नमस्कार साथियो,
आज, २३ मार्च भारतीय इतिहास
की क्रांतिकारी तारीख कही जा सकती है. आज के दिन उस अंग्रेजी सरकार ने, जिसने
समूचे देश में आतंक मचा रखा था, तीन युवाओं के प्रति भारतीय समाज का समर्पण देखकर सजा
के लिए निर्धारित तिथि से एक दिन पूर्व ही सजा दे दी थी. देश की आज़ादी के लिए अपनी
जान न्योछावर करने वाले असंख्य वीर क्रांतिकारियों में उन तीन युवाओं ने, जिनकी
उम्र २३-२४ वर्ष रही थी, आज ही आज़ादी के हवनकुंड में अपने प्राणों की आहुति दी थी.
ये तीन युवा किसी परिचय के मोहताज नहीं होंगे; भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के
क्रांतिकारी कदमों की देशवासियों को जानकारी होगी, ऐसी अपेक्षा की जा सकती है. आज जानकारी
के अभाव में इन तीनों युवाओं या कहें कि विशेष रूप से भगत सिंह को बम, बन्दूक,
रिवाल्वर का पर्याय बना दिया गया है. उनके विचारों को विशेष-विचारधारा की चादर
ओढ़ाकर उन्हें कभी कामरेड, कभी मार्क्सवादी, कभी समाजवादी बनाया जाने लगता है. उनके
आलेख विशेष का सन्दर्भ लेते हुए उन्हें ईश्वरीय-सत्ता विरोधी, नास्तिक बताये जाने
की कवायद चलती रहती है. ऐसे लोगों के लिए आज का दिन सर्वाधिक उपयुक्त होता है,
जबकि वे इन तीनों क्रांतिकारियों को याद करते हुए अपनी विचारधारा से इतर लोगों को
कोसने का काम करने लग जाते हैं.
कई बार मन में विचार आता है कि
आखिर ऐसा क्या चला होगा उस समय के युवाओं के मन में जो वे अपने प्राणों की परवाह न
करते हुए तत्कालीन सरकार के खिलाफ खड़े हो गए थे? क्या इनके मन में कभी भी एक पल को
अपनी मौत का, अंग्रेजी शासन के अत्याचारों का खौफ नहीं जागा होगा? ऐसा विचार इसलिए
भी आता है कि आखिर २३-२४ वर्ष की उम्र होती ही कितनी है. आज इतने वर्ष का युवा
अपने कैरियर के बारे में सोच रहा होता है. उसे न तो अपने परिवार की समस्याओं को
दूर करने की फ़िक्र होती है और न ही उसे समाज की समस्याओं की तरफ ध्यान देने की
फुर्सत होती है. क्या उस समय उन युवाओं के मन में अपने कैरियर, अपने परिवार, अपने
भविष्य के प्रति कोई मोह नहीं जागा होगा? ऐसी कौन सी शक्ति इनके अन्दर उत्पन्न हो
गई होगी जिससे ये शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंकने की हिम्मत जुटा सके थे?
ऐसी कौन सी शिक्षा इनको मिली थी जो महज दो दशक के जीवन में वैचारिकी का उत्कृष्ट
उदाहरण सम्पूर्ण देश के लिए ये लोग छोड़ गए? युवा तो आज भी हैं. शिक्षा-व्यवस्था आज
तत्कालीन समाज से बेहतर है. अव्यवस्थाएँ तो आज भी बनी हुई हैं. प्रशासनिक निरंकुशता,
सरकारी अव्यवस्था तो आज भी दिखाई देती है. फिर आज का युवा इनके खिलाफ विद्रोह का
बिगुल क्यों नहीं फूंक पाती है? आज का युवा अपने कैरियर का मोह त्याग कर क्यों
नहीं सरकार के खिलाफ आन्दोलन खड़ा करता है?
जब-जब भी इन सवालों के जवाब
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु आदि के इंकलाब के सापेक्ष खोजने का काम किया जाता है तो
लगता है कि इनकी वैचारिकी के प्रचार के स्थान पर इनके उस बम को ज्यादा प्रचारित
किया गया है जिसे फेंकने के समय उछाले गए पर्चों का पहला ही वाक्य था कि बहरों को
सुनाने के लिये विस्फोट के बहुत ऊँचे शब्द की आवश्यकता होती है. उनकी क्रांति
को सीधे-सीधे बन्दूक से, हत्या से, धमाके से जोड़ दिया गया है. उनके इंकलाब
जिंदाबाद को विशुद्ध रूप से अराजकता का द्योतक बताया जाने लगा है. ऐसे में जबकि
हमारे ही देश में हमारे देश के इन क्रांतिकारी युवाओं के बारे में संकुचित मानसिकता
के साथ जानकारी दी जा रही हो तो कैसे अपेक्षा की जाये कि आज का युवा किसी
अव्यवस्था के खिलाफ, किसी अराजकता के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. देखा जाये तो आज
भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, आतंकवाद, नक्सलवाद, सामाजिक अपराध, राजनैतिक अपराध,
लूटमार, हत्याएँ, हिंसा, जातिगत विभेग, लिंगभेद आदि ऐसी स्थितियाँ हैं जो भले ही विदेशी
शासन न हों पर विदेशी शासन जैसी दिखती हैं. इसके बाद भी आज का समाज, विशेष रूप से
युवा इनके प्रति अनभिज्ञ बना हुआ अपने आपमें ही खोया हुआ है. उसके लिए उसके आसपास
की दुनिया ही उसका अपना देश है. उसके लिए अपना कैरियर ही उसकी आज़ादी है.
ऐसी विद्रूप स्थितियों में हम
शहीदी दिवस मनाने की औपचारिकता का निर्वहन कर लेते हैं. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
की प्रतिमाओं, चित्रों पर माल्यार्पण कर लेते हैं. उनके बारे में चलन में बनी
सामान्य सी जानकारी को चंद लोगों के बीच गोष्ठी रूप में बार-बार प्रसारित करते
रहते हैं. भगवा और लाल रंग का विभेद कर देश के लिए प्राण न्योछावर कर देने वाले
युवाओं का भी बंटवारा कर लेते हैं. इन सबके बीच कभी किसी ने विचार करने का प्रयास
किया है कि उस दिन असेम्बली में बम फेंकने की घटना के समय भगत सिंह के साथ
राजगुरु, सुखदेव तो थे नहीं फिर इन दोनों वीरों को भगत सिंह के साथ फाँसी क्यों?
उस दिन भगत सिंह के साथ एक अन्य युवक जो साथ था, उन बटुकेश्वर दत्त को आज कौन याद
कर रहा है? उस वीर नौजवान के साथ क्या हुआ? आज भले ही शहीद भगत सिंह अपने अन्य
साथियों के सापेक्ष बहुत बड़े कद के दिखाई देते हों पर हम सभी का कर्तव्य है कि देश
के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देने वालों के चित्र यदि एकसाथ रखे हों तो हम सबको
पहचान सकें. इनके विचारों को किसी विचारधारा विशेष के खाँचे में बाँधकर प्रसारित न
करें. आने वाली पीढ़ी को समझाएं कि आज वे जिस आज़ाद हवा-पानी में अपना जीवन गुजार
रहे हैं वह ऐसे युवाओं के कारण संभव है. आज की पीढ़ी को बताना होगा कि भगत सिंह
सहित अन्य युवा क्रांतिकारी हिंसा का, बन्दूक का, बम का पर्याय नहीं हैं. ऐसे वीर
युवकों के विचारों की सान पर आज की पीढ़ी को तैयार करना होगा ताकि वह भी आज के
समस्यारुपी शासकों के खिलाफ बिगुल फूंक सके.
यदि हम सब मिलकर खुद जाग
सकें, आज की पीढ़ी को जगा सकें, आने वाली पीढ़ी को इन वीरों के बारे में समझा सकें,
इन सबकी पहचान करवा सकें तो भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु सहित अनेकानेक ज्ञात-अज्ञात
वीरों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
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2 टिप्पणियाँ:
नमन उन युवाओं को। आज के युवा उन युवाओं की जय जय तो करते हैं।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
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