नमस्कार,
मार्च
1931 में कानपुर में भयंकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें हजारों लोग मारे गए. गणेश
शंकर विद्यार्थी ने आतंकियों के बीच जाकर हजारों लोगों को बचाया. इसी प्रयास में
वे खुद एक हिंसक भीड़ में फंस गए, जिसने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी. इसे महज
इत्तेफाक कहा जाये या फिर कोई साजिश कि उनकी हत्या सरदार भगत सिंह को फाँसी दिए
जाने के ठीक दूसरे दिन हुई. जी हाँ, भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से घबराकर
अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें निर्धारित तिथि से एक दिन पहले, 23 मार्च को फांसी दे दी इसी के ठीक दूसरे दिन, 25 मार्च
को विद्यार्थी जी की हत्या हो जाती है. विद्यार्थी जी भी अपने विचारों और निडर
स्वभाव के कारण अंग्रेजों की आँख में खटक रहे थे. विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता की
भेंट चढ़े या फिर अंग्रेजी शासन की साजिश का शिकार हो गए, ये अंधकार में है. जो
सत्य है वह यह कि उनका शव अस्पताल की लाशों के मध्य पड़ा मिला था. वह इतना फूल गया
था कि उसे पहचानना तक मुश्किल था. उनकी पहचान होने के बाद 29 मार्च को उनका अंतिम संस्कार
किया गया.
विद्यार्थी जी ने सन 1917-18 में होम रूल आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और कानपुर में कपड़ा मिल
मजदूरों की पहली हड़ताल का नेतृत्व किया था. सन 1920 में उन्होंने प्रताप का दैनिक संस्करण
आरम्भ किया और उसी साल उन्हें रायबरेली के किसानों के हितों की लड़ाई करने के लिए दो
साल कठोर कारावास की सजा हुई. सन 1922 में विद्यार्थी जी जेल से रिहा हुए पर सरकार
ने उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इसके बाद
उन्हें सन 1924 में रिहा किया गया.
26
अक्टूबर 1890 को अपने ननिहाल प्रयाग में जन्मे विद्यार्थी जी
अपनी आर्थिक कठिनाइयों के कारण एण्ट्रेंस तक ही पढ़ सके किन्तु उनका स्वतंत्र अध्ययन
अनवरत चलता ही रहा. आरम्भ में उन्होंने एक नौकरी भी की मगर अपने अंग्रेज़ अधिकारियों
से न पटने के कारण उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी. इसके बाद कानपुर में भी उन्होंने
नौकरी की. इसी तरह की स्थिति के बाद नौकरी छोड़कर वह अध्यापक हो गए. प्रसिद्द
साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी इनकी योग्यता देखकर प्रभावित हुए और उन्होंने विद्यार्थी
जी को अपने पास सरस्वती में बुला लिया. यहाँ से एक ही वर्ष के बाद अभ्युदय
नामक पत्र में चले गये और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे. इन्होंने कुछ दिनों तक प्रभा
का भी सम्पादन किया था. बाद में सन 1913 में उन्होंने प्रताप
(साप्ताहिक) का सम्पादन किया.
सामाजिक,
आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक
होते थे. वे कानपुर के लोकप्रिय नेता, पत्रकार, शैलीकार एवं निबन्ध
लेखक रहे. पत्रकारिता के साथ-साथ विद्यार्थी जी की साहित्यिक अभिरुचियाँ भी निखरती
रही. उनकी रचनायें सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य, हितवार्ता आदि में
छपती रहीं. हिन्दी में शेखचिल्ली की कहानियाँ आपकी ही देन हैं. विद्यार्थी
जी ने अंततोगत्वा कानपुर लौटकर प्रताप अखबार की शुरूआत की जो आज़ादी की लड़ाई
का मुख-पत्र साबित हुआ. उन्होंने सरदार भगत सिंह को प्रताप से जोड़ा था. रामप्रसाद
बिस्मिल की आत्मकथा प्रताप में उन्होंने ही प्रकाशित की.
गणेश
शंकर विद्यार्थी जी को उनकी पुण्यतिथि पर बुलेटिन परिवार की ओर से सादर श्रद्धांजलि.
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