
त हम कहने ई जा
रहे थे कि ठण्डा का मौसम में बहुत बढ़िया-बढ़िया परब त्यौहार आता है, जिसका
सेलेब्रेसन बसंत ऋतु तक चलता है... बसंत पंचमी, सिबरात्री अऊर अंत में होली के बाद
बस गर्मी दरवाजा खटखटाने लगता है. एही बीच में ऊ अंगरेजी वाला भी एगो त्यौहार आता
है, जिसमें जवान लड़का-लड़की सब बौरायेल रहता है... का कहते हैं भुलेटन बाबा का परब.
बाकी भुलेटन बाबा का भगत लोग ई कैसे भुला जाता है कि अभी सिबरात्रि आने वाला है.
सिब भगवान के
बारे में सुरुये से ई प्रचलित है कि उनसे प्रेम से जो कोनो बरदान मानिए, अगर ऊ खुस
हो गए त बिना आगा-पीछा सोचे पट से देते हैं. बाद में बिसनु भगवान उसका तोड़ निकालते
फिरते हैं. ई भुलेटन बाबा के पीछे जो सोरह साल के लड़की/लड़का सब अभिबेक्ति का आजादी
के नाम पर अपना सच्चा प्रेम खोजते फिरती/फिरता है, भुला जाता है कि सिब जी का सोरह
गो ब्रत रखने से भी सिब जी खुस होकर मनचाहा प्रेम जीबन भर के लिये त छोड़िये सात
जनम के लिये दिला देते हैं.
अब ई आजकल का बचवन
सब बोलेगा कि मजाक है, अंध बिस्वास है. त बाबू जऊन भुलेटन बाबा को बिना देखले एक रोज के प्यार के ख़ातिर एतना खर्चा-पानी कर रहे हो कि दस रुपया का गुलाब सौ रुपया
में खरीद रहे हो, त भगबान सिब त धतूरा जइसा चीज से भी खुस हो जाते हैं. एक बार
आजमा कर देख लो.
मगर सोलह साल का
उम्र होब्बे बहुत खतरनाक करता है. जब ऊ उम्र में हम नहीं समझे, जो ए घड़ी भासन दे
रहे हैं, त मोबाइल जुग का बचवा कहाँ से हमरा बात समझेगा. ई सोलह साल का उमर का
भटकाव भी सोलह आना सच है, जिसमें सोलह सोमबार का ब्रत नहीं समझ में आता है, बस
सोलह सिंगार देखाई देता है. सोलह सिंगार के बारे में आचार्य केसब दास कमाल का बरनन
किये हैं:
प्रथम सकल सुचि, मंजन अमल बास, जावक, सुदेस किस पास कौ सम्हारिबो।
अंगराग, भूषन, विविध मुखबास-राग, कज्जल ललित लोल लोचन निहारिबो।
बोलन, हँसन, मृदुचलन, चितौनि चारु, पल पल पतिब्रत
प्रन प्रतिपालिबो।
'केसौदास' सो बिलास करहु
कुँवरि राधे, इहि बिधि सोरहै सिंगारन सिंगारिबो।
बात बात में ई त सोलह
का पहाड़ा हो गया. हद्द हैं हम भी कहाँ का बात कहाँ ले जाते हैं. बाकी अब जब इहाँ
तक ले आए हैं त मंजिल तक पहुंचाना भी हमरे काम है मितरों.
ई सोलह के चक्कर में याद आया कि ई त हमरा ब्लॉग-बुलेटिन का सोलह सौवाँ पोस्ट हो गया.
मगर सोलह के चक्कर में आज का पन्द्रह तारीख कों भूल गए त हमरा अंतरात्मा हमको कहियो माफ नहीं करेगा. आज का तारीख है एगो ऐसा महान सायर का पुण्य तिथि जिसके बिना गजल के दुनिया का बिस्मिल्लाह नहीं हो सकता है. अब ऊ महान सायर का नाम भी हम ही कों बताना होगा.
चलिए उनसे पूछते हैं जो खुद कों उनका खादिम कहते हैं अऊर उन्हीं के नज्म के रूप में ऊ सायर को याद करके उनके सामने माथा नवाते हैं.
अऊर अंत में आप सब लोग अपना-अपना पीठ ठोंकिये, काहे कि आज हमारा देस बिग्यान के छेत्र में एतना बड़ा छलांग लगाया है अंतरिच्छ में कि एक्के बार में बिस्व रिकॉर्ड हो गया.
एक साथ १०४ सैटेलाईट लॉन्च करके हमारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान आसमान पर लिख दिया कि हम किसी से कम नहीं. हर भारतीय के लिये गर्व करने का मौक़ा आज मिला है.
जोर से भारत माता की जय बोलिए, हमको दीजिए इजाजत अऊर आप लोग आनन्द लीजिए हमरे बुलेटिन से भी मनोरंजक पोस्ट सब का.
ई सोलह के चक्कर में याद आया कि ई त हमरा ब्लॉग-बुलेटिन का सोलह सौवाँ पोस्ट हो गया.
मगर सोलह के चक्कर में आज का पन्द्रह तारीख कों भूल गए त हमरा अंतरात्मा हमको कहियो माफ नहीं करेगा. आज का तारीख है एगो ऐसा महान सायर का पुण्य तिथि जिसके बिना गजल के दुनिया का बिस्मिल्लाह नहीं हो सकता है. अब ऊ महान सायर का नाम भी हम ही कों बताना होगा.
चलिए उनसे पूछते हैं जो खुद कों उनका खादिम कहते हैं अऊर उन्हीं के नज्म के रूप में ऊ सायर को याद करके उनके सामने माथा नवाते हैं.
बल्लीमारान के मोहल्ले
की वो पेचीदा दलीलों के सी गलियाँ
सामने टाल के नुक्कड़ पे
बटेरों के कसीदे
गुड़गुडाती हुई पान की
पीकों में वो दाद, वो वाह वाह
चंद दरवाजों पे लटके
हुए बोसीदा से टाट के परदे
एक बकरी के मिमियाने की
आवाज़
और धुंधलाई हुई शाम के
बेनूर अँधेरे
ऐसे दीवारों से मुँह
जोड़के चलते हैं यहाँ
चूड़ीवालान के कटरे की
बड़ी बी जैसे
अपने बुझती हुई आँखों
से दरवाज़े टटोले
इसी बेनूर अंधेरी सी
गली कासिम से
एक तरतीब चरागों की
शुरू होती है
मिर्ज़ा असद उल्लाह खां
ग़ालिब का पता मिलता है.
अऊर अंत में आप सब लोग अपना-अपना पीठ ठोंकिये, काहे कि आज हमारा देस बिग्यान के छेत्र में एतना बड़ा छलांग लगाया है अंतरिच्छ में कि एक्के बार में बिस्व रिकॉर्ड हो गया.
जोर से भारत माता की जय बोलिए, हमको दीजिए इजाजत अऊर आप लोग आनन्द लीजिए हमरे बुलेटिन से भी मनोरंजक पोस्ट सब का.
सादर
सलिल वर्मा
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