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रविवार, 25 फ़रवरी 2018

एक लम्हे में चाँदनी से जुदाई : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
आज देर रात भारतीय फिल्मों के उन दीवानों के लिए बुरी खबर लेकर आई जो अभिनेत्री श्रीदेवी के प्रशंसक रहे हैं. उनका 24 फरवरी 2018 को देर रात कार्डिएक अटैक से दुबई में निधन हो गया. वे एक पारिवारिक वैवाहिक समारोह में शामिल होने दुबई गई हुई थीं.


उनका जन्म 13 अगस्त 1963 को हुआ था. उन्होंने हिन्दी फिल्मों सहित तमिल, मलयालम, तेलगू, कन्नड़ आदि फिल्मों में भी काम किया था. अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने 63 हिन्दी, 62 तेलुगु, 58 तमिल, 21 मलयालम फिल्मों में काम किया. उनको भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार भी कहा जाता है. श्रीदेवी ने सन 1975 में बनी फिल्म जूली से हिन्दी सिनेमा में बाल कलाकार के रूप में प्रवेश किया. एक अभिनेत्री के रूप उनकी पहली फिल्म तमिल में आई, जिसका नाम मून्द्र्हु मुदिछु था. बाल कलाकार के रूप में सन 1975 में बॉलीवुड में प्रवेश करने वाली श्रीदेवी की बतौर अभिनेत्री पहली फिल्म सन 1978 में प्रदर्शित हुई सोलहवाँ सावन थी लेकिन सबसे अधिक पहचान सन 1983 में प्रदर्शित हुई फिल्म हिम्मतवाला से मिली. उनकी प्रसिद्द फिल्मों में सदमा, नागिन, निगाहें, मिस्टर इन्डिया, चालबाज़, लम्हे, खुदा गवाह, जुदाई आदि शामिल हैं. श्रीदेवी ने पाँच फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त किये. इसके अलावा उनको सन 2013 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

उनके निधन पर ब्लॉग बुलेटिन परिवार की ओर से श्रद्धा-सुमन अर्पित हैं.

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शुक्रवार, 26 मई 2017

नहीं रहे सुपरकॉप केपीएस गिल और ब्लॉग बुलेटिन

सभी मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के.पी.एस.गिल का शुक्रवार (26 मई) को दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया. वह 82 वर्ष के थे. गिल किडनी की अत्यंत गंभीर बीमारी के साथ-साथ दिल की बीमारियों से ग्रसित थे. दो बार पंजाब के डीजीपी रहे गिल ने प्रदेश में उग्रवाद को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाई थी.

सर गंगाराम अस्पताल ने एक बयान में कहा, "उनके पेरिटोनियम में संक्रमण था, जो धीरे-धीरे ठीक हो रहा था. अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई." अस्पताल के मुताबिक, उनका निधन अपराह्न 2.55 बजे हुआ. उन्हें 18 मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

गिल सन् 1988-1990 तथा दूसरी बार 1991-1995 के बीच पंजाब के डीजीपी रहे. वह सन् 1995 में सेवानिवृत्त हो गए थे. गिल इंस्टिट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट तथा इंडियन हॉकी फेडरेशन (आईएचएफ) के अध्यक्ष भी रहे. नागरिक सेवा कार्यों के लिए उन्हें सन् 1989 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

पंजाब में खालिस्तानी आतंक की कमर तोड़ी

केपीएस गिल को पंजाब में चरमपंथ को खत्म करने का श्रेय मिला वहीं मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल भी उठाए थे और फर्जी मुठभेड़ों के अनेक मामले न्यायालय में भी पहुंचे थे.केपीएस गिल पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन से सख़्ती से निपटे थे. मई, 1988 में उन्होंने खालिस्तानी चरमपंथियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन ब्लैक थंडर की कमान संभाली थी. यह ऑपरेशन काफी कामयाब रहा था. बाद में वो इंडियन डॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष भी बने. केपीएस गिल का पूरा नाम कुंवर पाल सिंह गिल था. वो दो बार पंजाब के डीजीपी रहें. वो साल 1995 में पुलिस सेवा से सेवानिवृत हुए. उन्हें 1989 में पदम श्री का अवार्ड मिला था.


(साभार : zeenews.india.com)


आज सुपरकॉप केपीएस गिल जी के आकस्मिक निधन पर हम सब शोक व्यक्त करते हैं तथा उनके साहसिक योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर...अभिनन्दन।।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

ब्लॉग बुलेटिन - हमारे बीच नहीं रहे बेहतरीन अभिनेता ~ ओम पुरी

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।।
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ओम राजेश पुरी ( Om Puri; जन्म- 18 अक्टूबर, 1950, अम्बाला, पंजाब ) हिन्दी फ़िल्मों के उन प्रसिद्ध अभिनेताओं में से एक थे, जो अपनी अभिनय क्षमता से किसी भी किरदार को पर्दे पर जीवंत करने में सक्षम थे। वे भारतीय सिनेमा के एक कालजयी अभिनेता थे। उनके अभिनय का हर अन्दाज दर्शकों को प्रभावित करता है। रूपहले पर्दे पर जब ओम पुरी का हँसता-मुस्कुराता चेहरा दिखता है तो दर्शकों को भी अपनी खुशियों का अहसास होता है और उनके दर्द में दर्शक भी दु:खी होते हैं। हिन्दी फ़िल्मों में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार', 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' और 'पद्मश्री' आदि से भी सम्मानित किया गया था। ओम पुरी हिन्दी सिनेमा के वह सितारे थे, जिन्हें लोग हर भूमिका में देखना पसंद करते थे। कलात्मक सिनेमा हो या कमर्शियल सिनेमा, वह सभी जगह अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहे।

कहा जाता है कि ओम पुरी को पहली फ़िल्म के मेहनताने में मूंगफलियां मिली थीं। ओम पुरी के फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत 1976 में मराठी फ़िल्म 'घासीराम कोतवाल' से हुई थी। यह फ़िल्म विजय तेंडुलकर के मराठी नाटक पर आधारित थी। ओम पुरी का कहना था कि तब उन्हें अच्छे काम के लिए मूंगफलियां मिली थीं। ओम पुरी ने एक चरित्र अभिनेता के अलावा निगेटिव किरदार भी निभाए। उनकी कॉमिक टाइमिंग गजब की थी। उन्होंने 'जाने भी दो यारों' जैसी डार्क कॉमिडी से लेकर आज के जमाने की हंसोड़ फ़िल्मों में काम किया। हाल ही में उन्होंने हॉलिवुड एनिमेशन फ़िल्म 'जंगल बुक' में एक किरदार को अपनी आवाज़ भी दी थी। उनकी आखिरी कमर्शल फ़िल्म 'घायल वन्स अगेन' थी। उनकी मशहूर आर्ट फ़िल्मों में 'अर्ध सत्य', 'सद्गति', 'भवनी भवाई', 'मिर्च मसाला' और 'धारावी' आदि शामिल हैं। 'हेराफेरी', 'सिंह इज किंग', 'मेरे बाप पहले आप', 'बिल्लू' जैसी फ़िल्मों में उन्होंने दर्शकों को खूब हंसाया।

अपने बेजोड़ अभिनय से भारतीय सिनेमा में कभी न मिट सकने वाली पहचान बनाने वाले अभिनेता ओम पुरी का निधन 6 जनवरी, 2017 की सुबह दिल का दौरा पड़ने से उनके अंधेरी, मुम्बई स्थित आवास में हुआ।


आज हम सब भारत के इस बेहतरीन अदाकार और सशक्त अभिनय के महारथी ओम पुरी जी के आकस्मिक निधन पर शोक और संवेदना व्यक्त करते हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर .... 













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। तब तक के लिए अलविदा। सादर।।

लेखागार