प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
आज फेसबूक से एक कविता उठा लाया हूँ आप सब के लिए ... पढ़िएगा और अपनी राय दीजिएगा !
उस माँ के बारे मे बस एक बार सोचिए जो अपने शहीद
बेटे का सिर अपनी गोद मे रखकर रो भी नही सकती ... क्या अब भी क्रिकेट प्रेमी
लोग बाँल टु बाँल अपडेट देँगे ... क्या यह अमन की आशा अब अमन का तमाशा बन कर नहीं रह गई है ???
प्रणाम !
आज फेसबूक से एक कविता उठा लाया हूँ आप सब के लिए ... पढ़िएगा और अपनी राय दीजिएगा !
घर के द्वारे अपने सैनिक भाई का सरविहीन शव आने
पर, बहन अपनी विधवा भाभी को कुछ यूँ गा कर सुनाती है:-
दादी का दुलार भूला,
बाबुल का प्यार भूला
मोतियो की माला मेरी आज तक ना लाया है
दीपो को त्यौहार भूला,
रंगो की फुहार भूला,
राखी का त्यौहार बार-बार बिसराया है
भाभी मेरा भैया तो जनम से भुलक्कड है
आज भी उसी आदत को दोहराया है
जाते समय मैया से आशीष लेना भूल गया,
आते समय रणथल मे शीश भूल आया है
-धुवेंद्र भदौरिया
बाबुल का प्यार भूला
मोतियो की माला मेरी आज तक ना लाया है
दीपो को त्यौहार भूला,
रंगो की फुहार भूला,
राखी का त्यौहार बार-बार बिसराया है
भाभी मेरा भैया तो जनम से भुलक्कड है
आज भी उसी आदत को दोहराया है
जाते समय मैया से आशीष लेना भूल गया,
आते समय रणथल मे शीश भूल आया है
-धुवेंद्र भदौरिया
सादर आपका
शिवम मिश्रा
======================
15 टिप्पणियाँ:
मार्मिक कविता पढ़ाई आपने..!
बहुत संवेदनशील कविता आप ले कर आये हैं ....
उस माँ के बारे मे बस एक बार सोचिए जो अपने शहीद बेटे का सिर अपनी गोद मे रखकर रो भी नही सकती ...
दुखद और पूरे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात
मन भर गया ...नमन है शहीदों को एक माँ का ,एक बहन का,एक बेटी का...
श्रद्धांजलि मत देना हमको भले मगर यह प्रण लेना
देश द्रोहीयों को मत चुनना उन्हें वोट तुम मत देना
जिनकी कुर्सी वीर शहीदों की लाशों पर रक्खी हो
जिनकी आँखेँ खारे पानी वाला स्वाद न चक्खी हों
उनसे कुछ आशा मत करना अपने खुदमुख्तार बनो
देश आज मजधार फँसा है तुम ही अब पतवार बनो
बलि वेदी पर हम तो अपना शीश कटा कर जाते हैं
यही भरोसा है लाखों भाई पीछे से आते हैं...
हे छुप कर धोके से हमला करने वाले दुश्मन सुन
भारत से कश्मीर छीन लेने के अब सपने मत बुन
सहते रहने की शिक्षा का जिस दिन मान नहीं होगा
सब कुछ होगा दुनिया मे पर पाकिस्तान नहीं होगा
मैंने भी पढ़ी थी से कविता...मन भरा था ही....और भर आया। फख्र से सीना तान कि तू शहीद सिपाही का बच्चा है....ये दर्द ही मेरा। आभार..
उस माँ के बारे मे बस एक बार सोचिए जो अपने शहीद बेटे का सिर अपनी गोद मे रखकर रो भी नही सकती .... :(
मन भर गया .... :'(
यह अमन की आशा ,अब अमन का तमाशा बन कर रह गई है !!
इस वुलेटिन की बहुत सी पोस्ट पढ़ी। सबसे अच्छी पोस्ट इंडिया बनाम भारत बनाम महाभारत लगी। इसे सभी को पढ़नी चाहिए।
इस कविता को पढ़ने के बाद आँखें सजल हो उठीं.. "ऐक बार बिदाई दे माँ/घूरे आशी" के बाद शायद इतनी गहरी वेदना मुझे इस गीत में महसूस हुई!!
साथ ही ठाकुर पद्म सिंह जी की कविता भी टिप्पणी में बहुत कुछ कहती है!!
अफ़सोस! (◣_◢)
आपका आभार शिवम जी!!
उस माँ के बारे मे बस एक बार सोचिए जो अपने शहीद बेटे का सिर अपनी गोद मे रखकर रो भी नही सकती .... :(
दर्द रोने से कम नहीं होता .......... और कुछ दर्द शब्दहीन होते हैं
आप सब का बहुत बहुत आभार !
मन द्रवित हो उठा यह रचना पढ़कर।
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!