“आलस्य हि मनुष्याणाम् शरीरस्थो महारिपुः”.. और इसी शत्रु ने बहुत दिनों से जकड रखा था मुझे. ब्लॉग बुलेटिन से जुड़े रहने के बावजूद भी, इतने दिनों तक कुछ लिखने का समय न निकाल पाया. शिवम बाबू ने कितनी बार प्यार और मनुहार से उलाहना भी दिया, लेकिन कभी कार्यालयीन व्यस्तता और कभी पारिवारिक झंझटों ने ऐसा उलझाए रखा कि बस सब छूट सा गया.
आज नए साल के शुभारंभ पर, जब सबेरे से फोन पर ब्लॉग मित्रों की बधाई का तांता लगा रहा तब लगा कि अपने आलस्य के कवच से बाहर निकालने का समय आ ही गया है. और रही सही कसर शिवम बाबू के फोन ने पूरी कर दी. अपने चिर-परिचित स्टाइल में बोल ही पड़े वो, “दादा! अब आप इसे मेरी गुस्ताखी कहें या जो भी, मगर बुलेटिन पर आपका ही आगमन नहीं हुआ है!” अब एक बार मौत का बुलावा हो तो टाल भी जाऊं, मगर छोटे भाई का आह्वान तो टालना असंभव है. सो लीजिए हाज़िर हैं हम इस साल का पहला बुलेटिन लेकर!!
गया साल तो गया गया... गया यानि फल्गु नदी के किनारे मोक्ष को प्राप्त हो गया. लेकिन जाते-जाते हम लोगों को कितना कुछ दे गया. आप कहेंगे बहुत कुछ ले भी तो गया. जैसे डॉ. अमर कुमार, हिमांशु मोहन जी और संध्या गुप्ता जी. पर जो ले गया उसका अफ़सोस तो देव साहब ने भी मनाने को मना किया है
बर्बादियों का सोग मनाना फ़िज़ूल था,
आबादियों का जश्न मनाता चला गया!
आइये, शुक्रिया अदा करें गुज़रे हुए साल का, जिसने हमें एक परिवार दिया, अपने परिवार से इतर एक परिवार. और दिल्ली से पीट्सबर्ग तक, बेंगलुरु से वेलिंग्टन तक, कोलकाता से बर्लिन तक “वसुधैव कुटुम्बकम” को स्थापित करते हुए एक सूत्र में पिरोया. इसे ब्लॉग-सूत्र के साथ-साथ, अपने देश की भाषा हिन्दी का सूत्र तो कह ही सकते है.
साल २०१२ में हमारे प्यार की यह खुशबू फैले और सारी फिजां में इस तरह बिखर जाए कि सारी कायनात झूम उठे. आप सभी के लिए सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की मंगलकामनाओं सहित, बस यही कहना है कि हमारा प्यार यूँ ही बना रहे
इक लफ्जे-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है,
सिमटे तो दिले आशिक, फैले तो ज़माना है!
मौसम की बुलेटिन कहती है कि आज कई शहरों में बारिश और ठण्ड ने भी जमकर और जमाकर सेलेब्रेट करना शुरू कर दिया है. कई लोगों के सेलेब्रेशन पर ओले पड़ गए हैं. कुछ लोग कंप्यूटर के दामन से निकलकर अपने फेमिली के आँचल तले जा छुपे हैं. आइये देखें आज की ब्लॉग-बुलेटिन क्या कहती है:
२. बस इतना सा ख्वाब है – अंजुरी भर सुख - महेंद्र वर्मा जी का शास्वत शिल्प!
३. इक्कीस का बारह – उलटा जुआ - उत्साही जी की गुल्लक
४. सलाम इस समर्पण को - अनुराग शर्मा जी ने बताया एक महिला का समर्पण
५. बैलेंस – शीट साल भर की - अर्चना चावजी जी ने दे डाली साल भर की लिंक
६. नए साल की एक नयी धारणा - संवेदना के स्वर का एक पहलू यह भी
७. नए शायर का जन्म – मनोज मसरूफ - मनोज कुमार जी के विचार पर एक नए शायर का जन्म
८. ऐसा होता कहाँ है - गिरिजेश राव जी ने जो कहा उसपर भी गौर फरमाएं
९. बारिश, ब्लॉग्गिंग, नया साल और पत्नी - बेचैन आत्मा पत्नी के आँचल तले
१०.विदाई बीतते साल की - अविनाश चंद्र जी की प्यारी सी कविता
आप आनंद लें और मुझे विदा दें! इस वादे के साथ कि फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया!!
- सलिल वर्मा
20 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छा आगाज़ हुआ नये साल का....
इक लफ्जे-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है,
सिमटे तो दिले आशिक, फैले तो ज़माना है!
बहुत खूब....
बहुत सुन्दर बुलेटिन्…………नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
आपका लिखा पढ़ने को तो हम भी उत्सुक रहते हैं।
हा हा हा ई आज बढियां काम किए मिसर जी ,जो आज आपको धर लाए , आप फ़ट से ससर जाते हैं , हाथवा आईबे नहीं करते हैं । चुनिंदा लिंक्स को सहेजने का सुख उठाने के लिए शुक्रिया अब चले पोस्टों पर । सभी दोस्तों , साथियों को बुलेटिनिया बटोही सबके तरफ़ से शुभकामना है जी
आगाज़ शानदार तो अंजाम की उड़ान देखते जाइये
न कोई बार बार नया आता है, न बार बार पुराना जाता है, रूप बदल जाता है और खुल जाता है नया खाता। वही सबको भरमाता है। नए बरस और बरसात की मंगलकामनाएं। अविनाश वाचस्पति
सलिल दादा ... रश्मि दीदी की बात पर गौर किया जाए ... बात में दम है ... ;-)
वैसे अजय भईया बहुत खुश है आज ... हे हे हे ... ;-)
बस ऐसे ही पूरे साल खुशियों का माहौल रहे यही दुआ करते है !
आपकी आँखों में सजे है जो भी सपने ,
और दिल में छुपी है जो भी अभिलाषाएं !
यह नया वर्ष उन्हें सच कर जाए ;
आप सब के लिए यही है हमारी शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया महराज... लीजिये अपने वादे के मुताबिक हम फिर से उपस्थित हो गए एक जनवरी से... हाजिरी रजिस्टर मे हमार नाम भी लिख लिया जाय...
सभी ब्लागर मित्रों को पद्म सिंह का राम राम और नववर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ...
ये लिजीये इतनी व्यस्तता के बीच भी बेलेंस शीट भरी और उस पर भी--- "दे डाली" ....फ़िर भी बुलेटिन है तो चुपचाप सुनना ही बेहतर है :-)
बहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।
नया हिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
इनमें से कुछ ब्लॉग पढ़ लिए थे...जो नहीं पढ़े उन पर अब जाना होगा।
ब्लॉग बुलेटिन का यह अंक प्यार का अहसास दे रहा है ठिठुरती ठंड में।
स्विट एण्ड डिलियस ...!
कहते हैं नए साल का स्वागत मिठाई के साथ हो तो साल भर मुंह मीठा रहता है। पर्टियां और सेलिब्रेशन तो बहुत जगह हुआ, देखा। यहां का जायका मिठाई वाला था।
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शिवम भाई, अब बड़े भाई आ गए हैं तो छोटों को तो अनुसरण करना ही पड़ेगा।
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क्या बात है नए साल में नए नए सरप्राइज ...वो भी इतने अच्छे अच्छे.
रश्मि जी की बात गौर करने से अधिक आदेश की तरह पालन करने जैसी है.. डरते हैं कि अपने रंग में आये तो ब्लॉग-बुलेटिन के स्थान पर कहीं बोर-बुलेटिन न हो जाए!!
अजय बाबू को त इतने कहेंगे कि हम कोनों गरई मछरी हैं जे ससर जायेंगे.. मोहब्बत की जाल से त कोनो मछरी ससर नहीं सकता है!! बस टाइमवे का अभाव हो जाता है!!
@ मनोज दादा ... समझ गए जी समझ गए ... ;-)
बढिया, बहुत सुंदर
क्या बात है। बहुत खूब!
तीन साल देरी से आये.... जो सजा मुकर्रर करोगे मंजूर होगी सलिल भाई!
तीन साल देरी से आये.... जो सजा मुकर्रर करोगे मंजूर होगी सलिल भाई!
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