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शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

रस बरसे (1)

ब्लॉग बुलेटिन की लोकप्रिय श्रृंखला "मेहमान रिपोर्टर" के अंतर्गत हमारे पाठक यानि कि आप में से ही किसी एक को मौका दिया जाता रहा है बुलेटिन लगाने का ... तो अपनी अपनी तैयारी कर लीजिये ... हो सकता है ... अगला नंबर आपका ही हो !

 "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में आज बारी है सोनल रस्तोगी जी की...

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रस बरसे

ब्लॉगजगत में कुछ भी हो रस की कमी कभी नहीं रही तपते 2009 से ठिठुरते 2012 तक, सभी भाव और रसों  का अनूठा संगम देखा  है जिसने मन में कई भावों को जगाया और सुलाया भी तो कभी रौद्र रूप भी धारण करने पर विवश कर दिया अपने पसंदीदा कुछ रचनाये आपके साथ बांटने बैठी हूँ ,चूँकि प्रेम की गायिका हूँ तो पहला मोती भी इसी खजाने से ला रही हूँ

दुसरे प्यार को दुलारती रचना अनूठी और लम्बे समय तक याद रह जाने वाली आखिर दूसरा प्यार पहले प्यार की तरह शायद सदा स्मृतियों में नहीं डोलता

"दूसरे प्यार में नहीं लिखी जाती
पहली अर्थहीन प्रेम-कविता
पहला थरथराता चुंबन
नहीं लेता कोई दूसरे प्यार में
दूसरे प्यार के बारे में
नहीं लिखता कोई अभिज्ञान
और ना ही होता है शिला-लेखों में उसका वर्णन"

http://meribatiyan.blogspot.in/2009/11/blog-post.html

व्यंग तीखी सुई सा होता है ज़रा सी चुभन पीड़ा और राहत कुछ पलों के अंतराल में दे जाता है, मर्मभेदी व्यंग का एक तीक्ष्ण वाण जो आज भी सामयिक है
"राजमाता का भय युवराज आउल की कैसे हो जय" बरस दर बरस बीत गए ..राज्य दर राज्य चुनाव हो गए पर स्तिथि वही है

http://samvedanakeswar.blogspot.in/2011/09/blog-post_22.html

एक माँ सौपती है विरासत, संस्कार और नज़रिया दुनिया देखने का, बच्चो को तमीज सिखाती है खुद पहली अध्यापिका तो बनती है साथ में घर को पहला स्कूल बनाती है ,ऐसी ही एक माँ जो अपने दो नन्हे -मुन्नों को एक ख़त सौंप रही है पेश-ए -नज़र है

"आद्या और आदित, तुम्हारे लिए एक महफ़ूज़ दुनिया का दुआ मांगूंगी, लेकिन फिर भी इस दुनिया के सच को याद रखना कि वो महफ़ूज़ दुनिया भी एक छलावा ही होगी। ऐसी एक दुनिया में तुम जी सको और बिना रोज़-रोज़ तबाह हुए बच सको, इसके लिए वही तीन चीज़ें मांगूगी तुम्हारे लिए, जो अक्सर अपने लिए मांगा करती हूं - साहस (courage), समझदारी (wisdom) और संवेदना (compassion)। अगर कोई ईश्वर है कहीं तो वो तुम्हारी हिफ़ाज़त करे!"

http://mainghumantu.blogspot.in/2012/12/blog-post_31.html

गुलाबी चश्मा चढ़ाकर गर ये कहें दुनिया रंगीन है तो इससे बड़ा धोखा कुछ नहीं है , आँखे खोलो दिमाग के परदे हटाओ फिर देखो दुनिया एक रंग की नहीं है

"मुद्दा यहाँ केवल और केवल महिला की सुरक्षा है बात चाहे कुमारी गांधी की हो, कुमारी चिदंबरम की या कुमारी सिंह की, इनकी ओर आँख उठाने का साहस नहीं किसी में कुछ भी पहनने और किसी भी समय कहीं भी आने-जाने में इनकी सुरक्षा पर आंच नहीं आती इनके अलावा वे लड़कियां भी सुरक्षित हैं जो अपनी लक्ज़री कार से घूमती हैं अपनी काले शीशे चढ़ी कार में वे माइक्रो मिनी पहनकर क्यों न बैठी हों, रास्ते चलते हसरत भरी निगाह से उन्हें घूर भर सकते हैं, छूने की तो सोच भी नहीं सकते सुरक्षित वे लड़कियां नहीं हैं, जो देर रात तक ऑफिस में काम करती हैं कभी-कभार ऑफिस के बाद मित्रों के साथ मनोरंजन के पल बिताना उनका बहुत बड़ा अपराध है उन्हें कोई हक नहीं, आधुनिक कपड़े पहनने का, मूवी देखने का इसकी सज़ा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए"

http://chidarpita.blogspot.in/2013/01/blog-post.html

 सिक्के के दोनों पहलु देखने के लिए तन और मन दोनों की आँखों का खुला होना बहुत ज़रूरी है

"अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है 
अमर्यादित लकीरों के आगे 
मर्यादा का अस्तित्व निखरता है 
विघ्न बाधाओं के मध्य 
सत्य और प्राप्य का गौरव प्रतिष्ठित होता है "

http://lifeteacheseverything.blogspot.in/2012/10/blog-post_29.html

सेना पर सवाल उठाने वाले कभी अपने किसी अपने को सरहद पर भेजे तो मानवता दया और अमन की आशा समझ में आएगी ,जिस देहरी से बेटे को तिलक कर भेजा हो वही देहरी बिना सर की देह की गवाह बनी

"आ से आम थे
पर मुझे एक आरी मिली रखी  हुई
कि जो दुनिया थी मेरे यहाँ
उसमें हम सब अनचाहे थे "

http://merasaman.blogspot.com/2012/12/blog-post_29.html


उस महान आधी दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है वो बाकी  आधी दुनिया की समस्या को नज़रंदाज़ करता है वैसे तो आधी दुनिया ही नज़रंदाज़ है,यकीन नहीं आता तो खुद पढ़िए ..

"कितनी अजीब है ये दुनिया। टायलेट जाते भी औरतों को शर्म आती है, मानो कोई सीक्रेट पाप कर रही हों। जिस कमरे से होकर बाथरूम के लिए जाना पड़ता है, या जिस कमरे से अटैच बाथरूम है, उस कमरे में अगर जेठ जी, ससुर या कोई भी पुरुष बैठा है तो मेरी दीदियां, भाभियां, मामियां और घर की औरतें रसोई में चुपाई बैठी रहेंगी, लेकिन बाथरूम नहीं जाएंगी। बोलेंगी, नहीं, नहीं, वो जेठजी बैठे हैं।जेठजी तो गेट के बाहर गली खड़े होकर करने के लिए भी दो मिनट नहीं सोचते। बहुएं मरी जाती हैं।"

http://bedakhalidiary.blogspot.in/2010/03/we-all-shit-we-all-pee-but-we-never.html

और

http://bedakhalidiary.blogspot.in/2010/03/we-all-shit-we-all-pee-but-we-never_28.html

मेरे पसंद के खजाने से ये थे कुछ मोती ...बाकी अगली बार
सोनल

17 टिप्पणियाँ:

सदा ने कहा…

बेहतरीन लिंक्‍स संयो‍जन एवं अनुपम प्रस्‍तुति.........

HARSHVARDHAN ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति ।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

:).. WAH

रश्मि प्रभा... ने कहा…

संयमित सोच के अलाव से संस्कार की लपटें पसंदीदा बनकर निकली हैं .......... जिसमें घर के प्यार की खुशबू है

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन के मंच पर एक "मेहमान रिपोर्टर" के रूप मे आपका स्वागत है सोनल जी!

आपका बहुत बहुत आभार जो आपने ब्लॉग बुलेटिन पर एक "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में अपनी यह पोस्ट लगाई ! हमारी इस श्रृंखला को एक और बढ़िया परवाज़ देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद !

रविकर ने कहा…

सुन्दर-
आभार ||

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर वार्ता..

अजय कुमार झा ने कहा…

पारखी नज़र और धारदार तेवर के कायल हो गए जी । मेहमान रिपोर्टर जी का हार्दिक स्वागत है । बहुत ही कमाल की पोस्टों का चयन कर यहां तक लाने के लिए आभार सोनल जी

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर बुलेटिन...

vandana gupta ने कहा…

वाह बहुत ही सु्न्दर लिंक्स से सजा बुलेटिन पेश किया है मेहनत के साथ्………बधाई।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया बुलेटिन सोनल...
वाकई कुछ हट के लिंक्स मिले....
शुक्रिया

अनु

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया लिंक्स

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अभी तो हलंत में ही उलझा हुआ हूँ..बहुत बढ़िया।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बढ़िया लिंक्स संयोजन, सोनल जी बधाई ,,,,

शिवम् जी,मेहमान रिपोर्टर श्रंखला चालू रखे,सप्ताह में एक दिन इसके लिए निश्चित कर दे,,,,आभार

recent post : बस्तर-बाला,,,

sonal ने कहा…

पहले प्रयास पर आप अबकी पारखी नज़र का दिल से शुक्रिया

ashish ने कहा…

वाह , उत्तम ब्लॉग लिंक्स. बधाई .मोती तो लैट मार रहे है .

Saras ने कहा…

सोनलजी ..वाकई रंग बरस गया ....मज़ा आ गया ...हर रंग हर मिजाज़ के लिंक्स पढ़ने को मिले ....बधाई !

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