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गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

मुद्दे उछले या कि उछले जूते - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
जूता एक बार फिर उछला. जूते का निशाना एक बार फिर चूका. सवाल उठता है कि जूता अपने निशाने से क्यों भटक जाता है? अब जूता उछला है तो लक्ष्य तक पहुँचना भी चाहिए. न अपने लक्ष्य को भेदता है और न ही उछलने को सिद्ध करता है. एक बात ये भी हो सकती है कि जूते का उछलना सवालों का उछलना हो सकता है. इसके बाद भी सवाल कहीं पीछे रह जाते हैं. आखिर जूता उछालने वाले ने सिर्फ खबरों में आने के लिए तो जूता उछाला नहीं होगा? आखिर उसके जानबूझ कर निशाना चूकने या फिर धोखे से चूक जाने में भी कोई मामला छिपा होगा? कम से कम एक बार उस निशानेबाज से भी जानकारी करनी चाहिए कि आखिर उसने जूते को उछालने का कृत्य क्यों किया? उछलने वाला जूता तुम्हारे अपने ही पैर का था या किसी और के पैर का था? जूते उछालबाज़ी की दुनिया में शायद ये सब निरर्थक सा लगे किन्तु यदि जूता उछालना महज प्रचार था तो फिर एक ही क्यों कई-कई जूते उछाले जा सकते थे? चुनावी मौसम में ही जूते का उछलना क्यों? गौर से देखिये, तो ये सिर्फ जूता उछलने की क्रिया नहीं है वरन मानसिकता के उछलने की क्रिया है. काश कि अबकी जूता उछले तो निशाने पर लगे. काश कि अबकी जूता उछले तो सवालों को हल करता हुए उछले.

चलिए, जूता उछला, कई सारे मसले इस दौरान उछले. उछलते मसलों, मुद्दों के बीच कौन से सही जगह, सही निशाने पर बैठेंगे, ये भविष्य के गर्भ में है. जैसा होगा सामने आएगा, तब तक आप सब आनंद लीजिये आज की बुलेटिन का.

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(चित्र गूगल छवियों से साभार)

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