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सोमवार, 25 मार्च 2019

फ़ारुख़ शेख़ और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
फ़ारुख़ शेख़
फ़ारुख़ शेख़ (अंग्रेज़ी: Farooq Sheikh, जन्म: 25 मार्च, 1948; मृत्यु: 27 दिसम्बर, 2013) एक भारतीय अभिनेता, समाज-सेवी और एक टेलीविजन प्रस्तोता थे। उन्हें 70 और 80 के दशक की फ़िल्मों में अभिनय के कारण प्रसिद्धि मिली। वो सामान्यतः एक कला सिनेमा में अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध थे जिसे समानांतर सिनेमा भी कहा जाता है। उन्होंने सत्यजित राय और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे भारतीय सिनेमा के महान् फ़िल्म निर्देशकों के निर्देशन में भी काम किया।

फ़ारुख़ एक बेहतरीन कलाकार तो थे ही लेकिन उससे कहीं आगे वह एक बेहतरीन इंसान थे। फ़ारुख़ शेख़ संपन्न परिवार से ज़रूर थे मगर पिता के निधन के बाद उन्होंने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाया। उन्होंने रेडियो और टीवी पर कार्यक्रम किए, लेकिन सिर्फ पैसों की खातिर फ़िल्मों में काम करना उन्हें मंजूर न था। इसीलिए जिस जमाने में अभिनेता एक साथ दर्जनों फ़िल्में साइन करते थे, फ़ारुख़ शेख़ एक बार में दो से ज्यादा फ़िल्मों में काम नहीं करते थे। 1978 में ‘नूरी’ की कामयाबी के बाद कुछ ही महीनों में उनके पास क़रीब 40 फ़िल्मों के प्रस्ताव आए। लेकिन उन्होंने सारे के सारे ठुकरा दिए क्योंकि वे सब ‘नूरी’ की ही तरह थे। फ़ारुख़ शेख़ का नाम कभी किसी विवाद में नहीं आया। न ही किसी सह-अभिनेत्री या हिरोइन से उनका नाम जुड़ा। वे पूरी तरह से पारिवारिक इंसान थे। उनकी दो बेटियां हैं। उन्होंने ईश्वर में सदा विश्वास किया। वे कहते थे कि एक शक्ति है जो ऊपर से हमें संचालित कर रही है। धर्म और जाति के नाम पर बंटवारे या भेदभाव उन्हें कभी गवारा न थे। उन्होंने सदा कहा कि गुजर जाने के बाद दुनिया में याद किए जाने की ख्वाहिश उनमें नहीं है। वह कहते थे कि यह ज़िंदगी एक उत्सव है और अपने रियलिटी शो ‘जीना इसी का नाम है’ में मैं ज़िंदगी का ही जश्न मना रहा हूँ।

बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता फ़ारुख़ शेख़ का शुक्रवार 27 दिसम्बर, 2013 की रात दुबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। मीडिया को यह जानकारी उनकी मित्र एवं अभिनेत्री दीप्ति नवल ने दी। दुबई में ज़रूरी औपचारिकता पूरी करने के बाद उनका शव अंतिम संस्कार के लिए मुंबई लाया गया। मुंबई में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। फ़ारुख़ शेख़ 65 वर्ष के थे और उनकी तबीयत इससे पहले अच्छी थी और उन्होंने दो महीने पहले शारजाह पुस्तक मेले में शिरकत की थी। फ़िल्म 'गरम हवा' से कैरियर की शुरुआत की थी और उसके बाद कला और मुख्यधारा की फ़िल्म में अपनी पहचान बनाई थी। उन्होंने चश्मेबद्दूर, उमराव जान, नूरी, किसी ने कहा, साथ-साथ, ये जवानी है दीवानी आदि समेत तमाम फ़िल्में कीं। फ़ारुख़ शेख़ ने सत्यजीत रे के साथ भी लंबे समय तक काम किया। उनकी आख़िरी फ़िल्म 'क्लब 60' थी। फ़ारुख़ शेख़ को कला फ़िल्मों, रंगमंच और टेलीविजन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने टेलीविजन पर प्रसिद्ध शो 'जीना इसी का नाम है' की मेजबानी भी की थी।

आज फ़ारुख़ शेख़ जी की 71वें जन्म दिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।   

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

"तुम चले जाओगे तो सोचेंगे ... हम ने क्या खोया ... हम ने क्या पाया !!" - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज सुबह टीवी खोलते ही बुरी खबर मिली कि फ़ारुख शेख साहब नहीं रहे ... दिल बुझ सा गया ...
65 साल के सहज एवं विनम्र बॉलीवुड अभिनेता फारुख शेख का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अपनी बीवी और दो बेटियों के साथ वह दुबई छुट्टियां मनाने गए थे और यहीं उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा। फारुख शेख के निधन का समाचार सुनकर पूरा बॉलीवुड सदमे में हैं।
अभिनेता फारुख शेख 1970-80 के दशक की अपनी फिल्मों के लिए ज्यादा जाने जाते हैं। अपने समय के चोटी के निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया है। गर्म हवा, शतरंज के खिलाड़ी, उमराव जान, चश्मे-बद्दूर, लोरी, बाजार, अब इंसाफ होगा उनकी अहम फिल्में हैं। इस साल उन्होंने ये जवानी है दीवानी और क्लब 60 फिल्मों में काम किया।
फारुख शेख ने कई टीवी सीरियल्स में भी काम किया है। वह थियेटर जगत में भी बड़ा नाम हैं। लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिक 'जीना इसी का नाम है' से इन्होंने ढेरों सुर्खियां बटोरी। 
फ़ारुख़ का जन्म मुम्बई के एक वकील मुस्तफ़ा शेख और फ़रिदा शेख के एक मुसलमान परिवार में जो बोडेली कस्बे के निकट नसवाडी ग्राम के निकट बड़ोदी गुजरात के अमरोली में हुआ। उनके परिवार वाले ज़मिंदार थे और उनका पालन पोषण शानदार परिवेश में हुआ। वो अपने घर के पाँच बच्चो में सबसे बड़े थे।
वो सेंट मैरी स्कूल, मुंबई में पढ़ने गये और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई गये। उन्होंने कानून की पढ़ाई सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ लॉ में पूर्ण की।
 फारुख शेख साहब को हम सब की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि |

सादर आपका 

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फुरसत में… 114 नालंदा के खंडहरों की सैर

मनोज कुमार at मनोज
*फुरसत में**… 114* *नालंदा के खंडहरों की सैर[image: 19102011(002)]* *मनोज कुमार* साल जाते-जाते बड़े भाई ने दो आदेश किया। एक कि इस ब्लॉग पर गतिविधि पुनः ज़ारी किया जाए। सो हाज़िर हूं … दूसरे .. मेरे लिए नालंदा की यात्रा वैसे तो हमेशा विशेष ही होती है, इस बार तो और भी खास हो गई, जब इस बाबत Facebook पर Status Update लगाया तो बड़े भाई (सलिल वर्मा) का आदेश हुआ, “*सलिल वर्मा* Please take a full snap of ruins of Nalanda University and send me as New Year Greetings!!” कई बार यात्रा कर चुके नालंदा को इस आदेश के तहत देखने की कोशिश, इस बार हमारी मजबूरी बन गई, नालंदा, जहां प्रसिद्ध चीन... more »

फारुख शेख नहीं रहे ...

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
*फ़ारुख़ शेख़* (२५ मार्च १९४८ - २८ दिसम्बर २०१३) 65 साल के सहज एवं विनम्र बॉलीवुड अभिनेता फारुख शेख का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अपनी बीवी और दो बेटियों के साथ वह दुबई छुट्टियां मनाने गए थे और यहीं उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा। फारुख शेख के निधन का समाचार सुनकर पूरा बॉलीवुड सदमे में हैं। अभिनेता फारुख शेख 1970-80 के दशक की अपनी फिल्मों के लिए ज्यादा जाने जाते हैं। अपने समय के चोटी के निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया है। गर्म हवा, शतरंज के खिलाड़ी, उमराव जान, चश्मे-बद्दूर, लोरी, बाजार, अब इंसाफ होगा उनकी अहम फिल्में हैं। इस साल उन्होंने ये जवानी है दीवानी और क्लब 60 फिल्मों ... more »

बधशाला -16

श्री कृष्ण का सर्व प्रथम , जब था पूजन होने वाला क्रोधित हो यह देख, गालियाँ लगा सुनाने मतवाला अरे बोल वह कब तक सुनता , सुनली उसकी सौ गाली वही राजसूय यज्ञ बना , शिशुपाल दुष्ट की बधशाला हाथ कफ़न से बाहर कर दो,ह्रदय नहीं मेरा काला देखे दुनिया ! खाली हाथो , जाता है जाने वाला कहा सिकंदर ने मरते दम , मेरे गम में मत रोना वे ही रोये जिनके घर में , नहीं खुली हो बधशाला गिरा गोद में घायल पक्षी , आतुर होकर देखा भाला वहां बधिक आ गया भूख से , था व्याकुल मरने वाला जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था किस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला 

सोचते सोचते ये साल 2013 भी विदा होने को है

Anju (Anu) Chaudhary at अपनों का साथ
पूरा साल कैसे बीत गया ....ये पता ही नहीं चला |सोचा था इस 2013 में बहुत कुछ लिखूँगी ...पर चाह कर भी कामयाब नहीं हुई |बहुत कुछ तो क्या....मैं अपने मन का लिख भी नहीं पाई | ब्लॉग को पढ़ना और ब्लॉग पर लिखना लगभग बंद है|जीवन की कुछ बंदिशे इतनी रही कि पढ़ने और लिखने का वक़्त ही नहीं मिला | इधर कुछ सालों का अनुभव है कि अपने लेखन में एक अजीब सा सुकून है |एक निष्ठा का आभास हुआ है इस साल जैसे-तैसे मैंने अपने संग्रहों पर काम किया है ....दूसरी ओर बहुत सी ज़िम्मेवारिओं ने ऐसा घेरा कि हम चाह कर भी अपने और इस ब्लॉग जगत को समय नहीं दे पाए | परिवार में कुछ घटनाएँ हमे हिला कर रख देती है ...ऐसा ही कुछ मेर... more »

जंगल की बेटी

lori ali at आवारगी
[image: [hyacinths4.jpg]] *हरसिंगार* *की* *महक* *के* *जैसी**, **हर* *दिल* *पर* *छा* *जायेगी* *रुत* *की* *एक* *सहेली* *है* *वह**, **रुत* *संग* *ही* *खो* *जायेगी* *​​**भौर* *किरन* *के* *साथ* *निकल* *कर* *बगिया**बगिया**घूमेगी* *शाम* *ढले* *सूरज* *के* *संग* *ही* *बादल* *में* *सो* *जायेगी* *लहरों* *लहरो* *टूट* *के* *साहिल* *के* *सीने* *पर* *बिखरेगी* *बादल* *बादल* *रक़्स* *करेगी**, **चिड़ियों* *के* *संग* *गायेगी* *अम्बर* *के* *कच्चे* *रंगों* *पर* *पंछी* *बन* *कर* *डोलेगी* *घास* *के* *ताज़ा* *फूलों* *में* *फिर* *चटखेगी* *मुस्कायेगी* *कोहरे* *के* *आँचल* *में* *लिपटे* *हलके* *गीले* *बाल* ... more »

बड़े बोल की पोल

रचना त्रिपाठी at टूटी-फूटी
देश में सियासत का जुनून सभी सियासी दलों में सिर चढ़ कर बोल रहा है। बिल्कुल वालीवुड की फिल्मों में उस नायक की तरह जो नायिका को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए, उसके सामने अपनी बहादूरी के कारनामें दिखाने के लिए भांति-भांति प्रकार के तरीकों का प्रदर्शन करता हैं। इन तरीकों में सबसे नायाब तरीका यह होता है कि *नायक नायिका के सामने पहले तो खुद गुंडे भेजता है और अपना प्रभाव जमाने के लिए अचानक सुपर मैन की तरह प्रकट होता है, फिर नायिका को उन गुंडों से बचाने का ढोंग करता है। नायिका उसे रक्षक मानकर अपना दिल दे बैठती है।* सियासी दलों के बीच भी वोट पाने के लिए कुछ इसी प्रकार का नाटकीय अभिनय चल रहा ह... more »

जीवन की चाह ......

दर्शन कौर धनोय at मेरे अरमान.. मेरे सपने..
*जीवन की चाह * *जीवन* की इस रेल -पेल में ..इस भाग दौड़ में जिन्दगी जैसे ठहर -सी गई थी ... कोई पल आता तो कुछ क्षण हलचल होती .. फिर वही अँधेरी गुमनाम राहें ,तंग गलियां ... रगड़कर ..धसिटकर चलती जिन्दगी ... वैसे तो कभी भी मेरा जीवन सपाट नहीं रहा .. हमेशा कुछ अडचने सीना ठोंके खड़ी ही रही .. उन अडचनों को दूर करती एक सज़क पहरी की तरह मैं हमेशा धुप से धिरी जलती चट्टान पर अडिग , अपने पैरों के छालो की परवाह न करते हुए -- खुद ही मरहम लगाती रही .....? *निर्मल जल* की तरह तो मैं कभी भी नहीं बहि.. बहना नहीं चाहती थी ,यह बात नहीं हैं .. पर मेरा *ज्वालामुखी *फटने को तैयार ही नहीं था ? अपनी ज्व... more »

"विदा 2013" एक नज़्म.........

दिसम्बर के आते ही सुनाई देने लगती है नए साल की दस्तक जो तेज़ होती जाती है हर दिन मानों आगंतुक अधीर हो उठा हो ! मेरा मन भी अधीर हो उठता है जाते वर्ष की रूंधी आवाज़ और सीली पलकें देख.... बिसरा दिए जाने का दुःख खूब जानती हूँ मैं | तसल्ली दी मैंने बीते साल को कि वो रहेगा सदा मेरी स्मृतियों में ! सो जमा कर रही हूँ एक संदूक में बीते वर्ष की हर बात जिसने मुझे सहलाया/रुलाया/बहकाया/सिखाया... ... संदूक में सबसे नीचे रखीं मैंने अधूरे स्वप्नों की टीस,अनकही बातों की कसक और कहे - सुने कसैले शब्द ! भटकनों को दबा रही हूँ तली में, अखबार के नीचे...... फिर रखे खट्टे मीठे ,इमली के बूटों जैसे दिन..... कि ... more » 

कार्टून:- दि‍ल्ली सरकार में नया फ़ैशन

 

दूरदर्शन :मजबूरी का सौदा

Shalini Kaushik at ! कौशल !
[image: Doordarshan Logo]दूरदर्शन देश का ऐसा चैनल जिसकी पहुँच देश के कोने कोने तक है .जिसकी विश्वसनीयता इतनी है कि आज भी जिन चैनल को लोग पैसे देकर देखते हैं उनके मुकाबले पर भी मुफ्त में मिल रहे दूरदर्शन से प्राप्त समाचार को देखकर ही घटना के होने या न होने की पुष्टि करते हैं ,विश्वास करते हैं और ऐसा लगता है इसी विश्वास पर आज दूरदर्शन इतराने लगा है और अपनी इस उपलब्धि पर ऐसे अति आत्मविश्वास से भर गया है कि हम जो भी करेंगे वही सर्वश्रेष्ठ होगा और वही सराहा जायेगा . आज अन्य चैनल जहाँ अपनी रेटिंग बढ़ने के लिए ,अपनी गुणवत्ता सुधारने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं वहीँ दूरदर्शन को ऐसी कोई च... more » 

जीती न हारी, इस बार तो ठगी गई दिल्ली!

Krishna Baraskar at Swatantra Vichar
दिल्ली ने अभिमानी सत्ताधीशो के खिलाफ न जाने कितने ही आंदोलन देखे है। जाने कितने ही आंदोलनों को सत्ताधीशो के हाथों कुचलते देखा। उसने कई परिवर्तन देखे है अपने साहस और शौर्य से कई परिवर्तन किये है। देष का मुखिया होने के नाते दिल्ली ने अपना हर फर्ज निभाया। अपने इस सफर में दिल्ली न जाने कितनी ही बार हारी और कितनी ही बार जीती है। परन्तु इस बार दिल्ली जिस प्रकार इस षहर अपने अदम्य शाहस का परिचय दिया और एक बड़ा राजनैतिक परिवर्तन करके दिखा दिया। एक संदेश दिया कि अभिमानी सत्ताधीषों को वह कभी बरदास्त नहीं करेगी। इसके लिए दिल्ली के प्रत्येक नागरिक को श्रेय देना चाहिए उन्होने देष को एक ... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!  

लेखागार