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फ़ारुख़ शेख़ (अंग्रेज़ी: Farooq Sheikh, जन्म: 25 मार्च, 1948; मृत्यु: 27 दिसम्बर, 2013) एक भारतीय अभिनेता, समाज-सेवी और एक टेलीविजन प्रस्तोता थे। उन्हें 70 और 80 के दशक की फ़िल्मों में अभिनय के कारण प्रसिद्धि मिली। वो सामान्यतः एक कला सिनेमा में अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध थे जिसे समानांतर सिनेमा भी कहा जाता है। उन्होंने सत्यजित राय और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे भारतीय सिनेमा के महान् फ़िल्म निर्देशकों के निर्देशन में भी काम किया।
फ़ारुख़ एक बेहतरीन कलाकार तो थे ही लेकिन उससे कहीं आगे वह एक बेहतरीन इंसान थे। फ़ारुख़ शेख़ संपन्न परिवार से ज़रूर थे मगर पिता के निधन के बाद उन्होंने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाया। उन्होंने रेडियो और टीवी पर कार्यक्रम किए, लेकिन सिर्फ पैसों की खातिर फ़िल्मों में काम करना उन्हें मंजूर न था। इसीलिए जिस जमाने में अभिनेता एक साथ दर्जनों फ़िल्में साइन करते थे, फ़ारुख़ शेख़ एक बार में दो से ज्यादा फ़िल्मों में काम नहीं करते थे। 1978 में ‘नूरी’ की कामयाबी के बाद कुछ ही महीनों में उनके पास क़रीब 40 फ़िल्मों के प्रस्ताव आए। लेकिन उन्होंने सारे के सारे ठुकरा दिए क्योंकि वे सब ‘नूरी’ की ही तरह थे। फ़ारुख़ शेख़ का नाम कभी किसी विवाद में नहीं आया। न ही किसी सह-अभिनेत्री या हिरोइन से उनका नाम जुड़ा। वे पूरी तरह से पारिवारिक इंसान थे। उनकी दो बेटियां हैं। उन्होंने ईश्वर में सदा विश्वास किया। वे कहते थे कि एक शक्ति है जो ऊपर से हमें संचालित कर रही है। धर्म और जाति के नाम पर बंटवारे या भेदभाव उन्हें कभी गवारा न थे। उन्होंने सदा कहा कि गुजर जाने के बाद दुनिया में याद किए जाने की ख्वाहिश उनमें नहीं है। वह कहते थे कि यह ज़िंदगी एक उत्सव है और अपने रियलिटी शो ‘जीना इसी का नाम है’ में मैं ज़िंदगी का ही जश्न मना रहा हूँ।
बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता फ़ारुख़ शेख़ का शुक्रवार 27 दिसम्बर, 2013 की रात दुबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। मीडिया को यह जानकारी उनकी मित्र एवं अभिनेत्री दीप्ति नवल ने दी। दुबई में ज़रूरी औपचारिकता पूरी करने के बाद उनका शव अंतिम संस्कार के लिए मुंबई लाया गया। मुंबई में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। फ़ारुख़ शेख़ 65 वर्ष के थे और उनकी तबीयत इससे पहले अच्छी थी और उन्होंने दो महीने पहले शारजाह पुस्तक मेले में शिरकत की थी। फ़िल्म 'गरम हवा' से कैरियर की शुरुआत की थी और उसके बाद कला और मुख्यधारा की फ़िल्म में अपनी पहचान बनाई थी। उन्होंने चश्मेबद्दूर, उमराव जान, नूरी, किसी ने कहा, साथ-साथ, ये जवानी है दीवानी आदि समेत तमाम फ़िल्में कीं। फ़ारुख़ शेख़ ने सत्यजीत रे के साथ भी लंबे समय तक काम किया। उनकी आख़िरी फ़िल्म 'क्लब 60' थी। फ़ारुख़ शेख़ को कला फ़िल्मों, रंगमंच और टेलीविजन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने टेलीविजन पर प्रसिद्ध शो 'जीना इसी का नाम है' की मेजबानी भी की थी।
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
फ़ारुख़ एक बेहतरीन कलाकार तो थे ही लेकिन उससे कहीं आगे वह एक बेहतरीन इंसान थे। फ़ारुख़ शेख़ संपन्न परिवार से ज़रूर थे मगर पिता के निधन के बाद उन्होंने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाया। उन्होंने रेडियो और टीवी पर कार्यक्रम किए, लेकिन सिर्फ पैसों की खातिर फ़िल्मों में काम करना उन्हें मंजूर न था। इसीलिए जिस जमाने में अभिनेता एक साथ दर्जनों फ़िल्में साइन करते थे, फ़ारुख़ शेख़ एक बार में दो से ज्यादा फ़िल्मों में काम नहीं करते थे। 1978 में ‘नूरी’ की कामयाबी के बाद कुछ ही महीनों में उनके पास क़रीब 40 फ़िल्मों के प्रस्ताव आए। लेकिन उन्होंने सारे के सारे ठुकरा दिए क्योंकि वे सब ‘नूरी’ की ही तरह थे। फ़ारुख़ शेख़ का नाम कभी किसी विवाद में नहीं आया। न ही किसी सह-अभिनेत्री या हिरोइन से उनका नाम जुड़ा। वे पूरी तरह से पारिवारिक इंसान थे। उनकी दो बेटियां हैं। उन्होंने ईश्वर में सदा विश्वास किया। वे कहते थे कि एक शक्ति है जो ऊपर से हमें संचालित कर रही है। धर्म और जाति के नाम पर बंटवारे या भेदभाव उन्हें कभी गवारा न थे। उन्होंने सदा कहा कि गुजर जाने के बाद दुनिया में याद किए जाने की ख्वाहिश उनमें नहीं है। वह कहते थे कि यह ज़िंदगी एक उत्सव है और अपने रियलिटी शो ‘जीना इसी का नाम है’ में मैं ज़िंदगी का ही जश्न मना रहा हूँ।
बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता फ़ारुख़ शेख़ का शुक्रवार 27 दिसम्बर, 2013 की रात दुबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। मीडिया को यह जानकारी उनकी मित्र एवं अभिनेत्री दीप्ति नवल ने दी। दुबई में ज़रूरी औपचारिकता पूरी करने के बाद उनका शव अंतिम संस्कार के लिए मुंबई लाया गया। मुंबई में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। फ़ारुख़ शेख़ 65 वर्ष के थे और उनकी तबीयत इससे पहले अच्छी थी और उन्होंने दो महीने पहले शारजाह पुस्तक मेले में शिरकत की थी। फ़िल्म 'गरम हवा' से कैरियर की शुरुआत की थी और उसके बाद कला और मुख्यधारा की फ़िल्म में अपनी पहचान बनाई थी। उन्होंने चश्मेबद्दूर, उमराव जान, नूरी, किसी ने कहा, साथ-साथ, ये जवानी है दीवानी आदि समेत तमाम फ़िल्में कीं। फ़ारुख़ शेख़ ने सत्यजीत रे के साथ भी लंबे समय तक काम किया। उनकी आख़िरी फ़िल्म 'क्लब 60' थी। फ़ारुख़ शेख़ को कला फ़िल्मों, रंगमंच और टेलीविजन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने टेलीविजन पर प्रसिद्ध शो 'जीना इसी का नाम है' की मेजबानी भी की थी।
आज फ़ारुख़ शेख़ जी की 71वें जन्म दिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
4 टिप्पणियाँ:
हर्षवर्धन जी, अच्छा लगा आपके बुलेटिन मे आके। बुलेटिन की आज की कडिय़ों मे जो सबसे पहला लिंक आपने लगाया है,वहां जाकर मेरा यह संदेश अवश्य पहुचा दीजिएगा:
गुरूर-ऐ-स्तम्भ,इतना भी क्रांतिकारी न सोचो,
ऐ खिसियायी बिल्लियों,अब खम्भा मत नोचो। 😊
आभार।
बढ़िया बुलेटिन।
फ़रोख शेख फिल्म जगत में हमेशा याद किये जायेंगे ... नमन है मेरा ....
आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
वाह ! सुन्दर बुलेटिन !मेरे आलेख को आज के बुलेटिन में स्थान देने के लिए आपका दिल से आभार !
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