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गुरुवार, 12 जनवरी 2012

शिकागो के जयघोष की गूंज - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

आज के दिन के लिए श्री जगमोहन जी का एक आलेख मेरे जहेन में आ रहा है सो आपके सामने पेश है ...

अब से करीब ११९ साल पहले 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो पार्लियामेंट आफ रिलीजन में भाषण दिया था, उसे आज भी दुनिया भुला नहीं पाती। इसे रोमा रोलां ने 'ज्वाला की जबान' बताया था। इस भाषण से दुनिया के तमाम पंथ आज भी सबक ले सकते हैं। इस अकेली घटना ने पश्चिम में भारत की एक ऐसी छवि बना दी, जो आजादी से पहले और इसके बाद सैकड़ों राजदूत मिलकर भी नहीं बना सके। स्वामी विवेकाननंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति के देश के रूप में देखा जाने लगा। अमेरिकी प्रेस ने विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था। उस समय अभिभूत अमेरिकी मीडिया ने स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा था, 'उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे।'
यह ऐसे समय हुआ, जब ब्रिटिश शासकों और ईसाई मिशनरियों का एक वर्ग भारत की अवमानना और पाश्चात्य संस्कृति की श्रेष्ठता साबित करने में लगा हुआ था। उदाहरण के लिए 19वीं सदी के अंत में अधिकारी से मिशनरी बने रिचर्ड टेंपल ने 'मिशनरी सोसायटी इन न्यूयार्क' को संबोधित करते हुए कहा था- भारत एक ऐसा मजबूत दुर्ग है, जिसे ढहाने के लिए भारी गोलाबारी की जा रही है। हम झटकों पर झटके दे रहे हैं, धमाके पर धमाके कर रहे हैं और इन सबका परिणाम उल्लेखनीय नहीं है, लेकिन आखिरकार यह मजबूत इमारत भरभराकर गिरेगी ही। हमें पूरी उम्मीद है कि किसी दिन भारत का असभ्य पंथ सही राह पर आ जाएगा।
जब शिकागो धर्म संसद के पहले दिन अंत में विवेकानंद संबोधन के लिए खड़े हुए और उन्होंने कहा- अमेरिका के भाइयो और बहनो, तो तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत हुआ, लेकिन इसके बाद उन्होंने हिंदू धर्म की जो सारगर्भित विवेचना की, वह कल्पनातीत थी। उन्होंने यह कहकर सभी श्रोताओं के अंतर्मन को छू लिया कि हिंदू तमाम पंथों को सर्वशक्तिमान की खोज के प्रयास के रूप में देखते हैं। वे जन्म या साहचर्य की दशा से निर्धारित होते हैं, प्रत्येक प्रगति के एक चरण को चिह्निंत करते हैं। अन्य तमाम पंथ कुछ मत या सिद्धांत प्रतिपादित करते हैं और समाज को इन्हें अपनाने को बाध्य करते हैं। वे समाज के सामने केवल एक कोट पेश करते हैं, जो जैक, जान या हेनरी या इसी तरह के अन्य लोगों को पहनाना चाहते हैं। अगर जान या हेनरी को यह कोट फिट नहीं होता तो उन्होंने बिना कोट पहने ही जाना पड़ता है। धर्म संसद के आखिरी सत्र में विवेकानंद ने अपने निरूपण की व्याख्या को इस तरह आगे बढ़ाया- ईसाई एक हिंदू या बौद्ध नहीं बनता है न ही एक हिंदू या बौद्ध ईसाई बनता है, लेकिन प्रत्येक पंथ के लोगों को एक दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए।
उन्होंने उम्मीद जताई कि हर पंथ के बैनर पर जल्द ही लिखा मिलेगा- समावेश, विध्वंश नहीं। सौहा‌र्द्र और शांति, फूट नहीं। मंत्रमुग्ध करने वाले उनके शब्द हाल की दीवारों के भीतर ही गुम नहीं हो गए। वे अमेरिका के मानस को भेदते चले गए, लेकिन उस समय भी आम धारणा यही थी कि हर कोई विवेकानंद से प्रभावित नहीं हुआ। उन्हें न केवल कुछ पादरियों के क्रोध का कोपभाजन बनना पड़ा बल्कि हिंदू धर्म के ही कुछ वर्गो ने उन्हें फक्कड़ साधु बताया जो किसी के प्रति आस्थावान नहीं है। उन्होंने विवेकानंद पर काफी कीचड़ उछाला। उनके पास यह सब चुपचाप झेलने के अलावा और कोई अन्य चारा नहीं था। स्वामी विवेकानंद ने तब जबरदस्त प्रतिबद्धता का परिचय दिया, जब एक अन्य अवसर पर उन्होंने ईसाई श्रोताओं के सामने कहा- तमाम डींगों और शेखी बखारने के बावजूद तलवार के बिना ईसाईयत कहां कामयाब हुई? जो ईसा मसीह की बात करते हैं वे अमीरों के अलावा किसकी परवाह करते हैं! ईसा को एक भी ऐसा पत्थर नहीं मिलेगा, जिस पर सिर रखकर वह आप लोगों के बीच स्थान तलाश सके..आप ईसाई नहीं हैं। आप लोग फिर से ईसा के पास जाएं। एक अन्य अवसर पर उन्होंने यह मुद्दा उठाया- आप ईसाई लोग गैरईसाइयों की आत्मा की मुक्ति के लिए मिशनरियों को भेजते हैं। आप उनके शरीर को भुखमरी से बचाने का प्रयास क्यों नहीं करते हैं? भूख से तड़पते इंसान को किसी पंथ की पेशकश करना एक तरह से उसका अपमान है। साफगोई और बेबाकी विवेकानंद का सहज गुण था। देश में वह हिंदुओं से अधिक घुलते-मिलते नहीं थे। जब उनके आश्रम में एक अनुयायी ने उनसे पूछा कि व्यावहारिक सेवा के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना का उनका प्रस्ताव संन्यासी परंपरा का निर्वहन कैसे कर पाएगा? तो उन्होंने जवाब दिया- आपकी भक्ति और मुक्ति की कौन परवाह करता है? धार्मिक ग्रंथों में लिखे की किसे चिंता है? अगर मैं अपने देशवासियों को उनके पैरों पर खड़ा कर सका और उन्हें कर्मयोग के लिए प्रेरित कर सका तो मैं हजार नर्क भी भोगने के लिए तैयार हूं। मैं मात्र रामकृष्ण परमहंस या किसी अन्य का अनुयायी नहीं हूं। मैं तो उनका अनुयायी हूं, जो भक्ति और मुक्ति की परवाह किए बिना अनवरत दूसरों की सेवा और सहायता में जुटे रहते हैं।
विवेकानंद की साफगोई के बावजूद जिसने उन्हें अमेरिकियों के एक वर्ग का चहेता नहीं बनने दिया, उन्हें हिंदुत्व के विभिन्न पहलुओं की विवेचना के लिए बाद में भी अमेरिका से न्यौते मिलते रहे। जहां-जहां वह गए उन्होंने बड़ी बेबाकी और गहराई से अपने विचार पेश किए। उन्होंने भारत के मूल दर्शन को विज्ञान और अध्यात्म, तर्क और आस्था के तत्वों की कसौटी पर कसते हुए आधुनिकता के साथ इनका सामंजस्य स्थापित किया। उनका वेदांत पर भी काफी जोर रहा। उन्होंने बताया कि कैसे यह मानव आत्मा का शानदार उत्पाद है? यह मूलभाव में जीव की जीव द्वारा उपासना क्यों है और इसने गहन अध्यात्म के बल पर हिंदू को एक बेहतर हिंदू, मुस्लिम को बेहतर मुस्लिम और ईसाई को बेहतर ईसाई बनाने में सहायता प्रदान की है।
विवेकानंद ने यह स्पष्ट किया कि अगर वेदांत को जीवन दर्शन के रूप में न मानकर एक धर्म के रूप में स्वीकार किया जाता है, तो यह सार्वभौमिक धर्म है- समग्र मानवता का धर्म। इसे हिंदुत्व के साथ इसलिए जोड़ा जाता है, क्योंकि प्राचीन भारत के हिंदुओं ने इस अवधारणा की संकल्पना की और इसे एक विचार के रूप में पेश किया। एक अलग परिप्रेक्ष्य में श्री अरबिंदो ने भी यही भाव प्रस्तुत किया- भारत को अपने भीतर से समूचे विश्व के लिए भविष्य के पंथ का निर्माण करना है। एक शाश्वत पंथ जिसमें तमाम पंथों, विज्ञान, दर्शन आदि का समावेश होगा और जो मानवता को एक आत्मा में बांधने का काम करेगा।
स्पष्ट तौर पर मात्र एक भाषण ने ऐसी ज्योति प्रज्ज्वलित की, जिसने पाश्चात्य मानस के अंतर्मन को प्रकाश से आलोकित कर दिया और ऊष्मा से भर दिया। इस भाषण ने सभ्यता के महान इतिहासकार को जन्म दिया। अर्नाल्ड टोनीबी के अनुसार- मानव इतिहास के इन अत्यंत खतरनाक क्षणों में मानवता की मुक्ति का एकमात्र तरीका भारतीय पद्धति है। यहां वह व्यवहार और भाव है, जो मानव प्रजाति को एक साथ एकल परिवार के रूप में विकसित होने का मौका प्रदान करता है और इस परमाणु युग में हमारे खुद के विध्वंस से बचने का यही एकमात्र विकल्प है।

 


आज उनके जन्मदिन के अवसर पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से स्वामी विवेकानंद जी को शत शत नमन !


सादर आपका

शिवम् मिश्रा

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posted by कुमार राधारमण at स्वास्थ्य-सबके लिए 
अपच पाचन तंत्र की अनियमितता के कारण होती है। यदि सभी पाचक रसायन (एंज़ाइम्स) अपना काम ठीक से न करें तो इससे अपच की समस्या हो जाती है जो बहुत ही असुविधाजनक होती है। गैस बनना, पेट में जलन, एसिडिटी ये सभी अपच...

posted by चन्द्रिका at दख़ल की दुनिया
*जॉन पिलगर एक पत्रकार, फिल्म-निर्माता और स्तंभकार हैं। जिन्होंने पिछले तीन दशकों से वैश्विक घटनाओं को कवर किया है। इन्होंने साठ और सत्तर के दशक में वियतनाम, कम्बोडिया और पूर्वी तिमोर में अमेरिकी राजनीति को...

posted by विवेक मिश्र at अनंत अपार असीम आकाश
अभिनन्दन है , वंदन है तेरा ।हे राष्ट्र पुरुष , हे महापुरुष ।सामर्थ नहीं हम में इतना ,कर पाए तेरा समुचित गुणगान ।गुंजित है ये धरती सारी ,गूँज रहा नभ में तेरा... जाने कितने बादल आये,गरजे बरसे चले गए, मै भी ...


सुर्ख मौसम में भी उदास है कोई होश गुम है बदहवास है कोई आसुओं से जल गए रुखसार जिसके अपने साए को भी भी नागवार है कोई आहटों को तौलता रहता है सन्नाटे को तोड़ता रहता है सडको पर दौड़ता रहता है मानो गुनाह...

posted by noreply@blogger.com (जी.के. अवधिया) at धान के देश में! 
*पत्र-पत्रिकाए/समाचार पत्र* *संस्थापक* बंगाल गजेटियर (भारत का प्रथम समाचार पत्र) (1780) जे.के. हिक्की केसरी बाल गंगाधर तिलक सुधारक गोपाल कृष्ण गोखले अमृत बाजार पत्रिका शिशिर कुमार घोष एवं मो...

posted by जयदीप शेखर at कभी कभार
आज के अखबार की एक खबर है- "नकारा नौकरशाही में भारत सबसे आगे"। जानतेहैं, इसके पीछे कारण क्या है? "ई.क्यू."का अभाव। हमारे देश में सिर्फ और सिर्फ "आई.क्यू." के आधार पर नौकरशाहचुने जाते हैं। इन्हें चुनने व...


posted by मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते
*नाओमी शिहाब न्ये की एक कविता... * * * * * * * * * * * * * * * * * *बारिश : नाओमी शिहाब न्ये * (अनुवाद : मनोज पटेल) पॉल से एक शिक्षिका ने पूछा कि तीसरी कक्षा की कौन सी बात याद रखेगा वह, और जवाब लिखने के ...

posted by Devendra Gehlod at Jakhira, Shayari Collection 
सलमान अख्तर, आपने कभी इनका नाम सुना है? जी ये भी शायरी से ताल्लुक रखते है और बकायदा ताल्लुक ही नहीं साहित्यिक खानदान से है| जी हां, डॉ. सलमान अख्तर साहब जावेद अख्तर के छोटे भाई है और मशहूर शायर जां निसार अ...

posted by मनोज कुमार at मनोज
*आंच-104* *ग़ज़ल (जंजाल आते हैं)* श्री संजय मिश्र ‘हबीब’ ब्लॉग जगत में काफी जाना पहचाना नाम है. सेक्युलर बयार में आप भी अपना ना...


posted by Vijay Kumar Sappatti at नुक्कड़
*स्वामी विवेकानंद** **आज भी परिभाषित है** **उसकी ओज भरी वाणी से** **निकले **हुए वचन ;** **जिसका नाम था विवेकानंद !** **उठो ,**जागो , **सिंहो ;** **यही कहा था कई सदियाँ पहले** **उस महान साधू ने ,** **जि...

posted by दिलीप at दिल की कलम से... 
हम तो तुम्हारे इश्क़ मे आबाद हो गये.... दुनिया बता रही के हम बरबाद हो गये.... हालात भी अजीब हुए हैं तुम्हारे बाद... हम क़ैद हुए और तुम आज़ाद हो गये... मैं पास तुम्हारे, मगर हूँ दूर भी बहुत... तुम फूल बने औ...

posted by संगीता पुरी at आज का राशि फल 
मेष लग्नवालों के लिए 12 और 13 जनवरी 2012 को स्वास्थ्य या व्यक्तिगत गुणों को मजबूती देने के कार्यक्रम बनेंगे, स्मार्ट लोगों का साथ मिलेगा। रूटीन काफी व्यवस्थित होगा , जिससे समय पर सारे कार्यों को अंजाम दिया...


posted by अरुण चन्द्र रॉय at सरोकार 
भाई हीरालाल बन गए हो तुम एक रिटेल ब्रांड तुम्हारी जलेबियों का वज़न कर दिया गया है नियत कितनी होगी चाशनी यह भी कर दिया गया है निर्धारित तैयार किया जा रहा है तुम्हारे नाम का एक प्रतीक चिन्ह तुम्हा...

posted by देव कुमार झा at मेरी दुनिया मेरा जहाँ.... 
(चित्र गूगल से साभार) आज बरहा हिंदी टूल से हाथी टाइप किया हठी हो गया..... फिर मन ही मन सोचा की गलत क्या है..... लखनऊ का हाथी तो हठी है ही.... बड़े मुद्दे चलेंगे चुनाव में.... और फिर से लोगों के भले की सोच...

posted by रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें... 
कहते हैं लोग - 'सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता ...' लोग ! बहुत बड़े मन वाले होते हैं कितनी अच्छी सोच रखते हैं हमेशा - दूसरों के लिए ...! पर - सोचनेवाली बात ये है कि सुबह का भूला किस श...

posted by शिवम् मिश्रा at पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes 
*यू.पी. में हाथी को लपेटने का हुक्म तो हो गया, अब हाथ को लपेटने का हुक्म होना चाहिए. क्या पता इसी बहाने इस बर्फ़ीली सर्दी में तमाम ग़रीब हाथों को दस्ताने मिल जाएं !*

posted by गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा 
इस शीर्षक को जापानियों ने सही ठहराया है, अपने मछली प्रेम से। जापानियों का मछली प्रेम जग जाहिर है। परन्तु वे व्यंजन से ज्यादा उसके ताजेपन को अहमियत देते हैं। परन्तु आज कल प्रदुषण के कारण समुद्री तट के आसपास ...

posted by Puja Upadhyay at लहरें
उसके यहाँ घर से निकलते हुए 'कहाँ जा रहे हो' पूछना अशुभ माना जाता था. उसपर घर के मर्द इतने लापरवाह थे कि कई बार शहर से बाहर भी जाना होता था तो माँ, भाभी या पत्नी को बताये बिना, बिना ढंग से कपड़े रखे हुए निक...
posted by noreply@blogger.com (विष्णु बैरागी) at एकोऽहम् 
*सुशील भाई छाजेड़ गए दिनों चीन गए थे। लौटे तो अपने अनुभव बताने लगे। सार यह था कि कहने भर को चीन साम्यवादी लगता है वरना सब कुछ पूँजीवादी व्यवस्था जैसा अनुभव होता है। सुनकर मुझे, 2 अक्टूबर 2011 को, ‘हम लोग’ द...

posted by noreply@blogger.com (गिरीश"मुकुल") at मिसफिट Misfit जनवरी-दिसंबर 1996 की यादें आज ताज़ा हो आईं .नौकरी में ट्रेनिंग की ज़रूरी रस्म के लिये  लखनऊ के  गुड़म्म्बा गांव में हमें  ट्रेनिंग कालेज . ट्रेनिंग के लिये भेजा सरकारी फ़रमान का ..


posted by ana at कविता
प्रिये तुम बस मेरी हो दुनिया से क्या डरना मुझको शाप-शब्दों का परवाह नहीं अब तुम अब नहीं अकेली हो प्रिये तुम अब मेरी हो दिनकर रजनीकर में हम तुम जग में अभिसार का संशय कुछ भी कहने दो लोगो को त...

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छपते छपते :- 

अभी अभी ख़याल आया कि आज की सब से जरुरी पोस्ट को तो मैंने इस बुलेटिन में शामिल ही नहीं किया ... 

परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण-२०११
देर आमद ... दुरुस्त आमद  ... है न ???



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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिंद !!!

17 टिप्पणियाँ:

vidya ने कहा…

स्वामी विवेकानंद जी को हमारी ओर भी पुण्य स्मरण..
काश भारत का युवा वर्ग उनका कुछ अंश ही पा जाता...

सभी पोस्ट अच्छी..
शुक्रिया.

vidya ने कहा…

आपकी दुआ से मनोज पटेल जी के ब्लॉग "पढते पढते " से परिचय हुआ..
आपका शुक्रिया तहे दिल से...

मनोज पटेल ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद शिवम् जी !!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

@ विद्या जी ,
यकीन जानिएगा मेरा भी कल शाम ही परिचय हुआ उनके ब्लॉग से ... :)
और शुक्रिया की कोई जरुरत नहीं है ... आप सब तक बढ़िया पोस्टो को पहुँचाना ही हमारा मकसद है !
सादर

शिवम् मिश्रा ने कहा…

मनोज भाई , धन्यवाद की कोई जरुरत नहीं है ... आपका ब्लॉग है ही इतना कमाल ... :)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

शून्य से शून्य तक नमन .....अपनी रचना देखकर खुश हूँ और कुछ रचनाओं तक जा रही हूँ

कविता रावत ने कहा…

bahut hi sundar links ke sath sathak bulletin prastuti ke liye aabhar!
Sadar!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवमजी, बहुत-बहुत धन्यवाद। स्नेह बना रहे।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भारतीय इतिहास का बुलन्द अध्याय था वह।

कुमार राधारमण ने कहा…

तालियों की लम्बी गड़गड़ाहट के बारे में ही पढ़ा था। पहली बार इतने विस्तार से जाना।

shikha varshney ने कहा…

हमें आज फिर एक विवेकानंद की जरुरत है. बेहद अच्छा बुलेटिन.

अजय कुमार झा ने कहा…

शिवम भाई ,प्रस्तावना ने इसे यादगार और पोस्ट संकलन लिंक्स ने इसे सहेजनीय बना दिया है । बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति । बहुत बहुत शुभकामनाएं

मनोज कुमार ने कहा…

आज के लिंक्स से आपकी मेहनत साफ़ झलकती है।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सभी पोस्ट अच्छे लगे,आपके मेहनत की झलक दिखाई पड़ रही है,
बधाई,.....

Urmi ने कहा…

ढेर सारे लिंक्स के साथ बहुत बढ़िया बुलेटिन रहा! स्वामी विवेकानंद जी को मेरा शत शत नमन!

जयदीप शेखर ने कहा…

स्वामी विवेकानन्द जी का कहना था कि अगर मेरे-जैसे 50 युवक भी मुझे मिल जायें, तो मैं दुनिया को बदल सकता हूँ...
अफसोस, कि आज तक ऐसे 50 युवा एक साथ इस देश में नहीं बन पाये हैं...

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति . आपका धन्यवाद.
मेरी रचना को शामिल करने के लिये आभारी हूँ .
कृपया मेरी कविताएं और मेरी कहानिया पर भी नज़र डाले.
धन्यवाद.
विजय
कविता --- poemsofvijay.blogspot.com
कहानी --- storiesbyvijay.blogspot.com

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लेखागार