप  #आंसू

आज की कड़ियाँ 

सद्गुणों का विरोधाभास - विकेश कुमार बडोला

नन्ही नन्ही चिड़ियाँ - अनीता

ज्यु ज्यूँ ज़िन्दगी - कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा

साक़ी - मिसरा राहुल

साध्वी प्राची की आवाज़ सुनो - वीरेंदर कुमार शर्मा

भींगी हुई आँखों से - अनामिका घटक

मन की पाबंदियाँ - प्रियंका जैन

दिवास्वप्न का मानस - उदय वीर सिंह

नावक और उसका तीर - अजित वडनेरकर

ज़िन्दगी क्या है - प्रीती सुराना

कहाँ है मेरे पद चिन्ह - उपासना सियाग

आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा

नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम


लेखागार