नमस्कार
साथियो,
आज
की बुलेटिन अपनी एक लघुकथा के साथ. कृपया दोनों का आप आनंद लें.
सादर....
++
मात्र
दस वर्ष की उम्र में मछली की तरह तैरते हुए उसने जैसे ही अंतिम बिन्दु को छुआ वैसे
ही वह तैराकी का रिकॉर्ड बना चुकी थी। स्वीमिंग पूल से बाहर आते ही उसको साथियों ने,
परिचितों ने, मीडियाकर्मियों ने घेर लिया। सभी
उसे बधाई देने में लगे थे। उसके चेहरे पर अपार प्रसन्नता दिख रही थी। इस भीड़भाड़,
गहमागहमी के बीच पत्रकारों ने तैराकी, प्रशिक्षक,
सफलता का श्रेय किसे जैसे सवालों को दागना शुरू कर दिया।
कैमरों
के चमकते फ्लैश के बीच दमकते चेहरे के साथ पूरे आत्मविश्वास से उसने कहा-पिछले
कई दशकों से पैदा होते ही कभी नदी, कभी नाले,
कभी तालाब, कभी फ्लश में बहाये जाने ने तैरना बखूबी
सिखाया है। उनके बार-बार बहाये जाने के अहंकार और मेरे बार-बार पैदा होने की जिद ने
इसे दृढ़ता प्रदान की है।
उसका
जवाब सुनकर भीड़ खामोश थी, गहमागहमी थम गई थी, कैमरे के फ्लैश चमकना भूल गये थे। लोगों को पानी से भीगे उसके चेहरे पर आंसुओं
की धार अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी।
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7 टिप्पणियाँ:
शुभ संध्या राजा साहब
बेहतरीन बुलेटिन
आभार अच्छी रचनाएँ पढ़वाई आपने
सादर
सुन्दर लघुकथा आईना दिखाते हुऐ। सुन्दर प्रस्तुति।
बेहतरीन बुलेटिन....मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
शुक्रिया और आभार आपका !
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
कटु यतार्थ बतलाती लघुकथा। मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, सेंगर जी।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
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