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मंगलवार, 13 मार्च 2018

प्रतिज्ञा पूरी करने का अमर दिवस : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
आज, १३ मार्च को विश्व स्तर पर अनेक ऐतिहासिक घटनाएँ घटित हुई होंगी. कई व्यक्ति जन्मे होंगे और कई इस संसार को अलविदा कह गए होंगे. इन सबसे इतर आज का दिन कुछ मायनों में विशेष महत्त्व का है. आज का दिन अमर शहीद क्रांतिकारी ऊधम सिंह से जुड़ा हुआ है. जी हाँ, आप सब एकदम सही सोच रहे हैं. आज न तो उनका जन्मदिन है और न ही उनकी पुण्यतिथि है. इसके बाद भी आज का दिन ऊधम सिंह को याद करने का दिन है. आज के दिन यानि कि १३ मार्च १९४० को ऊधम सिंह ने जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के आरोपी और हत्याकांड के समय पंजाब प्रांत के गवर्नर माइकल ओडवायर को मौत के घाट उतारकर उस जघन्य हत्याकांड का बदला लिया था. २६ दिसम्बर १८९९ को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में जन्मे ऊधम सिंह के बचपन में ही माता-पिता का देहांत हो गया था. इस कारण उनका और बड़े भाई का बचपन अनाथालय में गुजरा. यहाँ बड़े भाई का निधन होने के बाद सन १९१९ में ऊधम सिंह अनाथालय छोड़ क्रांतिकारियों के साथ आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए.


१३ अप्रैल १९१९ का जालियाँवाला बाग नरसंहार उनकी आँखों के सामने हुआ था. उन्होंने बाग की मिट्टी हाथ में लेकर इस हत्याकांड का बदला लेने की प्रतिज्ञा ली. डायर पद से हटने के कारण वापस लौट गया. इस बीच अपने मिशन को अंजाम देने के लिए ऊधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की. सन १९३४ में ऊधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां ९ एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे. अपना मिशन पूरा करने के लिए उन्होंने छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर खरीदी. अब वे बस उचित समय का इंतजार करने लगे. ऊधम सिंह को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का अवसर सन १९४० में मिला. जलियांवाला बाग हत्याकांड के २१ साल बाद १३ मार्च १९४० को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओडवायर भी एक वक्ता था. ऊधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए. उन्होंने एक मोटी किताब में अपनी रिवॉल्वर छिपा ली. मौका देखकर ऊधम सिंह ने ओडवायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां माइकल ओडवायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई. ऊधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी. उन पर मुकदमा चला और ४ जून १९४० को ऊधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराते हुए ३१ जुलाई १९४० को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.

ऐसे निर्भीक, वीर क्रांतिकारी को नमन, जो हजारों निर्दोषों की मौत का बदला लेने के लिए अपनी जान देने से न डरा.

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4 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नमन है उद्धम सिंह को ... ऐसे वीर कम ही होते हैं ...
आभार मुझे आज स्थान देने के लिए ...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

अमर शहीद ऊधम सिंह जी को सादर नमन |

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
अमर शहीद ऊधम सिंह जी को सादर नमन !

Meena sharma ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। इन क्रांतिकारियों को भूलने लगी है आजाद भारत की जनता ! अमर शहीद ऊधमसिंह की जानकारी साझा करने हेतु सादर आभार ।

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