नमस्कार
साथियों,
इन
दिनों मलयालम पत्रिका गृहलक्ष्मी के कवर पर बच्चे को स्तनपान कराती मॉडल गीलू
जोसेफ और पत्रिका चर्चा में है. इसके खिलाफ वहां के एक वकील विनाद मैथ्यू ने महिलाओं
के अश्लील चित्रण (रोकथाम) अधिनियम 1986 का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए कोल्लम
सीजेएम कोर्ट में सेक्शन 3 और 4 के तहत केस दर्ज कराया है. गृहलक्ष्मी के संपादक ने
सफाई देते हुए कहा है कि पत्रिका माताओं की सार्वजनिक जगहों पर स्तनपान कराने की जरूरत
के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहती है. कवर पेज पर इस तस्वीर के साथ लिखा गया है
कि माँयें केरल से कह रही हैं, घूरो मत,
हम स्तनपान कराना चाहती हैं.
वास्तविकता क्या है ये तो वह मॉडल जाने और उस पत्रिका का सम्पादक पर स्तनपान कराते
हुए फोटो ने सोशल मीडिया में सनसनी फैला रखी है. अब सोशल मीडिया में बहस छिड़ी हुई
है. कुछ लोग इस फोटो को सही बता रहे थे तो कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति जताते हुए विरोध
दर्ज कराया है.
किसी
भी स्थिति के एक सिक्के की तरह दो पहलू हो सकते हैं, दो से ज्यादा भी. ऐसे में
समझने वाली आवश्यकता इसकी है कि किसी भी स्थिति से वास्तविक निष्कर्ष क्या निकल
रहा है. इस सन्दर्भ में एक कहानी याद आती है. आज वही आपके सामने.
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एक
बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे. अपने खाने भर का सामान लिया और वहीं खाने बैठ गये.
इतने में कवि महोदय ने देखा कि एक कौआ बार-बार दही के बर्तन में चोंच मारने की
कोशिश कर रहा है. कौए की इस हरकत पर हलवाई को बहुत गुस्सा आया. बार-बार कौए को
भगाते रहने के बाद भी जब कौआ न माना तो हलवाई ने एक पत्थर उठा कर कौए को दे मारा. पत्थर
सीधा कौए को लगा और वो मर गया.
इस
घटना को देख कवि का हृदय संवेदित हो उठा. अपना भोजन निपटाने के बाद जब वो पानी पीने
पहुंचे तो कोयले के टुकड़े से वहाँ बनी दीवार पर एक पंक्ति लिख दी -
काग दही पर जान गँवायो
कुछ
देर में वहाँ से एक लेखपाल का निकलना हुआ. वह कागजों में हेराफेरी के आरोप में निलम्बित
चल रहा था. दुकान पर रुककर पानी पीने के दौरान उस लेखपाल की निगाह कवि की लिखी पंक्ति
पर पड़ी तो उसे वह पंक्ति अपने से जुड़ी नजर आई और उस पंक्ति को लेखपाल ने अपने
हिसाब से कुछ ऐसे बना दिया -
कागद ही पर जान गँवायो
उसके
जाने के बाद एक आशिक मिजाज लड़का निराश सा वहाँ पानी पीने रुका. उस पंक्ति को पढ़कर
लड़के को उसमें अपनी स्थिति की अनुभूति हुई. इसी अनुभूति में उसने उस पंक्ति में
संशोधन कर कुछ ऐसे बना दिया -
का गदही पर जान गँवायो
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सीधी
सी बात है, एक पंक्ति, एक ही जैसे शब्द किन्तु सबने अपने-अपने हिसाब से, अपनी-अपनी
प्रकृति के हिसाब से उस पंक्ति को पढ़ा और अर्थ निकाला. आजकल ऐसा ही कुछ हो रहा है.
आज किसी भी बात को अपने हिसाब से, अपनी दृष्टि से देखकर उसको सही, गलत बनाया जा
रहा है. खैर, जब तक समाज है, तब तक ये सब भी चलता रहेगा. आइये, हम सब अपनी-अपनी
दृष्टि से आज की बुलेटिन का आनंद लें.
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5 टिप्पणियाँ:
मेरी रचना ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद,सेंगर जी।
सबकी अपनी-अपनी सोच..... मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार। देर से आने के लिए माफी चाहती हूँ।
सादर
सही बात....
हर मुद्दे पर अपना खुद का दृष्टिकोण होना स्वाभाविक है ।
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