प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
एक बार बैंक मैनेजर अपने बीवी बच्चों के साथ होटल में गये।
बैंक मैनेजर: खाने में क्या क्या है?
वेटर: जी मलाई कोफ्ता, मटर पनीर, कढ़ाई पनीर, दम आलू, मिक्स वैज, आलू गोभी।
बैंक मैनेजर: मटर पनीर और रोटी दे दो। दाल कौन कौन सी है?
वेटर: दाल फ्राइ, दाल तड़का, मूंग की दाल और मिक्स पंचरत्न दाल।
बैंक मैनेजर: 1 फुल दाल फ्राई दे दो।
वेटर: सर पापड़ ड्रॉइ दूँ या फ्राई?
बैंक मैनेजर: फ्राई।
वेटर (बड़ी शालीनता से): सर मिनरल वाटर ला दूँ।
बैंक मैनेजर: हाँ ला दे।
वेटर: सर आपका आर्डर हुआ है - मटर पनीर, रोटी, दाल फ्राई, फ्राई पापड़ और 1 मिनरल वाटर।
बैंक मैनजर: हाँ भाई, फटाफट लगा दे।
वेटर: लेकिन सब कुछ खत्म हो चुका है अभी कुछ नहीं है।
बैंक मैनजर (विनम्रता सेे): तो महाराज आप इतनी देर से बक-बक क्यों कर रहे थे? पहले ही बता देते।
वेटर: बैंक मैनेजर साहब, मैं रोज एटीएम जाता हूँ। वो एटीएम मुझसे पिन कोड, Saving/Current Account, Amount, Receipt सब कुछ पूछता है और लास्ट में बोलता है "No Cash"। अब समझ में आया मुझे उस टाइम कैसा लगता है?
बैंक मैनेजर बेहोश!
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
प्रणाम |
चित्र गूगल से साभार |
बैंक मैनेजर: खाने में क्या क्या है?
वेटर: जी मलाई कोफ्ता, मटर पनीर, कढ़ाई पनीर, दम आलू, मिक्स वैज, आलू गोभी।
बैंक मैनेजर: मटर पनीर और रोटी दे दो। दाल कौन कौन सी है?
वेटर: दाल फ्राइ, दाल तड़का, मूंग की दाल और मिक्स पंचरत्न दाल।
बैंक मैनेजर: 1 फुल दाल फ्राई दे दो।
वेटर: सर पापड़ ड्रॉइ दूँ या फ्राई?
बैंक मैनेजर: फ्राई।
वेटर (बड़ी शालीनता से): सर मिनरल वाटर ला दूँ।
बैंक मैनेजर: हाँ ला दे।
वेटर: सर आपका आर्डर हुआ है - मटर पनीर, रोटी, दाल फ्राई, फ्राई पापड़ और 1 मिनरल वाटर।
बैंक मैनजर: हाँ भाई, फटाफट लगा दे।
वेटर: लेकिन सब कुछ खत्म हो चुका है अभी कुछ नहीं है।
बैंक मैनजर (विनम्रता सेे): तो महाराज आप इतनी देर से बक-बक क्यों कर रहे थे? पहले ही बता देते।
वेटर: बैंक मैनेजर साहब, मैं रोज एटीएम जाता हूँ। वो एटीएम मुझसे पिन कोड, Saving/Current Account, Amount, Receipt सब कुछ पूछता है और लास्ट में बोलता है "No Cash"। अब समझ में आया मुझे उस टाइम कैसा लगता है?
बैंक मैनेजर बेहोश!
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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लिखा हुआ रंगीन भी होता है रंगहीन भी होता है बस देखने वाली आँखों को पता होता है
रात भर खिलखिलाती रही चांदनी
टिकट कटे नेता का परकाया प्रवेश !
उल्झन
डॉ रमेश यादव की कविताएं
समानता के नाम पर परम्पराओं पर प्रहार की कोशिश
मरना है तो,मरो सड़क पर मगर आज हों, ब्रेक बैरियर ! -सतीश सक्सेना
बाज़ार ना हों तो भावनाएँ सूख जाएं
३३२. नाविक से
खुद लिखती है लेखनी
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम....
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अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
12 टिप्पणियाँ:
सटीक। ए टी एम में जाकर पैसे निकाल कर ले आना तो अब गर्व की बात होने लगी है। पर किसे फर्क पड़ता है लोगों के घर में शायद नोट छप जाते हैं उनकी जरूरतोंं के :) बढ़िया प्रस्तुति। आभार 'उलूक' की वर्णान्धता को आज के बुलेटिन में जगह देने के लिये शिवम जी ।
जय जय हो।
बैंक मेनेजर के साथ जो व्यवहार उस वेटर ने किया था, वही हमको अपने फेंकू और हांकू नेताओं के साथ करना चाहिए. कभी उनको खाने में सिर्फ़ चम्मच और कटोरियाँ पेश कर के तो कभी बिना पानी वाले बाथरूम में उनके नहाने की व्यवस्था करके और सबसे ऊपर - उनके अंग-रक्षकों को टॉयगन्स उपलब्ध कराके.
बहुत खूब आदरणीय... सच कहा !!👌
रोचकता से भरपूर भूमिका और बेहतरीन लिंक्स से सजा अंक ।
बेहतरीन लिंक , आभार आपका !
बहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर प्रसंग, जब अपने पर बीतती है तभी अच्छे से पता चलता है
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
बहुत बहुत आभार
हा हा। सही है। आखिर वेटर ने बदला ले ही लिया। सुरुचिपूर्ण लिंक्स।
आप सब का बहुत बहुत आभार |
बढ़िया।
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