प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
प्रणाम !
ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम उनको शत शत नमन करते है !
मौजूदा दौर मे देश को इन जैसे प्रधानमंत्री की सख़्त जरूरत है !
सादर आपका
शिवम मिश्रा
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सर्दी देखूँ या सर्दी का बाज़ार देखूँ .......
*सर्दी देखूँ या सर्दी का बाज़ार देखूँ ....... रंग - बिरंगे स्वेटर टोपी, जैकेट, मफलर शाल, मोज़े, दस्ताने गरम इनर, पायजामे जूते और कोट से जगह जगह पटा हुआ बाज़ार देखूं । सर्दी देखूं या सर्दी का बाज़ार देखूं ? बकरे की जान * * मुर्गे की टांग मछली के पकौड़े अण्डों की बिक्री ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े सब्जी - फल गर्मी के हवाले फल - फूल रहा सर्वत्र मांसाहार देखूं । सर्दी देखूं या सर्दी का बाज़ार देखूं ? गजक, रेवड़ी, लड्डू * * मूंगफली, पकौड़ी, हलवा जिसकी जेब में माल भरा हो मौसम भी देखे उसका जलवा दो दिन के इस मेहमान का शाही स्वागत -सत्कार देखूं । सर्दी देखूं या सर्दी का बाज़ार देखूं ? कॉ... more »
प्रेमी प्रेमिका, दूध और शक्कर, डायबिटीज
*1.* *प्रेमी प्रेमिका* *दूध और शक्कर* *डायबिटीज* * * * * *2.* *पति व पत्नि* *होते ही बच्चे चार* *लठ्ठमलठ्ठा* * * * * *3.* *धणी लुगाई* *गाडी के दो पहिये* *पूर्व पश्चिम* * * * * *4.* *ब्लाग जगत* *सच जीवन जैसा* *क्षण भंगुर* * * * * *5.* *जिंदगी सौदा* *कुछ लिया ना दिया* *विदा हो गये* * * * * * *
भाई खुशदीप के सुझाव पर मेरे ,दिल्ली बलात्कार' पर बनाए कुछ कार्टून।
हम ताजमहल वाले हैं
"लूटने वाले उसे क़त्ल न करते लेकिन, उसने पहचान लिया था कि बग़ल वाले हैं; बेकफ़न लाशों के अम्बार लगे हैं लेकिन, फ़ख्र से कहते हैं हम ताजमहल वाले हैं !!" - मुनव्वर राना
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें........
आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें अमराई की घनी छाँव में नदी किनारे बधीं नाव में बैठ निशा के इस दो पल में,बीते लम्हों की हम सोचें आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें मन आंगन उपवन जैसा था प्रणय स्वप्न से भरा हुआ था तरुणाई के उन गीतों से,आ अपने तन मन को सीचें आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें स्वप्नों की मादक मदिरा ले मलय पवन से शीतलता ले फिर अतीत में आज मिला के,जीवन मरण प्रश्न क्यूँ सोचें आ कुछ दूर चलें,फिर सोचें विक्रम
उद्वेलित आंदोलनकारी और आंदोलन
पिछला वर्ष आन्दोलनों व बड़े बड़े घोटालों के उजागर होने वाला वर्ष रहा| एक के बाद उजागर हुए घोटाले और अन्ना, बाबा रामदेव व केजरीवाल आदि लोगों द्वारा काले धन, लोकपाल व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन हुए| केजरीवाल और अन्ना को भ्रष्टाचार से त्रस्त व उद्वेलित युवाओं ने पुरा समर्थन दिया व उनके आन्दोलनों को सफल बनाया जो युवाओं का कर्तव्य भी था और संवेदनशीलता भी| देश की किसी भी व्यवस्था में यदि कोई गडबड़ी आती है तो उसका दुष्परिणाम युवाओं को भी ताजिंदगी भुगतना पड़ता है और इस तरह व्यवस्था में आई गडबड़ी को दुरस्त करने के लिए युवाओं द्वारा आंदोलित होना और आन्दोलनों में बढ़ चढ़ more »
"शब्द"
मूक वार्तालाप हाँ ....ना .. इन दो में ही तमाम ...बातें शून्य ....! रुदन ह्रदय का तुम्हारे कटाक्ष से ... more »
हरे मटर की घुघरी
सामग्री 1. हरी मटर –आधा किलो 2. आलू –दो बड़ी (चौकोर टुकडो में कटी ) 3. लहसुन –एक गांठ या दस पन्द्रह कलियाँ (बारीक कटी हुई) 4. नमक –स्वादानुसार 5. तेल –एक छोटा चम्मच 6. हरी धनिया –गार्निश के लिए 7. हरी मिर्च –चार पांच विधि [...]
शादी क्यूं करूं?
मैं शादी क्यूं करूं? क्या इसलिये कि सब कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो सब धोखेबाज़ियां, जालसाज़ियां भी कर रहे हैं. तो आज से ही शुरु कर देती हूं. बड़ी खाला पिछले दिनों घर आई तो कह रही थीं “दुनिया की ज़रूरत है शादी.” मैंने कहा “दुनिया की ज़रूरत तो पट्रोल भी है, अब क्या कूंआ खोदने लगूं.” खाला चिढ़कर बड़बड़ाने लगीं “अरे, भई…कोई साथी तो होना चाहिये ना, पूरी पच्चीस की हो गयी हो” मैंने इतराते हुए खाला के कंधे में हाथ डाला “साथी की फ़िक्र क्युं करती हैं, बिटिया आपकी इतनी बुरी भी नहीं“ ये खाला के सब्र की इन्तेहा थी “सारा दिमाग पढ़ाई ने खराब किया है, अब तक मैं मैदान में उतर चुकी थी “लो, मानो जब आदम-हौआ ज़म... more
हुन धीयां दी लोहड़ी मनाइए
लोहड़ी मनाने के साथ कोई पौराणिक परंपरा नहीं जुड़ी हुई है,पर इस से जुड़ी प्रमुख लोककथा दुल्ला भट्टी की है जो मुगलों के समय का बहादुर योद्धा था |कहा जाता हा कि एक ब्राह्मण की दो लड़कियों सुंदरी और मुंदरी के साथ इलाके का मुग़ल शासक जबरन शादी करना चाहता था,पर उन दोनों की सगाई कहीं ओर हुई थी लेकिन उस मुग़ल शासक के डर से उनके भावी ससुराल वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे | इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की मदद की और लड़के वालो को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का ब्याह करवाया, दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया और शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी और इसी कथ... more »
पिछले 10 दिनों की मेरी सभी पोस्ट
आप कहेंगे कि यहाँ लिखने की क्या जरूरत थी सभी पोस्ट तो ब्लॉग पर दिख ही रहीं हैं। आपकी बात अपनी जगह पर सही है पर अब मैं सिर्फ एक जगह पर नहीं लिखता बल्कि कई जगह पर लिखता हूँ इसलिए अपनी इस ब्लॉग पोस्ट में आपके लिए लाया हूँ सभी पोस्ट के लिंक। 1 जनवरी को मैंने लिखा शिक्षकों के लिए खास वेब २.० तथा शिक्षक नाम से एक लेख जिसमे बताया कि वेब २.० क्या है और शिक्षक पढाने के लिए कैसे इसका प्रयोग कर सकते
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कल आप ने जिस कविता को बुलेटिन मे पढ़ा था आज उसे यहाँ सुनिए अर्चना चावजी की आवाज़ मे
जय जवान ... जय किसान !!
जय हिन्द ... जय हिन्द की सेना !!
10 टिप्पणियाँ:
भेस धरे गणतन्त्र का पसरा है गन-तन्त्र
कौन बचाए अस्मिता चले न कोई मन्त्र ...
चले न कोई मन्त्र अरे सत्ता के नायक
लोकतन्त्र के सारथि बन बैठे अधिनायक
भ्रष्ट तन्त्र के घाव से सिसक रहा है देश
नोच रहे हैं भेड़िये धर नेता का भेस .....
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कौन करे संघर्ष अब, देश बचाए कौन
बन्दूकें ठंडी पड़ीं, कलम पड़ी हैं मौन
कलम पड़ी हैं मौन युवा निस्पृह सोया है
पश्चिम की अनजानी गलियों मे खोया है
लूटतंत्र का हो रहा निस दिन नव उत्कर्ष
नीति नियन्ता भ्रष्ट हैं, कौन करे संघर्ष
इस ब्लॉग बुलेटिन ने मुझमें पढ़ने की आदत डाल दी है...एक दिन के लिंक से निपटती नहीं कि फ़िर ढेर सारी सब की सब फ़िर आगे पढ़ने को ...
कविता के सुर बेहद मार्मिक हैं.
अत्यंत मार्मिक सुनकर रोंगटे खड़े हो गए |
तमाशा-ए-ज़िन्दगी
बहुत सुन्दर सूत्रों का संकलन..
Dhnyavad,achhi prastuti.
बढिया लिंक्स
बहुत सटीक शिवम भाई , असल में देखा जाए तो अब भी सारी स्थितियां वही और वैसी ही हैं । चयनित पोस्टों का संकलन बेहतरीन है
आप सब का बहुत बहुत आभार !
bahut shashkt links.. meri rachna ko sthan dene ke lye dhanywaad
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