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शनिवार, 27 मई 2017

अरे दीवानों - मुझे पहचानो : १७०० वीं ब्लॉग बुलेटिन

नाम में का रखा है; गुलाब को कोनो दोसरा नाम से भी बोलाईयेगा त उसका सुंदरता अऊर खुसबू ओही रहेगा. लेकिन अभी दू-चार साल में हमको अजीब इस्थिति का सामना करना पड़ा. तब जाकर समझ में आया कि ई नाम का महिमा अपरम्पार है. आज से अगर सिब जी का नाम बदलकर बिस्नू भगवान कर दिया जाए, त हमरे दिमाग में बिस्नू भगवान का नाम सुनकर भी उनके गला में सांप का तस्वीर नहीं बनेगा.

अब हमरा हाल सुनिए. हमारे नाम में से का मालूम कैसे ऑफिस के रेकॉर्ड में से “वर्मा” गायब हो गया साल २००५ के बाद से. अब २००५ के पहले का सब लोग हमको एस.पी. वर्मा के नाम से जानता है, जबकि ऑफिस के दस्तावेज में हमरा नाम रह गया है सलिल प्रिय अंगरेजी में Salil Priya, जिसको लोग बुद्धा, अशोका, कृष्णा के तर्ज पर सलिल प्रिया कहने लगे.

२०१२ में जब हमरा ट्रांसफर भावनगर हुआ तब हम अमदावाद में अपने ऑफिस में पहुंचे जहाँ से हमको भावनगर जाना था. ओहाँ जाकर जब सबसे परिचय हुआ त हम बताए कि हमको भावनगर ज्वाइन करना है. सब लोग आस्चर्ज से हमरा मुँह ताकने लगा. बाद में हिम्मत करके एगो भाई साहब बोले – लेकिन भावनगर में तो किसी महिला की पोस्टिंग हुई है. हम घबरा गए कि कहीं हमरा पोस्टिंग बदल त नहीं गया. तबतक ऊ बोले कि कोई मैडम हैं सलिल प्रिया, तब हमको हँसी आ गया. हम बोले भाई ऊ हम ही हैं. मगर आप तो एस.पी. वर्मा हैं! तब जाकर उनको समझाए.

ओही हाल तब हुआ जब हम दिल्ली ट्रांसफर होकर आए. हमको पता नहीं था कि हम कऊन साखा में ज्वाइन करेंगे. हमारे पुराने दोस्त का फोन आया – वर्मा जी आप कन्फर्म हैं कि आपको दिल्ली अंचल ट्रांसफर किया गया है? हम बोले कि हाँ, हमारे पास ऑर्डर है. तब हमरे मित्र जी फरमाए कि आपका नाम नहीं है लिस्ट में. अहमदाबाद से सिर्फ एक महिला सलिल प्रिया को दिल्ली ट्रांसफर किया गया है. तब जाकर भेद समझ में आया.

हद तो तब हो गया जब सप्ताह भर पहिले हम जब इंटरव्यू देने गए अऊर अपना नाम पुकारे जाने पर जब बोर्ड रूम में गए तो हमको ई कहकर लौटा दिया गया कि आपको नहीं बुलाया है. तब हम बताए कि मेरा नाम सलिल प्रिय वर्मा है, चाहिए त हमरे फ़ाइल पर देख लीजिए. बोर्ड का सदस्य लोग फ़ाइल देखा, फ़ोटो देखा, हमको देखा तब बैठने के लिये बोला. इसके बाद त पाँच मिनट तक हमरे नाम पर बहस चलता रहा.

ऊ बोर्ड में दू लोग दक्छिन भारत से थे, कहने लगे कि हमारे इहाँ प्रिया लड़की का नाम होता है. हम बोले कि सर आप जब “प्रिय” कहियेगा त लड़का का नाम होगा अऊर “प्रिया” कहियेगा त लड़की का नाम होगा. लेकिन ऊ लोग नहीं माने, तीसरा सदस्य लखनऊ से थे ऊ बेचारे प्रिय अऊर प्रिया का भेद समझाए.

अब हम सेक्सपियेर साहब को याद करके एही कहते रहे कि भाई साहब पास होने वाला लोग का लिस्ट में हमरा नाम होने पर भी वर्मा नहीं देखकर कोई हमको बधाई नहीं देता है, बल्कि सांत्वना देने लगता है कि बेटर लक नेक्स्ट टाइम. आपलोग को कोनो कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए.

अब तीन-साढे तीन साल नाम का चक्कर झेलना है. आप लोग के लिये एही से हम प्रिय का झमेला खतम कर दिए अऊर खाली सलिल वर्मा बन गए, काहे कि हमको पता है कि हम लिखें चाहे नहीं लिखें आप लोगों के प्रिय त रहबे करेंगे.

आपलोग आनन्द लीजिए आज के १७००वाँ बुलेटिन का आपके दोस्त सलिल प्रिय वर्मा द्वारा प्रस्तुत.

                               -  सलिल वर्मा

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बिना शीर्षक ----व्यंग्य की जुगलबंदी ३५

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