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बुधवार, 22 अगस्त 2012

पीढियों का अन्तर.... ब्‍लॉग बुलेटिन

सभी मित्रों को देव बाबा की राम राम... आज के बुलेटिन में एक गम्भीर मुद्दा उठाते हैं, आखिर पीढियों में हो रहे इस अन्तर और विचारों की सोच का फ़र्क कितना बडा होता जा रहा है... किशोरावस्था के बाद हमें लगता है की हम ज्यादा काबिल हैं और हमारे माता पिता हमें समझ ही नहीं रहे... आप क्या समझेंगे मेरे क्लास में सबके पास प्ले-स्टेशन है... मुझे भी चाहिए... जी वाकई यह घर घर की कहानी है और आनें वाले भविष्य में शायद यह अन्तर बढनें ही वाला है। 

पीढियों में हमेशा से कुछ न कुछ अन्तर होता ही आया है, हर पीढी अपनी पिछली पीढी से ज्यादा तेज़ है और तकनीकि और विज्ञान के मामलें में यह अन्तर वाजिब ही है, लेकिन वैचारिक मतभेद और आज कल की पीढी का ज़रा ज़रा सी बात में अपना नियंत्रण खो देनें की कहानी ज्यादा सुननें और देखनें को मिल रही है। एक बेटा अपनी मां को बोला तुम कभी मेरी बात को समझ ही नहीं सकती और मां बेचारी केवल इतना ही बोली की जब तू छोटा था और ठीक ठीक से अपना नाम भी नहीं बोलता था मैं तब तेरी सब बातें समझ लेती थी और आज जब तू सब कुछ साफ़ साफ़ बोलता है मैं तेरी कोई भी बात को समझ ही नहीं पाती... क्या कहें... 

आज कल की पीढी को अपने माता पिता को समझना होगा और वहीं माता पिता को भी अपनी संतान को पूरी आज़ादी देनी होगी... इस आज़ादी के मायनें अनुशासित व्यवहार होना चाहिए जिसमें बच्चों को अपनी मर्यादा का पूरा खयाल रखना चाहिए। जब बच्चे दूसरों की देखा देखी अपनी मांगो की एक लिस्ट लेकर माता-पिता को पकडा देते हैं उस समय उन्हे अपने परिवार की स्थिति का अंदाज़ा होना चाहिए न... वहीं आज कल की शिक्षा के लिए होनें वाली बच्चों की वाज़िब मांगे माता पिता को प्लान करनी चाहिए और कोशिस करके पूरी करनी चाहिए। यदि बच्चे अपने परिवार को समझे और उन्हे अपनी मर्यादा का भान रहे तो फ़िर आदर्श परिवार और एक बेहतर समाज की कल्पना आसानी से पूरी हो सकती है... सोच कर देखिए...

माता-पिता को समर्पित देव बाबा की एक कविता लीजिए... 


माता-पिता

बोध
संसार का 
बोध
सत्य और असत्य का
बोध
ऊंच और नीच का
हे पिता
पाया बस आप ही से पाया
जीने का साहस
बुद्दि और विवेक
और धैर्य
हे पिता
पाया बस आप ही से पाया

और हे मां
तुझसे पायी ममता
निःस्वार्थ भाव भक्ति
प्रेम और करुणा
भावनाओं की अभिव्यक्ति
कभी भी 
पीछे ना हटनें का साहस

हें पिता और माता
धन्य हुआ जीवन
धन्य हुआ यह तन मन
हे मां... हे पिता...


उम्मीद करते हैं इस पोस्ट से कुछ असर पडेगा... केवल इतना ही समझनें की देर है की... माता-पिता से बढकर दुनियां में कोई हो नहीं सकता इनकी कमी विधाता भी पूरा कर नहीं सकता...  

आईए अब एक नज़र आज के बुलेटिन पर
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मन की बातें..। बहुत खूब
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दो पड़ोसी और अल्पसंख्यक। डिवाईड एन्ड रूल है जी..
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क्रोध का रूपांतरण ......। जो सीख जाए वह धन्य हो जाए
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कुत्ते और आदमी। अच्छी कविता 
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हमेशा .....। क्या ?
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मित्रो आशा है आपको आज का बुलेटिन पसन्द आया होगा.... कल फ़िर मुलाकात होगी... तो मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद

जै हिन्द

6 टिप्पणियाँ:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

देव जी, पीढियों का अंतर शाश्‍वत सा हो गया है, फिरभी इसे पाटने की कोशिश तो की ही जानी चाहिए।

सार्थक बुलेटिन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

............
डायन का तिलिस्‍म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता..उतने ही सुन्दर सूत्र..

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

सुबह सुबह इतना सीरियस हो गए देव बाबा!! बुलेटिन के माध्यम से संदेस और कबिता दुनो... शानदार!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सार्थक सन्देश... गंभीर रचना के साथ

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बेहद सार्थक संदेश दिया है देव बाबू आज की बुलेटिन मे ... जय हो !
बेहद कड़वी हकीकत है यह आज के दौर की कि बेटा अपने माता - पिता के यह पूछने पर कि कहाँ जा रहे हो नाराज़ हो जाता है पर दूसरी ओर खुद ही फेसबूक पर सब को बताता फिरता है कि "going to the movies ... guys !!"

यह केवल संवाद की कमी के कारण है !

सार्थक बुलेटिन के लिए बधाइयाँ !

सदा ने कहा…

बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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