इस देश को शायद ये श्राप मिला हुआ है कि जख्मों के भरने से पहले ही उसे दूसरा जख्म मिल जाता है । अभी पूरे देश को दिल्ली बलात्कार कांड ने झकझोरा ही हुआ था कि इस बीच खबर आई कि पडोसी मुल्क पाकिस्तान ने अपनी फ़ितरत दिखाते हुए न सिर्फ़ युद्ध विराम का उल्लंघन किया बल्कि कायरता से वार करके हमारे देश के दो वीर सैनिकों का न सिर्फ़ कत्ल कर दिया बल्कि उनमें से एक का सिर भी काट कर ले गए । पाकिस्तान की घटिया मनसिकता और ओछी हरकतों को देखते हुए इस बार पर कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए , मगर उस परिवार का , जिसका वो बेटा था जिसे अपने शहीद बेटे का शव भी मिला तो वो बदनसीब मां अपने मृत बेटे का चेहरा भी आखिरी बार भी नहीं देख पाई , उस परिवार का सोच कर भी मन सिहर उठता है । हमारे हुक्मरान हमेशा की तरह अपनी सियासी बिसात बिछा के बैठ गए हैं अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए ।
इस बीच देश के बेटियों , के प्रति लगातार कलम चल रही है , और बहुत से अन्य मुद्दों पर भी
इस बीच देश के बेटियों , के प्रति लगातार कलम चल रही है , और बहुत से अन्य मुद्दों पर भी
लड़ना जानती हैं बेटियाँ
मंजू अरुण की एक कविता की पंक्तियाँ हैं-
‘‘बेटियाँ
यदि ताड़ की तरह बढ़ती हैं तो,
छतनार की तरह फैलती भी हैं।’’
और सच आज वह फैल गयी हैं, चारों तरफ़, मुट्ठी भींचे सीना ताने। क्षोभ, क्रोध, आवेश और आहत भाव से कुछ पश्चाताप से भी कि वह बचा नहीं पायीं दरिन्दगों की दरिंदगी की निशाना बनी अपनी एक साथी को। फिर भी एक, थोड़ा झीना ही सही एक आश्वस्त भाव है उनके पास कि वह सत्ता के मद से डूबे लोकतांत्रिक तानाशाहों को कुछ तो झुका पायीं, जो कह रहे थे, सरकारें जनता के पास नहीं जाया करतीं, वह जनता की बेटी का शव लेने एयरपोर्ट तक पहुँच गये, शमशान घाट भी। अब वह जनता के पास जाने के अवसर की तलाश में है। जनता जब सरकार के द्वार पर जम की गयी, तब वह थोड़ा विचलित हुए। जनता यदि सरकार चुनती है, तो उसे उखाड़ भी फेंकती है। हालाॅकि सरकारंे तो सिर्फ़ चुनने का अधिकार देना चाहती हैं। जैसे पुरुष (अधिकांश) अपनी वासनाओं की तुष्टि, स्वादिष्ट भोजन, ढेर सारे सुखों, अपनी नस्ल चलाने तथा स्त्री को स्त्री बने रहने के लिये विवाह करता है, उसे एक घर देता है। पुरुष ज़्यादातर उस स्त्री को बहुत पसन्द करता है जो घर में रहे। उसी तरह जैसे सरकारें घर में रहने वाली जनता को बहुत पसन्द करती हैं। जनता को घर में रखने के लिये ही तो उसने इतने सारे मादक टी0वी0 चैनल्स दिए हैं, नेट का रोमांच दिया है। स्त्री जो जनता ही का हिस्सा है, कात्यायनी की एक कविता के अनुसार ‘‘यह स्त्री सब कुछ जानती है/पिंजरे के बारे में/जाल के बारे में/यंत्रणा गृहों के बारे में।’’ इसलिये कभी-कभी ही सही वह निकलती हैं घरों से बाहर। इस बार बेटियों के साथ बेटे भी थे। बहुत से लोग इस कारण चिंतित हैं कि बेटियाँ स्कर्ट और जींस में बाल लहराते हुए निकलीं। उन्होंने दुपट्टे तक नहीं ओढ़ रखे थे। वह दिन में मोमबत्तियाँ जलाती हैं, रात में डिस्को जाती हैं। हिंसा के विरुद्ध सड़कों पर निकलती बेटियों के प्रति यह शब्द कम वीभत्स हिंसा नहीं है। इसमें अवमानना का दंश भी है। जिसकी चुभन आज भी जारी है।
फिर कोई नहीं रोक सकता लड़की को
बड़े शहर की लड़कियाँ
-लाल्टू
शहर में
एक बहुत बड़ा छोटा शहर और
निहायत ही छोटा सा एक
बड़ा शहर होता है
जहाँ लड़कियाँ
अंग्रेज़ी पढ़ी होती हैं
इम्तहानों में भूगोल इतिहास में भी
वे ऊपर आती हैं
उन्हें दूर से देखकर
छोटे शहर की लड़कियों को बेवजह
तंग करने वाले आवारा लड़के
ख्वाबों में - मैं तुम्हारे लिए
बहुत अच्छा बन जाऊँगा -
कहते हैं
फँसा आदमी
कभी दफ्तरों में कभी कठघरों में
फँसा आदमी कागजी अजगरों मेंतमन्ना रही आसमानों को छूएंमगर ठोक रक्खी हैं कीलें परों मेंकहाँ से उगेगी नई पौध कोईघुने बीज बोये हुए बंजरों मेंअगर मर गईं सारी संवेदनाएंरहा फर्क क्या वनचरों में नरों में
कोहरा और कुहासा
स र्दियों में शाम से ही धुंध छाने लगती है जिसे कोहरा या कुहासा कहते हैं । ठंड के मौसम में आमतौर पर हवा भारी होती है जिसकी वजह वातावरण में नमी का होना है । धरती की ऊपरी परत जब बेहद ठण्डी हो जाती है तो हवा की नमी सघन होकर नन्हें-नन्हें हिमकणों में बदल जाती है इसे ही कोहरा जमना कहते हैं । कोहरा बनने की प्रक़्रिया लगभग बादल बनने जैसी ही होती है । कभी-कभी बादलों की निचली परत भी पृथ्वी की सतह के क़रीब आकर कोहरा बन जाती है । कुल मिलाकर कोहरे में कुछ नज़र नहीं आता । धुँए में जिस तरह से दृश्यता कम हो जाती है उसी तरह हवा की नमी हिमकणों में बदल कर माहौल की दृश्यता को आश्चर्यजनक रूप से कम कर देती है । कोहरे के आवरण में समूचा दृश्यजगत ढक जाता है । देखी जा सकने वाली हर शै गुप्त हो जाती है, लुप्त हो जाती है, छुप जाती है, छलावे की तरह ग़ायब हो जाती है । कोहरा की अर्थवत्ता के पीछे भी गुप्तता या लुप्तता का भाव ही प्रमुख है ।
कार्टून :- दूसरा गाल आगे करने वाली प्रजाति
यह शुरुआत है, आगे लंबी लड़ाई
आधुनिकता का मतलब अंगरेजी गीत गाना और जींस पहनना नहीं है। यह हल्की सोच है। आधुनिकता का अर्थ है, सामाजिक और राजनीतिक समानता। भारत ने इस दिशा में पहला कदम उठाया है। उथल-पुथल, संघर्ष और अनैतिक बातें साबित करती है कि रूढ़िवादी आसानी से अपनी पकड़ को नहीं जाने देंगे। बदलाव दिख रहा है, लेकिन लंबी लड़ाई अभी शुरू ही हुई है। यह शांत है। यह जटिल है। वहां बेचैनी है, लेकिन शोर नहीं है। वहां आत्मसंशय और अनिश्चिय है, क्योंकि ऐसा लगता है कि उसमें बंदिश है, धर्म की नहीं बल्कि कुछ धार्मिक लोगों की। भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति नि:संदेह विश्व के सबसे प्रमुख मत हिंदुत्व और अंत में इसलाम से प्रभावित रही है। धर्म की शुरुआत सामाजिक आंदोलन, असमानता से छुटकारे के तौर पर होती है। संतों और मौलवियों की वाणी में धर्म प्रेरणादायक लगता है। सदियों के बाद स्वयंभू रक्षकों के नियंत्रण में यह कैसा रूप धरता है, यह एक अलग कहानी है।एक अंगरेजी अखबार के दो जनवरी के दिल्ली संस्करण में इस धुंध को चीर कर ऐसे ही एक सत्य को पकड़ने की कोशिश की गयी। ख़बर के मुताबिक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाऊ ने एक लड़की को अगुवा करने के आरोपी नदीम खान को मदद देने और शादीशुदा खान और लड़की के बीच निकाह कराने के आरोप में मौलवी मुस्तफा खान को जमानत देने से इंकार कर दिया। निकाह के लिए न लड़की की रजामंदी ली गयी थी, न यह माता-पिता की मौजूदगी में किया गया था। मौलवी ने दलील दी की मुसलिमों को चार शादी करने की इजाजत है। कामिनी लाऊ ने कहा कि इसलाम बहुविवाह की इजाजत केवल कुछ हालातों में ही देता। यह इसे बढ़ावा नहीं देता है। कोई भी निकाह बिना लड़की की रजामंदी के मान्य नहीं है। उन्होंने कहा तुर्की और ट्यूनीशिया जैसे मुसलिम देशों ने बहुविवाह को गैर कानूनी बना दिया है।
निदा फ़ाज़ली के पलड़े पर अमिताभ-कसाब...खुशदीप
आंध्र प्रदेश विधानसभा में एआईएमआईएम विधायक दल के नेता अक़बरुद्दीन ओवैसी ने 24 दिसंबर 2012 को निर्मल, आदिलाबाद में जो कुछ भी कहा, उसकी वजह से 14 दिन की न्यायिक हिरासत में है...अक़बर ने क्या-क्या कहा, इस पर मैं जाना नहीं चाहता...लेकिन जाने-माने शायर और फिल्म गीतकार निदा फ़ाजली ने एक साहित्यिक पत्रिका को चिट्ठी में जो लिखा है, उसने मुझे ये लेख लिखने पर मजबूर कर दिया...निदा फ़ाज़ली ने मुंबई हमले के गुनाहग़ार मोहम्मद अज़मल आमिर कसाब और बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन की बिल्कुल अलग-अलग संदर्भ में तुलना की है...उन्होंने दोनों को किसी और का बनाया हुआ खिलौना बताया है...
नारी मन
जीवन के हर क्षण में वो, वो आधार सभी की सांसों का
रूप बदल बदल वो आये, हर रूप में सबका साथ निभाये
बिन उसके जीना असम्भव, पर सभी को ये समझ ना आये
ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को मकर संक्रान्ति की ढेरों शुभकामनाएं। |
8 टिप्पणियाँ:
बहुत ही पठनीय लिंक्स हैं.सार्थक बुलेटिन.
मकर संक्रांति की शुभ कामनाएं!!
आप सब को मकर संक्रान्ति की ढेरों शुभकामनाएं :))
सार्थक बुलेटिन.... सब को मकर संक्रान्ति की ढेरों शुभकामनाएं!
सुन्दर सूत्र..
bahut badhiya links.....
सार्थक बुलेटिन....मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं!
बहुत सुन्दर सार्थक बुलेटिन....मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं!
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!