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बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

आओ फिर दिल बहलाएँ ... आज फिर रावण जलाएं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज दशहरा है ... इस अवसर पर लीजिये पेश है एक लतीफा ...


रावण को कोर्ट में लाया गया और कहा गया, "गीता पर हाथ रखो !"
 रावण बोला, " सीता पर हाथ रखा तो इतना बवाल हुआ ... और अब गीता पर ! माफ़ करना सर, सज़ा भले ही कुछ भी दे दो पर अब मैं कोई भी रिस्क नहीं लूँगा ! "



पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को शुभ दशहरा !

सादर आपका 


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सरकारी अस्पताल में पुरुष नर्स।

VICHAAR SHOONYA at विचार शून्य
नर्सिंग एक महिला प्रधान पेशा है। पुरुष भी नर्स बन सकते हैं ये बात मुझे पता थी पर अभी तक मैंने किसी पुरुष को नर्स का कार्य करते हुए देखा नहीं था। पिछले कुछ दिन मेरे बच्चे डेंगू की वजह से दिल्ली के एक सरकारी बाल चिकित्सालय में भर्ती थे। वहां मैंने पहली बार किसी पुरुष को नर्स के रूप में कार्य करते हुए देखा। दो युवक मेडीसिन वार्ड में नर्स के तौर पर कार्यरत थे। मैं दोनों के ही कार्य से बहुत प्रभावित हुआ। उनका संयम, धेर्य और बाल मरीजों से बात करने का तरीका काबिले तारीफ था। आम तौर पर सरकारी अस्पतालों में कार्यरत नर्सें अपने कार्य के प्रति बेहद असंवेदनशील होती हैं।इसके विपरीत ये दोने युव... more »

राजपूत नारियों की साहित्य साधना

noreply@blogger.com (Ratan singh shekhawat) at ज्ञान दर्पण
भारतीय इतिहासकारों ने शासक जाति राजपूत नारियों के द्वारा शासन सञ्चालन में योगदान, युद्ध बेला में शत्रु सामुख्य जौहर तथा शाकों में आत्म-बलिदान और पति की मृत्यु पर चितारोहण कर प्राण विसर्जन करने आदि अति साहसिक कार्यों पर तो प्रकाश डाला है परन्तु उनके द्वारा सर्वसाधारण के हितार्थ किये गए विशिष्ट सेवा कार्यों की ओर तनिक भी विचार नहीं किया है| राजपूत नारियों ने राजस्थान के नगरों,कस्बों और गांवों में हजारों की संख्या में मंदिरों, मठों, पाठशालाओं, कूपों, वापिकाओं, प्रपातों का निर्माण करवाया है| सर्वजन हिताय: के लिए नारियों की यह देन वस्तुत: महत्त्व की है| इसी प्रकार स्थापत्य कला के अतिरि... more »

दशहरे पर !

रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकार
आज दशहरे पर हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हर शहर में और कई जगह पर रावण के पुतलों को जलाया जाएगा और परंपरागत रूप से घर के बड़े बच्चों को ये कहते हुए सुने जा सकते हैं कि ये तो बुराई के अंत और भलाई की बुराई के ऊपर विजय का पर्व है, इसी लिए बुराई के प्रतीक रावण को भलाई के प्रतीक राम जी इसको जलाते हैं। रावण एक प्रतीक है और जब ये प्रतीक था तो सिर्फ और सिर्फ एक ही रावण था . उसके अन्दर पलने वाली हर बुराई उसके अन्दर के विद्वान पर भारी पड़ी थी और फिर उसका अंत हुआ . लेकिन कभी हमने सोचा है कि रावण तो आज भी जिन्दा है और आज व... more »

"शून्यं चाशून्यं च"

सूर्यकान्त गुप्ता at उमड़त घुमड़त विचार
* माँ भगवती की अराधना के अभी अभी बीते वे नौ दिन थे। श्रद्धा, विश्वास, आस्था के सम्पूर्ण दर्शन कराने वाले ये नौ दिन। एक तरफ माँ शक्ति के उपासक की उपासना, दूसरी और "आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी" की अवधारणा के साथ पहाड़ावाली माँ बमलेश्वरी के दर्शन की लालसा लिए मीलों पैदल चलने वालों की श्रद्धा व आस्था। माँ भगवती भक्तों को अपने किसी न किसी स्वरूप का दर्शन अवश्य कराती है। * * लगता है हमने भी माँ के विभिन्न स्वरूपों में से एक "शून्य" स्वरुप का ब्लॉग के माध्यम से दर्शन किया। मन को रोक नहीं पाए। ध्यान आया माँ भवानी की स्तुति के ... more »

"कागज़ ही तो काले करती हो "

तोड़ने से पहले तोडना और जोड़ने से पहले जोड़ना कोई तुमसे सीखे कितनी आसान प्रक्रिया है तुम्हारे लिए ना जाने कैसी सोच है तुम्हारी ना जाने कैसे संवेदनहीन होकर जी लेते हो जहाँ किसी की संवेदनाओं के लिए कोई जगह नही होती होती है तो सिर्फ एक सोच अर्थ की दृष्टि से अगर आप में क्षमता है आर्थिक रूप से कुछ कर पाने की तब तो आप की कोई जगह है वर्ना आपका नंबर सबसे आखिरी है बेशक दूसरे आपको सम्मान देते हों आपके लेखन के कायल हों मगर आप के जीवन की यही सबसे बड़ी त्रासदी होती है आप अपने ही घर में घायल होती हो नहीं होता महत्त्व आपका आपके लेखन का आपके अपनों की नज़रों में ही और आसान हो जाता है उनके  more »

विजयादशमी,,,

Dheerendra singh Bhadauriya at काव्यान्जलि ...
विजयादशमी. विजयादशमी, एक मात्र पर्व नहीं यह एक प्रतीक है -? कई सारी बातों का साहस और सच्चाई का बुराई और अच्छाई का नि:स्वार्थ सहायता मित्रता और वीरता प्रतिभाशाली और दंभ का रावण जैसे स्थभं का अलग-अलग भले-बुरे तत्वों का प्रतीक है अच्छाई, राम की- बुराई, रावण की- सीख लेने की बनाई गई रीत अच्छाई की बुराई पर जीत विजय की खुशी मनाने का प्रतीक, विजयादशमी. *dheerendra,bhadauriya,*

रावण का अंतरद्वंद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
*हमारे प्राचीन साधू-संत, ऋषि-मुनि अपने विषयों के प्रकांड विद्वान हुआ करते थे। उनके द्वारा बताए गए उपदेश, कथाएँ, जीवनोपयोगी निर्देश उनके जीवन भर के अनुभवों का सार हुआ करता था जो आज भी प्रासंगिक हैं। उनके कहे पर शक करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा ही है। पर समय के साथ या फिर अपनी क्षुद्र बुद्धि से कुछेक लोगों ने अपने हितों के लिए उनकी हिदायतों को तोड़ मरोड़ लिया हो, ऐसा भी संभव है। रामायण के सन्दर्भ में ही देखें तो करीब पांच हजार साल पहले ऋषि वाल्मीकि जी के द्वारा उल्लेखित रावण में और आज के प्रचारित रावण जमीन-आसमान का फर्क देखने को मिलता है।* आकाश मे अपने पूरे तेज के साथ भगव.more »

जल जायेगा रावण बेचारा -- क्या मन के रावण को मारा !

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन
और एक बार फिर रावण जल जायेगा। बड़ा बेहया है ये वाला रावण। हर वर्ष जलता है , फिर अगले वर्ष पहले से भी बड़ा होकर फिर मूंह उठाकर खड़ा हो जाता है। जलाने वाले भी ऐसे हैं कि थकते ही नहीं। पूरे नौ दिनों तक विविध रूप के कर्मकांड करते हुए दसवें दिन धूम धाम से ज़नाज़ा निकालते हैं और जला कर राख कर खाक में मिला देते हैं . एक बार फिर अन्याय, अधर्म और पाप की हार होती है और न्याय, धर्म और पुण्य की जीत होती है जिसका जश्न भी तुरंत मना लिया जाता है। यह दुनिया भी अजीब है। जब एक देश में दिन होता है , उसी समय किसी दूसरे देश में रात होती है। इसी तरह एक धर्म के पर्व दूसरे धर्मों के लिए कोई विशेष अर्थ नही... more »

‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष: परिचय एवं उपयोगिता’ का एक प्रजेंटेशन और कार्यक्रम

समाज से ज्‍योतिषीय एवं धार्मिक भ्रांतियों को दूर करने के उद्देश्‍य से पेटरवार के वन एवं पर्यावरण विभाग के सभागार में अविभाजित बिहार के वित्‍त राज्‍य मंत्री रह चुके श्री छत्रु राम महतो की अध्‍यक्षता में ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिषीय अनुसंधान केन्‍द्र द्वारा ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष: परिचय एवं उपयोगिता’ का एक प्रजेंटेशन और कार्यक्रम आयोजित किया गया। श्रीमती शालिनी खन्‍ना ने बीस वर्षों में गत्‍यात्‍मक ज्‍योति ष की यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में होने वाले चर्चा के बारे में बताया। गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष के जनक श्री विद्या सागर महथा जी ने जीवनभर चलने वाले अपने ज्‍योतिषीय यात्रा के बारे में बताने के क... more »

हे राम

आप सभी को विजयादशमी की हार्दिक मंगलकामनाएं । प्रभु राम को नमन .......

या देवी सर्वभूतेषु … …

मनोज कुमार at विचार
*या देवी सर्वभूतेषु … …* ** *या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।*** *नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।*** हे देवी तुम शक्ति रूप हो। जो देवी सब प्राणियों में शक्तिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है। हम सभी जानते हैं कि कहीं न कहीं कोई शक्ति अवश्य है जो सारे ब्रह्मांड का संचालन करती है। प्रत्येक वर्ष आश्‍विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक हम शारदीय नवरात्र मनाते हैं। यह पर्व है असत्य पर सत्य की, अधर्म पर धर्म की, अत्याचार पर सदाचार की विजय पाने का। एकबार देवताओं के राजा इन्द्र तथा राक्षसों के राजा महिषासुर में वर्षों तक घ... more »

लैपटॉप या टैबलेट - तकनीकी पक्ष

noreply@blogger.com (प्रवीण पाण्डेय) at न दैन्यं न पलायनम्
जीवन में लैपटॉप की आवश्यकता सबसे पहले तब लगी थी, जब कार्यालय और घर के डेस्कटॉपों पर पेनड्राइव के माध्यम से डाटा स्थानान्तरित करते करते पक गया था। लैपटॉप आने से दोनों डेस्कटॉप मेरे लिये अतिरिक्त हो गये। लैपटॉप की और छोटे होने की चाह बनती ही रही, कारण रहा, उस १५.६ इंच के लैपटॉप को ट्रेन यात्रा और कार यात्रा के समय अधिकतम उपयोग न कर पाने की विवशता। १२ सेल की बैटरी के साथ लगभग ४ किलो का उपकरण सहजता से यात्रा में उपयोगी नहीं हो सकता था। बैठकों में भी १५.६ इंच का लैपटॉप अपने सामने रखना अटपटा सा लगता था, लगता था कि कोई और व्यक्ति सामने आकर बैठ गया हो। अन्ततः वह लैपटॉप दो डेस्कटॉपों के स्था... more »

एक जनसेवक को क्या चाहिए ...

शिवम् मिश्रा at मेरे पसंदीदा अश्आर
*मित्रों , आज **अदम गोंडवी साहब का एक शे'र आप सब की नज़र करता हूँ ... देखिये बिलकुल सादा शब्दों क्या दमदार और गहरी बात कही है उन्होने ...* "एक जनसेवक को दुनिया में 'अदम' क्या चाहिए ... ; चार छ: चमचे रहें, माइक रहे, माला रहे ..." - अदम गोंडवी

" कच्ची रसीद........."

तुम, 'हाँ' नहीं कहते , यह सच है , 'ना' भी नहीं कहते , यह और भी सच है , लबों से बोलकर , पक्की रसीद न दो न सही , आँखों ही आँखों में , कच्ची रसीद ही जारी कर दो | गर हुआ मिलना कभी , दुनिया के किसी मोड़ पर , रसीद दिखा तुम्हें , अपनी चाहत रसीद कर दूँगा | अपनी चाहत वसूल कर लूँगा |

कुछ क्षणिकायें

उपेन्द्र नाथ at सृजन _शिखर
1. लोकतंत्र लोकतंत्र ने पूछा इसबार किसपर लगाओगे मुहर मतदाता मुस्कराता है महँगी होगी जिसकी शराब लोकतंत्र बेचारा फिर हो जाता है उदास ।। 2. असमंजस भगवान बड़े असमंजस में है कि किसकी सुने सौ तोले का सोने का हार भक्त ने आज ही चढ़ाया है कि धंधा खूब फले- फूले भक्त के कसाईखाने में कटने को तैयार गाय की गुहार थी हे भगवन मुझे बचा ले ...।। 3 . दहेज़-हत्या नेताजी का तर्क था जब सारा देश नाच सकता है हमारी उंगुलियों पर तब हमारी बहू भला क्यों नहीं नाची..? 4. पीढ़ी-दर-पीढ़ी तुम्हारे बाप ने जिस जिन्दगी को तलाश किया था दूध की कटोरियों में तुमने उसी जिन्दगी को पाया पेप्सी औ... more »
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 अब आज्ञा दीजिये ... 

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !




कुछ बहरों को सुनाने के लिए एक धमाका आपने तब किया था ,
एसे ही कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है,
हो सके तो आ जाओ !! 
 
 
शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी को उनके १०५ वे जन्मदिवस पर पूरे ब्लॉग जगत की ओर से शत शत नमन | 
 
इंकलाब ज़िंदाबाद !! 
 
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शहीदे आजम रहा पुकार

ई. प्रदीप कुमार साहनी at मेरा काव्य-पिटारा
*("शहीदे आजम"* सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना ) जागो देश के वीर वासियों, सुनो रहा कोई ललकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो, चलो लिए जलती मशाल; कहाँ खो गई जोश, उमंगें, कहाँ गया लहू का उबाल ? फिर दिखलाओ वही जुनून, आज वक़्त की है दरकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | पराधीनता नहीं पसंद थी, आज़ादी को जान दी हमने; भारत माँ के लिए लड़े हम, आन, बान और शान दी हमने | आज देश फिर घिरा कष्ट में, भरो दम, कर दो हुंकार; जागो माँ भारत के सपूतों, शहीदे आजम रहा पुकार | कई कुरीति,... more » 
 

उम्रदराज़ लोगों में लिव-इन रिलेशनशिप

जीवन के सांझ का अकेलापन, सबसे अधिक दुखदायी है. इसलिए भी कि जिंदगी की सुबह और दोपहर तो जीने की जद्दोजहद में ही बीत जाती है. सांझ ही ऐसा पडाव है,जहाँ पहुँचने तक अधिकांश जिम्मेदारियाँ पूरी हो गयी होती हैं. जीवन के भाग-दौड़ से भी निजात मिल जाती है और वो समय आता है,जब जिंदगी का लुत्फ़ ले सकें. सिर्फ अपने लिए जी सकें. अपने छूटे हुए शौक पूरे कर सकें. अब तक पति-पत्नी पैसे कमाने ,बच्चों को संभालने....सर पर छत का जुगाड़ और चूल्हे की गर्मी बचाए रखने की आपाधापी में एक दूसरे का ख्याल नहीं रख पाते थे .एक साथ समय नहीं बिता पाते थे.और आजकल उन्नत चिकित्सा सुविधाएं ,अपने खान -पान..स्वास्थ्य के more » 
 

जनसंघर्ष ,विद्रोह और विविधता के कवि -जनकवि नागार्जुन

जयकृष्ण राय तुषार at सुनहरी कलम से...
जनकवि -नागार्जुन समय -[30-06-2011से 05-11-1998] परिचय - नागार्जुन हिंदी कविता में एक विलक्षण कवि हैं |वह जिस खाँचे में फिट बैठते उसका निर्माण या सृजन स्वंय उन्होंने ही किया है |जिस तरह छायावाद के कवियों में प्रसाद ,निराला ,पन्त और महादेवी को महत्वपूर्ण माना जाता है उसी तरह प्रयोगवादी कवियों में शमशेर ,त्रिलोचन ,केदारनाथ अग्रवाल और नागार्जुन को माना जाता है |नागार्जुन किसान ,मजदूरों ,छात्रों के आंदोलनों के साथ -साथ बहुत बड़े राजनीतिक कवि भी माने जाते हैं |जनकवि नागार्जुन रूप और विविधताओं के कवि हैं | जनसंघर्षों के कवि हैं |इनकी कवितायें बिना किसी लाग -लपेट के सीधे व्यवस्था की पीठ पर ... more »

श्रद्धांजलि

*कार्टूनिस्ट डॉ. सतीश श्रृंगेरी का निधन* लोकप्रिय कन्नड़ कार्टूनिस्ट और आयुर्वेद चिकित्सक सतीश श्रृंगेरी का आज सुबह (२७ सितम्बर, २०१२ को) फ़ेंफ़ड़ों से जुड़ी संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया। उनकी आयु केवल ४४ वर्ष थी। कला-कार्टूनकला में उनकी बचपन से ही रुचि रही। अभिनव रामानन्द हाई स्कूल (किग्गा), जो श्रंगेरी के निकट एक दूरस्थ गांव है, में पढ़ाई के दौरान उन्होंने ड्रॉइंग का खूब अभ्यास किया और बहुत से कार्टून-कैरीकेचर बनाए। उन्होंने कार्टून कला सिखाने के लिए भी प्रयास किया। वह श्री जगद्गुरु चंद्रशेखर भारती मे
 

निदा फ़ाजली के दोहे

NAVIN C. CHATURVEDI at ठाले बैठे
सीधा साधा डाकिया जादू करे महान इक ही थैली में भरे आँसू अरु मुस्कान ॥ घर को खोजे रात दिन घर से निकले पाँव वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव॥ मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार दिल ने दिल से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार॥ बच्चा बोला देखके मस्जिद आलिशान अल्ला' तेरे एक को इत्ता बड़ा मकान॥ 
 

ख्वाब तुम पलो पलो

तन्हा कदम उठते नहीं साथ तुम चलो चलो नींद आ रही मुझे ख्वाब तुम पलो पलो आशिक मेरा हसीन है चाँद तुम जलो जलो वो इस कदर करीब है बर्फ़ तुम गलो गलो देखते हैं सब हमें प्रेम तुम छलो छलो जुदा कभी न होंगे हम वक्त तुम टलो टलो दूरियां सिमट गयीं हसरतों फूलो फलो नेह दीप जलता रहे उम्मीद तुम मिलो मिलो 
 

एक अच्छे उद्देश्य के आंदोलन का बुरा अंत

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
करीब दो साल पहले अन्ना हजारे के दिशा-निर्देश में शुरू हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का जो हश्र हुआ है,वह दुखदाई तो है ही साथ ही करोड़ों देश वासियों की उम्मीदों पर भी पानी फेरने वाला साबित हुआ। आम-लोगों को एक आस बंधी थी कि उनकी मेहनत की कमाई का वह हिस्सा जो टैक्स के रूप में सरकार लेती है और जिसका अच्छा-खासा प्रतिशत बेईमानों की जेब में चला जाता है, उसका जनता की भलाई में उपयोग हो सकेगा। उनको अपना हक पाने के लिए दर-दर भटकना नहीं पडेगा। भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी और भ्रष्टाचारियों की नकेल कसी जा सके। रोज-रोज की घोटाले की खबरों और उसमें लिप्त सफेद पोशों के काले चेहरों को देख आम आदमी पूरी त... more » 
 

नौजवान भारत सभा का गठन

Digamber Ashu at विकल्प - 4 hours ago
भगत सिंह ने 1926 से ही वास्तविक प्रजातंत्र यानी समाजवादी प्रजातंत्र की ओर अपने कदम बढ़ा दिये थे. इसी लक्ष्य के लिए उन्होंने अपने साथी भगवती चरण वोहरा के सहयोग से 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना करने का बीड़ा उठाया और यह जानते हुए कि क्रांति का काम देश की आम जनता को संगठित किये बिना सम्भव न होगा, उन्होंने पंजाब में जगह-जगह 'नौजवान भारत सभा' की इकाइयां गठित करने का काम शुरू कर दिया. 'नौजवान भारत सभा' नाम से ऐसा जान पड़ता है कि मानो यह छात्रों-नौजवानों की माँगों के दायरे में काम करने वाला ही संगठन होगा, लेकिन असल में उनका यह संगठन भारत की आज़ादी एवं मजदूरों-किसानों की शोषण-दमन से पूर्ण म... more » 
 

काश,बर्फी के कानों की जांच हुई होती !

Kumar Radharaman at स्वास्थ्य
आज* टाइम्स ऑफ इंडिया* में मुंबई से छपी एक रिपोर्ट कहती है कि इस बारे में अभी निश्चित रूप से भले कुछ न कहा गया हो कि मोबाइल फोन का बहरेपन से संबंध है अथवा नहीं,मगर डाक्टरों का कहना है कि जो शिकायतें पहले साठ साल से ज्यादा के लोगों में मिलती थीं,अब बीस-पच्चीस साल के युवाओं में भी मिल रही हैं। कान में पैदा हो रही समस्याएं ट्यूमर तक का कारण बन रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल से दूर रहने वालों की तुलना में,इसके प्रयोक्ता में ऐसा ट्यूमर होने की संभावना 50 फीसदी ज्यादा होती है। बहरेपन की मूल वजह है वांछनीय स्तर से अधिक तेज़ आवाज़ को अधिक देर तक सुनने की आदत। यदि हम 80  more » 
 

हो रहा भारत निर्माण ( व्यंग्य कविता )

मुकेश पाण्डेय चन्दन at मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
१२ सितम्बर को साहित्य अकादमी , मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद् भोपाल तथा हिंदी विभाग , डॉ हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय , सागर द्वारा आयोजित ' पद्माकर समारोह ' काव्यपाठ हुआ . जिसमे कई बड़े कवि-कवियत्रियो के साथ मैंने भी अपनी कवितायेँ पढ़ी . उनमे से एक कविता आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ . हो रहा भारत निर्माण ! *ऐ जी , ओ जी , लो जी , सुनो जी * *हम करते रहे जी -जी , वो कर गए 2 जी * *महंगाई का चढ़ा पारा , बिगड़ी वतन की हेल्थ * *सब मिल के खा गए , खेला ऐसा कामनवेल्थ * *दुनिया करे छि-छि , हो कितना भी अपमान * *अबे चुप रहो ! हो रहा भारत निर्माण ..... * *पेट्रोल इतना महंगा , पकड़ो अ... more » 
 

शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी की १०५ वी जयंती पर विशेष

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
*कुछ बहरों को सुनाने के लिए एक धमाका आपने तब किया था ,* *एसे ही कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है,* *हो सके तो आ जाओ !! * * * * * *शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी को उनके १०५ वे जन्मदिवस पर सभी मैनपुरीवासीयों की ओर से शत शत नमन | * * * *इंकलाब ज़िंदाबाद !! *  
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आज का ब्लॉग बुलेटिन बस यहीं तक ...
 
अब आज्ञा दीजिये ...
 
सादर आपका 
 


जय हिन्द !!

शनिवार, 17 मार्च 2012

एक दिया दस लिया !! वाह रे आम बजट २०१२ : ब्लॉग बुलेटिन

सभी मित्रों को देव बाबा की राम राम....  आईए बजट के बाद के इस पहले बुलेटिन में आम आदमी की नज्ब टटोलते हैं और सरकारी मशीनरी को लग गये जंग की भी बात करते हैं... सरकार लाचार है, बोलती है पैसा नहीं है, सर्विस टैक्स बढाना ज़रूरी है, सब्सिडी हटाना ज़रूरी है, पेट्रोल की ही तर्ज़ पर डीजल को भी डायरेक्ट मार्केट रेट से जोडे जाने की भी संभावना तलाशी जा रही है... मसलन आम आदमी के लिए राहत की कोई बात फ़िलहाल तो नहीं दिख रही। सरकार खुद में उलझी हुई है और उसकी इसी उलझन से जनता पशोपेश में है। ना मालूम कौन सा घटक कब घुडकी दे जाये और सरकार धराशाही हो जाये... इसी उलझन के बीच एक खबर आई सचिन के शतक की और उसके बाद बांग्ला देश के साथ मैच में भारत के हार की... मीडिया नें सचिन को अधिक तवज्जो दी और प्रणव के बज़ट पर सचिन का महा-शतक ही हावी दिखा। यह बदलता हुआ भारत है.... क्या कहियेगा..... फ़िलहाल टैक्स में मामूली छूट मिली, लेकिन वह राहत के नाम पर ऊंट के मुंह में जीरा समान ही है... एक दिन पहले सरकार पी-एफ़ की ब्याज दर घटाकर पांच करोड लोगों को ठेंगा दिखा चुकी थी और फ़िर आज के बज़ट से कुछ इसी तरह की उम्मीद थी। प्रणव दा नें भी उसी तर्ज़ में अपना बज़ट रख दिया... अब संसद उसे पास भी कर देगी, क्योंकि संख्या बल जुटानें में कांग्रेस को पुरानी महारत है। 

चलिए बज़ट के कुछ आंकडो पर नज़र डालते हैं..... सरकार जहां आयकर छूट के कारण 4,500 करोड़ रुपये का नुकसान उठायेगी, वहीं अप्रत्यक्ष कर उपायों से 45,940 करोड़ रुपये कमा भी ले जायेगी...  मतलब एक का दस ले जायेगी... यह नौ रुपये का अन्तर हमारी और आपकी जेब से जायेगा।  मंहगाई की मार से पहले ही बेहाल जनता को और थोडा मार देगी और क्या.....
 
चलिए हम अपने बुलेटिन को आगे बढाते हैं.....

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आज वो हमें मनाने आये है  डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"(Dr.Rajendra Tela,Nirantar)" at "निरंतर" की कलम से.....  

आज वो हमें मनाने आये हैं अपनी बेवफाई की वजह बताने आये हैं ज़ख्मों पर मरहम लगाने आये हैं समझते हैं हम उनकी बातों में आ जायेंगे अश्क पोंछ कर उनकी बाहों में झूल जायेंगे भूल गए पहले भी कई बार वादे किये थे हमसे हर बार रोता छोड़ गए हमने भी तय कर लिया अब उन्ही के तीर से उन्हें मारेंगे हँस कर कह देंगे थोड़ी सी देर से आये हैं हम उनके रकीब को हाँ कर चुके हैं...... 

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ये सुलझाए नहीं सुलझते   Dabral at उल्झे ख्याल ...  

मन के उलझे हैं तार , सुलझाए नहीं सुलझते । ऐसी क्या उलझन होगी ? कि गिरह पे गिरह पड़ गयीं ? कभी बुझते कभी सुलगते, ये सुलझाए नहीं सुलझते । यादों के जालों से हैं तार , भीड़ से आते हैं बार बार । कौन सा सिरा पकडूँ , कौन सा छोडूँ ? सरसरी रेत से जलते , फिसलते, ये सुलझाए नहीं सुलझते । अरमानों की पतंगों को , मन की उमंगों को , अब कहाँ से डोर दूँ उनको ? सब तार रहते हैं उलझते , ये सुलझाए नहीं सुलझते । अक्षत डबराल "निःशब्द" 

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1987 की एक और कविता  शरद कोकास at शरद कोकास 

*बचपन में अपने जन्मगृह बैतूल की वे शामें याद हैं जिनमें मेरे ताऊजी मुनिश्री मदन मोहन कोकाश ,मकान के दालान में बैठकर रामचरित मानस का पाठ करते थे । मोहल्ले के लोग , उनके मित्र , और भी जाने कहाँ कहाँ से लोग आकर बैठ जाते थे । कोई फेरीवाला , कोई भिखारी , कोई दुकानदार । सर्दियों के दिनों में अलाव भी जल जाता था । बड़े होने पर रामकथा के पाठ का यह बिम्ब याद रहा और उसने इस तरह कविता का रूप लिया ।अगर आप ध्यान से देखेंगे तो एक महत्वपूर्ण बात कही है मैंने इस कविता में । * *राम कथा * *कम्बल के छेदों से * ***मदन मोहन कोकाश * *हाड़ तक घुस जाने वाली * *हवा के खिलाफ * *लपटों को तेज़ करते हुए * *वह सुन... more »

 

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शक की सूई ...संस्मरण... अदा at काव्य मंजूषा 

बात शायद आठ-दस साल पुरानी होगी... मेरे माँ-बाबा मेरे पास कनाडा आये हुए थे...मेरा छोटा भाई सलिल, ओ.एन.जी.सी में अधिकारी था, सिनिअर जीओलोजिस्ट, उसे पंद्रह दिन काम करना होता था और पंद्रह दिनों की छुट्टी मिलती थी..उसकी पत्नी राधा और बच्चे रांची में ही रहते थे...सलिल को बॉम्बे हाई के आयल रिग, जो हिंद महासागर में है...में पंद्रह दिनों तक रहना पड़ता था...पंद्रह दिनों के लिए हेलीकाप्टर से रिग तक

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दिल्ली गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह  संगीता तोमर Sangeeta Tomar at सुमित प्रताप सिंह 

आदरणीय ब्लॉगर साथियो सादर ब्लॉगस्ते! * आ*पको पता है कि दिल्ली की स्थापना किसने की थी? नहीं पता? किताब-विताब नहीं पढ़ते है क्या? चलिए चूँकि मैंने इतिहास में एम.ए.किया है, तो कम से कम इतना तो मेरा फ़र्ज़ बनताही है, कि आप सभी को इतिहास की थोड़ी-बहुत जानकारी दे सकूँ। आइए इतिहास के पन्नों की तलाशी लेते हैं। महाभारत युद्ध की पृष्ठ भूमि तैयार हो रही है। कौरवों ने पांडवों को चालाकी से खांडवप्रस्थ देकर निपटा दिया है। कौरवों के अन्याय को सहते हुए पांडवों ने अपने कठिन परिश्रम से खांडवप्रस्थको इंद्रप्रस्थ बना दिया है। इस प्रकारइन्द्रप्रस्थ के रूप में दिल्ली के पहले शहर की स्थापना हो चुकी ... more »

 

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भारत का रत्न – सचिन!   मनोज कुमार at मनोज 

*भारत का रत्न – सचिन!* आज बजट आया। बहुत से सपने चूर-चूर हो गए। आज ही सचिन ने शतक जड़ा। हमारे सपने पूरे हुए। शतकों का शतक जड़ने के बाद सचिन ने कहा, “सपने देखो, उसका पीछा करो, सपने सच हो सकते हैं। मुझे 22 साल लगे, विश्व कप को झोली में लाने का जो सपना देखा था … उसे सच होने में! तो क्या हुआ, सच तो हुआ।” सचिन ने करोड़ों भारतीय नवयुवक को सपने देखना सिखाया .. कि सपने देखो। .. वे सच हो सकते हैं। ज़्यादा क्या कहूं? देश का बच्चा-बच्चा सचिन की उपलब्धियों से वाकिफ़ है। सच में सचिन भारत का रत्न है! *सचिन तुझे सलाम!!* **

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गुम क्‍यों हो....रश्मि at रूप-अरूप

उतरती धूप को वि‍दा करने आई शाम रास्‍ता भूल आज मेरी देहरी पर आ खड़ी हुर्इ् और मुझे अपनेआप में गुम पाकर कहा..... न कि‍सी के जाने का दुख न आने की खुशी आम की बौर की तरह आज तू क्‍यों बौराई है.... गुम है ऐसे जैसे चली प्‍यार भरी पुरवाई है.... मदमाती हवा है इसलि‍ए महक रही है तू भीनी-भीनी खुद पर इतराने वाली ये याद रख कि तू फूल नहीं बस मंजर है... आज खि‍ली-महकी है कल सूख जाएगी..... भौरों को पनाह देने वाली कल न होगा कोई तेरे आसपास पेड़ से टपक-टपक कर धूल बन जाएगी...... इसलि‍ए हर सोच को कर खुद से परे न कर 'खास' होने का गुमान आज जो हैं बनते तुम्‍हारे कल कि‍सी को तेरी याद भी नहीं आएगी......।

 

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वफ़ा .......  ***Punam*** at bas yun...hi.... 

* मरने की दुआ दे वो कोई अपना ही होगा,* * दुश्मन को क्या खबर कि कहाँ जी रहे हैं हम !* * * * न जाने क्यूँ उठाते हैं हम तोहमतें उनकी,* * जाने क्यूँ लफ्ज़-ए-ज़हर पिए जा रहे हैं हम !* * * * देते हैं वो दुहाई मुझे मेरी वफ़ा की,* * उनकी ही बेवफाई पे हँसे जा रहे हैं हम !* * * * है इक सफ़र ये जिंदगी अब चल रहे हैं हम,* * उम्मीद-ए-वफ़ा किसी से क्यूँ करेंगे हम !* * * * ... more » 

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संतोष त्रिवेदी ने तेताला पर चर्चाभार बखूबी संभाला : हिंदी चिट्ठाजगत हुआ मतवाला  अविनाश वाचस्पति at नुक्कड़


पहचानें हर दिल अज़ीज कुलवंत हैप्‍पी को जी हां आप परिचित हैं जिनका नाम है संतोष त्रिवेदी पर उन्‍हें संतोष नहीं है अच्‍छा रचे बिना सच्‍चा रचे बिना वे विविध रंगी प्रयोग करने में रखते हैं यकीन न हो विश्‍वास तो क्लिक करें तेताला की नई पोस्‍ट फलक ,राहुल और ग़ालिब ! और मान लें स्‍वीकार लें जैसा कि उपर्युक्‍त पोस्‍ट पर अब तक 80 से ऊपर हिट्स बतला रहे हैं तेताला पर चर्चा को ऊंचाईयां देने में वंदना गुप्‍ता जी और संगीता स्‍वरूप जी का अप्रतिम योगदान है उन्‍होंने ऊंचाईयां दी हैं संतोष जी सोपान पर पहुंचायेंगे खूब आगे बढ़ायेंगे आपको चर्चा के समन्‍वयकारी चिट्ठे, माइक्रो ब्‍लॉगिंग, फेसबुक और ट्विटर के ... more »

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पर तुम रोना नहीं माँ ............. (KESAR KYARI........usha rathore...) at ज्ञान दर्पण 

माँ ओ माँ ............श्श्श्श माँ ... ओ माँ .. मै बोल रही हूँ .........सुन पा रही हो ना मुझे ... अह सुन लिया तुमने मुझे ........ ओह माँ कितना खुबसूरत है तुम्हारा स्पर्श बिलकुल तुम जैसा माँ ......... मेरी तो अभी आँखे भी नहीं खुली ... पर .. तुम्हारी खूबसूरती का अंदाज़ा लगा लिया मैने तुम्हारी दिल की धडकनों से .... हा माँ तुम्हारा दिल यही तो रहता है .. मेरे पास उपरी मंजिल पर .... धक् धक् धक् धक् ........ना जाने दिन भर कोनसी सीढिया चढ़ता रहता है नाता है मेरा तुम्हारे दिल की इन धडकनों से ... क्योकि उसका ही एक टुकड़ा मेरे अन्दर धडक रहा है समझ सकती हु तुम्हारी बैचनी माँ आखिर तुम्हारे दिल ... more »

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इस्मत की क़लम से......... वन्दना अवस्थी दुबे at अपनी बात...

*भारत के कई हिस्सों में बेटी के विवाह के समय एक कुप्रथा प्रचलित है, वर-पक्ष के प्रत्येक सदस्य के वधु के पिता द्वारा चरण-स्पर्श. मैं बुन्देलखंड की हूं और वहां ये प्रथा चलन में है. जब भी ऐसा दृश्य देखती हूं मन अवसाद-ग्रस्त हो जाता है. पिछले दिनों मेरी परम मित्र **इस्मत ज़ैदी भी एक शादी में गयीं और इस रस्म से दो-चार हुईं. पढिये उनकी व्यथा, उन्हीं की क़लम से-* *कब जागेंगे युवा?????* सारे मौसमों की तरह शादियों का भी एक मौसम होता है और उन दिनों घरों में निमंत्रण पत्रों की बहार सी आ जाती है , हमारे यहाँ भी ऐसा ही होता है ,पिछले कुछ दिनों में शादियों के कई निमंत्रण आए लेकिन सब से आवश्यक निमंत... more » 

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चलिए फ़िर देव बाबा की तरफ़ से आप सभी को शुभकामनाएं.... आखिर में एक गज़ल की पंक्तियां याद आ रही हैं... की घर से निकले थे हौसला करके... लौट आये खुदा खुदा करके.... शायद मंहगाई की मार इस हद तक पड जाए की घर से निकलना दूभर हो जाये..... .....  सोचिए ज़रा....

जय हिन्द
देव बाबा

शनिवार, 7 जनवरी 2012

कंट्रोल सी + कंट्रोल वी ...अग्गे दा हाल , देखो तुस्सी - ब्लॉग बुलेटिन




आज शिवम भाई के त्वरित आदेश पर बुलेटिन का जिम्मा थामते हुए हम आपको कट पेस्ट थमा रहे हैं , बांचिए ।


Ctrl +Alt + Love

वो डे स्कोलर  थी  घर से कोलेज .......कोलेज  से घर ....उस उम्र की  ज्यादातर लडकियों की तरह .जो अपनी  माँ को दिन भर की   सारी बात बताती.है ...उन  सहेलियो  के साथ उसका ज्यादा वक़्त बिताती   जो स्कूल टाइम से उसके साथ थी ...टोपर खानदान की टोपर बिटिया ... कुल जोड़ निकाले तो  एक आदर्श  लड़की  ......ओर  वो हॉस्टल वाला था ...उसका अपना बिगडैल  गैंग ...पढाई में साधारण ....दुनिया की ज्यादातर  बुरी आदते उसमे थी ... .वो हमेशा अगली बैंच पर बैठती ओर वो पिछली दो बैंचो के दरमियाँ रहता....... वो हमेशा  क्लास टॉप करती  वो बमुश्किल पास होता वो अपने में सिमटी ओर वो  दुनिया भर के लिए खुला ...... अक्सर हॉस्पिटल  के बाहर वाले कोने में सिगरेट पीते कभी कभी दिख जाता या अपनी "गर्ल फ्रेंड" के साथ किसी पिक्चर हौल में .....उसकी  गर्लफ्रेंड जूनियर  बैच में थी  ...जो ज्यादा वक़्त जींस में रहती ...कोलेज के  सारे लड़के जिस पर  लट्टू रहते ...उसकी क्लास के भी ...कुल मिलाकर उन दोनों ने  आपस में  पूरे तीन सालो में शायद छह दफे बात की हो ..गोया वे न बेहद अच्छे दोस्त थे न दुश्मन .ओर हाँ उसे कभी प्यार नहीं हुआ था ओर वो आठवी क्लास में ही   अपने टीचर के प्यार की  पहली कम्पलसरी शर्त पूरी कर चूका  था .



 बस यूं ही ....!!!


हम राह देख रहे हैं
खुशियों! हमारे द्वार आओ
प्रगट हो कर साक्षात्
मुस्कानों के बंदरवार सजाओ

नमी बहुत देर से
अटकी पड़ी है नयनों के कोरों में
धूप बन कर खिल आओ
किसी रोज़ मेरी धरती के पोरों में


खोज

घट घट ,घट भर रहा 
तू फिर भी न डर रहा 
पल, पल पल मर रहा 
क्यों सोचे क्या अमर रहा 


भोग भोग, भोग में मगन रहा 
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा 
योग,योग योग न भजन रहा 
अब सोचे जब मर रहा ?



एक सितारा टूटा नभ से जाने कहाँ गया
वह गीतों का हरकारा जाने कहाँ गया

हिंदी गीत के पुरोधा , अद्वितीय गीतकार श्री भारत भूषण यों तो १७ दिसम्बर, २०११ सांय चार बजे इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए, पर वास्तविकता तो इससे परे है। मैं समझता हूँ जब तक हिंदी गीत विधा जीवित रहेगी तब तक मोजूद रहेंगे हम सबके बीच भाई भारत भूषण
पिछले लगभग चार साल से मैं लगातार अपना पाक्षिक पत्र "दी गौडसन्स टाइम्स " उन्हें भेजता रहा हूँ। जब कभी उनका हाल जानने के लिए फोन करता तो बड़े उत्साह से उत्तर देते, "मैं बिलकुल ठीक हूँ और अब तो और अच्छा महसूस कर रहा हूँ "फिर ढेर सारी बातें पत्र में छपी हुई कविताओं पर होती और फिर मेरे सम्पादकीय क़ी प्रशंसा की जाती । फिर मैं भी दूसरे साहित्यकारों की तरह ही अपनी रचना की बढाई सुनकर मन ही मन बहुत प्रसन्न होता, उन्हें धन्यवाद देता और बातचीत का दी एंड हो जाता ।

इसे मेरी चाहत कहूँ


इसे मेरी चाहत कहूँ
किसी रिश्ते का नाम दूं
या फिर मेरी फितरत कहूं
कुछ तो हैं जो मुझे
दूर नहीं होने देता उनसे
रह रह कर याद आते
जब भी मिलते हँस कर मिलते




'कर्मनाशा' की किताब 'कर्मनाशा'

'कर्मनाशा 'के सभी पाठकों , प्रेमियों  और शुभचिंतकों  को  नए साल की  बहुत - बहुत शुभकामनायें। इस नए साल की शुरुआत में एक  छोटी - सी सूचना सबके साथ साझा करने का मन  हो रहा है। इसी सप्ताह  मेरा कविता संग्रह 'कर्मनाशा' शीर्षक से  अंतिका प्रकाशन से छप कर आया है। इसमें कुछ पुरानी और कुछ इधर की लिखी कवितायें संग्रहीत है। इसका आवरण सुपसिद्ध चित्रकार रवीन्द्र व्यास ने बनाया है और फ़्लैप का मैटर हमारे समय के दो सुपरिचित युवा कवियों अशोक कुमार पांडेय और अजेय ने  लिखा है। किताब अब  कविता  प्रेमियों के लिए उपल्ब्ध है और बहुत जल्द ही फ़्लिपकार्ट पर भी  उपल्ब्ध हो जायेगी। इसके  प्रकाशन के बारे में कविता प्रेमियों  के संग सूचना  साझा करते हुए  तीनो मित्रों रवीन्द्र, अजेय , अशोक  और प्रकाशक भाई गौरीनाथ के साथ सभी पाठकों के  प्रति आभार व्यक्त करता हूँ  साथ ही बहुत संकोच व विनम्रता के साथ फ़्लैप पर छपे मैटर के  छोटे - से अंश को  प्रस्तुत कर रहा हूँ :

अजेय लिखते हैं:


चरित्र की अवधारणा

हे मानवश्रेष्ठों,
यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक अभिलक्षणों को समझने की कड़ी के रूप में स्वभाव और शिक्षा पर चर्चा की थी, इस बार से हम "चरित्र" पर चर्चा शुरू करेंगे और चरित्र की अवधारणा को समझने की कोशिश करेंगे।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय  अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।


चरित्र की अवधारणा
चरित्र की परिभाषा
चरित्र ( character ) शब्द उन अभिलाक्षणिक चिह्नों ( characteristic signs ) का द्योतक है, जिन्हें सामाजिक प्राणी के रूप में मनुष्य ग्रहण करता है। जिस प्रकार मनुष्य की वैयक्तिकता ( individuality ) अपने को मानसिक प्रक्रियाओं ( अच्छी स्मृति, फलप्रद कल्पना, हाज़िर जवाबी, आदि ) की विशिष्टताओं और स्वभाव के लक्षणों में प्रकट करती है, उसी प्रकार वह मनुष्य के चरित्र के गुणों को प्रदर्शित करती है।

चरित्र की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है : चरित्र मनुष्य के स्थिर वैयक्तिक गुणों का कुल योग है, जो उसके कार्यकलाप तथा संसर्ग-संपर्क में उत्पन्न तथा उजागर होते हैं और उसके आचरण के अभिलाक्षणिक रूपों को निर्धारित करते हैं

गीता और फैसले का क्षण

रूस की एक अदालत में गीता को आतंकवाद समर्थक ग्रंथ घोषित करने का मुकदमा अभी चर्चा से बाहर भी नहीं हुआ था कि भारतीय मूल के जाने-माने ब्रिटिश अर्थशास्त्री लॉर्ड मेघनाद देसाई ने भारत में ही आयोजित एक सेमिनार में इसे जनसंहार समर्थक ग्रंथ बता दिया। इतना ही नहीं, देसाई ने महात्मा गांधी द्वारा गीता को अंगीकार किए जाने को उनके अहिंसा सिद्धांत से एक बड़ा विचलन बताया और इसे हिटलर के बारे में उनकी उस टिप्पणी से जोड़कर देखा, जिसमें हिटलर को ‘सभी दुर्गुणों से रहित, साफ सोच वाला एक शाकाहारी बौद्धिक’ कहा गया था।

अगर कोई गांधी वाङ्मय के आधार पर उनकी सोच और उनके बयानों में मौजूद विसंगतियां दर्ज करने निकले तो उसे निराश नहीं होना पड़ेगा, क्योंकि वहां इनकी कोई कमी नहीं है। लेकिन अगर गांधी के दोषों की धुरी गीता के साथ उनके रिश्ते को बनाया जाए तो बहुत सारे लोगों को एक साथ कठघरे में खड़ा करना पड़ेगा। अभी यह सोच कर अजीब लगता है, लेकिन भारत के स्वाधीनता आंदोलन में गीता ने कमोबेश केंद्रीय ग्रंथ जैसी भूमिका निभाई थी। स्वराज आंदोलन के नेता लोकमान्य तिलक, कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ी ऑल इंडिया किसान सभा के पहले अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती और भूदान आंदोलन के प्रेरणा स्रोत विनोबा भावे जैसे अलग-अलग धाराओं के आंदोलनकारियों ने इसकी भाषा टीका लिखी थी।

लकीरें अपने स्वभाव से चलती हैं


अजय गर्ग से मेरा पहला परिचय उनके एक सशक्त लेख के ज़रिये हुआ था. बाद में उनके पत्रकार होने का पता चला. इसी बीच मधुर भंडारकर ने 'जेल' के लिए 'दाता सुन ले...' लिखवाकर उनके शब्दों को लता जी की आवाज में पिरो दिया. गीतकार और पत्रकार होने के बीच लड़ते हुए अजय ने एक दिन जिन्दगी की लगाम अपने हाथ में ली, हिंदुस्तान की शानदार नौकरी को सलाम नमस्ते कह दिया और निकल पड़े इस धरती की सुन्दरता को समेटने. कलम और कैमरे के साथ ने उन्हें खूबसूरत ट्रैवलर बना दिया...लेकिन इन सबसे परे वो साफ़ दृष्टि और नेक नीयत वाले ज़हीन इन्सान हैं...उनकी इस कविता पर अपने अधिकार की मुहर लगते हुए इसे अपने लिए रख रही हूँ.-  प्रतिभा 

अभयारण्य में राम की याद


दूसरों के दुख को जानना

राजकिशोर
पिछले दिनों मैंने पहली बार जंगल देखा। सघन और दूर-दूर तक फैला हुआ जंगल। चिकलदरा वर्धा से कुछ दूरी पर स्थित लोकप्रिय पर्यटन केंद्र है। यहीं पर बाघों का अभयारण्य है। दिन भर हम चिकलदरा और अभयारण्य में घूमते रहे। उम्मीद थी कि एकाध बाघ तो दिख ही जाएगा। लेकिन यह उम्मीद पूरी नहीं हुई। पूरी कैसे होती? जो सरकारी गाइड गाड़ी में हमारे साथ  चल रहा था, वह पाँच साल से इस अभयारण्य में गाइड के बतौर काम कर रहा था। उसने बड़ी बेबाकी से बताया, इन पाँच सालों में उसने एक भी बाघ नहीं देखा था। लेकिन हमें यह देख कर अचरज हुआ कि दूसरे जानवर भी नदारद थे। खैर, यह नुकसान उस उपलब्धि के सामने कुछ भी नहीं था जो वन-वन घूमते हुए मेरे हाथ लगी। इस उपलब्धि के लिए मैं जीवन भर उन मित्रों का कृतज्ञ रहूँगा जिन्होंने घूमने के लिए  चिकलदरा जाने की सलाह दी थी। 

स्‍कूल के माथे कलंक का टीका.....!!!!!!


फोटो साभार: हरिभूमि
अमानवीय.......! शर्मनाक..... ! दुर्भाग्‍यजनक......! मानवता को कलंकित करने का काम किया है  एक स्‍कूल ने। छोटे छोटे बच्‍चों का भविष्‍य गढने का काम करने वाले एक स्‍कूल ने इस तरह की अमानवीय हरकत की है कि किसी का भी खून खौल उठे। क्‍या आप कल्‍पना कर सकते हैं कि हादसे में मृत बच्‍चे के प्रति संवेदना के दो शब्‍द के बजाय स्‍कूल उस बच्‍चे की बकाया फीस भी वसूल ले और वह भी उस बच्‍चे के नाम के आगे स्‍वर्गीय लिखकर...... ! ! ! ! ! यह काम किया है छत्‍तीसगढ के नए बने जिले बलरामपुर के रामानुजगंज के एक स्‍कूल ने।
करीब पखवाडे भर पहले 21 दिसम्‍बर को रामानुजगंज में एक सडक हादसा हुआ था जिसमें एक तेज रफ्तार ट्रक ने सडक किनारे खडे स्‍कूली वाहन को टक्‍कर मार दी थी। इस हादसे में स्‍कूली बस के चालक और चार मासूम बच्‍चों की दर्दनाक मौत हो गई थी। हादसे में छह साल के लकी ठाकुर, आठ साल के सूर्यउदय सिंह, आठ साल के ही आलोक प्रजापति और इसी उम्र के आयुष गुप्ता की मौत हुई थी। ये सभी बच्‍चे न्‍यू एरा पब्लिक स्‍कूल के छात्र थे। इस हादसे ने अकेले रामानुजगंज ही नहीं पूरे सरगुजा और छत्‍तीसगढ को हिलाकर रख दिया था और हादसे के बाद जनाक्रोश भडक गया था।  चक्‍काजाम और  फिर लाठीचार्ज जैसी घटनाएं भी हुई थीं पर लगता है हादसे का कोई असर बच्‍चों का भविष्‍य गढने (?) का काम करने वाले स्‍कूल प्रबंधन पर नहीं हुआ......... स्कूल प्रबंधन के ताजा कदम ने तो कम से कम ऐसा ही साबित करने का काम किया है। 
फ़ुरसत में ... 88
ऊ ला ला .. ऊ ला ला !
IMG_0545_thumb[1]मनोज कुमार
olny-in-india-061211-21-630_055447पहली तारीख़, नए साल का पहला दिन। रात में, देर रात तक, जो नए साल के अवसर पर टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रोग्राम देखते-देखते, पुराने साल को बाय-बाय कर सोया था, उसका खुमार भोर तक चढ़ा हुआ था। सुबह-सुबह उठते ही भगवान का नाम लेने की जो पुरानी आदत थी, उसने भी हमें बाय-बाय कर दिया था। आज तो एक ही लफ़्ज़ हमारी जुबान पर चढ़ा हुआ था --- ऊ ला ला .. ऊ ला ला !



सुशासन मतलब अंधा,बहरा और बड़बोला शासन

मित्रों,यह घटना तब की है जब १९८० में स्वर्ग सिधार चुके मेरे दादाजी अनिवार्य रूप से जीवित थे.हुआ यूं कि मेरे गाँव जुड़ावनपुर के पडोसी गाँव चकसिंगार से नाई भोज का न्योता देने आया और गलती से मेरे घर भी न्योता दे गया जबकि उसे देना नहीं था.दो घंटे बाद वह सकुचाता हुआ दोबारा आया और मेरे दादाजी से बोला कि वह न्योता वापस लेने आया है.दादाजी ने भी छूटते ही कहा कि दरवाजे पर जो संदूक रखा हुआ है अभी तक न्योता उसी पर पड़ा हुआ है,उन्होंने न्योते को घर तो भेजा ही नहीं है.जाओ और संदूक पर से ले लो.बेचारे नाई की समझ में कुछ भी नहीं आया.न्योता कोई भौतिक वस्तु तो था नहीं कि दिखाई दे और वह उसे अपने साथ उठाकर ले जा सके.
       




वो “सात” दिन : मुख्य अंश और एक “एक्सक्लूजिव” साक्षात्कार…


आप साहबान ने बहुत से महापुरुषों, लेखकों, खिलाडियों की डायरियां पढीं होंगी |  उससे उनके जीवन का “आइडिया" लगता है |  जिस तरह से किसी “सिस्टम” को बनाने की दो “अप्रोच” होती हैं ..”बॉटम अप” और “टॉप डाउन" ..उसी तरह डायरी लिखने की भी यही दो अप्रोच होती हैं…

बॉटम अप अप्रोच में कोई भी इंसान पहले जिंदगी से फाईट करता है, रोज आके उन “फाईट सीन" को डायरी के सुपुर्द करता है | फिर एक दिन वो  महान बन जाता है |  उसकी डायरी तलाशी जाती है | फिर उस डायरी को छापा जाता है | लोग उसे हाथों हाथ खरीद लेते हैं, ड्राइंग रूम में सजाते हैं, किताबों के कलेक्शन में रखते हैं|


टॉप डाउन अप्रोच में आदमी सबसे पहले “फेमस" होता है,  फिर वो डायरी खरीदता है, फिर अपने “संघर्ष" के दिन याद करके उसमे डालता जाता है |  डायरी खरीदने से लिखने तक काफी लोग उनके आगे पीछे लगे रहते हैं| लिखते ही धर के छपती है किताब| बाकी सब ऊपर वाली अप्रोच के मुताबिक होता है|



पद्मसिंह जी बार-बार सांप ला आना होगा

20 तारिख तक मौसम खुशगवार था, लेकिन इस हफ्ते से एकदम वरुण देवता ने अपनी ताकत दिखानी शुरु कर दी थी। किसी को गीला तो नहीं कर रहे थे, पर बादलों को लाकर सूर्यदेव के साथ अठखेलियां करने लगे। हमने भी सूर्यदेवता को धमकी भरा निमंत्रण :) {कभी आपको भी दूंगा, तब जानेंगे} भेज दिया कि 24 तारिख 2011 को 11:00 बजे से ब्लॉगर मिलन है और आपको सबसे पहले सांपला पहुंच जाना है, वर्ना आप हिन्दी ब्लॉगर्स की ताकत जानते ही हैं। सूर्यदेव ने डर के मारे (गुंजाईश कम ही है) या प्यार में हमारी बात मान ली और सुबह 8:00 बजने से पहले ही सांपला में रश्मियों का यान उतार दिया। सभी आये हुये ब्लॉगर्स गवाह हैं कि जबतक ब्लॉगर मीट चली तबतक सूर्यदेव वहां से हिले तक नहीं और सुनहरी धूप खिली रही थी।
बस आज इत्ता ही ..जय राम जी की 

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

सड़क दुर्घटनाएं और भारतीय कानून.... ज़रा सोचिये.... ब्लॉग बुलेटिन

रविवार की सुबह पाम बीच रोड पर हुए सडक हादसे में चार नौजवानों की मौत हो गई। मरने वाले चारों नौजवान १८ से २२ साल की उम्र के थे और सभी नवी मुंबई के ही रहने वाले हैं। शनिवार की रात पब में गुज़ारनें के बाद वह लोग सुबह के ‍ ६ बजे इस रास्ते से घर की ओर जा रहे थे.... इस तरह की खबर कोई नई नहीं है.... आए दिन इस प्रकार की घटनाएं होती ही रहती हैं.... माता-पिता की ज़िम्मेदारी भी बनती है जो इस प्रकार इतनी कम उम्र में इतनी छूट दिए रखते हैं, जो पूरी रात बेटा गायब हो तो फ़िर उसकी खबर न पता लगे... गलती तो है ही भाई..... होण्डा एकोर्ड जैसी कार का ये हाल हुआ.... सोचिए कार की स्पीड क्या रही होगी.... मेरे हिसाब से कम से कम १८० से ज्यादा.... कोई नहीं बचा, चारो के चारो बच्चों की दुर्घटना स्थल पर ही मौत..... दर्दनाक!!





वैसे हमारे देश में सडक कानूनों का जितना मखौल उडाया जाता है, उसकी अगर सही मायनें में गिनती हो तो फ़िर आंकडे कहीं अलग तस्वीर दिखाएंगे....
  • ज़ेब्रा क्रासिंग वायलेशन: लाल बत्ती पर गाडी रुकनें पर ज़ेब्रा क्रासिंग के पीछे रुकना भारतीयों के लिए अपमान है..... पैदल चलनें वालों की दिक्कत की किसी को परवाह नहीं...
  • लेन कटिंग: बस के ड्राईवर से ले कर, रिक्शा, बाईक और कार सब के सब गो-कार्टिंग स्टाईल में कार चलानें में अपनी बहादुरी समझते हैं.... 
  • ओवर स्पीड: आखिर जिस सडक पर स्पीड लिमिट ६० है, उस पर १८० की रफ़्तार से कार चलानें पर उसे किसी ने रोका क्यों नहीं.... क्या भारतीय सडकों पर कारों के लिए कोई दिशा-निर्देश है या नहीं..
  • बन्द या फ़ेल सिग्नल : बन्द पडे सिग्नल, जिन पर चलनें वाली कारों को भगवान भरोसे छोड दिया जाता है, उस बीच अगर कोई गाडी अगर बन्द पड जाये तो फ़िर क्या कहिए.... 
  • भ्रष्ट आर टी ओ के कर्मचारी: आर टी ओ भ्रष्ट है इसमें कोई दो राय नहीं है..... भारत के कितनें लोगों के पास लायसेंस होंगे जिन्हे गाडी चलानी भी नहीं आती होगी, बस भ्रष्टाचार का सहारा है तो जेब में ड्राईविंग लायसेंस हैं...
  • ट्रकों को ले के कोई कानून न होना: मुम्बई शायद हिन्दुस्तान का एक एसा अकेला शहर होगा जहां ट्रकों को ले के कोई कानून नहीं है..... किसी भी सडक पर कभी भी बेधडक ट्रक ले जाया जा सकता है, इस बाबत जब मैनें एक आर टी ओ इन्सपेक्टर से बात करनी चाही तो उन्होनें मुझे कहा की हर रोड पर ट्रक ले जानें की समय सीमा है, और जो सडके हायवे को कनेक्ट करती हैं उन पर सुबह के ७ से ११:३० और फ़िर शाम को ४ बजे से रात के ९ बजे तक ट्रकों के लिए नो-इंट्री है....  लेकिन यह तो बात किताबों की हुई... असल में तो यह ट्रक कभी भी आ जा सकते हैं..... बस आर टी ओ के कांस्टेबल की ज़ेब गरम करनी हैं...... 
और भी बहुत सी बातें हैं जो हमें गौर करनी चाहिए, मसलन... पब में एक सीमा से अधिक ड्रिंक लेनें पर पाबंदी.... सडक पर एलर्टिंग सिस्टम्स..... थोडी निगरानी और सडक पर स्पीड ब्रेकर्स..... ज़ेब्रा क्रासिंग को और अधिक विज़िबल बनाएं ताकि वह दूर से दिखाई दे सके.....

आज के लिए इतना ही..... चलिए आज का बुलेटिन देखते हैं....
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आज धीरू सिंह की वैवाहिक वर्षगांठ है

कुरुक्षेत्र - द्वितीय सर्ग ( भाग -३ )

जन आंदोलनों को सियासी बैसाखियों की ज़रूरत..?

उसके होठों को छूते ही नदी ओक भर प्यास में विलीन हो गयी

छिद्र-प्रकाश

'डर्टी पिक्चर' को ब्लॉग पर डालना कितना सही...खुशदीप

श्रद्धा -सतीश सक्सेना 

प्रभु की लीला !

बीज और वृक्ष

आप कितना जानते हैं नेत्रदान के बारे में?

जब मौन प्रखर हो...


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आज का बुलेटिन यहीं समाप्त करते हैं, कल फ़िर मुलाकात होगी...

जय हिन्द
देव कुमार झा

लेखागार