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सोमवार, 16 जनवरी 2012

आखिर कहां जा रहे हैं हम... ब्लॉग बुलेटिन...

सबसे पहले एक ज़रूरी सूचना ...

ब्लॉग बुलेटिन आपका ब्लॉग है.... ब्लॉग बुलेटिन टीम का आपसे वादा है कि वो आपके लिए कुछ ना कुछ 'नया' जरुर लाती रहेगी ... इसी वादे को निभाते हुए लीजिये पेश है हमारी नयी श्रृंखला "मेहमान रिपोर्टर" ... इस श्रृंखला के अंतर्गत हर हफ्ते एक दिन आप में से ही किसी एक को मौका दिया जायेगा बुलेटिन लगाने का ... तो अपनी अपनी तैयारी कर लीजिये ... हो सकता है ... अगला नंबर आपका ही हो ! 

बुलेटिन टीम, किसी एक ब्लोगर को संपर्क करके अनुरोध करेगी कि वो अपने सुझाव और अपने अनुभवों से ब्लॉग जगत को अवगत कराये... और साथ साथ  अपने पसंद के कुछ ब्लॉग पोस्टो के लिंक्स से भी हमारा परिचय करवाएं  ...  अगर आप भी बुलेटिन लगाना चाहते हो तो हमें हमारे ईमेल आईडी: bulletinofblog@gmail.com पर सूचित कर सकते हैं ... बुलेटिन टीम आप से संपर्क कर लेगी !
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आज हम बात करते हैं हमारी सडको की हालत की, हमारी टाउन प्लानिंग क्षमताओं की और हमारे देश के महान नागरिकों की.... हम रोज सफ़र करते हैं... चाहे ट्रेन से हों या फिर बस से... सड़क से हो पानी से हो या फिर हवाई जहाज़ से ही क्यों ना हो.. हर जगह दिक्कते हैं और हर जगह मानवीय लापरवाही से लाखों मुसीबतें आपको आदमी को परेशान करने के लिए तैयार हैं.... हम भी महान हैं, हर बात के लिए सरकारी तंत्र को ज़िम्मेदार ठहरा देते हैं और निकल लेते हैं....

चलिए आज हम खबर लेते हैं सड़क मार्ग से सफ़र करने में होने वाली दिक्कतें और महान देश के महान नागरिकों की करतूतों की.... हमारे हाइवे कम से कम चार लेन के हैं... कुछ हाइवे आज भी डबल लेन के लिए डेवेलोपमेंट फेज में हैं... कुछ में काम हो चुका है... और कुछ का बंटाधार भी हो चुका है...  दिल्ली और मुम्बई जैसे शहर... कहने को तो मेट्रो शहर हैं..... और आबादी में दुनिया से आगे हैं..... लेकिन हमारी टाउन प्लानिंग दुनिया में सबसे बदतर है.... यकीन नहीं होता तो फिर यह सुनिए....  सभी मानते हैं सुबह के समय सेन्ट्रल बिज़्निस सेन्टर में लोग बाहर से आएंगे काम करनें और फ़िर शाम को यही लोग बाहर निकलेंगे.... अब आपको यह देखना होगा की ट्रैफ़िक की करेंट को आप कितनी जगह रोकते हैं, मसलन उदाहरण के लिए अगर पांच किलोमीटर की सडक पर ‍६ सिगनल हैं तो फ़िर ट्रैफ़िक कम से कम ‍६ बार तो रुकेगा ही..... इस ट्रैफ़िक की करेंट को रोकनें से बचानें के लिए आप फ़्लाय-ओवर डालते हैं..... लेकिन कुछ ही दिन के बाद आप फ़्लाय-ओवर के नीचे सिग्नल डाल देते हैं..... मतलब आपको जब ट्रैफ़िक को रोकना ही था तो फ़िर फ़्लाय-ओवर डालनें की वज़ह क्या हैं..... हिन्दुस्तान एक विकासशील देश है, सरकारी परिवहन साधन कहीं से भी जनता की मांग को पूरा करनें मे असमर्थ हैं....

कुछ तथ्य:
  • कोई नहीं.... जी हाँ कोई नहीं जानता की ड्रायविंग लेन क्या है और ओवरटेकिंग लेन क्या है.... बस वाले किसी भी लेन से ओवरटेकिंग करते हैं,  ट्रक वाले रास्ते को रेस ट्रैक की तरह समझते हैं और गो-कार्टिंग स्टाइल में गाड़ी चलाते हैं.....
  • आप यदि हायवे पर ड्राइव कार रहे हो, कई बार आप देखेंगे की एक ट्रक, दुसरे ट्रक को ओवर टेक कार रहा है.... वह भी रेंगते हुए.... पीछे ट्रैफिक जाम से हालत ख़राब है...
  • आखिर कितने ट्रकों के पीछे रिफ्लेक्टर लगे हैं, या उनके इंडिकेटर सही से काम करते हैं...
  • आखिर कितने लोग रास्ते में पैदल चलने वालों की परवाह करते हैं..... मैं खुद कई बार पैदल यात्रियों के लिए जब कार जेब्रा के पहले रोकता हूँ तो पीछे से आने वाली गाडिया हार्न मार मार कार मुश्किल में डाल देते हैं.... आखिर मानवता नाम की कोई चीज है या नहीं.....
  • रीजनल आर-टी-ओ की परेशानी यह है की उसे यह समझ नहीं आता की कितने बन्दों को कहाँ भेजना है.... हर चौराहे पर तो ट्रैफिक कांस्टेबल नहीं रखा जा सकता.... लोगों को अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी समझनी होगी....
  • ट्रैफिक लाईट की मरम्मत क्यों नहीं होती.....
  • शायद दुनिया में हिंदुस्तान एक अकेला देश होगा जहाँ बसे एक दुसरे को ओवर-टेक करती हैं.... और कोई देश होता तो ओवर-टेक करने वाले ड्राइवर की नौकरी चली जाती....
  • महानगरो की सडको पर ट्रक क्यों चलते हैं..... ट्रक केवल रात के १२ बजे से सुबह के ६ बजे तक ही आये.... और शहर के ट्रैफिक को ट्रक के कारण होने वाली दिक्कतों से छुटकारा दिलाएं...
  • महानगर बसे समय से रिपेयर हो.... खराब बसे सड़क से हटाई जाए.... आए दिन सड़क पर बसे फस जाती हैं..... और रोड पर जाम से मामला फस जाता है....
हम हिन्दुस्तानी भी कम महान नहीं हैं, सभी को ज़ल्दबाज़ी है..... आए दिन रोड रेजिंग के मामले बढते जा रहे हैं..... दिल्ली इस मामलें में बहुत बदनाम हुआ..... मुम्बई में भी ऐसे मामले प्रकाश में आए...

आइये आपके सामने दो चित्र रखते हैं.... एक दिल्ली... और एक मुंबई.... 

दिल्ली शहर
मुंबई

मुंबई के चित्र में देखिये.... कैसे लोगों ने गलत लेन में एक अलग की लाइन लगा ली है..... कितने किलोमीटर का जाम लगा होगा इस बहादुरी से...... तकलीफ तो तब होती है जब ट्रैफिक हवलदार जाम खुलवाने के नाम पर इन्ही गाड़ियों को पहले निकालते हैं..... आखिर इनका चालान क्यों नहीं काटा जाता..... आखिर इनके प्रति कार्यवाही करने में दिक्कत क्या है...... ट्रक क्यों हैं रास्ते पर.....  बहुत से प्रश्न हैं..... ज़वाब कोई नहीं है..... 

इन्ही लापरवाहियों के चलते आज सड़क दुर्घटनाओं में हम दुनिया में अव्वल हैं..... पिछले साल लगभग दो लाख लोगों ने अपनी जान गवाई....  चलिए हम उम्मीद करते हैं.... की यह लेख कुछ लोगों के कान खोलेगा.... और लोग अपनी ज़िम्मेदारी समझेंगे....  आइये आगे चले अपने बुलेटिन की ओर....


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कुद़रत के इस खेल पर ....!!!

सदा at सदा 
 उम्र जब शून्‍य की अवधि से मां के ऑंचल से झांककर घुटनों के बल चलकर लड़खड़ाते कदमों से अपनों की उंगली को थाम कर सीखती चलना फिर वक्‍त की रफ़्तार के साथ दौड़ती जिन्‍दगी में सरपट भागी भी जहां वहां नये रिश्‍तों की गर्माहट से हाथों में हाथ लेकर हमसफ़र का मंजिलों पे बढ़ाया कदमों को पर उम्र यहां भी अपनी समझाइशें साथ लाई रिश्‍तों ने रिश्‍तों को जोड़ा लेकिन उम्र ने साल दर साल अपनी वर्षगांठ मनाई ... मुस्‍कराहटों के बीच उम्र अपने अनुभवों की लकीरें देह पर छोड़कर बड़ी ही सुगमता से स्‍याह बालों को सफे़दी की झिलमिलाहट में परिवर्तन की बया़र के बीच कमर को झुकाती कभी हाथों ...... 
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एक किरण!

रश्मि प्रभा... at वटवृक्ष 
चाँद की तरह सूरज से कुछ धूप मुट्ठी में चुरानी है और तम को हटाना है ... * * *रश्मि प्रभा* * *एक किरण!* चुपचाप थाह रहे थे हम क्या कहता है तम इस निस्तब्धता में क्या रहस्य खोज पायेंगे हम! तभी अँधेरा हुआ कम कुछ वाचाल हुआ तम और सहज ही कह चला सकल प्रश्नों का हल है एक किरण! किरण- जिसका मात्र आगमन तोड़े अन्धकार का भरम आबद्ध हो जाये श्रृंखला प्रमुदित हो झूमे सकल चमन! किरण- जो अंक में समेट ले तम सुनहरा करे वातावरण और समा जाए अंतस में तो बन जाएँ स्वयं किरण के वाहक हम! ऐसे ही बनें प्रकाशपुंज हम..
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तुम्हें मालूम है कि जिस साल तुम आते हो नागफनी पर फूल आता है?

Puja Upadhyay at लहर
प्रेम नागफनी सरीखा है...ड्राईंग रूम के किसी कोने में उपेक्षित पड़ा रहेगा...पानी न दो, खाना न दो, ध्यान न दो...'आई डोंट केयर' से बेपरवाह...चुपचाप बढ़ता रहता है. --- एक नागफनी का बाग़ है...उसमें हर तरह के पेड़ हैं...यूँ कहो कि काँटों की सल्तनत है...कुछ कांटे बेहद तीखे, कड़े और बड़े हैं...जो कि ऊँगली में चुभ जाएँ तो खून निकल आये...मगर ऐसे कांटे ऊँगली में नहीं पैरों में चुभा करते हैं...इस पागल लड़की के सिवा कैक्टस के पेड़ों को कौन सहलाता है...कौन जाता है उनका हाल पूछने की सदियों से नफरत का प्रतीक बने ओ कैक्टस के पेड़ तेरा क्या हाल है. कहते हैं कि कैक्टस के पेड़ नहीं उगाने चाहिए, इससे
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कुरुक्षेत्र … चतुर्थ सर्ग .. ( भाग – २ ) रामधारी दिनकर सिंह

संगीता स्वरुप ( गीत ) at राजभाषा हिंदी - 15 hours ago
युगों से विश्व में विष - वायु बहती आ रही थी , धरित्री मौन हो दावाग्नि सहती आ रही थी ; परस्पर वैर - शोधन के लिए तैयार थे सब , समर का खोजते कोई बड़ा आधार थे सब | कहीं था जल रहा कोई किसी की शूरता से | कहीं था क्षोभ में कोई किसी की क्रूरता से | कहीं उत्कर्ष ही नृप का नृपों को सालता था कहीं प्रतिशोध का कोई भुजंगम पालता था | निभाना पर्थ - वध का चाहता राधेय था प्रण| द्रुपद था चाहता गुरु द्रोण से निज वैर - शोधन | शकुनी को चाह थी , कैसे चुकाए ऋण पिता का , मिला दे धूल में किस भांति कुरु-कुल की पताका | सुयोधन पर न उसका प्रेम था, वह घोर छल था , हितू बन कर उसे रखना ज्वलित केवल अनल था ....... 
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चूल्हे मे उसके अंगारे देखे हैं...

हमने दिन के घुप अँधियारे देखे हैं... बुझ बुझ कर मर जाते तारे देखे हैं... शाम मे फैले लाल खून मे सने हुए से... थके थके बेहोश नज़ारे देखे हैं... बोझ तले वो दबे हुए छुप छुप हैं रोते... हंसते लब हमने बेचारे देखे हैं... दरिया के कोने मे प्यासे हैं मर जाते... ऐसे भी किस्मत के मारे देखे हैं... जाने कबसे करता था वो सीली बातें... उसके अंदर बहते धारे देखे हैं... जब भी हम गुज़रे हैं उनके गाँव से होकर... पोखर हमने सारे खारे देखे हैं... रात उसे लाला के घर जाते देखा, कल... चूल्हे मे उसके अंगारे देखे हैं...  
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बेहतर हो सडक प्रबंधन

अजय कुमार झा at आज का मुद्दा 
दिल्ली का एक छोटा जाम अभी हाल ही में राजधानी दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ऑटो एक्सपो के दौरान उस क्षेत्र की सडकों पर लगे जाम ने एक बार फ़िर से इस बात की ओर ईशारा अक्र दिया कि अभी तक राजधानी दिल्ली का सडक प्रबंधन भी चुस्त दुरूस्त नहीं है तो पूरे देश की स्थिति क्या होगी इस अंदाज़ा सहज़ ही लगाया जा सकता है । राजधानी दिल्ली समेत तमाम महानगरों में टैफ़िक जाम की समस्या न सिर्फ़ आम समस्या है बल्कि रोज़ाना वैकल्पिक यातायात व्यवस्थाओं की शुरूआत एवं फ़्लाईओवरों के निर्माण के अलावा बहुत बडा मानव श्रम इसे दुरूसत करने के पीछे लगा रहता है ,किंतु परिणाम बहुत परिवर्तनकारी नहीं दिख रहा है । **** 
आज का बुलेटिन यहीं तक.... कल फिर मिलते हैं एक नए रंग के साथ.... 
जय हिंद  

18 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर अन्दाज़ मे बहुत ही प्यारा बुलेटिन लगाया है।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक अनूठी पहल + एक सार्थक प्रस्तावना + कुछ उम्दा लिंक्स = एक बढ़िया ब्लॉग बुलेटिन !

Anupama Tripathi ने कहा…

sarahniya ...

Girish Kumar Billore ने कहा…

जे बात झा जी खूब कहिन

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुते गज्जब देव बबा ।एकदम कमाल धमाल बन पडा है बुलेटिन ।प्रस्तावना में बहुत जरूरी बात उठाई और बताई आपने । पोस्ट झलकियां सुंदर लगीं ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इस बुलेटिन में सार्थक मुद्दा उठाया है ..राजभाषा की पोस्ट कुरुक्षेत्र को शामिल करने के लिए शुक्रिया

shikha varshney ने कहा…

बेहतरीन अंदाज ....रोज कुछ नया ...खतरनाक लगते हैं इरादे आप लोगों के :)

शिवम् मिश्रा ने कहा…

रोज़ नहीं शिखा जी ... कभी कभी ... और इतना तो बनता है ना जी ... :)

अनुपमा पाठक ने कहा…

The equation given by शिवम् मिश्रा ji above is perfect:)
बहुत सुन्दर ब्लॉग बुलेटिन!

Atul Shrivastava ने कहा…

सुंदर तरीके से सजा बुलेटिन।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ट्रैफिक राष्ट्रीय समस्या बनने को तैयार बैठा है।

Dev K Jha ने कहा…

सभी का धन्यवाद..... भाई हम कुछ न कुछ नयापन लानें का प्रयास करते रहेंगे... बुलेटिन, ब्लाग जगत को पूरी तरह समर्पित रहेगा.

RITU BANSAL ने कहा…

'मेहमान रिपोर्टर '..अच्छा प्रयास है ..बधाई ..
kalamdaan.blogspot.com

Shah Nawaz ने कहा…

बहुत ही सार्थक तरीका है आपका...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ट्रैफिक की असंतुलित हालात के ज़िम्मेदार पहले हम हैं ... कोई रुकना ही नहीं चाहता और यदि कोई आगे बढ़ गया तो पहले तो उससे बैर ठानेंगे फिर बढ़ेंगे .... वैसे विषय सचेत करने के लिए , समझाने के लिए काफी उपयुक्त है .... और लिंक सारे के सारे बहुत अच्छे !

vidya ने कहा…

बेहतरीन लिंक्स..रोचक प्रस्तुतीकरण के साथ......
शुक्रिया....

Alok Srivastava ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रयास है ये ब्लॉग
वैसे ट्राफिक क्यों पीछे रहे रास्ट्रीय समस्या बनने से
समस्या न हो तो इस देश का स्पन्दन ही रुक जाएगा....

सदा ने कहा…

बहुत ही सार्थक विषय ...सब वक्‍त की रफ़्तार के साथ भागते हैं जिस दिन खुद की गति से चलेंगे तो यह समस्‍या इतनी विकराल नहीं रहेगी .. मेरी रचना को स्‍थान देने के लिए आभार ..बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स का चयन किया है आपने .. ।

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