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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

आप, Whatsapp और ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज कल Whatsapp बड़ी चर्चा मे है ... खास कर फेसबुक द्वारा उसका खरीदे जाना ... मुझे यकीन है कि हम मे से भी काफी मित्रों ने भी इन खबरों मे काफी रुचि ली होगी और नियमित रूप से Whatsapp का उपयोग भी करते होंगे | पर क्या आप जानते है कि Whatsapp का उपयोग करने वालों को भी वर्ग के आधार पर वर्गीकृत किया गया है |

लीजिये देखिये कि आप इसमें से कौन से वर्ग में आते है?

 1. Whatsapp मुर्गा!
 रोज सुबह, "गुड मॉर्निंग" के मैसेज देना और लोगो को 'गुड मॉर्निंग' बोल कर जगाना इनका प्रिय काम है।

 2. Whatsapp बाबा!
 ये सिर्फ भगवान के ही मैसेज भेजते हैं और प्रवचन करते फिरते हैं।

 3. Whatsapp चोर!
 ये लोग दूसरों का मैसेज बस आगे भेजते हैं।

 4. Whatsapp देवदास!
 ये लोग हमेशा दर्द भरे और निराशाजनक मैसेज और शायरी भेजते हैं और अपना दुःख दुनिया को दिखाके लोगों को भी दुखी करते हैं।

 5. Whatsapp न्यूज रिपोर्टर!
 दुनिया में क्या चल रहा है, ऐसी न्यूज ये लोगो को भेजते हैं।

 6. Whatsapp विदुषक!
 ये लोग उनकी जिंदगी में कितने भी दुखी हों लेकिन सबको जवाब भेजते हैं और मैसेज में हंसते रहते हैं।

 7. Whatsapp मौनी बाबा!
 ये लोग चुपचाप मैसेज पढते हैं और कभी जवाब नहीं देते।

 8. Whatsapp विचारक!
 ये लोग अच्छे विचार अपने मैसेज के जरिये लोगों तक पहुंचाने का प्रयत्न करते हैं।

 9. Whatsapp कवि और कवियित्री !
 इनको कविता छोडके कुछ भी नहीं जमता, ये कविता भेज के लोगो को बोर करते रहते हैं।

 10. Whatsapp चैटर!
 इनको चैट के बिना कुछ नहीं आता और कुछ जमता भी नहीं। यह हमेशा आपको ONLINE मिलते हैं।

 11. Whatsapp बन्दर!
 ये लोग जवाब में कुछ भी नहीं बोलते है सिर्फ हा हा - ही ही करते रहते हैं।

 12 . Whatsap कलेक्टर!
 ये लोग सिर्फ जाईन करते हैं पर कभी मैसेज नहीं करते सिर्फ ग्रुप जाईन कर घूमते हैं।

हाँ तो आप किस वर्ग मे आते है ... मैंने तो २ - ३ वर्गों मे खुद को पाया ... जैसे कि ३, ६ और ७ |

सादर आपका 

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भारत में विज्ञान की बदहाली

विज्ञान नहीं जानता कि वह कल्पना का कितना कर्जमंद है -Ralph Waldo Emerson

एक बहादुर को एक कायर भी कभी सलामी देता है

'रुसवा..'

“ एक थी माया” – कहानी संग्रह

" रिटायरमेंट पार्टी ..............."

उसका मन?

वसन्त पर कुछ हाइकु कवितायें

सम्राट अशोक की विडंबना

टुकड़े

दस्त के घरेलू नुस्खे, घरेलू इलाज

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

महादेव के अंश चंद्रशेखर आज़ाद

आदरणीय मित्रगण.... प्रणाम

कुछ समय से मैं बुलेटिन लगा पाने में असमर्थ था | इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | अब एक नए जूनून और सोच के साथ आपके सामने हाज़िर हूँ और ये मेरा छोटा सा प्रयास आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | आशा करता हूँ आपको मेरे विचार प्रभावित करेंगे और अपनी टिप्पणियों के माध्यम से अपनी बात, राय, सहमति, असहमति वयक्त करेंगे तो बहुत आनंद प्राप्त होगा |


आज भोले बाबा महादेव महाकालेश्वर शमशान अधिपति शिव शम्भू का जन्म दिवस है मतलब आज महाशिवरात्रि का पर्व है और दूसरी तरफ आज ही हमारे अपने शहीद-ए-आज़म महान क्रान्तिकारी अमर पूजनीय वन्दनीय पंडित चन्द्रशेखर 'आजाद' जी जिनका नाम भर सुनते ही अंग्रेज़ अफसरों की पैंट गीली हो जाती थी की ८३वीं पुण्यतिथि भी है |

वैसे अपने दिल से सोचता हूँ तो आवाज़ आती है के आज के दिन को क्यों ना 'चन्द्रशेखर दिवस' का नाम देकर एक नए रूप में याद किया जाये | आप पूछेंगे क्यों तो मैं कहूँगा कि शंकर भगवान् को भी तो इसी नाम से जाना जाता है, उनके अनेक नामों में से एक नाम ‘चन्द्रशेखर’ भी है और दूसरी तरफ पंडित जी भी तो भारत के क्रांतिकारी समूह के शिव ही थे | उनके तांडव ने अंग्रेजों और गद्दारों के दिलों में दहशत और हलचल मचा कर रख दी थी और आजादी के चाँद को वो भी अपने शीश पर लिए ही चलते थे |

लोग कहते हैं उन्हें २७ फ़रवरी, १९३१, को एक ग़द्दार की मुखबरी के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था | मैं कहता हूँ कि उन्होंने जो फैसला लिया वो सही था क्योंकि मैं 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' और ‘सत्यमेव जयते’ में विश्वास करता हूँ और पंडितजी का शिव समान रूप सुन्दर ही नहीं उनके व्यक्तित्त्व में भी सत्य कूट कूट कर भरा था | वह भारत माता के सच्चे सपूत थे और अपने अंतिम समय तक अपने जीवन सत्य और वचन को साथ लेकर ही चलते रहे और जीवित किसी के हाथ ना आने का प्रण पूर्ण किया |  वे अमर हो गए जैसे हमारे भोले बाबा अमर हैं, अजर हैं और बा-असर हैं |

ऐसे महान क्रांतिकारी, शिव सरीखे, भोले बाबा के समान दृढ़ संकल्पी, बुलंद इरादों के पक्के, क्रांति के तांडव से अंग्रेज़ों और गद्दारों के दांत खट्टे करने वाले, सत्य के मार्ग पर चलने वाले, जूनून और वादे दे पक्के, देश प्रेमी, निष्ठावान, कर्मप्रिये, सदैव अमर स्वतंत्रता सेनानी को मेरा शत शत नमन, हार्दिक श्रद्धांजलि और नत मस्तक हो प्रणाम |

आज का ये दिवस हर सूरत में 'चंद्रशेखर दिवस' कहलाने योग्य है इसलिए भारत माता के सपूत, देशभक्त, शिवांश अमर पंडित चन्द्रशेखर 'आज़ाद' और श्रृष्टि के पालन हार और महाप्रभु महादेव शिव शम्भू को मेरा कोटि कोटि नमन | जिस प्रकार शिव सदैव अजर अमर रहेंगे उसी प्रकार 'आज़ाद' का नाम भी अजर अमर रहेगा |

जय शिव शम्भू | जय महाकाल महाकालेश्वर | जयकारा वीर बजरंगी का हर हर महादेव |

आज की कड़ियाँ 
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मैं सजदा करता हूँ उस जगह जहाँ कोई 'शहीद' हुआ हो - शिवम् मिश्रा

पॉपुलर संस्कृति में महादेव - अवनीश मिश्रा

चंद्रशेखर आजाद की दुर्लभ तस्वीर - मंजीत ठाकुर

शिवरात्रि का अवकाश - अनीता

चंद्रशेखर आजाद - अरविन्द गौरव

महाशिवरात्रि - गृहस्थ महिमा - गिरिजेश राव

चंद्रशेखर आजाद - अनीता शर्मा

विविधा - आना

चंद्रशेखर आज़ाद की बहन - अवनीश सिंह

प्रेम - इमरान अंसारी

अच्छे लगे - त्रिलोकी मोहन पुरोहित

अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज २६ फरवरी है - आज भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता वीर सावरकर जी की ४८ वीं पुण्यतिथि है | 
विनायक दामोदर सावरकर ( जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फरवरी १९६६) भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।

सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण हिन्दू समाज बहुत ही दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है, कि सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किंतु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि राष्ट्र को समर्पित होते थे। १९२४ से १९३७ का समय इनके जीवन का समाज सुधार को समर्पित काल रहा।

सावरकर के अनुसार हिन्दू समाज सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। ।
  • स्पर्शबंदी: निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता
  • रोटीबंदी: निम्न जातियों के साथ खानपान निषेध
  • बेटीबंदी: खास जातियों के संग विवाह संबंध निषेध
  • व्यवसायबंदी: कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध
  • सिंधुबंदी: सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध
  • वेदोक्तबंदी: वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध
  • शुद्धिबंदी: किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध
अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बंदियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया। सावरकरजी हिंदू समाज में प्रचलित जाति-भेद एवं छुआछूत के घोर विरोधी थे। बंबई का पतितपावन मंदिर इसका जीवंत उदाहरण है, जो हिन्दू धर्म की प्रत्येक जाति के लोगों के लिए समान रूप से खुला है।। पिछले सौ वर्षों में इन बंधनों से किसी हद तक मुक्ति सावरकर के ही अथक प्रयासों का परिणाम है|
 

ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम वीर सावरकर जी को उनकी ४८ वीं पुण्यतिथि पर शत शत नमन करते है |
सादर आपका 
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Publicly Letter : गृहमंत्री ​सुशील कुमार शिंदे के नाम

Kulwant Happy at Yuvarocks - युवा सोच युवा खयालात

सुबह हुई ही नहीं

Asha Saxena at Akanksha

बदायूँ

दीपक बाबा at दीपक बाबा की बक बक

उसका खो जाना

Anand Kumar Dwivedi at आनंद

मेरी डायरी के कुछ पुराने पन्नें.....

sarika bera at WOMAN ABOUT MAN

स्टिंग आॅपरेशन और एक दिन की नैतिकता!

सचिन राठौर at APNA SAMAJ

जल और आयुर्वेद

प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्

फ़िर ऐसा भी हुआ- दो

Dwarika Prasad Agrawal at आत्मकथा : पल ये पल




मनमोहन सिंह यानि स्पाँट ब्वाय आँफ 7 RCR

महेन्द्र श्रीवास्तव at आधा सच...

शब्दों की गुत्थमगुत्थी

Dimple Maheshwari at Dil Ki Zubani


बदलती सोच के नए अर्थ के ये हैं कुछ सोपान

vandana gupta at ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!! 

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

सर डॉन ब्रैडमैन और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को सादर नमस्ते।।

 

आज क्रिकेट के मशहूर खिलाड़ी या यूँ कहिये क्रिकेट के पहले महानतम बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन की पुण्यतिथि है। सर डॉन ब्रैडमैन आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर थे और अपने समय के सबसे आक्रमक और धाकड़ बल्लेबाज भी। उनका जन्म 27 अगस्त, 1908 में न्यू साउथ वेल्स (ऑस्ट्रेलिया) में हुआ था। उन्होंने अपने क्रिकेट कैरियर का आगाज़ ब्रिसबेन में 30 नवम्बर 1928 को किया था। 52 टेस्ट मैचों में उन्होंने 6,996 रन 99.94 की अद्भुत बल्लेबाजी औसत से बनाए थे। उन्होंने 29 शतक ( 17 इकहरे, 10 दोहरे और 2 तिहरे शतक ) लगाये। उन्होंने अपने कैरियर का आखिरी मैच इंग्लैंड के विरूद्ध 14 से 18 अगस्त, 1948 में ओवल में खेला था। सर डॉन ब्रैडमैन का देहान्त 25 फरवरी, 2001 को एडिलेड (ऑस्ट्रेलिया) में 92 वर्ष की आयु में हुआ था। 


आज हम सब क्रिकेट के इस महान खिलाड़ी को श्रद्धांजलि अर्पित करते है। सादर।।


अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर  ……










सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

तीसरी पुण्यतिथि पर विशेष - अंकल पई 'अमर' है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम | 

अनंत पई (17 सितम्बर 1929, कार्कल, कर्नाटक — 24 फरवरी 2011, मुंबई), जो अंकल पई के नाम से लोकप्रिय थे, भारतीय शिक्षाशास्री और कॉमिक्स, ख़ासकर अमर चित्र कथा श्रृंखला, के रचयिता थे । इंडिया बुक हाउज़ प्रकाशकों के साथ 1967 में शुरू की गई इस कॉमिक्स श्रृंखला के ज़रिए बच्चों को परंपरागत भारतीय लोक कथाएँ, पौराणिक कहानियाँ और ऐतिहासिक पात्रों की जीवनियाँ बताई गईं । 1980 में टिंकल नामक बच्चों के लिए पत्रिका उन्होंने रंग रेखा फ़ीचर्स, भारत का पहला कॉमिक और कार्टून सिंडिकेट, के नीचे शुरू की. 1998 तक यह सिंडिकेट चला, जिसके वो आख़िर तक निदेशक रहे ।

दिल का दौरा पड़ने से 24 फरवरी 2011 को शाम के 5 बजे अनंत पई का निधन हो गया ।

आज अमर चित्र कथा सालाना लगभग तीस लाख कॉमिक किताबें बेचता है, न सिर्फ़ अंग्रेजी में बल्कि 20 से अधिक भारतीय भाषाओं में । 1967 में अपनी शुरुआत से लेकर आज तक अमर चित्र कथा ने 10 करोड़ से भी ज़्यादा प्रतियाँ बेची हैं । 2007 में अमर चित्र कथा ACK Media द्वारा ख़रीदा गया ।

शुरुआती ज़िन्दगी और शिक्षा


कर्नाटक के कार्कल शहर में जन्मे अनंत के माता पिता का देहांत तभी हो गया था, जब वो महज दो साल के थे । वो 12 साल की उम्र में मुंबई आ गए । मुंबई विश्वविद्यालय से दो डिग्री लेने वाले पई का कॉमिक्स की तरफ़ रुझान शुरु से था लेकिन अमर चित्रकथा की कल्पना तब हुई, जब वो टाइम्स ऑफ इंडिया के कॉमिक डिवीजन से जुड़े ।

'अमर चित्र कथा'

इण्डियन बुक हाउस द्वारा प्रकाशित 'अमर चित्र कथा' 1967 से भारत का मनोरंजन करने के साथ -साथ उसे नैतिकता सिखाती आई है. इन चित्र कथाओ को शुरू करने का श्रेय जाता है श्री अनंत पई जी को. राज कॉमिक्स के लिए काम कर चुके श्री दिलीप कदम जी और स्वर्गीय श्री प्रताप मुलिक जी अमर चित्र कथा के लिए भी कला बना चुके है .

अमर चित्र कथा की मुख्य आधार होती थी लोक कथाएँ, इतिहास, पौराणिक कथाएँ, महान हस्तियों की जीवनियाँ, किवदंतियां, आदि. इनका लगभग 20 भारतीय और 10 विदेशी भाषाओ मे अनुवाद हो चुका है. लगभग 3 दशको अमर चित्र कथा देश भर मे छाई रही और अब भी इनकी प्रतियाँ प्रमुख पुस्तक की दुकानों पर मिल जायेंगी.

2007 मे ACK Media ने अमर चित्र कथा के अधिकार ले लिए और सितम्बर 2008 मे उन्होंने अमर चित्र कथा पर एक नई वेब साईट आरम्भ की.

भारतीय कॉमिक्स को लोकप्रिय और उनके माध्यम से आम लोगो तक संदेश पहुँचाने वाली अमर चित्र कथा हमेशा यूँ ही अमर रहेंगी ठीक जैसे अंकल पई अमर हो गए है !

 आज उनकी तीसरी पुण्यतिथि के अवसर पर हम सब, ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से, उनको शत शत नमन करते है !

सादर आपका 

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अब मर्ज़ी नही हमारी ... है अब.. वक्त की बारी !!!

Ashok Saluja at यादें...

कोई श्रृंगार के गीत लिखता रहा

राकेश खंडेलवाल at गीत कलश

ले आयी वसंत

Dr. sandhya tiwari at परिंदा

तुम्हारा आना

विश्व दीपक at अंतर्नाद

राजिम कुंभ में एक दिन

ब्लॉ.ललित शर्मा at ललितडॉटकॉम

ऐसी होती है सजा....

anamika singh at क्षण

विघटन


बेख्याली के ख्याल

संगीता स्वरुप ( गीत ) at गीत.......मेरी अनुभूतियाँ

कविता कोश को अक्षरम‌ सम्मान

Lalit Kumar at दशमलव

तलाक लेने और देने से पहले आर्थिक रूप से सक्षम महिलाये ध्यान दे

रचना at नारी , NAARI

यादों के झरोखे से ...


ब्लॉगर ब्लॉग के साथ जियोटैगिंग का प्रयोग करना


उसकी मुक्ति तो...

Amrita Tanmay at Amrita Tanmay

अजीबोगरीब स्थिति

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा

एक सजा

Rewa tibrewal at Love
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!  

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

अमीर गरीब... ब्लॉग-बुलेटिन

मित्रों... लम्बे अन्तराल के बाद सभी को देव बाबा की राम राम.... बहुत कुछ है कहनें को... बहुत कुछ है आपसे साझा करनें को.. लीजिए देव बाबा की वापसी आपके अपनें बुलेटिन पर....  

पिछले दिनों एक सेमिनार में जानें का मौका मिला... सेमिनार भारत में सोशल इंजीनियरिंग और आजकल की स्थिति को लेकर थी। बडे बडे लोगों ने अपनें अपनें अनुभव बांटे और काफ़ी इन्फ़ार्मेटिव सेशन था। कुल मिलाकर सभी इसी बात पर आए कि भारत की बहु-जातीय व्यवस्था ही इस समाज की मजबुती की बुनियाद है। भारत की सफ़लता के पीछे इसी का ही हाथ है। मित्रों इसके बाद हम महाबलेश्वर की ओर निकल पडे और हमनें एक रात वहीं बितानें का प्लान बनाया। फ़ाईव स्टार टाईप होटल में रात में रुके और हम लोग उस रिसार्ट की सुन्दरता को देख कर मनमोहित थे। मित्रों.. रात्रि में खाना खानें के लिए अपनें बेटे के साथ रेस्तरां गये... बेटे के लिए एक प्याला दूध लिया गया जिसका बिल लगाया गया... ९५ रुपये। एक रात रुकनें के बाद अगले दिन घर वापसी की गई। रास्ते में हम एक ढाबे पर रुके... चाय के प्याले के बीच बेटे के लिए एक प्याला दूध मांगा गया। बिल देनें की बारी आई... यहां उस ढाबे वाले ने हमसे केवल चाय के पैसे लिए... बोला बच्चा दे दूध के लिए पैसा नहीं लेंगे साहब.... 

वैसे यही भारत की सोशल इंजीनियरिंग है और यही इंडिया और भारत का फ़र्क भी है।  एक वर्ग चांद और मंगल की उडान भरता है, बहु-मंज़िली इमारत में रहता है। लैपटाप, स्मार्टफ़ोन से दुनियां के सम्पर्क में है। और एक वर्ग आज भी रोटी कपडा और मकान जैसी ज़रूरतों के लिए टकटकी लगाए बैठा रहता है। दोनों के लिए संविधान एक है... सभी के लिए न्याय एक है... लेकिन शायद सिर्फ़ कागज़ पर। सेमिनार और चर्चा व्यर्थ लगी.... समझ का फ़र्क है केवल। अमीर गरीब... ऊंच नीच...  जाति और वर्ण व्यवस्था.... भारत बनाम इंडिया....  कई शब्द कई दिनों तक गूंजते रहे...  

अब भाई आप लोग ही बताईए अमीर कौन है और गरीब कौन.... 

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तो मित्रों आज का बुलेटिन यहीं तक... कल मिलेंगे एक नये अंक के साथ


जय हिन्द
देव

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

ब्लॉग-बुलेटिन: एक रेट्रोस्पेक्टिव


गुरुदेव के गीत ऐकला चॉलो रे से प्रभावित होकर गीतकार/संगीतकार रवीन्द्र जैन ने एक गीत लिखा था
सुन के तेरी पुकार
संग चलने को तेरे कोई हो न हो तैयार
हिम्मत न हार
चल चला चल, अकेला चल चला चल!

चलते रहने का यह मूल मंत्र एक लम्बे समय से हर मुसाफ़िर का हौसला बढाता आया है. जो राह चुनी तूने/ उस राह पे राही चलते जाना है.. यही गुनगुनाते हुए न जाने कितने मुसाफ़िरों ने अपनी मंज़िल पाई. और कहते हैं ना कि सफर का असली आनन्द तो चलते जाने में है, मंज़िल पाने में वो मज़ा कहाँ. लेकिन अर्जुन की तरह जबतक लक्ष्य पर दृष्टि न हो, भटकाव का डर बना रहता है और यात्रा का आनन्द भंग हो जाता है.

जिस दिन से चला हूँ, मेरी मंज़िल पे नज़र है,
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा!  

ऐसे ही कुछ लोगों ने मिलकर एक नया ब्लॉग बनाया. लक्ष्य था उस रोज़ या उसके आस-पास प्रकाशित ब्लॉग पोस्टों को संकलित कर पाठकों के लिए प्रस्तुत करना. लेकिन इसका प्रारूप अन्य ऐग्रिगेटर्स की तुलना में थोड़ा भिन्न रहा. यहाँ एक पोस्ट, बुलेटिन के तौर पर प्रकाशित की जाती है, जिसमें उस दिवस से जुड़ी सामान्य जानकारी, कोई घटना, कोई आलेख, प्रसंग या फिर कविता होती है. सोचा था कि लोग बुलेटिन टीम के सदस्यों के अलग-अलग आलेख भी पढेंगे और दूसरे ब्लॉग्स की जानकारी भी प्राप्त करेंगे. हर रोज़ एक नई बुलेटिन, एक नया आलेख और एक नया लेखक. विविधता, विषय के साथ-साथ रचनाकार की भी बनी रही. और फिर,

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!

कुछ मेहमान बुलेटिन लिखने आए, कुछ नए लोग जुड़े और कुछ बड़े नाम भी साथ हो लिए. बड़ों का योगदान आशीर्वाद के रूप में ग्रहण किया गया और छोटों का उत्साहवर्धन के तौर पर. प्रारूप उसी हिसाब से बदलता गया और यहाँ ब्लॉगर विशेष की चर्चा हुई, फेसबुक की पोस्टों का भी ज़िक्र हुआ, नई-पुरानी पोस्ट साझा की गईं और पहली बार बोलती बुलेटिन का भी आनन्द लिया हमारे पाठकों ने.

मैं शुरू से ही जुड़ा रहा इसके साथ और लगातार लिखता भी रहा अपनी तमाम व्यक्तिगत परेशानियों की बावजूद भी जबकि मेरे स्वयम के ब्लॉग पर मेरा लिखना नहीं हो पाता था. इन दिनों मैंने फेसबुक से दूरी बना ली ताकि ब्लॉग पर ध्यान दे सकूँ और ब्लॉग लेखन में आई मन्दी के दौर को झुठला सकूँ. लिख रहा हूँ – पढ भी रहा हूँ.

यहाँ भी लगा हूँ जब तक परमात्मा की इच्छा होगी, लिखता रहूँगा! लेकिन इस पूरी यात्रा में उन सारे गीतों को याद करते हुए जो मैंने ऊपर कहे, एक गीत भी कुछ इस तरह दिलोदिमाग़ में गूँजता रहा -  
बिछड़े कई बारी-बारी!!

                               -  सलिल वर्मा

और ये रही आज की प्रस्तुति: 












शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है ... अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस २१ फ़रवरी को मनाया जाता है। १७ नवंबर, १९९९ को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी।

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवँ सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन १९५२ से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।

२००८ को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया था ।

यह मात्र एक संयोग ही था कि आज दिन मे नेट पर खबरें पढ़ते हुये इस समाचार पर ध्यान गया |

इस खबर के अनुसार अब गूगल ने भी भारत को महत्व देते हुए यहां की क्षेत्रीय भाषाओं में नए एंड्रायड एप्स बनाने की योजना की है। इस सिलसिले में बेंगलूर में दो दिवसीय वर्कशॉप आयोजित की जा रही है जिसकी मेजबानी का दायित्व गूगल ने लिया है। यह वर्कशॉप भारतीय भाषाओं में एंड्रायड एप्लीकेशन को बनाने व डिजाइन करने पर फोकस करेगा। 21 फरवरी व 22 फरवरी को होने वाले इस इवेंट में करीब 100 डेवलेपर्स हिस्सा लेंगे। 

एक और सुखद संयोग देखिये कि आज ही हम मे अधिकतर की मातृभाषा हिन्दी के महाकवि निराला जी की जयंती भी है |

हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११ संवत १९५३ तदनुसार ११ फरवरी सन १८९६ में हुआ था। उनकी कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्मतिथि २१ फरवरी १८९९ अंकित की गई है। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। उनका जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंण्डित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे।
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्तूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।

 ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से मैं आप सब को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ और साथ साथ इसी मौके पर अपनी मातृभाषा हिन्दी के महाकवि निराला जी को शत शत नमन करता हूँ |

सादर आपका 
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इससे खूबसूरत पश्चाताप और कोई नहीं …

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें...

नेटवा बैरी ……

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा

बोलो बसंत

Dr.NISHA MAHARANA at My Expression

कुछ दोहे


''चल बबाल कटा !'' -लघु कथा


शिशु

कालीपद प्रसाद at अनुभूति

वोट दिया तो उंगली काट लेंगे की धमकी के बावजूद

रमेश शर्मा at यायावर

कहीं आप के पेस्ट मंजन में भी तंबाकू तो नहीं...

डा प्रवीण चोपड़ा at मीडिया डाक्टर

कोरे पन्‍नों पर !!!!!!!!!!!

सदा at SADA

राजा कुशनाभ द्वारा कन्याओं के धैर्य एवं क्षमा शीलता की प्रंशसा


कैसे कहूँ मै तुमसे अपने हृदय की बतियाँ

Rekha Joshi at Ocean of Bliss

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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

सांसद बनना हो तो पहले पहलवानी करो - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आजकल देश भर की विधानसभाओं और यहाँ तक की संसद के दोनों सदनों का जो हाल चाल देखा सुना जा रहा है उस से तो यही लगता है कि आगे चल कर सांसद या विधायक बनना है तो पहले पहलवानी करना जरूरी हो जाएगा |
कार्टून साभार संता-बंता 
आप का क्या ख्याल है !?

सादर आपका 

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सम्बल दोगे .....

देखे दुनिया

मोहब्बत का हश्र, आज हमने भी देख लिया .....

बरसात की सर्द रात

हमारे आदर्श (1) छत्रपति शिवाजी

सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम...2

ठण्ड का कहर ...

नीलकण्ठ यहाँ कहाँ से?-यादवेन्द्र 

ई पुस्तक-मेला बड़ा इनफीरियारिटी दे रहा है केशव !!

कैनवेस

शायद तुम समझ सको

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बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

छत्रपति शिवाजी महाराज की ३८४ वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को सादर नमस्कार।।

चित्र साभार : बुरा भला
छत्रपति शिवाजी महाराज जी की ३८४ वीं जयन्ती पर पूरा हिन्दी ब्लॉगजगत और ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें शत शत नमन करती  है। सादर।।


अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर  ………… 




चला बिहारी ब्लॉगर बनने से ये कहानी है पुरानी

कस्‍बा से हिन्दी की आधुनिकता

न दैन्यं न पलायनम् से संतुलन, गति, क्रम

कुमाउँनी चेली से  यह तो होना ही था केजरीवाल जी !

vijai path से  आलेख : मैं और हम

Yuvarocks से एक वोटर के सवाल एक पीएम प्रत्याशी से

एक से झाँकी हिंदुस्तान की : जागो मोहन प्यारे

काव्यान्जलि से  आँसुओं की कीमत.

समाचार NEWS से भारत में लुप्त नहीं हुई हैं प्राचीन धरोहरें और पूरी दुनिया में मुफ्त इंटरनेट "आउटरनेट" के जरिए।


कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि।।

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

क्या होता है काली बिल्ली के रास्ता काटने का मतलब - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज का ज्ञान :-

"अगर कोई काली बिल्ली आपका रास्ता काटती है, 
तो इसका मतलब है कि वो कहीं जा रही है।"
- ग्रुशो मार्क्स

सादर आपका 
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कुछ चुने हुए मुक्तक


चाय की............................

anand murthy at anandkriti

बादे-सबा के ख़ास..!

Suresh Swapnil at साझा आसमान

प्रेम पगी रस में लिपटी, हर बात (सवैया - मत्तगयन्द)


मुहब्बत की सजा मौत !


"सब्र का फल मीठा होता है।"

राजेंद्र कुमार at भूली-बिसरी यादें

" चलो कुछ बात करें " -------मेरी नज़र से


हालात ...

उदय - uday at कडुवा सच ...

मुंशी प्रेमचंद स्त्री और पुरुष


दिल्ली का गार्डन टूरिज्म फेस्टिवल -- बसंत बहार !

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन

मुक्त व्यापार,मुक्त बाज़ार का मुक्त नायक केजरीवाल

Randhir Singh Suman at लो क सं घ र्ष !

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सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

राय का लेन देन ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज का ज्ञान :- 
 सादर आपका
शिवम मिश्रा
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साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक(ग़ज़ल )

'हमलोग' उपन्यास के रूप में आ रहा है

वो काँच का दरवाजा

तलाशी

सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम

खबर खबर वालों की ( मीडिया की बात ) डा लोक सेतिया

जब कीचड़ में कमल खिला

भाषा शहरी हो गयी है -

आर टी आई में किसी उस्ताद की ज़रूरत हो तो क्या करें ...

18 फरवरी की ग्रहस्थिति सामान्य तौर पर सुखद है .. पढिए किन लग्नवालों को किन मामलों में

अन्‍धविश्‍वासों का दायरा

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रविवार, 16 फ़रवरी 2014

दादासाहब की ७० वीं पुण्यतिथि - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

धुंडिराज गोविन्द फालके उपाख्य दादासाहब फालके  (३० अप्रैल, १८७० - १६ फरवरी, १९४४) वह महापुरुष हैं जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग का 'पितामह' कहा जाता है।
दादा साहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता थे, शौकिया जादूगर थे। कला भवन बड़ौदा से फोटोग्राफी का एक पाठ्यक्रम भी किया था। उन्होंने फोटो केमिकल प्रिंटिंग की प्रक्रिया में भी प्रयोग किये थे। प्रिंटिंग के जिस कारोबार में वह लगे हुए थे, 1910 में उनके एक साझेदार ने उससे अपना आर्थिक सहयोग वापस ले लिया। उस समय इनकी उम्र 40 वर्ष की थी कारोबार में हुई हानि से उनका स्वभाव चिड़िचड़ा हो गया था। उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ‘ईसामसीह’ पर बनी एक फिल्म देखी। फिल्म देखने के दौरान ही फालके ने निर्णय कर लिया कि उनकी जिंदगी का मकसद फिल्मकार बनना है। उन्हें लगा कि रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों से फिल्मों के लिए अच्छी कहानियां मिलेंगी। उनके पास सभी तरह का हुनर था। वह नए-नए प्रयोग करते थे। अतः प्रशिक्षण का लाभ उठाकर और अपनी स्वभावगत प्रकृति के चलते प्रथम भारतीय चलचित्र बनाने का असंभव कार्य करनेवाले वह पहले व्यक्ति बने।
 
 
आज दादासाहब की ७० वीं पुण्यतिथि है ... इस अवसर पर हम सब भारतीय फिल्म उद्योग के 'पितामह' को शत शत नमन करते है | 
सादर आपका 


प्रातः भ्रमण

देवेन्द्र पाण्डेय at चित्रों का आनंद 


मूक आवाज








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लेखागार