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बुधवार, 14 नवंबर 2018

काहे का बाल दिवस ??

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
चित्र गूगल से साभार

आजादी के सात दशक से अधिक समय गुजरने के बावजूद आज भी देश में सबके लिए शिक्षा एक सपना ही बना हुआ है। देश में भले ही शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने की कवायद जारी है, लेकिन देश की बड़ी आबादी के गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने के मद्देनजर सभी लोगों को साक्षर बनाना अभी भी चुनौती बनी हुई है।
सरकार ने  छह से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा प्रदान करने का कानून बनाया है, लेकिन शिक्षाविदों ने इसकी सफलता पर संदेह व्यक्त किया है क्योंकि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जद्दोजहद में लगा हुआ है। 

गरीब परिवार में लोग कमाने को शिक्षा से ज्यादा तरजीह देते हैं। उनकी नजर में शिक्षा नहीं बल्कि श्रम कमाई का जरिया है।  ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के जीवनस्तर में सुधार किए बिना शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी नीति या योजना कारगर नहीं हो सकती है बल्कि यह संपन्न वर्ग का साधन बन कर रह जाएगी। आदिवासी बहुल क्षेत्र में नक्सलियों का प्रसार इसकी एक प्रमुख वजह है। सरकार के प्रयासों के बावजूद प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। इनमें बालिका शिक्षा की स्थिति गंभीर है।
विश्व बैंक की रपट में भारत में माध्यमिक शिक्षा की उपेक्षा किए जाने पर जोर देते हुए कहा गया है कि इस क्षेत्र में हाल के वर्षो में निवेश में लगातार गिरावट देखने को मिली है। 

भारत में माध्यमिक शिक्षा पर विश्व बैंक रपट में माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में निवेश में गिरावट का उल्लेख किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले खर्च का जहां प्राथमिक शिक्षा पर 52 प्रतिशत निवेश होता है वहीं दक्ष मानव संसाधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में कुल खर्च का 30 प्रतिशत ही निवेश होता है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के कुल खर्च का 18 प्रतिशत हिस्सा आता है। 

भारत में माध्यमिक स्तर पर 14 से 18 वर्ष के बच्चों का कुल नामांकन प्रतिशत 40 फीसदी दर्ज किया गया जो पूर्वी एशिया और लैटिन अमेरिका में वैश्विक प्रतिद्वन्दि्वयों के कुल नामांकन अनुपात से काफी कम है। भारत से कम प्रति व्यक्ति आय वाले वियतनाम एवं बांग्लादेश जैसे देशों में भी माध्यमिक स्तर पर नामांकन दर अधिक है।
उच्च शिक्षा की स्थिति भी उत्साहव‌र्द्धक नहीं है। फिक्की की ताजा रपट में कहा गया है कि महत्वपूर्ण विकास के बावजूद भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में कई तरह की खामियां हैं जो भविष्य की उम्मीदों के समक्ष चुनौती बन कर खड़ी है। रपट के अनुसार इन चुनौतियों में प्रमुख उच्च शिक्षा के वित्त पोषण की व्यवस्था, आईसीटी का उपयोग, अनुसंधान, दक्षता उन्नयन और प्रक्रिया के नियमन से जुड़ी हुई है। 

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन दर की खराब स्थिति को स्वीकार करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि स्कूल जाने वाले 22 करोड़ बच्चों में केवल 2.6 करोड़ बच्चे कालेजों में नामांकन कराते हैं। इस तरह से 19.4 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

सरकार का लक्ष्य उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर को 12 प्रतिशत से बढ़ा कर 2020 तक 30 प्रतिशत करने का है। इन प्रयासों के बावजूद 6।6 करोड़ छात्र ही कालेज स्तर में नामांकन करा पाएंगे, जबकि 15 करोड़ बच्चे कालेज स्तर पर नामांकन नहीं जा पाएंगे।

चित्र गूगल से साभार
ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि देश में शिक्षा की इस स्थिति देखते हुए बाल दिवस मानना कितना सार्थक है !?

जब आज भी हम इन बच्चो को वह माहौल नहीं दे पाये जब यह दो वक्त की रोटी की चिंता त्याग शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर पाए ! 'बाल दिवस' केवल मौज मस्ती के लिए तो नहीं था ........इसका मूल उद्देश तो हर बच्चे तक सब सरकारी सुविधाओ को पहुँचाना था .......कहाँ हो पाया यह आज़ादी के ७१ साल बाद भी !!

सादर आपका

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चर्चा प्लस ... बाल दिवस विशेष : क्या उपहार दे रहे हैं हम अपने बच्चों को ? - डॉ. शरद सिंह

बचपन के दिन

तरसता बचपन

बाल दिवस

मुख्तार सिंह का नाम सुना है तुमने?

बाल दिवस और बाल श्रम

बळिहारी उण देस री, माथा मोल बिकाय ।

तुम्हारे शक्ल जैसी एक लड़की रोज मिलती है

उपवास

"माहिया"

हम हरपल हैं खोए

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

10 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बाल दिवस मंगलमय होवे ऐसा कुछ होवे। सही और सटीक प्रस्तुति।

Meena Bhardwaj ने कहा…

बाल दिवस के वास्तविक स्वरूप और उद्देश्य पर बहुत अच्छा प्रकाश डालता खोजपूर्ण लेख । वास्तव मे इसका लक्ष्य बालकोंं का सर्वागींण विकास होना चाहिये । सदैव की तरह उम्दा लिंक्स संयोजन । मेरी रचना को मान देने के लिए सादर आभार ।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सही आंकलन। काफी काम किया जाना बाकी है।

आपने सुन्दर सुरुचिपूर्ण लिंक्स को संकलित किया है। आभार।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचनाओं को बुलेटिन प्रस्तुति में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार शिवम् जी

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

बाल-दिवस पर नेहरु जी की तस्वीर पर माल्यार्पण और प्रिंसिपल साहब का घिसा-पिटा भाषण सुन-सुन कर ही हम बड़े हुए हैं. इस दिन भी बच्चों को खुलकर मस्ती नहीं करने दी जाती. हम बच्चों को मशीन बनाने पर तुले हुए हैं. प्राथमिक शिक्षा की हमने नितांत उपेक्षा की है. हमारा देश बाल-श्रमिकों का देश है, बाल-भिखारियों का देश है और हम नित्य बाल-अपराधियों की संख्या बढाने में अपना योगदान दे रहे हैं. ऐसे स्थिति में काहे का बाल-दिवस?

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

Digvijay Agrawal ने कहा…

अच्छा कटाक्ष...
सादर

Abhilasha ने कहा…

सत्य को उद्घघाटित करती भूमिका
सुंदर संकलन
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार 🙏

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌
अच्छा कटाक्ष...
सादर

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