जैसा कि आप सब से हमारा वादा है ... हम आप के लिए कुछ न कुछ नया लाते रहेंगे ... उसी वादे को निभाते हुए हम एक नयी श्रृंखला शुरू कर रहे है जिस के अंतर्गत हर बार किसी एक ब्लॉग के बारे में आपको बताया जायेगा ... जिसे हम कहते है ... एकल ब्लॉग चर्चा ... उस ब्लॉग की शुरुआत से ले कर अब तक की पोस्टो के आधार पर आपसे उस ब्लॉग और उस ब्लॉगर का परिचय हम अपने ही अंदाज़ में करवाएँगे !
आशा है आपको यह प्रयास पसंद आएगा !
आज मिलिए ... जयदीप शेखर से ...
100 वर्षों की गुलामी और आज़ादी के दीवाने ....गाँधी, नेहरु, भगत सिंह , रामप्रसाद बिस्मिल , ...... अनेक सम्मानित नाम . कई नाम गुमनाम रहे , पर उनके खून निःस्वार्थ स्वतंत्रता की राह के लिए बहे . इन्हीं दीवानों में एक नाम नेताजी सुभाषचंद्र बोस का था , है और रहेगा . आजादी उद्देश्य थी - कदम अलग अलग थे . उस वक्त नेताजी किस प्रकार के शासन के बारे में सोचते थे यह उनके निम्न कथन से जाहिर होता है:
“ब्रिटिश साम्राज्यवाद के बाद इस भारत में पहले बीस वर्ष के लिये तानाशाही राज्य कायम होनी चाहिये। एक तानाशाही ही देश से गद्दारों को निकाल सकता है।”
“भारत को अपनी समस्याओं के समाधान के लिये एक कमाल पाशा की आवश्यकता है।”
युवा खून गर्म होता है , और अराजकता दूर करने के लिए उसके शब्द भी तपते हुए होते हैं . 23 जनवरी को जन्म लेनेवाले इस दीवाने को लोग गाहे बगाहे याद कर लेते हैं , पर नाज़-ए-हिन्द सुभाष नाम से अपना ब्लॉग बनानेवाले जयदीप शेखर ने ( http://nazehindsubhash.blogspot.com/ ) इस ब्लॉग में उनकी ज़िन्दगी को अमर कर दिया है .
7 जून 2010 से इनका ब्लॉग सक्रीय हुआ .... पूर्व-सेनानी (भूतपूर्व वायुसैनिक); वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक में सहायक जयदीप जी ने अपने अन्दर की चिंगारी को सुभाष चन्द्र बोस की शक्ल में युवाओं के मध्य रखा है . कौन सा पृष्ठ बीजारोपण करेगा , दबी आग को सुलगायेगा ये आप , हम तय नहीं कर सकते . अपने आदर्श को सिलसिलेवार लिखा है जयदीप जी ने . उनका ब्लॉग उनके शब्दों में -
" नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (1941-45 और उसके बाद) से जुड़े कुछ तथ्य, कुछ प्रसंग तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के विश्लेषण पर आधारित कुछ निष्कर्ष; जिनके बारे में हर भारतीय को- खासकर, किशोर एवं युवा पीढ़ी को- जानना चाहिए..." किसी भी निष्कर्ष के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की ज़रूरत तो होती ही है .
समय तारीख सबकुछ आँखों के सामने .... एक नज़र तो डालिए इस लिंक पर - http://nazehindsubhash.blogspot.com/2010/06/11-17.html
..... पता नहीं कितने युवा इस सत्य से वाकिफ हैं , मैं आज इस सच को विस्तृत रूप में जान पायी हूँ . यूँ तो मैंने पूरा ब्लॉग आपके समक्ष कर दिया है , पर इस आलेख ने सत्य के साथ जो सामाजिक दुखद प्रश्न रखा है , उसे इन्गित करना चाहती हूँ -
पिताजी का मन रखने के लिए 1920 में आई.सी.एस. (आज का आई.ए.एस.) अधिकारी बने नेताजी 1921 में ही नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरते हैं।
ग्यारह बार गिरफ्तार करने के बाद ब्रिटिश सरकार उन्हें 1933 में ‘देश निकाला’ ही दे देती है।
यूरोप में निर्वासन बिताते हुए वे अपनी यकृत की थैली की शल्य-चिकित्सा भी कराते हैं।
1934 में पिताजी की मृत्यु पर तथा 1936 में काँग्रेस के (लखनऊ) अधिवेशन में भाग लेने के लिए वे दो बार भारत आते हैं, मगर दोनों ही बार ब्रिटिश सरकार उन्हें गिरफ्तार कर वापस देश से बाहर भेज देती है।
1933 से ’38 तक यूरोप में रहते हुए नेताजी ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, फ्राँस, जर्मनी, हंगरी, आयरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, रूमानिया, स्वीजरलैण्ड, तुर्की और युगोस्लाविया की यात्राएँ करते हैं और यूरोप की राजनीतिक हलचल का गहन अध्ययन करते हैं।
नेताजी भाँप लेते हैं कि एक दूसरे विश्वयुद्ध की पटकथा यूरोप में लिखी जा रही है। वे इस ‘भावी’ विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के शत्रु देशों से हाथ मिलाकर देश को आजाद कराने के बारे में सोचते हैं।
एक स्थान पर नेताजी लिखते हैं:
"“विश्व में पिछले दो सौ वर्षों में आजादी पाने के लिए जितने भी संघर्ष हुए हैं, उन सबका मैंने गहन अध्ययन किया है, और पाया है कि एक भी ऐसा उदाहरण कहीं नहीं है, जहाँ आजादी बिना किसी बाहरी मदद के मिली हो।"”
जाहिर है, नेताजी की नजर में भारत को भी अपनी आजादी के लिए किसी और देश से मदद लेनी चाहिए। आखिर किस देश से?
नेताजी की पहली पसन्द हैं- स्तालिन, सोवियत संघ के राष्ट्रपति। नेताजी अनुभव करते हैं कि सोवियत संघ निकट भविष्य में ब्रिटिश साम्राज्यवाद को चुनौती देने वाला है। (वैसे भी, दोनों परम्परागत शत्रु थे।) उनका यह भी मानना है कि भारत को आजाद कराने के बाद सोवियत संघ भारत में पैर नहीं जमायेगा।
मगर नेताजी को सोवियत संघ जाने के लिए वीसा नहीं दिया जाता है। उन्हें ब्रिटेन भी नहीं जाने दिया जाता है।
यूरोप में ब्रिटिश सरकार ने कोई एक दर्जन जासूस नेताजी की निगरानी में लगा रखे हैं। नेताजी क्या खाते हैं, कहाँ जाते हैं, किन लोगों से मिलते हैं- हर खबर सरकार को मिल रही है।
1.2 (क) एमिली शेंकेल प्रसंग
यहाँ एमिली शेंकेल का जिक्र करना अनुचित नहीं होगा, हालाँकि यह नेताजी का व्यक्तिगत प्रसंग है।
1934 में नेताजी वियेना (ऑस्ट्रिया) में एमिली शेंकेल से मिलते हैं। दरअसल नेताजी को अपनी पुस्तक ‘द इण्डियन स्ट्रगल’ के लिए एक स्टेनोग्राफर की जरुरत है, जो अँग्रेजी जानती हो। इस प्रकार एमिली पहले नेताजी की स्टेनो, फिर सेक्रेटरी बनती है, और फिर दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं।
अपनी पुस्तक की भूमिका में नेताजी सिर्फ एमिली को ही नाम लेकर धन्यवाद देते हैं (दिनांक 29 नवम्बर 1934)। कई यात्राओं में एमिली नेताजी की हमसफर होती हैं।
26 दिसम्बर 1937 को- एमिली के जन्मदिन पर- नेताजी बैडगैस्टीन में उनसे विवाह करते हैं।
1938 में भारत लौटने के बाद से नेताजी एमिली को नियमित रुप से चिट्ठियाँ लिखते हैं। उनके 162 पत्रों का संकलन पुस्तक के रुप में प्रकाशित हुआ है। हालाँकि दक्षिण-पूर्व एशिया से लिखे गये उनके पत्र इनमें शामिल नहीं हैं- इन पत्रों को द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटिश अधिकारी जब्त कर लेते हैं- वियेना में एमिली के घर की तलाशी के दौरान। ये पत्र अब तक अज्ञात ही हैं।
1941-43 में जर्मनी प्रवास के दौरान नेताजी एमिली शेंकेल के साथ ही बर्लिन में रहते हैं।
1942 के अन्त में एमिली और नेताजी माता-पिता बनते हैं। वे अपनी बेटी का नाम अनिता रखते हैं।
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1944 की बरसात में, जब इम्फाल-कोहिमा युद्ध में हार निश्चित जान पड़ती है, तब नेताजी यह महसूस करते हैं वे शायद अब एमिली और अपनी नन्हीं बेटी से कभी न मिल पायें, क्योंकि अगले साल हार तय है और इस हार का मतलब है- उन्हें कहीं अज्ञातवास में जाना पड़ेगा, या जेल में रहना पड़ेगा, या फिर मृत्यु को गले लगाना पड़ेगा।
एक शाम, जब आसमान काले बादलों से घिरा है, वे एकान्त पाकर कैप्टन लक्ष्मी विश्वनाथन से कहते हैं, “यूरोप में मैंने कुछ ऐसा किया है, जिसे पता नहीं भारतवासी कभी समझ पायेंगे या नहीं।” उनका ईशारा एमिली की ओर है, कि पता नहीं भारतीय कभी उन्हें ‘नेताजी की पत्नी’ का दर्जा देंगे या नहीं।
कितना भी तो भारतीयों के लिए यह एक ‘गन्धर्व विवाह’ है।
लक्ष्मी कहती हैं, “जरूर समझेंगे।”
एमिली शेंकेल बोस तो खैर कभी भारत नहीं आतीं; मगर 1945 में नेहरूजी तथा नेताजी के परिवारजनों के प्रयासों से बाकायदे एक ट्रस्ट बनाकर एमिली को नियमित आर्थिक मदद दी जाती है, जिसके लिए एमिली नेहरूजी का आभार व्यक्त करती हैं।
एमिली शेंकेल बोस का निधन वर्ष 1996 में होता है।
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नेताजी की बेटी अनिता बोस बाद के दिनों में ऑग्सबर्ग विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका बनती हैं। जर्मन संसद में ग्रीन पार्टी के सदस्य मार्टिन पाफ(Martin Pfaff) से वे विवाह करती हैं और उनकी तीन सन्तानों- यानि नेताजी के नाती-नतनियों- के नाम होते हैं- थॉमस कृष्णा, माया कैरिना और पीटर अरूण।
अनिता बोस पहली बार 18 वर्ष की उम्र में 1960 में भारत आती हैं और फिर 2005-06 में 63 वर्ष की उम्र में दुबारा भारत आती हैं।
दोनों बार देश उन्हें ‘नेताजी की बेटी’ का सम्मान देता है।
आज हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सामुद्रिक इतिहास के प्राध्यापक सुगत बोस(Sugata Bose) नेताजी के पड़पोते- भतीजे के पुत्र- हैं।
http://nazehindsubhash.blogspot.com/2010/09/44.html यहाँ से नेताजी के होने , ना होने का विवादस्पद प्रश्न उठता है ... विवाद उनके लिए तो कत्तई नहीं है , जो सुभाष चन्द्र बोस के क़दमों में आस्था रखते थे . विरोधी तत्वों का भी ज़िक्र जयदीप जी ने खुले शब्दों में किया है . सच पूछा जाए तो इस ब्लॉग ने आज भी उनके होने की पुष्टि की है .
आखिर क्या हुआ होगा नेताजी का? इसे अच्छी तरह से जानने के लिए इस आलेख को पढ़ना ज़रूरी है - http://nazehindsubhash.blogspot.com/2010/10/51.html परिस्थितिजन्य साक्ष्यों तथा अनुमानों के आधार पर सभी सम्भावनाओं एवं विकल्पों का विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष के रुप में तो यही कहा जा सकता है कि नेताजी स्वामी शारदानन्द के रुप में देश में रह रहे थे। नेताजी के चेहरे के साथ स्वामी शारदानन्द के चेहरे की समानता भी इस निष्कर्ष की पुष्टि करती है, जैसा कि स्वामी शारदानन्द के उपलब्ध एकमात्र छायाचित्र से स्पष्ट है।
हमने अपने अन्दर जो निर्णय ले लिया है , उससे हम अलग होना नहीं चाहते , पर तथ्यों पर एक दृष्टि डालना तो अनुचित नहीं .
नेताजी के सपने को पूरा करना है...यह जयदीप जी का आह्वान है , एक समर्पित प्रयास !
निर्णय किसी पर थोपा नहीं जाता , पर आज उनके जन्मदिन पर हम इसे एक तोहफा मान लें और एक बार हम रंगमंच के पीछे भी देखें कि क्या था - इतना तो हम कर ही सकते हैं न ?
"तुम हमें खून दो, हम तुम्हें आज़ादी देंगे"
..... इसकी गूँज आज भी मद्धम नहीं हुई है - उसी गूँज को एक नायाब तोहफा हम सबकी तरफ से .
30 टिप्पणियाँ:
जयदीप शेखर जी से परिचय करवाने का आभार
बहुत ही प्रभावशाली लेखन है उनका...
नेताजी के जन्मदिवस पर आज बहुत ही भावभीनी श्रद्धांजलि उन्हें दी है आपने ! उनका जीवन सदैव रहस्यमय बना रहा ! लेकिन देश के इस प्रखर, ओजस्वी एवं सच्चे सपूत के योगदान को हम कभी भुला नहीं पायेंगे ! जयदीप शेखर जी के ब्लॉग के बारे में जानकार हार्दिक प्रसन्नता हुई ! उन्हें बहुत सी शुभकामनाएं !
रश्मिजी, कल नेताजी की सालगिरह है,ठीक उसके एक दिन पहले नेता जी के ऊपर य़ह लेख निकाल
कर आपने ज्ञानवर्धन किया है। जयदीप शेखर की इस लेखनी की प्रस्तति से उनकी ऱचनात्मकता का
परिचय मिलता है।जयदीप जी आप बधाई के पात्र हैं ।
ब्लॉग बहुत अच्छा है, और नेताजी के बारे में अधिक जानकारी मुहैया करवा रहे हैं
शुक्रिया रश्मि दी..
सार्थक जानकारी देने और नये ब्लॉग से परिचय करवाने के लिए आपका आभार..
सादर.
जानकारी के लिए धन्यवाद ,नेताजी दिल के करीब हैं..
kalamdaan.blogspot.com
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत आज भी अनसुलझी है.... :( बहुत अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद.... :)
जयदीप जी बधाई के पात्र हैं.... !!
अच्छा लगा जयदीप जी का परिचय पाकर...... आभार
महानायक नेताजी के जन्मदिन पर सादर नमन! मात्र 48 वर्ष के लघु-जीवन में एक सम्पूर्ण राष्ट्र पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाना उन जैसे युगपुरुष के लिये ही सम्भव था।
जयदीपजी को इतने सुन्दर आलेख के लिये आभार..
एक सुन्दर ब्लॉग से परिचय कराने का आभार!
"ब्लॉग बुलेटिन" के प्रति हार्दिक एवं विनम्र आभार. उन साथियों के प्रति भी हार्दिक आभार, जिन्होंने "नाज़-ए-हिन्द सुभाष" ब्लॉग के माध्यम से हमारे प्रिय नेताजी के बारे में कुछ नयी जानकारियों को हासिल किया. आईये, हम सब आज नेताजी को सलामी दें- "जय हिन्द!"
रश्मि दीदी आपका का बहुत बहुत आभार जो आपने जयदीप जी का और उनके इतने सार्थक ब्लॉग का परिचय सब से करवाया ... इसी को कहते है सार्थक ब्लोगिंग ... जयदीप जी को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आज 23 जनवरी है, भारत माँ के सपूत, आजादी के संघर्ष के महानायक, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्मदिन!
आईये, इस अवसर पर हम सब उन्हें सलामी दें-
"जय हिन्द!"
जयदीप जी का लेखन के प्रति प्रतिबद्धता प्रसंशनीय है, इनकी चर्चा विशेष रूप से मैं विगत वर्ष के विश्लेषण में कर चुका हूँ !
जयदीप शेखर जी से मिलवाने और नेता जी पर इतनी सामग्री उपलब्ध करवाने के लिये रश्मि जी आप बधाई की पात्र हैं…………आज के दिन का सबसे कीमती तोहफ़ा आपका इससे बढकर और क्या होगा।
dhanyawad... ek pratibhawav vyakti se milwane ke liye:)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!
जयदीप शेखर से परिचय करवाने के लिए आभार। वैसे इनकी एक पुस्तक ज्योतिपर्व प्रकाशन से प्रकाशित हो रही है। बधाई।
आज जयदीप जी से परिचय पाकर अच्छा लगा....
जय सुभाष
जय हिन्द.... सच माईने में अगर बोस, भगत सिंह, आज़ाद के रास्ते आज़ादी मिलती तो वह सच्ची आज़ादी होती....
आगाज़ अच्छा है अंजाम भी अच्छा होगा .अच्छी श्रृंखला शुरू की है .बधाई .हर दिन कुछ नया मिल रहा है ब्लॉग जगत से .
यदि भारत नेता जी के हिसाब से आज़ाद होता तो इस देश की तस्वीर ही कुछ और होती.
जयदीप शेखर जी को नमन जो उन्होंने अपने ब्लॉग के माध्यम से हमारे लिए नेता जी को आज भी जीवित रख रखा है...
नेताजी के जन्मदिवस पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि...
वाह ...बेहद खूबसूरत और सार्थक ब्लॉग और ब्लोगर से परिचय कराया. जयदीप शेखर जी की पोस्ट बहुत प्रभावी है और रोचक भी.काफी जानकारियाँ मिलीं.
बहुत बहुत आभार.
धन्यवाद रश्मि जी!!! क्या खूब मिलवाया!!!
जयदीप शेखर जी से परिचय करवाने का आभार !!
नेताजी के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ ही जयदीप जी के ब्लॉग से परिचय के लिए आभार !
प्रभावी और रोचक ढंग से अपनी बात कहने के लिए आभार
जयदीप जी से परिचय बहुत अच्छा लगा ...आपकी भावना और इस सार्थक प्रयास को नमन रश्मि दी ..........!!
जयदीप जी से परिचय बहुत अच्छा लगा ...आपकी भावना और इस सार्थक प्रयास को नमन रश्मि दी ..........!!
जय दीप जी से परिचय अच्छा लगा .. आभार
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को नमन
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!