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मंगलवार, 14 अगस्त 2018

शहीदों की भाषाहीन सिसकियाँ




हम आज़ाद हो गए  ?
कब हुए ?
और किससे ?

आज हिंदी आती हो 
या न आती हो,
कोई बात नहीं,...
बच्चा रोता है अंग्रेजी में,
माँ चुप कराती है अंग्रेजी में,
रुआब है यह कहने में 
कि आजकल की शिक्षा कितनी आधुनिक है,
फर्राटे से अंग्रेजी बोलते हैं बच्चे ...
तो प्यारे देशवासियों,
हम अंग्रेजों को भारत से नहीं भगा पाए, हिंदी हमारी मातृभाषा नहीं रही,
जिन्होंने सरफ़रोशी की तमन्ना की थी,
उनका तो मर्डर हो गया,
आज़ादी दिलानेवालों के नाम नहीं जानते ये बच्चे,
क्या फर्क पड़ता है,
अंग्रेजी पर पकड़ अच्छी है 
औऱ यही हर घर की शान है,
बस कहने को हम आज़ाद हैं ।

हाँ, हम आज़ाद हैं,
परम्पराओं को तोड़ने में,
समयानुसार रूढ़िवादी होने के लिए,
हर सीख को नकारने के लिए,
सारे इल्ज़ाम ख़ामोशो के सर मढ़ने के लिए,
कुछ भी,
कभी भी,
कहीं भी ... कहने और करने के लिए ।

एक आम दिवस है यह स्वतंत्रता दिवस,
अतीत अपनी जगह है,
वर्तमान उजागर है,
शहीदों की सिसकियाँ भाषा हीन हैं ।


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6 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

शहीदों की सिसकियाँ भाषाहीन हैं। स्वतंत्र हो लेने की जद्दोजहद जारी है जारी रहे। सुन्दर सूत्रों से भरी स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या बुलेटिन।

अजय कुमार झा ने कहा…

हमेशा की तरह सामयिक है और सटीक भी दीदी | लिंक्स पर जाकर अब एक एक पोस्ट भी पढ़ डालते हैं |

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

ये सामयिक रचना स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर बहुत कुछ कहती है ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी सामयिक बुलेटिन प्रस्तुति
सभी को स्वतंत्रता दिवस शुभावसर पर हार्दिक शुभकामनाएं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सार्थक बुलेटिन ...
आभार मेरी रचना को जगह दी आपने ...

Anita ने कहा…

स्वतन्त्रता दिवस पर सार्थक व सुंदर रचनाओं का संयोजन..आभार मुझे भी इसमें शामिल करने के लिए..

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