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शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

टूथपेस्ट, गैस सिलेंडर और हम भारतीय

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम |

वो हम भारतीयों का बस नहीं चलता वरना टूथपेस्ट की तरह;
गैस सिलेंडर को तोड़ मरोड़ के बची कूची गैस भी निकाल लें। 

सादर आपका
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नामकरण

चाँद और बारिश

जिंदगी - मुक्तक

नवम्बर ड्राफ़्ट्स

आन

समाजवाद और धर्म - व्लादिमीर इल्चीच लेनिन

और जो बदल गया 

पुरुष/स्त्री

ब्लैक फ्राइडे, अजीब से नाम वाला एक खरीददारी दिवस

सावधान पार्थ! सर संधान करो

कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

7 टिप्पणियाँ:

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

किसने कहा कि टूथपेस्ट की तरह गैस का आख़री ग्राम तक नहीं निकला जा सकता?
हमारे एक मित्र थे. गैस का सिलेंडर जब गैस के चूल्हे में काम करना बंद कर देता था तो वो उसको चूल्हे से अलग कर के गरम पानी के एक बड़े भगौने में आधे घंटे के लिए रख देते थे और यकीन मानिए, उनका यही सिलेंडर कम से कम दो-चार घंटे और अपनी सेवाएँ दे देता था.

Sweta sinha ने कहा…

बहुत अच्छी रचनाएँ है सारी । उम्दा बुलेटिन।

Digvijay Agrawal ने कहा…

बेहतरीन बुलेटिन
सादर..

Asha Lata Saxena ने कहा…

उम्दा बुलेटिन |मेरी रचना की लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद |

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अनवरत को स्थान देने के लिए आभार!

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