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मंगलवार, 21 अगस्त 2018

कोई उदासी, है यहीं कहीं है



सबकुछ सहज सा लगता हुआ,कितना असहज होता है।  हँसते हँसते रोने का सबब समझ में नहीं आता, लेकिन कहीं तो कुछ होता है, जो मन को जकड़ लेता है। नीलम प्रभा जी की कलम का जादू कई दिलों में घर बना लेता है।  आइये, इस घर के कमरों में हम गुनगुनायें 


ऐसी तो बात नहीं है, तू मेरे साथ नहीं है,
फिर भी कोई उदासी, है यहीं कहीं है। 
वे ही दिन,वही मौसम है,
रंगीं ख़ुशियों का आलम है 
क्यूँ ये चाँदनीमुझे,आज लगे थोड़ी कम कम है,
सबकुछ सुहाना हसीं है,
कोई कमी तो नहीं है,
फिर भी कोई उदासी  ... 

सपनीली मुस्कानों में,बागों बियाबानों में,
चलते रहे सय्याह से मौजों में, तूफ़ानों में,
चाहत की दुनिया वही है, इसका तो दिल को यकीं है,
फिर भी कोई उदासी, है यहीं कहीं है  ... 
कल हो ना हो, किसे है ख़बर,जाने कहाँ तक हो सफ़र,
क्या जाने किस पल उठ चलें, छोड़ के सूनी ये रहगुज़र,
अभी तो जवां ज़िन्दगी है,दिलकश बड़ी दिलनशीं है,
फिर भी कोई उदासी, है यहीं कहीं है  ... 

बातें ... खुद से - स्वप्न मेरे

ठिकाना : न्याय की देवियों की कम हिस्सेदारी

ये बाजार .. तुम्हारा ही बनाया हुआ है - कडुवा सच

प्यार की दास्ताँ अनलिखी रह गई
उम्र भर आंख में इक नमी रह गयी
कब हुआ ,क्या हुआ, क्यों हुआ पूछ मत
था कहीं जिस्म, औ' जाँ कहीं रह गई
दर्द दिल में दबाती रही मैं मगर
नज़्म अश्क़ों में' भीगी हुई रह गई
खेल है ज़िंदगी जानती हूँ मगर
क्यों मुझी से फ़क़त खेलती रह गई
क्यों न पूछा ख़ुशी तूने' मेरा पता
घर मिरे क्या बता थी कमी रह गई
क्या थी मेरी ख़ता जो तू रूठी रही
क्यों खफ़ा मुझसे' तू ज़िंदगी रह गई
जब कभी नाम तेरा लिया बज़्म में
दिलमें' ज्यूँ इक कसक सी उठी रह गई
यूँ तो' नज़्में हुई हैं , मुक़म्मल सभी
बस तिरे नाम की अधलिखी रह गई
इस क़दर दर्द ने 'हीर' बेंधा ज़िगर
एक नाज़ुक कली अधखिली रह गई

सुनो...............
अपने आने की ख़बर
कुछ देना इस तरह मुझको
जैसे मन्दिर की घंटियाँ
टुनटुना उठती हैं
और एक पावन सुगंध
फ़ैल जाती है
फिजा में
इस दो पल के मिलने में ही
मैं अपने जीवन के
सब पल काट लूंगी
जैसे दो पल के ध्यान में
हो जाती है सब मुरादें पुरी
और दो दाने प्रसाद
के पा कर रूह तक
पावन हो जाती है!!!!

जो उसके संग की चाहना हो
तो बनना दरख़्त
वो चिड़िया बन हमेशा फुदकती रहेगी टहनियों पे
पिंजरा न बन जाना
कि कैद कर लो रूह!
या बन जाना रात
वो तुम्हारे अंतर्मन पर चमकती रहेगी चाँद सी
सुनो !न बन जाना अग्नि से भरा आकाश
कि जल जाएं चांदनी के पंख!
या बनना सागर
मछली सी मटकती रहेगी
न बन जाना जाल
कि तड़पने लगे फंस कर!
बनना सखा
वो हर राज़ खोलती रहेगी परत दर परत
सुनो! न बनना साहब
कि जी हुजूरी में खो बैठे गरिमा!
बनना प्रेमी
वो ताउम्र सम्मोहित प्रेयसी रहेगी
सुनो !न बन जाना वो पति
जिसे दरकार हो सिर्फ एक छाया की!

12 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लाजवाब रचनाओं के साथ ये बुलेटिन ... मज़ा आया
आभार मेरी रचना को जगह दी आपने ...

Digvijay Agrawal ने कहा…

बेहतरीन बुलेटिन...
दीदी को नमन..
सादर..

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन।

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहतरीन रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
बेहतरीन बुलेटिन प्रस्तुति

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बेहतरीन बुलेटिन...दीदी|

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

सुन्दर जुड़ प्रभावशाली रचनाएँ!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

सुन्दर एवं प्रभावशाली रचनाएँ!

अजय कुमार झा ने कहा…

अहा , बहुत ही कमाल दीदी , हमेशा की तरह |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अच्छी रही प्रस्तुति, शुभकामनाएं

कडुवासच ने कहा…

बहुत खूब ...

Shah Nawaz ने कहा…

Bahut badhia....

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