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बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

88वां बलिदान दिवस - पंडित चंद्रशेखर आजाद जी और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
Chandrashekhar-Azad.jpg
पंडित चंद्रशेखर आज़ाद (अंग्रेज़ी: Pt. Chandrashekhar Azad, जन्म- 23 जुलाई, 1906; मृत्यु- 27 फ़रवरी, 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। 17 वर्ष के चंद्रशेखर आज़ाद क्रांतिकारी दल ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ में सम्मिलित हो गए। दल में उनका नाम ‘क्विक सिल्वर’ (पारा) तय पाया गया। पार्टी की ओर से धन एकत्र करने के लिए जितने भी कार्य हुए, चंद्रशेखर उन सबमें आगे रहे। सांडर्स वध, सेण्ट्रल असेम्बली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वाइसराय को ट्रेन बम से उड़ाने की चेष्टा, सबके नेता वही थे। इससे पूर्व उन्होंने प्रसिद्ध ‘काकोरी कांड’ में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। एक बार दल के लिये धन प्राप्त करने के उद्देश्य से वे गाजीपुर के एक महंत के शिष्य भी बने। इरादा था कि महंत के मरने के बाद मरु की सारी संपत्ति दल को दे देंगे।

चन्द्रशेखर आज़ाद घूम–घूमकर क्रान्ति प्रयासों को गति देने में लगे हुए थे। आख़िर वह दिन भी आ गया, जब किसी मुखबिर ने पुलिस को यह सूचना दी कि चन्द्रशेखर आज़ाद 'अल्फ़्रेड पार्क' में अपने एक साथी के साथ बैठे हुए हैं। वह 27 फ़रवरी, 1931 का दिन था। चन्द्रशेखर आज़ाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ बैठकर विचार–विमर्श कर रहे थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस अधीक्षक 'नाटबाबर' ने आज़ाद को इलाहाबाद के अल्फ़्रेड पार्क में घेर लिया। "तुम कौन हो" कहने के साथ ही उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना नाटबाबर ने अपनी गोली आज़ाद पर छोड़ दी। नाटबाबर की गोली चन्द्रशेखर आज़ाद की जाँघ में जा लगी। आज़ाद ने घिसटकर एक जामुन के वृक्ष की ओट लेकर अपनी गोली दूसरे वृक्ष की ओट में छिपे हुए नाटबाबर के ऊपर दाग़ दी। आज़ाद का निशाना सही लगा और उनकी गोली ने नाटबाबर की कलाई तोड़ दी। एक घनी झाड़ी के पीछे सी.आई.डी. इंस्पेक्टर विश्वेश्वर सिंह छिपा हुआ था, उसने स्वयं को सुरक्षित समझकर आज़ाद को एक गाली दे दी। गाली को सुनकर आज़ाद को क्रोध आया। जिस दिशा से गाली की आवाज़ आई थी, उस दिशा में आज़ाद ने अपनी गोली छोड़ दी। निशाना इतना सही लगा कि आज़ाद की गोली ने विश्वेश्वरसिंह का जबड़ा तोड़ दिया।

बहुत देर तक आज़ाद ने जमकर अकेले ही मुक़ाबला किया। उन्होंने अपने साथी सुखदेवराज को पहले ही भगा दिया था। आख़िर पुलिस की कई गोलियाँ आज़ाद के शरीर में समा गईं। उनके माउज़र में केवल एक आख़िरी गोली बची थी। उन्होंने सोचा कि यदि मैं यह गोली भी चला दूँगा तो जीवित गिरफ्तार होने का भय है। अपनी कनपटी से माउज़र की नली लगाकर उन्होंने आख़िरी गोली स्वयं पर ही चला दी। गोली घातक सिद्ध हुई और उनका प्राणांत हो गया। इस घटना में चंद्रशेखर आज़ाद की मृत्यु हो गई और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उन्हें तीन या चार गोलियाँ लगी थीं।


आज अमर बलिदानी तथा महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित चंद्रशेखर आजाद जी के 88वें बलिदान दिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

136वां बलिदान दिवस - वासुदेव बलवन्त फड़के और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
वासुदेव बलवन्त फड़के
वासुदेव बलवन्त फड़के (अंग्रेज़ी:Vasudev Balwant Phadke, जन्म- 4 नवम्बर, 1845 ई. 'महाराष्ट्र' तथा मृत्यु- 17 फ़रवरी, 1883 ई. 'अदन') ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। वासुदेव बलवन्त फड़के का जन्म महाराष्ट्र के रायगड ज़िले के 'शिरढोणे' नामक गांव में हुआ था। फड़के ने 1857 ई. की प्रथम संगठित महाक्रांति की विफलता के बाद आज़ादी के महासमर की पहली चिंंनगारी जलायी थी। देश के लिए अपनी सेवाएँ देते हुए 1879 ई. में फड़के अंग्रेज़ों द्वारा पकड़ लिये गए और आजन्म कारावास की सज़ा देकर इन्हें अदन भेज दिया गया। यहाँ पर फड़के को कड़ी शारीरिक यातनाएँ दी गईं। इसी के फलस्वरूप 1883 ई. को इनकी मृत्यु हो गई।


आज वासुदेव बलवन्त फड़के जी की 136वें बलिदान दिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं। सादर।।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर .... अभिनन्दन।। 

सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

राजौरी के चारों शहीदों को शत शत नमन - ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।

जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा भारी गोलीबारी में रविवार को देश के चार जवान शहीद हो गए थे।






आज हम इन चारों जवानों की शहादत को सलाम करते हुए और उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें नम आँखों से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

जय जवान। जय भारत। जय हिन्द। 


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

शुक्रवार, 24 जून 2016

रानी दुर्गावती और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
रानी दुर्गावती ( जन्म: 5 अक्टूबर, 1524 - मृत्यु: 24 जून, 1564) गोंडवाना की शासक थीं, जो भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रानियों में गिनी जाती हैं। वीरांगना महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। महोबा के राठ गांव में 1524 ई. की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपतशाह से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाई। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।

रानी दुर्गावती

शौर्य और पराक्रम की देवी


झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से रानी दुर्गावती का शौर्य किसी भी प्रकार से कम नहीं रहा है, दुर्गावती के वीरतापूर्ण चरित्र को लम्बे समय तक इसलिए दबाये रखा कि उसने मुस्लिम शासकों के विरुद्ध संघर्ष किया और उन्हें अनेकों बार पराजित किया। देर से ही सही मगर आज वे तथ्य सम्पूर्ण विश्व के सामने हैं। धन्य है रानी का पराक्रम जिसने अपने मान सम्मान, धर्म की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेकों बार शत्रुओं को पराजित करते हुए बलिदान दे दिया।

दुर्गावती का शासन 


दुर्गावती ने 16 वर्ष तक जिस कुशलता से राज संभाला, उसकी प्रशस्ति इतिहासकारों ने की। आइना-ए-अकबरी में अबुल फ़ज़ल ने लिखा है, दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्णमुद्राओं और हाथियों से करती थीं। मंडला में दुर्गावती के हाथीखाने में उन दिनों 1400 हाथी थे। मालवांचल शांत और संपन्न क्षेत्र माना जाता रहा है, पर वहां का सूबेदार स्त्री लोलुप बाजबहादुर, जो कि सिर्फ रूपमती से आंख लड़ाने के कारण प्रसिद्ध हुआ है, दुर्गावती की संपदा पर आंखें गड़ा बैठा। पहले ही युद्ध में दुर्गावती ने उसके छक्के छुड़ा दिए और उसका चाचा फतेहा खां युद्ध में मारा गया, पर इस पर भी बाजबहादुर की छाती ठंडी नहीं हुयी और जब दुबारा उसने रानी दुर्गावती पर आक्रमण किया, तो रानी ने कटंगी-घाटी के युद्ध में उसकी सेना को ऐसा रौंदा कि बाजबहादुर की पूरी सेना का सफाया हो गया। फलत: दुर्गावती सम्राज्ञी के रूप में स्थापित हुईं।

अकबर और दुर्गावती


तथाकथित महान मुग़ल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ़ ख़ाँ पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास 'नरई नाले' के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुग़ल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।

अकबर से संघर्ष और बलिदान

आसफ़ ख़ाँ रानी की मृत्यु से बौखला गया, वह उन्हें अकबर के दरबार में पेश करना चाहता था, उसने राजधानी चौरागढ़ (हाल में ज़िला नरसिंहपुर में) पर आक्रमण किया, रानी के पुत्र राजा वीरनारायण ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की, इसके साथ ही चौरागढ़ में पवित्रता को बचाये रखने का महान जौहर हुआ, जिसमें हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं ने भी जौहर के अग्नि कुंड में छलांग लगा दी थी। किंवदंतियों में है कि आसफ़ ख़ाँ ने अकबर को खुश करने के लिये दो महिलाओं को यह कहते हुए भेंट किया कि एक राजा वीरनारायण की पत्नी है तथा दूसरी दुर्गावती की बहिन कलावती है। राजा वीरनारायण की पत्नी ने जौहर का नेतृत्व करते हुए बलिदान किया था और रानी दुर्गावती की कोई बहिन थी ही नहीं, वे एक मात्र संतान थीं। बाद में आसफ़ ख़ाँ से अकबर नराज़ भी रहा, मगर मेवाड़ के युद्ध में वह मुस्लिम एकता नहीं तोड़ना चाहता था।



महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी के 452वें बलिदान दिवस पर पूरा भारत उनकों याद करते हुए शत शत नमन करता है। सादर।। 



अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर  .....














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर  ... अभिनन्दन।।

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

महादेव के अंश चंद्रशेखर आज़ाद

आदरणीय मित्रगण.... प्रणाम

कुछ समय से मैं बुलेटिन लगा पाने में असमर्थ था | इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | अब एक नए जूनून और सोच के साथ आपके सामने हाज़िर हूँ और ये मेरा छोटा सा प्रयास आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | आशा करता हूँ आपको मेरे विचार प्रभावित करेंगे और अपनी टिप्पणियों के माध्यम से अपनी बात, राय, सहमति, असहमति वयक्त करेंगे तो बहुत आनंद प्राप्त होगा |


आज भोले बाबा महादेव महाकालेश्वर शमशान अधिपति शिव शम्भू का जन्म दिवस है मतलब आज महाशिवरात्रि का पर्व है और दूसरी तरफ आज ही हमारे अपने शहीद-ए-आज़म महान क्रान्तिकारी अमर पूजनीय वन्दनीय पंडित चन्द्रशेखर 'आजाद' जी जिनका नाम भर सुनते ही अंग्रेज़ अफसरों की पैंट गीली हो जाती थी की ८३वीं पुण्यतिथि भी है |

वैसे अपने दिल से सोचता हूँ तो आवाज़ आती है के आज के दिन को क्यों ना 'चन्द्रशेखर दिवस' का नाम देकर एक नए रूप में याद किया जाये | आप पूछेंगे क्यों तो मैं कहूँगा कि शंकर भगवान् को भी तो इसी नाम से जाना जाता है, उनके अनेक नामों में से एक नाम ‘चन्द्रशेखर’ भी है और दूसरी तरफ पंडित जी भी तो भारत के क्रांतिकारी समूह के शिव ही थे | उनके तांडव ने अंग्रेजों और गद्दारों के दिलों में दहशत और हलचल मचा कर रख दी थी और आजादी के चाँद को वो भी अपने शीश पर लिए ही चलते थे |

लोग कहते हैं उन्हें २७ फ़रवरी, १९३१, को एक ग़द्दार की मुखबरी के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था | मैं कहता हूँ कि उन्होंने जो फैसला लिया वो सही था क्योंकि मैं 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' और ‘सत्यमेव जयते’ में विश्वास करता हूँ और पंडितजी का शिव समान रूप सुन्दर ही नहीं उनके व्यक्तित्त्व में भी सत्य कूट कूट कर भरा था | वह भारत माता के सच्चे सपूत थे और अपने अंतिम समय तक अपने जीवन सत्य और वचन को साथ लेकर ही चलते रहे और जीवित किसी के हाथ ना आने का प्रण पूर्ण किया |  वे अमर हो गए जैसे हमारे भोले बाबा अमर हैं, अजर हैं और बा-असर हैं |

ऐसे महान क्रांतिकारी, शिव सरीखे, भोले बाबा के समान दृढ़ संकल्पी, बुलंद इरादों के पक्के, क्रांति के तांडव से अंग्रेज़ों और गद्दारों के दांत खट्टे करने वाले, सत्य के मार्ग पर चलने वाले, जूनून और वादे दे पक्के, देश प्रेमी, निष्ठावान, कर्मप्रिये, सदैव अमर स्वतंत्रता सेनानी को मेरा शत शत नमन, हार्दिक श्रद्धांजलि और नत मस्तक हो प्रणाम |

आज का ये दिवस हर सूरत में 'चंद्रशेखर दिवस' कहलाने योग्य है इसलिए भारत माता के सपूत, देशभक्त, शिवांश अमर पंडित चन्द्रशेखर 'आज़ाद' और श्रृष्टि के पालन हार और महाप्रभु महादेव शिव शम्भू को मेरा कोटि कोटि नमन | जिस प्रकार शिव सदैव अजर अमर रहेंगे उसी प्रकार 'आज़ाद' का नाम भी अजर अमर रहेगा |

जय शिव शम्भू | जय महाकाल महाकालेश्वर | जयकारा वीर बजरंगी का हर हर महादेव |

आज की कड़ियाँ 
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मैं सजदा करता हूँ उस जगह जहाँ कोई 'शहीद' हुआ हो - शिवम् मिश्रा

पॉपुलर संस्कृति में महादेव - अवनीश मिश्रा

चंद्रशेखर आजाद की दुर्लभ तस्वीर - मंजीत ठाकुर

शिवरात्रि का अवकाश - अनीता

चंद्रशेखर आजाद - अरविन्द गौरव

महाशिवरात्रि - गृहस्थ महिमा - गिरिजेश राव

चंद्रशेखर आजाद - अनीता शर्मा

विविधा - आना

चंद्रशेखर आज़ाद की बहन - अवनीश सिंह

प्रेम - इमरान अंसारी

अच्छे लगे - त्रिलोकी मोहन पुरोहित

अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

लेखागार