आज शिवम भाई के त्वरित आदेश पर बुलेटिन का जिम्मा थामते हुए हम आपको कट पेस्ट थमा रहे हैं , बांचिए ।
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वो डे स्कोलर थी घर से कोलेज .......कोलेज से घर ....उस उम्र की ज्यादातर लडकियों की तरह .जो अपनी माँ को दिन भर की सारी बात बताती.है ...उन सहेलियो के साथ उसका ज्यादा वक़्त बिताती जो स्कूल टाइम से उसके साथ थी ...टोपर खानदान की टोपर बिटिया ... कुल जोड़ निकाले तो एक आदर्श लड़की ......ओर वो हॉस्टल वाला था ...उसका अपना बिगडैल गैंग ...पढाई में साधारण ....दुनिया की ज्यादातर बुरी आदते उसमे थी ... .वो हमेशा अगली बैंच पर बैठती ओर वो पिछली दो बैंचो के दरमियाँ रहता....... वो हमेशा क्लास टॉप करती वो बमुश्किल पास होता वो अपने में सिमटी ओर वो दुनिया भर के लिए खुला ...... अक्सर हॉस्पिटल के बाहर वाले कोने में सिगरेट पीते कभी कभी दिख जाता या अपनी "गर्ल फ्रेंड" के साथ किसी पिक्चर हौल में .....उसकी गर्लफ्रेंड जूनियर बैच में थी ...जो ज्यादा वक़्त जींस में रहती ...कोलेज के सारे लड़के जिस पर लट्टू रहते ...उसकी क्लास के भी ...कुल मिलाकर उन दोनों ने आपस में पूरे तीन सालो में शायद छह दफे बात की हो ..गोया वे न बेहद अच्छे दोस्त थे न दुश्मन .ओर हाँ उसे कभी प्यार नहीं हुआ था ओर वो आठवी क्लास में ही अपने टीचर के प्यार की पहली कम्पलसरी शर्त पूरी कर चूका था .
बस यूं ही ....!!!
हम राह देख रहे हैं
खुशियों! हमारे द्वार आओ
प्रगट हो कर साक्षात्
मुस्कानों के बंदरवार सजाओ
नमी बहुत देर से
अटकी पड़ी है नयनों के कोरों में
धूप बन कर खिल आओ
किसी रोज़ मेरी धरती के पोरों में
खोज
घट घट ,घट भर रहा
तू फिर भी न डर रहा
पल, पल पल मर रहा
क्यों सोचे क्या अमर रहा
भोग भोग, भोग में मगन रहा
कभी ज़मी ,कभी गगन रहा
योग,योग योग न भजन रहा
अब सोचे जब मर रहा ?
एक सितारा टूटा नभ से जाने कहाँ गया
वह गीतों का हरकारा जाने कहाँ गया।
हिंदी गीत के पुरोधा , अद्वितीय गीतकार श्री भारत भूषण यों तो १७ दिसम्बर, २०११ सांय चार बजे इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए, पर वास्तविकता तो इससे परे है। मैं समझता हूँ जब तक हिंदी गीत विधा जीवित रहेगी तब तक मोजूद रहेंगे हम सबके बीच भाई भारत भूषण ।
पिछले लगभग चार साल से मैं लगातार अपना पाक्षिक पत्र "दी गौडसन्स टाइम्स " उन्हें भेजता रहा हूँ। जब कभी उनका हाल जानने के लिए फोन करता तो बड़े उत्साह से उत्तर देते, "मैं बिलकुल ठीक हूँ और अब तो और अच्छा महसूस कर रहा हूँ "फिर ढेर सारी बातें पत्र में छपी हुई कविताओं पर होती और फिर मेरे सम्पादकीय क़ी प्रशंसा की जाती । फिर मैं भी दूसरे साहित्यकारों की तरह ही अपनी रचना की बढाई सुनकर मन ही मन बहुत प्रसन्न होता, उन्हें धन्यवाद देता और बातचीत का दी एंड हो जाता ।
इसे मेरी चाहत कहूँ
इसे मेरी चाहत कहूँ
किसी रिश्ते का नाम दूं
या फिर मेरी फितरत कहूं
कुछ तो हैं जो मुझे
दूर नहीं होने देता उनसे
रह रह कर याद आते
जब भी मिलते हँस कर मिलते
'कर्मनाशा' की किताब 'कर्मनाशा'
'कर्मनाशा 'के सभी पाठकों , प्रेमियों और शुभचिंतकों को नए साल की बहुत - बहुत शुभकामनायें। इस नए साल की शुरुआत में एक छोटी - सी सूचना सबके साथ साझा करने का मन हो रहा है। इसी सप्ताह मेरा कविता संग्रह 'कर्मनाशा' शीर्षक से अंतिका प्रकाशन से छप कर आया है। इसमें कुछ पुरानी और कुछ इधर की लिखी कवितायें संग्रहीत है। इसका आवरण सुपसिद्ध चित्रकार रवीन्द्र व्यास ने बनाया है और फ़्लैप का मैटर हमारे समय के दो सुपरिचित युवा कवियों अशोक कुमार पांडेय और अजेय ने लिखा है। किताब अब कविता प्रेमियों के लिए उपल्ब्ध है और बहुत जल्द ही फ़्लिपकार्ट पर भी उपल्ब्ध हो जायेगी। इसके प्रकाशन के बारे में कविता प्रेमियों के संग सूचना साझा करते हुए तीनो मित्रों रवीन्द्र, अजेय , अशोक और प्रकाशक भाई गौरीनाथ के साथ सभी पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ साथ ही बहुत संकोच व विनम्रता के साथ फ़्लैप पर छपे मैटर के छोटे - से अंश को प्रस्तुत कर रहा हूँ :
अजेय लिखते हैं:
चरित्र की अवधारणा
हे मानवश्रेष्ठों,यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक अभिलक्षणों को समझने की कड़ी के रूप में स्वभाव और शिक्षा पर चर्चा की थी, इस बार से हम "चरित्र" पर चर्चा शुरू करेंगे और चरित्र की अवधारणा को समझने की कोशिश करेंगे।यह ध्यान में रहे ही कि यहां सिर्फ़ उपलब्ध ज्ञान का समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
चरित्र की अवधारणाचरित्र ( character ) शब्द उन अभिलाक्षणिक चिह्नों ( characteristic signs ) का द्योतक है, जिन्हें सामाजिक प्राणी के रूप में मनुष्य ग्रहण करता है। जिस प्रकार मनुष्य की वैयक्तिकता ( individuality ) अपने को मानसिक प्रक्रियाओं ( अच्छी स्मृति, फलप्रद कल्पना, हाज़िर जवाबी, आदि ) की विशिष्टताओं और स्वभाव के लक्षणों में प्रकट करती है, उसी प्रकार वह मनुष्य के चरित्र के गुणों को प्रदर्शित करती है।
चरित्र की परिभाषा
चरित्र की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है : चरित्र मनुष्य के स्थिर वैयक्तिक गुणों का कुल योग है, जो उसके कार्यकलाप तथा संसर्ग-संपर्क में उत्पन्न तथा उजागर होते हैं और उसके आचरण के अभिलाक्षणिक रूपों को निर्धारित करते हैं।
गीता और फैसले का क्षण
रूस की एक अदालत में गीता को आतंकवाद समर्थक ग्रंथ घोषित करने का मुकदमा अभी चर्चा से बाहर भी नहीं हुआ था कि भारतीय मूल के जाने-माने ब्रिटिश अर्थशास्त्री लॉर्ड मेघनाद देसाई ने भारत में ही आयोजित एक सेमिनार में इसे जनसंहार समर्थक ग्रंथ बता दिया। इतना ही नहीं, देसाई ने महात्मा गांधी द्वारा गीता को अंगीकार किए जाने को उनके अहिंसा सिद्धांत से एक बड़ा विचलन बताया और इसे हिटलर के बारे में उनकी उस टिप्पणी से जोड़कर देखा, जिसमें हिटलर को ‘सभी दुर्गुणों से रहित, साफ सोच वाला एक शाकाहारी बौद्धिक’ कहा गया था।
अगर कोई गांधी वाङ्मय के आधार पर उनकी सोच और उनके बयानों में मौजूद विसंगतियां दर्ज करने निकले तो उसे निराश नहीं होना पड़ेगा, क्योंकि वहां इनकी कोई कमी नहीं है। लेकिन अगर गांधी के दोषों की धुरी गीता के साथ उनके रिश्ते को बनाया जाए तो बहुत सारे लोगों को एक साथ कठघरे में खड़ा करना पड़ेगा। अभी यह सोच कर अजीब लगता है, लेकिन भारत के स्वाधीनता आंदोलन में गीता ने कमोबेश केंद्रीय ग्रंथ जैसी भूमिका निभाई थी। स्वराज आंदोलन के नेता लोकमान्य तिलक, कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ी ऑल इंडिया किसान सभा के पहले अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती और भूदान आंदोलन के प्रेरणा स्रोत विनोबा भावे जैसे अलग-अलग धाराओं के आंदोलनकारियों ने इसकी भाषा टीका लिखी थी।
लकीरें अपने स्वभाव से चलती हैं
अजय गर्ग से मेरा पहला परिचय उनके एक सशक्त लेख के ज़रिये हुआ था. बाद में उनके पत्रकार होने का पता चला. इसी बीच मधुर भंडारकर ने 'जेल' के लिए 'दाता सुन ले...' लिखवाकर उनके शब्दों को लता जी की आवाज में पिरो दिया. गीतकार और पत्रकार होने के बीच लड़ते हुए अजय ने एक दिन जिन्दगी की लगाम अपने हाथ में ली, हिंदुस्तान की शानदार नौकरी को सलाम नमस्ते कह दिया और निकल पड़े इस धरती की सुन्दरता को समेटने. कलम और कैमरे के साथ ने उन्हें खूबसूरत ट्रैवलर बना दिया...लेकिन इन सबसे परे वो साफ़ दृष्टि और नेक नीयत वाले ज़हीन इन्सान हैं...उनकी इस कविता पर अपने अधिकार की मुहर लगते हुए इसे अपने लिए रख रही हूँ.- प्रतिभा
अभयारण्य में राम की याद
दूसरों के दुख को जानना
राजकिशोरपिछले दिनों मैंने पहली बार जंगल देखा। सघन और दूर-दूर तक फैला हुआ जंगल। चिकलदरा वर्धा से कुछ दूरी पर स्थित लोकप्रिय पर्यटन केंद्र है। यहीं पर बाघों का अभयारण्य है। दिन भर हम चिकलदरा और अभयारण्य में घूमते रहे। उम्मीद थी कि एकाध बाघ तो दिख ही जाएगा। लेकिन यह उम्मीद पूरी नहीं हुई। पूरी कैसे होती? जो सरकारी गाइड गाड़ी में हमारे साथ चल रहा था, वह पाँच साल से इस अभयारण्य में गाइड के बतौर काम कर रहा था। उसने बड़ी बेबाकी से बताया, इन पाँच सालों में उसने एक भी बाघ नहीं देखा था। लेकिन हमें यह देख कर अचरज हुआ कि दूसरे जानवर भी नदारद थे। खैर, यह नुकसान उस उपलब्धि के सामने कुछ भी नहीं था जो वन-वन घूमते हुए मेरे हाथ लगी। इस उपलब्धि के लिए मैं जीवन भर उन मित्रों का कृतज्ञ रहूँगा जिन्होंने घूमने के लिए चिकलदरा जाने की सलाह दी थी।
स्कूल के माथे कलंक का टीका.....!!!!!!
फोटो साभार: हरिभूमि अमानवीय.......! शर्मनाक..... ! दुर्भाग्यजनक......! मानवता को कलंकित करने का काम किया है एक स्कूल ने। छोटे छोटे बच्चों का भविष्य गढने का काम करने वाले एक स्कूल ने इस तरह की अमानवीय हरकत की है कि किसी का भी खून खौल उठे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हादसे में मृत बच्चे के प्रति संवेदना के दो शब्द के बजाय स्कूल उस बच्चे की बकाया फीस भी वसूल ले और वह भी उस बच्चे के नाम के आगे स्वर्गीय लिखकर...... ! ! ! ! ! यह काम किया है छत्तीसगढ के नए बने जिले बलरामपुर के रामानुजगंज के एक स्कूल ने।करीब पखवाडे भर पहले 21 दिसम्बर को रामानुजगंज में एक सडक हादसा हुआ था जिसमें एक तेज रफ्तार ट्रक ने सडक किनारे खडे स्कूली वाहन को टक्कर मार दी थी। इस हादसे में स्कूली बस के चालक और चार मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई थी। हादसे में छह साल के लकी ठाकुर, आठ साल के सूर्यउदय सिंह, आठ साल के ही आलोक प्रजापति और इसी उम्र के आयुष गुप्ता की मौत हुई थी। ये सभी बच्चे न्यू एरा पब्लिक स्कूल के छात्र थे। इस हादसे ने अकेले रामानुजगंज ही नहीं पूरे सरगुजा और छत्तीसगढ को हिलाकर रख दिया था और हादसे के बाद जनाक्रोश भडक गया था। चक्काजाम और फिर लाठीचार्ज जैसी घटनाएं भी हुई थीं पर लगता है हादसे का कोई असर बच्चों का भविष्य गढने (?) का काम करने वाले स्कूल प्रबंधन पर नहीं हुआ......... स्कूल प्रबंधन के ताजा कदम ने तो कम से कम ऐसा ही साबित करने का काम किया है।
फ़ुरसत में ... 88
ऊ ला ला .. ऊ ला ला !पहली तारीख़, नए साल का पहला दिन। रात में, देर रात तक, जो नए साल के अवसर पर टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रोग्राम देखते-देखते, पुराने साल को बाय-बाय कर सोया था, उसका खुमार भोर तक चढ़ा हुआ था। सुबह-सुबह उठते ही भगवान का नाम लेने की जो पुरानी आदत थी, उसने भी हमें बाय-बाय कर दिया था। आज तो एक ही लफ़्ज़ हमारी जुबान पर चढ़ा हुआ था --- ऊ ला ला .. ऊ ला ला !
सुशासन मतलब अंधा,बहरा और बड़बोला शासन
मित्रों,यह घटना तब की है जब १९८० में स्वर्ग सिधार चुके मेरे दादाजी अनिवार्य रूप से जीवित थे.हुआ यूं कि मेरे गाँव जुड़ावनपुर के पडोसी गाँव चकसिंगार से नाई भोज का न्योता देने आया और गलती से मेरे घर भी न्योता दे गया जबकि उसे देना नहीं था.दो घंटे बाद वह सकुचाता हुआ दोबारा आया और मेरे दादाजी से बोला कि वह न्योता वापस लेने आया है.दादाजी ने भी छूटते ही कहा कि दरवाजे पर जो संदूक रखा हुआ है अभी तक न्योता उसी पर पड़ा हुआ है,उन्होंने न्योते को घर तो भेजा ही नहीं है.जाओ और संदूक पर से ले लो.बेचारे नाई की समझ में कुछ भी नहीं आया.न्योता कोई भौतिक वस्तु तो था नहीं कि दिखाई दे और वह उसे अपने साथ उठाकर ले जा सके.
वो “सात” दिन : मुख्य अंश और एक “एक्सक्लूजिव” साक्षात्कार…
आप साहबान ने बहुत से महापुरुषों, लेखकों, खिलाडियों की डायरियां पढीं होंगी | उससे उनके जीवन का “आइडिया" लगता है | जिस तरह से किसी “सिस्टम” को बनाने की दो “अप्रोच” होती हैं ..”बॉटम अप” और “टॉप डाउन" ..उसी तरह डायरी लिखने की भी यही दो अप्रोच होती हैं…
बॉटम अप अप्रोच में कोई भी इंसान पहले जिंदगी से फाईट करता है, रोज आके उन “फाईट सीन" को डायरी के सुपुर्द करता है | फिर एक दिन वो महान बन जाता है | उसकी डायरी तलाशी जाती है | फिर उस डायरी को छापा जाता है | लोग उसे हाथों हाथ खरीद लेते हैं, ड्राइंग रूम में सजाते हैं, किताबों के कलेक्शन में रखते हैं|
टॉप डाउन अप्रोच में आदमी सबसे पहले “फेमस" होता है, फिर वो डायरी खरीदता है, फिर अपने “संघर्ष" के दिन याद करके उसमे डालता जाता है | डायरी खरीदने से लिखने तक काफी लोग उनके आगे पीछे लगे रहते हैं| लिखते ही धर के छपती है किताब| बाकी सब ऊपर वाली अप्रोच के मुताबिक होता है|
पद्मसिंह जी बार-बार सांप ला आना होगा
20 तारिख तक मौसम खुशगवार था, लेकिन इस हफ्ते से एकदम वरुण देवता ने अपनी ताकत दिखानी शुरु कर दी थी। किसी को गीला तो नहीं कर रहे थे, पर बादलों को लाकर सूर्यदेव के साथ अठखेलियां करने लगे। हमने भी सूर्यदेवता को धमकी भरा निमंत्रण :) {कभी आपको भी दूंगा, तब जानेंगे} भेज दिया कि 24 तारिख 2011 को 11:00 बजे से ब्लॉगर मिलन है और आपको सबसे पहले सांपला पहुंच जाना है, वर्ना आप हिन्दी ब्लॉगर्स की ताकत जानते ही हैं। सूर्यदेव ने डर के मारे (गुंजाईश कम ही है) या प्यार में हमारी बात मान ली और सुबह 8:00 बजने से पहले ही सांपला में रश्मियों का यान उतार दिया। सभी आये हुये ब्लॉगर्स गवाह हैं कि जबतक ब्लॉगर मीट चली तबतक सूर्यदेव वहां से हिले तक नहीं और सुनहरी धूप खिली रही थी।
बस आज इत्ता ही ..जय राम जी की
10 टिप्पणियाँ:
शुरुआत ज़बरदस्त ... लिंक्स जाने माने , अमानवीय हरकत पढकर खून खुल उठा , कैसे कैसे लोग !
बढ़िया लिंक्स...
रूमानी शुरुआत भा गयी..
कुछ-कुछ होने लगा है!!!!!
बड़े ही सुन्दर सूत्र, एक या दो ही और पढ़ने हैं।
सुंदर लिंक्स,एक सुझाव, रचना का शीर्षक,रचनाकार की फोटो,और नाम लिंक के साथ होना चाहिए,
आपके सुझाव का स्वागत है धीरेंद्र जी । हम इसका ध्यान रखेंगे
वाह अजय भाई आज तो कमाल कर दिए जी ... 'कंट्रोल सी + कंट्रोल वी' का बिलकुल सदुपयोग कर के दिखाया है जी आज की पोस्ट में आपने ... जय हो ... बढ़िया लिंक्स ... उम्दा बुलेटिन ... जय हो !
बढिया बुलेटिन।
मेरी पोस्ट 'स्कूल के माथे कलंक का टीका' को शामिल करने के लिए आभार......
अजय भईया, गज्जब रेलगाडी चलाए आज.... बहुत धिंचक पोस्ट.... ब्लागर के चित्र को शामिल किए जानें का सुझाव अच्छा है...
बहुत सुन्दर... एसे ही गाडी चलती रहे... अऊर का...
'खोज'..को शामिल करने के लिए धन्यवाद..
kalamdaan.blogspot.com
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