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शुक्रवार, 26 मई 2017

नहीं रहे सुपरकॉप केपीएस गिल और ब्लॉग बुलेटिन

सभी मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के.पी.एस.गिल का शुक्रवार (26 मई) को दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया. वह 82 वर्ष के थे. गिल किडनी की अत्यंत गंभीर बीमारी के साथ-साथ दिल की बीमारियों से ग्रसित थे. दो बार पंजाब के डीजीपी रहे गिल ने प्रदेश में उग्रवाद को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाई थी.

सर गंगाराम अस्पताल ने एक बयान में कहा, "उनके पेरिटोनियम में संक्रमण था, जो धीरे-धीरे ठीक हो रहा था. अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई." अस्पताल के मुताबिक, उनका निधन अपराह्न 2.55 बजे हुआ. उन्हें 18 मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

गिल सन् 1988-1990 तथा दूसरी बार 1991-1995 के बीच पंजाब के डीजीपी रहे. वह सन् 1995 में सेवानिवृत्त हो गए थे. गिल इंस्टिट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट तथा इंडियन हॉकी फेडरेशन (आईएचएफ) के अध्यक्ष भी रहे. नागरिक सेवा कार्यों के लिए उन्हें सन् 1989 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

पंजाब में खालिस्तानी आतंक की कमर तोड़ी

केपीएस गिल को पंजाब में चरमपंथ को खत्म करने का श्रेय मिला वहीं मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल भी उठाए थे और फर्जी मुठभेड़ों के अनेक मामले न्यायालय में भी पहुंचे थे.केपीएस गिल पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन से सख़्ती से निपटे थे. मई, 1988 में उन्होंने खालिस्तानी चरमपंथियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन ब्लैक थंडर की कमान संभाली थी. यह ऑपरेशन काफी कामयाब रहा था. बाद में वो इंडियन डॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष भी बने. केपीएस गिल का पूरा नाम कुंवर पाल सिंह गिल था. वो दो बार पंजाब के डीजीपी रहें. वो साल 1995 में पुलिस सेवा से सेवानिवृत हुए. उन्हें 1989 में पदम श्री का अवार्ड मिला था.


(साभार : zeenews.india.com)


आज सुपरकॉप केपीएस गिल जी के आकस्मिक निधन पर हम सब शोक व्यक्त करते हैं तथा उनके साहसिक योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर...अभिनन्दन।।

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

आत्मविश्वास से चमकती शबनम और ब्लॉग बुलेटिन

रात का समय, घड़ी नौ से अधिक का समय बता रही थी. सड़क किनारे एक दुकान के पास बाइक रुकते ही उतरा जाता उससे पहले उससे नजरें मिली. चंचलता-विहीन आँखें एकटक बस निहार रही थी. आँखों में, चेहरे में शून्य सा स्पष्ट दिख रहा था. आँखों में भी किसी तरह का निवेदन नहीं, कोई आग्रह नहीं, कोई याचना नहीं. वो उन्हीं नज़रों के सहारे नजदीक चली आई. एकदम नजदीक आकर भी उसने कुछ नहीं कहा. एक हाथ से अपने उलझे बालों की एक लट को अपने गालों से हटाकर वापस बालों के बीच फँसाया और दूसरे हाथ में पकड़े कुछेक गुब्बारों को हमारे सामने कर दिया. बिना कुछ कहे उसका आशय समझ आ गया. गुब्बारे जैसी क्षणिक वस्तु बेचने का रिस्क और उस पर भी कोई याचना जैसा नहीं. कोई अनुरोध जैसा नहीं बस आँखों की चंचलता. उस लड़की के हाव-भाव ने, आँखों की चपलता ने प्रभावित किया. लगा कि उसकी मदद की जानी चाहिए किन्तु घर जाने की स्थिति अभी बनी नहीं थी. इस कारण गुब्बारे न ले पाने की विवशता ने अन्दर ही अन्दर परेशान किया. चंद रुपयों के साथ भाव उभरा कि घर न जाने के कारण हम गुब्बारे नहीं ले पा रहे हैं पर ये कुछ रुपये रख लो. उस लड़की ने रुपयों की तरफ देखे बिना ऐसे बुरा सा मुँह बनाया जैसे उसे रुपये नहीं चाहिए बस गुब्बारे ही बेचने हैं. अबकी आँखों में कुछ अपनापन सा उभरता दिखाई दिया. आँखों और होंठों की समवेत मुस्कराहट में गुब्बारे खरीद ही लेने का अनुरोध जैसा आदेश सा दिखा. हम दोस्तों ने अपने आपको इस मोहजाल से बाहर निकालते हुए गुब्बारे खरीद लिए. गुब्बारों के बदले रुपये लेते उभरी उस मुस्कान ने, आँखों की चमक ने, चेहरे की दृढ़ता ने, उसके आत्मसम्मान ने उसके प्रति आकर्षण पैदा किया. 


आँखों आँखों में बने रास्ते पर चलकर नजदीक आई उस लड़की ने हमारे कुछ सवालों पर अपने होंठों को खोला. चंद मिनट में उसने रुक-रुक कर बहुत कुछ बताया. बड़े से शहर की उस जगह से लगभग पन्द्रह किमी दूर ग्रामीण अंचल तक उसे अकेले जाना है. कोई उसके साथ नहीं है. अकेले का आना, अकेले का जाना, सुबह से देर रात तक सिर्फ गुब्बारे बेचना, पूरे दिन में सत्तर-अस्सी रुपयों को जमा कर लेना, पेट की आग शांत करने के कारण पढ़ न पाना. उम्र, कर्मठता, जिम्मेवारी और आत्मविश्वास के अद्भुत समन्वय में फुहारों में भीगती ‘शबनम’ सुबह की बजाय रात को जगमगा रही थी. गीली सड़क पर खड़ी बारह-तेरह वर्ष की वो बच्ची एकाएक प्रौढ़ लगने लगी. उसके नाजुक हाथों में गुब्बारे की जगह जिम्मेवारियाँ दिखाई देने लगी. स्ट्रीट लाइट और गाड़ियों की लाइट से उसका चेहरा चमक रहा था. लोगों के लिए इस चमक का कारण स्ट्रीट लाइट और गाड़ियों की लाइट हो सकती थी मगर हमारी निगाह में वो चमक उसकी कर्मठता की, उसके आत्मविश्वास की थी.
इसी चमक से चमकती आज की बुलेटिन आपके बीच...

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