Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

गूगल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गूगल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 2 सितंबर 2015

ब्लॉग बुलेटिन - गूगल का नया रूप

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।


इंटरनेट की दुनिया की नंबर वन कंपनी 'गूगल' सर्च इंजन ने आज अपने नये लोगो का शुभारंभ किया है। गूगल का नया लोगो आप गूगल सर्च इंजन के मुखपृष्ठ https://www.google.co.in पर देख सकते है।

सादर
हर्षवर्धन श्रीवास्तव

अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर  .......... 














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। शुभरात्रि। सादर … अभिनन्दन।। 

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है ... अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस २१ फ़रवरी को मनाया जाता है। १७ नवंबर, १९९९ को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी।

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवँ सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन १९५२ से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।

२००८ को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया था ।

यह मात्र एक संयोग ही था कि आज दिन मे नेट पर खबरें पढ़ते हुये इस समाचार पर ध्यान गया |

इस खबर के अनुसार अब गूगल ने भी भारत को महत्व देते हुए यहां की क्षेत्रीय भाषाओं में नए एंड्रायड एप्स बनाने की योजना की है। इस सिलसिले में बेंगलूर में दो दिवसीय वर्कशॉप आयोजित की जा रही है जिसकी मेजबानी का दायित्व गूगल ने लिया है। यह वर्कशॉप भारतीय भाषाओं में एंड्रायड एप्लीकेशन को बनाने व डिजाइन करने पर फोकस करेगा। 21 फरवरी व 22 फरवरी को होने वाले इस इवेंट में करीब 100 डेवलेपर्स हिस्सा लेंगे। 

एक और सुखद संयोग देखिये कि आज ही हम मे अधिकतर की मातृभाषा हिन्दी के महाकवि निराला जी की जयंती भी है |

हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११ संवत १९५३ तदनुसार ११ फरवरी सन १८९६ में हुआ था। उनकी कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्मतिथि २१ फरवरी १८९९ अंकित की गई है। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। उनका जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंण्डित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे।
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्तूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।

 ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से मैं आप सब को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ और साथ साथ इसी मौके पर अपनी मातृभाषा हिन्दी के महाकवि निराला जी को शत शत नमन करता हूँ |

सादर आपका 
=======================

इससे खूबसूरत पश्चाताप और कोई नहीं …

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें...

नेटवा बैरी ……

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा

बोलो बसंत

Dr.NISHA MAHARANA at My Expression

कुछ दोहे


''चल बबाल कटा !'' -लघु कथा


शिशु

कालीपद प्रसाद at अनुभूति

वोट दिया तो उंगली काट लेंगे की धमकी के बावजूद

रमेश शर्मा at यायावर

कहीं आप के पेस्ट मंजन में भी तंबाकू तो नहीं...

डा प्रवीण चोपड़ा at मीडिया डाक्टर

कोरे पन्‍नों पर !!!!!!!!!!!

सदा at SADA

राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमा शीलता की प्रंशसा


कैसे कहूँ मै तुमसे अपने हृदय की बतियाँ

Rekha Joshi at Ocean of Bliss

=======================
अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

गूगल पर बनाइये अपनी डिजिटल वसीयत - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

क्या आपको इस बात की चिंता रहती है कि मौत के बाद आपके  निजी और सेव किए गए ई-मेल को कौन पढ़ेगा या आपके सेव किए वीडियो और चित्रों का क्या होगा ? तो अब परेशान होने की जरूरत नहीं। जानी मानी सॉफ्टवेयर कंपनी गूगल ने इंटरनेट यूजर्स की इस चिंता का हल खोज लिया है।

गूगल ने 'इनएक्टिव अकाउंट मैनेजर' (आइएएम) पेज लांच किया है, जिसका इस्तेमाल डिजिटल वसीयत के रूप में किया जा सकेगा। गूगल लोगों से पूछ रहा है कि मरने, ऑनलाइन सक्रिय न रहने या अक्षम होने पर वह अपनी डिजिटल फोटो, दस्तावेजों व अन्य वर्चुअल सामग्री का क्या करना चाहेंगे? दरअसल, आइएएम का इस्तेमाल कर गूगल को यह निर्देश दिया जा सकता है कि वह गूगल ड्राइव, जीमेल, यूट्यूब या सोशल नेटवर्किंग साइट गूगल प्लस का डाटा यूजर्स के किसी खास व्यक्ति को भेज दे या लंबे समय तक इसका प्रयोग न होने पर डिलीट कर दे।

कहां मिलेगा विकल्प

अकाउंट सेटिंग पेज पर एक संदेश में गूगल लोगों को अपना डाटा विश्वस्त मित्र, परिवार के सदस्य के साथ साझा करने या अपना अकाउंट डिलीट करने का विकल्प देगा। साथ ही, यूजर्स अकाउंट के निष्क्रिय होने की अवधि का चयन करने में भी सक्षम होंगे। गूगल लोगों को इस बात का भी विकल्प देगा कि कार्रवाई करने से पहले कितने समय तक इंतजार किया जाए। उसके बाद कैलिफोर्निया स्थित यह कंपनी अकाउंट धारक को समय सीमा समाप्त होने से पहले ई-मेल या अलर्ट संदेश भेजगी। अलर्ट के जारी होने के बाद करीब दस विश्वसनीय लोगों को इस बारे में विशेष सूचना मिलेगी कि अकाउंट का क्या करना है। उसके बाद गूगल यूजर्स को यूट्यूब वीडियो, गूगल प्लस प्रोफाइल्स सहित अपनी सभी सेवाओं से अकाउंट खत्म करने का विकल्प देगा।
यूजर्स तीन, छह, नौ या एक साल की अवधि का चयन कर सकते हैं। समय सीमा समाप्त के एक महीने पहले गूगल दूसरे ई-मेल पते पर सूचना भेजेगा। यह समय गुजरने पर गूगल दिए गए विश्वसनीय लोगों को डाटा के बारे में सूचित करेगा और इसे डाउनलोड करने की भी जानकारी देगा। 

तो फिर समय रहते इस सुविधा का लाभ उठाए और अपनी डिजिटल वसीयत जरूर बनाए !

सादर आपका 

शिवम मिश्रा 
=================================

"टॉम हमारा साथ छोड़कर चला गया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) at उच्चारण
*प्यारा-प्यारा टॉम हमारा साथ छोड़कर चला गया।*** *हम सबकी आँखों का तारा साथ छोड़कर चला गया।*** *पला-बढ़ा था ठाठ-बाट में,*** *आठ वर्ष तक रहा साथ में**,* *चौकीदारी करनेवाला साथ छोड़कर चला गया।*** *बीमारी की जीत हो गयी,*** *मृत्यु उसकी मीत हो गयी,*** *घरभर का ये राजदुलारा साथ छोड़कर चला गया।*** *आज फिरंगी खोज रहा है,*** *व्याकुल होकर सोच रहा है**,* *मेरा प्यारा भाई, मेरा साथ छोडकर चला गया।*** *शोक आज घर में छाया है,*** *सबका ही मन भर आया है,*** *सच्चा पहरेदार हमारा साथ छोड़कर चला गया।* *हम सबकी आँखों का तारा साथ छोड़कर चला गया।।*

माँ का बुलावा क्या सचमुच आता है? एक अजब-गजब यात्रा वृतांत

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
ऐसी आम धारणा है कि किसी देव-स्थान या तीर्थ पर जाना तभी संभव हो सकता है जब वहां के अधिष्ठाता देवी या देवता का बुलावा आता है। खासकर वैष्णव देवी के धाम के साथ यह विश्वास काफी गहराई से जुडा हुआ है। अभी हाल में ही इस विषय पर पक्ष और विपक्ष में कथन पढने को मिले। तभी वर्षों पहले की गयी एक यात्रा का विवरण आंखों के सामने कौंध गया। किसी भी पक्ष की तरफ़दारी ना करते हुए सिर्फ आपबीती बयान कर रहा हूं। हालांकि उस समय हर कदम पर अडचनें आयीं पर खुद ब खुद दूर भी होती चली गयीं। उस समय घटी एक-एक बात या घटना "पक्ष" की ओर इशारा करती है। पर फिर भी मन किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाया आज तक। अनेक घटनाओं... more »

याद तुम्हारी आती है .........

ढलती है जब सूरज की लाली तब याद तुम्हारी आती है सजती है जब तारों की माला तब याद तुम्हारी आती है छाती है जब घनघोर घटा तब याद तुम्हारी आती है आता है जब नयनों में सपना तब याद तुम्हारी आती है करती हूँ जब श्रंगार अपना तब याद तुम्हारी आती है ... more »

Sanjay Pal: Researcher and Link Writer

रश्मि प्रभा... at शख्स - मेरी कलम से
हर अगला कदम पीछे होता है,और पीछेवाला आगे आता है ..... पिछले कदम की यह अनवरत की यात्रा है, स्वाभाविक दृढ़ प्रयास ! हिमालय हो या कैलाश पर्वत ..... ऊँचाई विनम्र होती है,पर निचे नहीं उतरती - उसे पाने के लिए उसमें रास्ते बना उसपर चढ़ना होता है ... यदि कल को कोई नन्हा सूरज आ जाये आकाश में तो निःसंदेह उसे अपनी पहचान के लिए सदियों से उगते सूरज से सामंजस्य बिठाना होगा,उसके ताप को सहना होगा अपने भीतर ऊर्जा जगाने के लिए . शब्दों की यात्रा में,मुखरता के आज में कई लोग मिलते हैं - पर उद्देश्यहीन . उद्देश्य के मार्ग में उम्र क्या और यात्रा की अवधि क्या ! युवा उम्र की गति आशीष लेकर जब चलती है तो... more »

"हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले" भाग -1

ताऊ रामपुरिया at ताऊ डाट इन
फ़िल्म शोले के सभी चरित्र अपने आप में इतनी कसावट लिये हुये थे कि हर चरित्र दर्शकों के दिल में बस गया. फ़िल्म सर्वकालिक हिट रही. इसके किरदारों के पीछे की कहानी कोई नही जानता. जैसे किसी को ये नही मालूम की डाकू गब्बर सिंह के पिता कौन थे? सिर्फ़ पिता का नाम हरिसिंह मालूम है. सभी किरदारों के पिछले जन्म का इतिहास क्या है? इन्हीं सब सवालों के जवाब देता हुआ हमारा यह ताऊ टीवी धारावाहिक है "हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले" जिसमे आप इन किरदारों के वर्तमान जन्म के साथ साथ अगले पिछले जन्म की कहानी भी जान पायेंगे. * * *"हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले" * *(भाग -1)* * * *बहुत समय पहले की... more »

अवचेतन मन का प्रवाह

*दोस्‍तों की याद के साथ, शाम और रात का मिलन* ठोस व्‍यस्‍तता के बावजूद एक बार फिर मन को बाहर उड़लने को बैठा हूँ। दिन के रात में मिलने और परिणामस्‍वरुप उभरनेवाले प्रकृति प्रभावों को देख घर में आने का मन नहीं हुआ। काम के बोझ का विचार विवश कर गया अन्‍दर आने को। लेकिन तब भी ठान ली कि आज ब्‍लॉगर दोस्‍तों के लिए कुछ लिखूंगा। गर्मी है पर दिन ढलने पर चलती, लगती हवा ने नवप्राण दे दिए। छुट्टी के दिन सोचा एक घंटे सो जाऊं। नींद में उतरा ही था कि लगा जैसे कोई मुझे हिलाते हुए उठा रहा है। अज्ञात सपनों को पकड़ने की कोशिश में आंखें नहीं खोलीं। सात सेकंड तक खाट सहित हिलता रहा तो देखना पड़ा कौन है। कोई न... more »

मन की बातें – कुछ और हाईकू

Sadhana Vaid at Sudhinama
१ दिया औ' बाती अँधियारा मिटाती आस्था जगाती ! २ मानिनी हूँ मैं हक से ही पाऊँगी भिक्षा न देना ! ३ मत कुरेदो आग है अंतर में जल जाओगे ! ४ अस्त्र उठाओ शत्रु को पहचानो संधान करो ! ५ मैं नहीं देवी ना दिखा छद्म भक्ति मानवी ही हूँ ! ६ सपने देखो तो साकार भी करो टूटने ना दो ! ७ साहस धारो मन को हौसला दो दुनिया जीतो ! ८ हाँ जिद्दी हूँ मैं यूँ चुप ना रहूँगी लड़ मरूँगी ! ९ देखना मुझे जीत कैसी होती है सीख भी लेना ! १० चाँदनी हूँ मैं तो सूर्य भी मैं ही हूँ अपनी जानो ! ११ मत पुकारो दूर तक है जाना आ न पाऊँगी ! साधना वैद

कथा - गाथा : अपर्णा मनोज

arun dev at समालोचन
* परम्पराएँ जब धर्म का आवरण ओढ़ लेती हैं तब उनका शिकंजा और सख्त हो जाता है. अगर श्वसुर बहू का बलात्कार करे तो वह उसका भी पति हो जाता है. फिर क्या रिश्ता बनता है पिता, माँ, बेटे और बहू के बीच. और सबसे बड़ा सवाल की क्या रास्ता बचता है उस स्त्री के पास जो अब अपने पति की माँ है. सामाजिक विडम्बनाओं पर अपर्णा मनोज बेहद संवेदनशील ढंग से लिखने वाली कथाकार हैं. मर्मस्पर्शी और सशक्त कहानी है नीलाघर नीला घर अपर्णा मनोज *

झुन झुन कटोरा

पुरुषोत्तम पाण्डेय at जाले
झुन झुन कटोरा (via thinkingparticle.com) आपने आगरा जाकर मुग़ल बादशाह शाहजहां और उनकी प्यारी बेगम मुमताज महल की प्रेम की निशानी, उनका भव्य मकबरा, जिसे विश्व भर में ‘ताजमहल’ के नाम से जाना जाता है, अवश्य देखा होगा. ये अब विश्व धरोहर है और भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है. ताजमहल के अलावा भी आगरा के आस पास कई अन्य मुगलकालीन स्मारक हैं, जैसे लालकिला, आरामबाग, एतमादुद्दौला का मकबरा, फतेहपुर सीकरी और ‘झुन झुन कटोरा’ आदि. ये सभी इमारतें पुरातत्व विभग की निगरानी में है. इनमें से झुन झुन कटोरा एक संरक्षित किन्तु उपेक्षित मकबरा. यह उस निजाम नाम के भिश्ती का मकबरा है, जिसे मुग़ल बादशा... more »

tajmahal ,ताजमहल भ्रमण

ताजमहल में अंदर जाने के लिये कई प्रवेश द्धार हैं इन्ही पर टिकट भी मिलता है । पहली बार की यात्रा में तो हम इसे समझ ही नही पाये थे । इस इमारत को देखने के लिये काफी समय चाहिये होता है । हम दोनो तो मथुरा से ही गये थे क्योंकि हमारे पास बस का पास था और मथुरा से आगरा ज्यादा दूर भी नही है साथ ही बस की सेवा भी काफी बढिया है । हमने अपना होटल भी मथुरा में ही रखा पता नही आगरा में कहां कहां पर होटल ढूंढना पडता । उसमें ही काफी समय लग जाता उसकी बजाय उतना समय घूमने में लगाना उचित था । मथुरा में बस में हमारे साथी बना एक परिवार भी हमारे साथ था । जून की गर्मिया थी और ताजमहल बिलकुल भी सुंदर नही लग र... more »

एक दुपहरी

प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
एक दुपहरी, गर्म नहीं, गुनगुनी, मन अकेला, व्यग्र नहीं, अनमना, मिलकर सोचने लगे, क्या करें, समय का रिक्त है, कैसे भरें, कुछ उत्पादक, सार्थक, ठोस, या सुन्दर, जैसे सुबह पड़ी ओस, जो उत्पादक, सजेगा रत्न सा, सुन्दर सुखमय, पर स्वप्न सा, सोचा, कौन अधिक उपयोगी, सोचा, किससे प्यास बुझेगी? प्रश्न जूझते, उत्तर खिंचते, दोनों गुत्थम गुत्था भिंचते, समय खड़ा है, खड़े स्वयं हम, उत्तर आये, बढ़ जाये क्रम, उपयोगी हो या मन भाये, रत्न मिले या सुख दे जाये, किन्तु दुपहरी, अब तक ठहरी, असमंजस मति पैठी गहरी, मन भी बैठा रहा व्यवस्थित, गति स्थिरता मध्य विवश चित, गर्म दुपहरी, व्यग्र रहा मन निर्णय ... more »
 =================================
अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

लेखागार