नमस्कार मित्रो,
आज की बुलेटिन के द्वारा एक योद्धा को
श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं. मेजर धन सिंह थापा, जिन्हें वीरता का सर्वोच्च
सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आज, 6 सितम्बर 2005
को उनका देहावसान हुआ था.
मेजर धन सिंह थापा का जन्म 10 अप्रैल 1928 को शिमला में हुआ था. वे 28 अक्तूबर 1949 को वह एक कमीशंड अधिकारी के रूप में फौज में आए. 26 जनवरी, 1964 को गणतन्त्र दिवस पर मेजर धनसिंह थापा को सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र
से सम्मानित किया गया. 1962 के भारत-चीन युद्ध में जिन चार भारतीय बहादुरों को परमवीर
चक्र प्रदान किया गया, उनमें से केवल एक वीर उस युद्ध को झेलकर
जीवित रहा उस वीर का नाम धन सिंह थापा था. मेजर थापा ने युद्धबन्दी के रूप में जो यातना
झेली, उसकी स्मृति भर ही थरथरा देने वाली है.
1962 में जब चीन ने भारत पर
आक्रमण किया तब भारत की सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी. इस विषम परिस्थिति में मेजर
धन सिंह थापा को सिरी जाप पर चौकी बनाने का हुकुम दिया गया. उनकी टुकड़ी ने देखा कि
सिरी जाप के आसपास चीनी सैनिकों का जमावड़ा है. उनके पास भारी मात्रा में हथियार हैं.
ऐसा ही कुछ नज़ारा ढोला के सामने, पूर्वी छोर पर भी देखा गया. यह दुतरफा हमले की सम्भावना का संकेत था. चीन की
फौज ने सुबह साढ़े चार बजे हमला कर दिया. मेजर थापा के सिपाही अपनी मशीनगन और राइफल्स
से दुश्मन की सेना पर टूट पड़े, जिससे बहुत से चीनी सैनिक हताहत हुए और कई घायल हो
गए. चीनी सैनिकों की ओर से मोर्टार दागे जाने से मेजर धनसिंह थापा की टुकड़ी का नुकसान
हुआ. इस दौरान उनकी संचार व्यवस्था भी नाकाम हो गई थी इसलिए भारतीय सेना अपनी बटालियन
से संवाद स्थापित करने में भी असमर्थ थी.
चीनी फौज ने उस चौकी और बंकर पर कब्जा कर मेजर धनसिंह थापा को बन्दी बना लिया.
मेजर थापा लम्बे समय तक चीन के पास युद्धबन्दी के रूप में यातना झेलते रहे. चीनी प्रशासक
उनसे भारतीय सेना के भेद उगलवाने की भरपूर कोशिश करते रहे किन्तु वे न तो यातना से
डरने वाले व्यक्ति थे, न प्रलोभन से. युद्ध समाप्त होने के बाद जब चीन ने भारत को युद्धबन्दियों की
सूची दी, तो उसमें
मेजर थापा का भी नाम था. इस समाचार से पूरे देश में प्रसन्नता फैल गयी. देश वापस
आकर मेजर थापा ने 1980 तक सेना में सेवारत रहे और लेफ्टिनेण्ट कर्नल के पद से अवकाश लिया.
इस वीर योद्धा को नमन करते हुए आज की बुलेटिन आपसे समक्ष प्रस्तुत है.
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