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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

एक प्रत्याशी, एक सीट, एक बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया है, इसमें उसके द्वारा एक प्रत्याशी के एक सीट पर ही चुनाव लड़ने की याचिका का समर्थन किया गया है. चुनाव आयोग का कहना है कि एक व्यक्ति जब दो जगहों से चुनाव लड़कर जीतता है तो उसे एक सीट छोड़नी पड़ती है. ऐसे में इस छोड़ी गई सीट पर दोबारा चुनाव होते हैं जो देश पर अतिरिक्त खर्च डालता है. एक प्रत्याशी, एक सीट का नियम बनाये जाने के लिए वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने एक याचिका डाल रखी है. इस याचिका के तहत लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) को चुनौती दी गई है. इसके साथ ही मांग की गई है कि संसद और विधानसभा समेत सभी स्तरों पर एक उम्मीदवार के दो सीटों पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. चूँकि चुनाव आयोग इससे पहले भी ऐसे प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे चुका है इस कारण उसने याचिकाकर्ता की इस मांग पर इस बार भी अपनी सहमति दी है. केंद्र सरकार की तरफ से अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय माँगा गया है, इस कारण अब इस मामले की सुनवाई जुलाई के पहले सप्ताह में की जाएगी.


केंद्र सरकार क्या जवाब देगी ये देखने वाली बात होगी क्योंकि चुनाव आयोग ने पिछले साल दिसम्बर में अपने हलफनामा में चुनाव सुधारों पर 2004 के प्रस्तावों का हवाला देते हुए कहा था कि यह सुनिश्चित करने के लिए कानून में संशोधन होना चाहिए कि कोई व्यक्ति एक से अधिक सीट से चुनाव नहीं लड़ पाए. आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा था कि एक से अधिक सीट से चुनाव लडऩे से उम्मीदवार को रोकने के उसके प्रस्ताव को 1998 में एक स्थायी संसदीय समिति ने खारिज कर दिया था. समिति ने सर्वदलीय बैठक में इस प्रावधान को बनाए रखने के समर्थन वाले नजरिये पर संज्ञान लिया था. केंद्र सरकार का जवाब चुनाव आयोग के प्रस्ताव के समर्थन में होगा या उसके खिलाफ होगा ये तो उसी समय स्पष्ट हो सकेगा किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि देश में चुनाव सुधारों की आवश्यकता है.

दो जगहों से चुनाव लड़ने की व्यवस्था 1996 में की गई जबकि जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन करके ऐसी व्यवस्था लागू की गई. इससे पहले किसी भी व्यक्ति को कितनी भी जगह से चुनाव लड़ने की छूट थी. इस व्यवस्था में सुधार के लिए चुनाव आयोग ने छोड़ी गई सीट का चुनावी खर्च उस व्यक्ति से वसूलने की बात भी कही है. इसके अलावा चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था भी करनी चाहिए जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अपना कार्यकाल पूरा करने के पहले सम्बंधित पद को छोड़कर दूसरा चुनाव न लड़ सके. बहुधा देखने में आता है कि कोई विधायक अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले सांसद का चुनाव लड़ने लगता है. ऐसा सांसदों के साथ भी होते देखा गया है जबकि वे अपना संसद सदस्य का कार्यकाल पूरा करने के पहले ही विधानसभा सदस्य का चुनाव लड़ने मैदान में उतर आये. इससे भी देश पर उपचुनाव का बोझ पड़ता है.

इन सबके अलावा सांसद निधि, विधायक निधि की वृद्धि, सांसदों-विधायकों के वेतन-भत्ते, चुनावी खर्च सीमा का बढ़ना आदि भी ऐसे बिंदु हैं जिन पर समय-समय पर चुनाव आयोग के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय और संसद को ध्यान देने की आवश्यकता है. देश की सर्वोच्च संस्थाओं को ध्यान रखना होगा कि देश की व्यवस्था वहाँ के नागरिकों की संतुष्टि से बनती है. यदि नागरिकों में असंतोष की भावना पनपती है तो वहाँ विद्रोह, हिंसा सहज रूप में देखने को मिलती है. इसे आजकल आरक्षण सम्बन्धी मुद्दे पर देखा जा सकता है. हम सभी अपने आपको जिम्मेवार नागरिक मानते हुए ऐसे सुधारात्मक कदमों के साथ दृढ़ता से खड़े होना सीखें. हम सबकी दृढ़ता ही किसी न किसी दिन अपेक्षित सुधार लाएगी. इसी आशा के साथ आज की बुलेटिन आपके समक्ष प्रस्तुत है.

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रविवार, 12 मार्च 2017

होली के रंगों में सराबोर ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो
आप सभी को रंगोत्सव होली की हार्दिक शुभकामनायें.


होली के ठीक पहले देश के पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों ने होली के साथ दीपावली मनाने का अवसर विजयी दलों के समर्थकों को उपलब्ध करवा दिया है. वर्तमान चुनाव परिणामों ने आश्चर्यजनक स्थितियों को जन्म दिया है. मतदाताओं ने उत्तर प्रदेश में इस बार प्रचंड बहुमत दिया, ये अपने आपमें आश्चर्य का विषय है. इसके अलावा प्रदेश के अन्य दो दल, जो कि जातिगत, धर्मगत आधार पर राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं, वे आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सके. भले ही यही अंतिम निष्कर्ष न कहा जाये किन्तु इतना तो दिखाई दे रहा है कि प्रदेश के मतदाताओं ने इस बार जाति, मजहब को नाकारा ही है.


इसके अलावा यदि मणिपुर के चुनावों पर निगाह डालें तो वहाँ एक आश्चर्यजनक घटना ये हुई की विगत सोलह वर्षों से चले आ रहे अनशन को समाप्त करके राजनीति में उतरने वाली इरोम शर्मिला को महज नब्बे मत प्राप्त हुए. क्या समझा जाये इसे? क्या मणिपुर के मतदाताओं ने इरोम को नकार दिया? क्या वहाँ की जनता उस कानून के पक्ष में है जिसका विरोध इरोम करती रही हैं? क्या नक्सलियों का कोई खौफ इन चुनावों में इरोम को इतने कम मत दिलाने का कारक बना?


बहरहाल, चुनावों के सबके अपने-अपने आकलन होते हैं. अपने-अपने तर्क होते हैं. इस तर्क-वितर्क से इतर आकर रंगोत्सव का आनंद लिया जाये. रंग-बिरंगी होली के इस पर्व पर कोई प्रवचन नहीं, कोई समाज-सुधार जैसी बात नहीं. बस, खूब आनंद उठायें होली का, रंगों का, गुझिया का, रिश्तों का, संबंधों का. कमी आजकल बस आनंद की हो रही है.

तो पुनः होली की शुभकामनाओं के साथ आज की बुलेटिन आपके समक्ष प्रस्तुत है.

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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

दलबदल ज़िन्दाबाद - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो, 

देश के पाँच राज्यों में चुनावी माहौल है। राजनैतिक दलों में भागमभाग मची हुई है। ऐसे माहौल में ये लघुकथा याद आ गई। आप भी इसका आनंद उठाते हुए आज की बुलेटिन का आनंद लें।

जय हिन्द 




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जोर-शोर से नारेबाजी हो रही थी। महाशय मंत्री बनने के बाद अपने शहर में पहली बार आ रहे थे। उनके परिचित तो परिचित, अपरिचित भी अपनेपन का एहसास दिलाने के लिए उनकी अगवानी में खड़े थे। शहर की सीमा-रेखा को निर्धारित करती नदी के पुल पर भीड़ पूरे जोशोखरोश से अपने नवनिर्वाचित मंत्री को देखने के लिए आतुर थी। उस सम्बन्धित दल के एक प्रमुख नेता माननीय भी मुँह लटकाये, मजबूरी में, नाराज होने के बाद भी उस मंत्री के स्वागत हेतु खड़े दिखाई पड़ रहे थे। मजबूरी यह कि पार्टी में प्रमुख पद पर होने के कारण साथ ही ऊपर तक अपने कर्तव्यनिष्ठ होने का संदेश भी देना है। नाराज इस कारण से थे कि नवनिर्वाचित मंत्री ने अपने धन-बल से उन महाशय का टिकट कटवा कर स्वयं हासिल कर लिया था। 

तभी भीड़ के चिल्लाने और रेलमपेल मचने से नवनिर्वाचित मंत्री के आने का संदेश मिला। माननीय ने स्वयं को संयमित कर, माला सँभाल महाशय की ओर सधे कदमों से बढ़े। भीड़ में अधिसंख्यक लोग धन-सम्पन्न मंत्री के समर्थक थे। उनका पार्टी के समर्थकों, कार्यकर्ताओं, वोट बैंक से बस जीतने तक का वास्ता था। पार्टी के असल कार्यकर्ता हाशिये पर थे और बस नारे लगाने का काम कर रहे थे। माननीय हाथ में माला लेकर आगे बढ़े किन्तु हो रही धक्कामुक्की के शिकार होकर गिर पड़े। मंत्री जी की कार उनकी माला को रौंदती हुई आगे बढ़ गई। अनजाने में ही सही किन्तु एक बार फिर महाशय के द्वारा पछाड़े जाने के बाद माननीय खिसिया कर रह गये। अपनी खिसियाहट, खीझ और गुस्से को काबू में करके वे अपनी पार्टी के असली समर्थकों के साथ मिलकर नारे लगाने में जुट गये। अब वे जान गये थे कि वर्ग विशेष का भला करने निकला उनका दल अब धन-कुबेरों के बनाये दलदल में फँस गया है, जहाँ बाहुबलियों और धनबलियों का ही महत्व है। उन जैसे समर्थित और संकल्पित कार्यकर्ता अब सिर्फ नारे लगाने और पोस्टर चिपकाने के लिए ही रह गये हैं। 

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गुरुवार, 10 जुलाई 2014

राम-रहीम के आगे जहां और भी है - ब्लॉग बुलेटिन



नमस्कार मित्रो,
आज अपनी पहली ब्लॉग बुलेटिन के साथ आपके समक्ष उपस्थित हैं. प्रथम पूज्य माता-पिता के समान पूज्य गुरु से सम्बंधित दिवस से ब्लॉग बुलेटिन यात्रा का आरम्भ करते हुए मन व्याकुलता की स्थिति में है. देश में एक तरफ पाक रमजान माह में अमन-चैन की दुआएँ दी जा रही हैं, सबके सकुशल रहने की कामना की जा रही है वहीं दूसरी तरफ तुष्टिकरण की नीति अपनाकर वैमनष्यता का, कटुता का वातावरण बनाया जा रहा है. हम सभी को इस बात का भान होना चाहिए कि सामाजिक सद्भाव बनाये रखना किसी भी एक पक्ष की जिम्मेवारी नहीं है. ऐसे माहौल में अब समय आ गया है कि खुद नागरिकों को, सभी धर्म-मजहब के लोगों को इससे ऊपर उठकर सामाजिक समरसता के बारे में विचार करना होगा.
आइये एक सुखद भविष्य की, सभ्य समाज की स्थापना के लिए प्रयत्नशील हों. विकास की राह निर्मित करें क्योंकि इस जिंदगी में राम-रहीम के अलावा और भी बहुत कुछ है करने-सोचने-विचारने को. विचार करिए और जुट जाइए स्वर्णिम भविष्य निर्माण में....
आज की बुलेटिन आपके समक्ष विचारार्थ छोड़ते हुए.. पुनः अगली बुलेटिन के साथ अगले गुरुवार को....
तब तक के लिए जय गुरुदेव!!

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देश के सम्मुख चुनौतियां >>> चुनौतियाँ हैं पर निपटना भी तो हमें ही है जनाब!! 


जिम्मेदारी से जिरह करती लापरवाही >>> काश हम लापरवाह होना छोड़ सकें!! 


ऐ खुदा कातिल तेरी मजहब परस्ती हो गयी है >>> जबसे तेरी रहगुजर पर फिरकापरस्ती हो गई...!!

अपेक्षाओं के बोझ तले सिसकता बचपन >>> जिम्मेवार हम ही हैं इसके लिए. 

अबोध मेहमान ! >>> एक खुशनुमा एहसास 

दिल को देखो चेहरा न देखो >>> काश दिलों की भाषा पढ़नी हम सबको आती होती. 

मेरा जन्म >>> एक मासूम सा सच!! 

रहेगा अनंत काल तक... >>> अभिलाषा इस दिल की..!! 

महिलाएं, चुनाव और ग्राम पंचायतें >>> हिस्सेदारी, भागीदारी या यहाँ भी पर्दादारी 

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सोमवार, 12 मई 2014

खेल खतम पैसा हजम - 850 वीं ब्लॉग बुलेटिन


ई अढाई महीना से चला आ रहा मथफुटौवल अब जाकर खतम हुआ. आज के बाद आंसिक रूप से अऊर सोलह तारीख के बाद पूर्ण रूप से बहुत सा महत्वपूर्ण व्यक्ति लोग का याददास्त खतम हो जाएगा. ऊ एगो अंगरेजी सिनेमा में देखाया था कि एगो आदमी को थोड़ा टाइम के लिये कोनो असाइनमेण्ट पर रखा जाता था अऊर काम खतम हो जाने के बाद उसका ओतना रोज का मेमोरी डिलीट कर दिया जाता था.

बस ई हफता के बाद भला उसका कुरता हमरा कुर्ता से सफेद कइसे वाला वाला खेला खतम अऊर हम पंछी एक डाल के वाला खेला चालू. किसका बीबी का पता नहीं, कऊन अपना मेहरारू को छोड़कर भागा हुआ है अऊर कऊन दोसर के मेहरारू के साथ फोटो खिंचा रहा है सब खतम. दिल्ली का गोलघर में बइठकर मुस्कियाते हुये फोटो खींचाएँगे अऊर उसके बाद बिल पास करो, बिल रोको वाला खेल खेलेंगे. मीडिया में बताया जाएगा कि हमारा जीडीपी काहे नहीं बढ़ रहा था, मँहगाई का असली कारन का था, बिकास कहाँ रुका हुआ था परगति का रस्ता देस में आने के पहिले ही काहे अलोप हो जाता था.

हिन्दी सिनेमा के तरह कोई बदला का राजनीति नहीं करेगा अऊर मुम्बई का अण्डरवल्ड के तरह अपना अपना इलाका – पक्ष अऊर प्रतिपक्ष – बाँटकर आराम से देस में सुसासन लाने का कवायद किया जाएगा. घर-घर में इसको उसको लेकर जऊन दीवाल खिंच गया था ऊ सब बिनानी सीमेण्ट के अलावा कोनो दोसरा सीमेण्ट के दीवार जइसा चकनाचूर हो जाएगा.

ई बार लोग में बहुत जोस देखाई दिया. मगर जेतना जोस लोग भासनबाजी में देखाया ओतना भोट गिराने में नहीं देखाई दिया. हर सरकारी महकमा में डुगडुगी पिटाया हुआ था कि सरकारी कार्जालय का दीवार पर जहाँ लिखा रहता है कि यहाँ इस्तहार लगाना मना है, सबपर इस्तहार लगाया जाए कि मतदान करना अनिबार्ज है. हमरे ऑफिस में त हाकिम का पैगाम आया था कि खाली पोस्टर नहीं लगाना है, पोस्टर का फोटो भी खींचकर उनको रवाना करना है.

खैर, गुजरात में न जात पर, न पात पर, मोदी जी के बात पर सब खींचातानी के बाबजूद भी साठ टका से बेसी भोट नहीं गिरा. इससे बेसी का रेकार्डो नहीं है गुजरात का. एतने में बनता है त बना लो सरकार, बाकी भोट देने के अल्आवा भी बहुत सा काम है एहाँ के लोग को. मगर एहीं वलसाड लोकसभा छेत्र में 74 टका मतदान हुआ. 


असल में रेकार्ड ई नहीं है. रेकार्ड बनाया एहाँ के जिला चुनाव पंच ने. 17 गो दल बनाकर, अस्थानीय सरदार पटेल इस्टेडियम में बहुत सा लोग को बइठाया गया, डाक बिभाग से 25000 पोस्ट-कार्ड मँगवाया गया, सब पोस्ट-कार्ड पर एक्के टाइम में छेत्र के सभी मतदाता के प्रति आभार आभार सन्देस लिखा गया. अब आप कहियेगा कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा, त सुन लीजिये कि देखने वाला था गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड का टीम. अऊर ई घटना बिस्व रेकार्ड बन गया. इसके पहिले भी एहाँ के जिला कलक्टर ओ चुनाव अधिकारी विक्रांत पाण्डे साहब मतदाता को जागरूक करने के लिये 11 लाख पोस्ट कार्ड लिखवा चुके हैं, जो लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में दर्ज है.

लोकतंत्र के इस महान उत्सव के समाप्ति पर हर आम जनता को बधाई. ओइसे देखा जाए त आज हमरा कल के बाद आज दोहराकर आना भी कोनो रेकार्ड से कम नहीं है. 

मगर का कीजियेगा आना जरूरी था... ई ब्लॉग बुलेटिन का 850 वाँ बुलेटिन है! त ठोकिये ताली अऊर उँगली में उँगली फँसाकर 16 तारीख का इंतज़ार कीजिये. 

रहा मन बहलाने का बात, त ई लिंकवा सब है न आपके खिदमत में!

                                           -          सलिल वर्मा 










लेखागार