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रविवार, 1 जुलाई 2018

लिखे की यात्रा ... 3




डॉ कहते हैं, वक़्त पर सो जाइये, 
... 
क्या कहूँ,
वक़्त पर ही यात्रा शुरू होती है, 
प्यास की तीव्रता 
कोई प्यासा ही समझ सकता है,
पत्तों की साँसें भी सुन लेना चाहती हूँ  ...


Abhivyakti | अभिव्यक्ति – जो महसूस किया ... - WordPress.com

मंजु मिश्रा  


ख्वाहिशें - Abhivyakti - WordPress.com

१.
ख्वाहिशें 
परिंदो सी हैं 
छोटी छोटी 
खुशियों की खोज में 
यहाँ वहां उड़ती फिरती हैं  
२.
कितनी ख्वाहिशों ने
दम तोड़े होंगे
तब कहीं जा कर
यह तजुर्बे की चाँदी चढ़ी है
बाल धूप में नहीं पकते 
३.
अल्लाह !  
ये ख्वाहिशों की उड़ान
कहीं, दम ही न ले ले
ख़ुदा ही जाने,
ये निगोड़े पाँव 
कहाँ तक साथ देंगे
४. 
मेरी ख्वाहिशों ने
रिश्ते जोड़ लिए आसमानों से
उगा लिए हैं पंख
और उड़ने लगी हैं हवाओं में


कुछ नयी पुरानी क्षणिकायें

1
चुटकी भर धूप 
मुट्ठी भर सपने 
थोड़ी सी ख़ुशी 
दो चार अपने 
बस बीज देंगे 
जीवन की धरती 
फिर उगेंगी 
मुस्काने ही मुस्काने 
हमारे आँगन में 
तुम भी आना 
मिल के हँसेंगे 
2
जीने का क़र्ज़ 
उधड़ते हुये 
रिश्तों को ढांप-ढूंप 
दुनिया की नज़रों से बचाकर 
कब तक 
रफू करे कोई …..
3
जीना 
अगर तरीके से हो
एक सलीके से हो , 
तो ठीक !
वरना कब तक 
जीने का क़र्ज़ 
अदा करे कोई …..
4
सन्नाटे का जादू
चाँद पहरे पर है 
और चांदनी … मुस्तैद 
यादें भी 
यहाँ वहाँ लटकी हुयी 
दिल के दरख़्त पे,
मानों.. किसी केइंतज़ार में 
मगर सब गुपचुप 
जैसे डर हो कि
जरा सी आहट से 
कहीं रात का 
सन्नाटे का जादू 
टूट न जाये
5
उजाले की पैठ
उजाले की पैठ 
देशों की सीमायें 
नहीं देखती 
जाति या धर्म भी 
नहीं देखती 
वो तो बस 
अँधेरा देखती है 
और हर घर को 
रोशन करती है 
अपना धर्म समझ कर !!
6
कुछ तो लोग कहेंगे
कुछ तो लोग कहेंगे ही ….
कहने दो उन्हें 
जो कुछ कहते हैं
तुम उनसे…
हजार गुना बेहतर हो
जो दूसरों के कन्धों को
सीढ़ी बनाकर
ऊपर चढ़ते हैं
और फिर
सीना तान कर
खुद को पर्वत समझते हैं
7
जीवन में 
जाने कितने प्रश्नचिन्ह
जिन्हें  हम 
या तो जान कर 
या अनजाने में 
बस 
यूँ ही छोड़ देते हैं
और पूरी ज़िंदगी 
उन के इर्द गिर्द जीते हैं….
8
चाँदनी 
तारों के बटन 
लिये हाथ में 
ढूँढती रही रात भर कुर्ता 
चाँद की नाप का 
9
सांसों का ख़त,
था खुशबू के नाम
आ…
जिन्दगी महका दे !
10
रिश्ते,
बुनी हुयी चादर
एक धागा टूटा
बस उधड़ गए
11
हँसी को 
चलना सिखाओ
होठों से आँखों तक 
तभी तो 
ज़िंदगी हसेंगी
 12
आजमाइशें 
आजमाइशें  न हों,
 तो, इंसान का 
खरापन…
नज़र नहीं आता 
वैसे, ठीक भी है
इसी बहाने इंसान
खुद को भी परख लेता है
और अपने पावों तले की
जमीन  भी….
13

अल्फाज़ की तासीर
कभी अल्फाज़ की तासीर
परख कर देखो
इनमे 
कमाल की कुव्वत  है
ये चाहें तो
दुनिया बदल दें 
बस पल भर में
14
हम, आप, 
सब चाहते हैं,
कि 
सब कुछ, बदल दें 
सब सुधार दें 
बस, 
खुद को छोड़ कर   
और.. 
यही  एक पेंच,  
परिवर्तन का पहिया 
चलने नहीं देता


4 टिप्पणियाँ:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग
रामराम

yashoda Agrawal ने कहा…

बेहतरीन
दोनो दीदी को नमन
सादर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह । सुन्दर प्रस्तुति।

Manju Mishra ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि जी ! अापके इस स्नेह से अभिभूत हूँ । अापने अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरी रचनाओं को पढ़ा, चयन किया और बुलेटिन ब्लॅाग के पाठकों तक पहुँचाया, अापका हार्दिक अाभार

सादर
मंजु

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