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बुधवार, 16 जनवरी 2013

क्‍यूं युद्ध युद्ध करते हो

माओवादियों ने दस जवानों को मार गिराया। मीडिया में चर्चा तक नहीं हुई। पाकिस्‍तान की ओर से दो गिराए, तो पूरा देश युद्ध युद्ध चिलाने लगा। सोशल मीडिया की भाषा प्रिंट एवं इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया बोलने लगा। सोशल मीडिया में बैठे ज्‍यादातर बुद्धिजीवी नहीं। वहां बस मुद्दों को हवा दी जाती है। मगर कुछ मुद्दे जरूर सोचने लायक होते हैं। युद्ध की बात करने से पहले उसके बुरे प्रभावों के बारे में सोचना भूल गया मीडिया। हमने पिछले युद्धों में इतना नहीं खोया, जितना अगर युद्ध होगा खोएं। अब युद्ध प्रमाणु हथियारों से होगा। जो भले भारत पाकिस्‍तान की धरती पर फूटे, लेकिन उसका असर पूरे एशिया पर होगा। हमारा हिमालय भी पिघलकर पानी हो जाएगा। वो पानी पता नहीं कितने बचे हुए लोगों को बहाकर ले जाएगा।

बुद्धिमानी से करें फैसला
एक बार की बात है .एक छोटी सी चिड़िया बड़ी सी भैंस को बहुत परेशान  कर रही थी ! कभी वो उसके सिंग पर चढ़ के बैठ  जाती कभी उसकी पीठ पर फुदकने लगती ! कभी उसके ऊपर मंडराने लगती ! भैंस चिड़िया की इन शरारतों  से बहुत परेशान  हो रही थी ! उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की इस छोटी लेकिन दुष्ट चिड़िया से कैसे छुटकारा पाया जाये और दूसरी तरफ चिड़िया भैंस को परेशां देख कर बहुत खुश थी! आगे पढ़ें

मेरा वह चिराग
दो-चार गलियों की
थी दूरी, पर राह चलते
दिख ही जाता था उसका  घर।
कभी छत पर सूख रहे कपड़े
तो कभी खिड़की  से
झांकता कोई चेहरा
आ ही जाता था नजर। आगे पढ़ें

हमारे आजू-बाजू ही घूमते हैं वहशी दरिंदे
कुछ दिनों से यह लेख लिखने की सोच रहा था, पर समय की कमी के चलते लिख नहीं पाया. अब चूंकि दिल्ली में गैंगरेप का मामला बड़े स्तर पर उठा है तो सोचा मैं भी अपनी बात कह ही दूं. बात तकरीबन 15-20 दिन पहले की है. शाम को चार बजे मैं ऑफिस से बाइक पर घर के लिए निकला. ऑफिस से घर की दूरी 10 किलोमीटर है, तो बाइक से तकरीबन आधा घंटा लग ही जाता है. करीब सवा चार बजे मैं नोएडा-अक्षरधाम (दादरी रोड) हाईवे पर मयूर विहार की तरफ मुड़ रहा था. आगे पढ़ें


कहीं विलेन न बन जाएं
बरिया की नई नई नौकरी लगी थी। बरिया बेहद मेहनती युवा था। काम के प्रति इतना ईमानदार कि पूछो मत, लेकिन बरिया जहां नौकरी करता था, वहां कुछ कम चोर भी थे। बरिया साधारण युवा नहीं जानता था कि जमाना बदल चुका है। मक्‍खनबाजों का जमाना है। काम वालों की भी जरूरत है, क्‍यूंकि घोड़ों की भीड़ में गधे भी चलते हैं। बरिया सबसे अधिक काम करता। वो हर रोज अपने हमरुतबाओं से अधिक वर्क काम करता, जैसे गधा कुम्‍हार के लिए। आगे पढ़ें

एक बैचलर का शिक्षक होना
तीस साल के एक बैचलर का शिक्षक होना
उसके भीतर एक मां का जन्म होना है
जिसे सबसे ज्यादा ममता होती है
क्लास के पढ़ने में कमजोर और शैतान बच्चे पर
उसे डर होता है कि वो फेल हो जाएगा तो  आगे पढ़ें

निदा फ़ाज़ली के पलड़े पर अमिताभ-कसाब...खुशदीप
आंध्र प्रदेश विधानसभा में एआईएमआईएम विधायक दल के नेता अक़बरुद्दीन ओवैसी ने 24 दिसंबर 2012 को  निर्मल, आदिलाबाद में जो कुछ भी कहा, उसकी वजह से 14 दिन की न्यायिक हिरासत में है...अक़बर ने क्या-क्या कहा, इस पर मैं  जाना नहीं चाहता...लेकिन जाने-माने शायर और फिल्म गीतकार निदा फ़ाजली ने एक साहित्यिक पत्रिका को चिट्ठी  में जो लिखा है, आगे पढ़ें

अपनी कमाई का आधा आधा 
नैनीताल के फ्लैट पर लगी कुछ दुकानों पर, बन्दूकें, एयर पिस्टलें और एयर रायफलें रखी हुई थीं। मैं इस तरह की एक दुकान पर गया और बन्दूक चलाने के लिये उससे पैसों के बारे में पूछा। दुकान को एक छोटा सा लड़का देख रहा था। उसने अपना नाम अभितारी बताया और कहा, आगे पढ़ें

स्वामी विवेकानंद के दस घोष वाक्य
1   उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये. 2   तूफान मचा दो तमाम संसार हिल उठता; क्या करूँ धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है. तूफ़ान मचा दो तूफ़ान! 3 जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है. आगे पढ़ें

ओह, तो यह है संकट की असली वजह!
बहुधा, असली वजहें कुछ और ही होती हैं.अगर आपको याद होगा तो पिछले पूरे वर्ष भर बारदाना का भारी संकट रहा. गेहूं की फसल जब पक कर तैयार हुई तो उसके भंडारण के लिए बारदाना ढूंढे नहीं मिल रहा था. और, जैसी कि परंपरा है, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो सीधे केंद्र पर आरोप लगा दिया कि बारदाना का संकट उसकी वजह से हो रहा है. और लगता है यह समस्या इस वर्ष भी जारी रहेगी, आरोपों प्रत्यारोपों की झड़ी इस वर्ष भी चलती रहेगी. आगे पढ़ें

खार जैसे रह गए हम डाल पर
सांप, रस्सी को समझ डरते रहे
और सारी ज़िन्दगी मरते रहे
खार जैसे रह गए हम डाल पर
आप फूलों की तरह झरते रहे आगे पढ़ें

6 टिप्पणियाँ:

Dev K Jha ने कहा…

समस्या युद्ध की नहीं है और न ही कोई युद्ध चाहता है। अस्थिर पाकिस्तान की भारत के खिलाफ़ की गई इस धॄष्टता पर हमारा मौन तंत्र एक बडी समस्या है। नक्सली समस्या के लिए तो आज कल कोई सार्थक प्रयास हुआ ही नहीं।

मीडिया तो अजीब है ही... गोरखपुर में हर साल दिमागी बुखार से हज़ारों लोग मरते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता की इस पर कोई बडी खबर बनी होगी... सब मैनीपुलेटेड लगता है कभी कभी...

सार्थक बुलेटिन....

रविकर ने कहा…

घर की मुर्गी नोन है, घर का भेदी पाल ।
पेट फाड़ के बम रखे, काटे गला हलाल ।
काटे गला हलाल, उछाले जाते हर दिन ।
चिंतित अंतरजाल, कौन ले बदला गिन-गिन ?
पहला दुश्मन पाक, दूसरे नक्सल ठरकी ।
मरने दो यह पुलिस, बात आखिर है घर की ।।

रविकर ने कहा…

12 January, 2013
चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल-

काट कपाल धरे कपटी, कटुता हर बार बढ़ावत है ।

भूल गया अघ मानवता, फिर भी नित पाक कहावत है ।

नक्सल भी बम प्लांट करे, शव में अब दुष्ट लगावत है ।

अन्दर बाहर घात हुवे, सरदी सरदार भगावत है ।






नक्सल मारे जान से, फाड़ फ़ोर्स का पेट।
करवाता बम प्लांट फिर, डाक्टर सिले समेट ।

डाक्टर सिले समेट, कहाँ मानव-अधिकारी ।
हिमायती हैं कहाँ, कहाँ करते मक्कारी ।

चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल ?
शत्रु देश नापाक, कहाँ का है तू नक्सल ??

रविकर ने कहा…

सीमा पर उत्पात हो, शत्रु देश का हाथ ।
फेल खूफिया तंत्र है, कटते सैनिक माथ ।
कटते सैनिक माथ, रहे पर सत्ता सोई ।
रचि राखा जो राम, वही दुर्घटना होई ।
इत नक्सल आतंक, पुलिस का करती कीमा ।
पेट फाड़ बम प्लांट, पार करते अब सीमा ।।

शब्दों से आक्रोश को, व्यक्त करे आकाश ।
देश रसातल में धंसे, देख लाल की लाश ।
देख लाल की लाश, अनर्गल बकती सत्ता ।
लेकिन पाकी फांस, घुसे हरदम अलबत्ता ।
इत नक्सल दुर्दांत, उधर आतंकी पोसे ।
करिए अब तो क्रान्ति, भावना से शब्दों से ।।

पाकी सिर काटे अगर, व्यक्त सही आक्रोश ।
मरे पुलिस के पेट में, नक्सल दे बम खोंस ।
नक्सल दे बम खोंस, आधुनिक विस्फोटक से ।
करे धमाका ठोस, दुबारा पूरे हक़ से ।
अन्दर बाहर शत्रु, बताओ अब क्या बाकी ।
नक्सल पीछे कहाँ, तनिक आगे है पाकी ।।

पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस ।
उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी ।
सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी ।
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी ।
सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

युद्ध किसी एक की करनी नहीं होता ... और यह भी तय है जब जब युद्ध होता है तब हानि युद्ध मे शामिल हर पक्ष को होती है ! पर बार बार जब घात हो तब अहिंसा और शांति का पाठ आखिर कोई कब तक पढ़े ... पलट कर वार तो करना ही पड़ता है ...

सार्थक बुलेटिन !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ घर के कुछ बाहर मारें,
पहचाने, घर द्वार बुहारें।

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