परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2011 मे शामिल ब्लॉगरों की रचनाओं का आंकलन करते हुये तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011 हेतु
चुने गए हैं . तो आज उनके ब्लॉग , उनकी रचनाओं से झलकते उनके व्यक्तित्व से आपको रूबरू करवाती हूँ , ताकि आप जान सकें कि यह चयन कितना सार्थक है . २०११ के सर्वश्रेष्ठ कवि - अविनाश चन्द्र ...
अविनाश के इस ब्लॉग से कई लोग परिचित होंगे , तो कई लोग अपरिचित भी होंगे - तो आइये आपको मैं अपनी कलम , अपनी पसंद से उनके ब्लॉग की सैर कराऊं .... 2008 से अपनी भावनाओं की पिटारी लिए अविनाश हमारे बीच हैं . कर्म, कर्तव्य, मकसदों के मध्य अपनी सोच की पैनी धार को इन्होंने अक्षुण रखा है . न व्यस्तताओं से त्राण , न कल्पनाओं से मुक्ति और ना ही चाह मुक्त होने की ....
मुकुट कभी जो था ही नहीं,
उसको क्या खोना क्या पाना।
जिस सत्ता की चाहत ही नहीं,
लोलुपता में क्या मर जाना।
छीन अगर कोई जाए तो,
क्यूँ मैं उस पर क्षोभ करूँ ?
कीचड़ भी उछला है गर तो,
क्या उसका संताप धरूँ ?
सूरज की आतिश को कोई,
कैसे भला बुझायेगा?
गंगाजल में डालो हलाहल,
वो अमृत हो जायेगा।
उज्जवल, पाक ध्वजा पर कोई,
धब्बे लगा नहीं करते।
छोटी, छोटी, छिटपुट, छिटपुट,
ऊष्मा में क्या जल जाना।
सरिता की धारा है कविता,
उसको दूर तलक जाना...
कविता , भावना एक निर्बाध नदी है , जो शुष्क होकर भी शुष्क नहीं होती , जो खामोश होकर भी आकृति लेती है - हर आक्षेपों से परे वह अपनी अनंत दिशा
तक बढ़ती जाती है . ऐसा न होता तो कैसे कहते अविनाश चन्द्र
एक कविता...
आंधी आई धूल उडी,
और मैंने गढ़ ली एक कविता।
आँखों में किरचों से बन गए,
बह निकली आंसू की सरिता।
लौकी तरोई की पीली कलियाँ,
पोली मिटटी की सर्दी सा।
याद मुझे है फिर से आया,
खाना वो अधपका पपीता।
अम्मा की फटकारें मीठी,
चटनी की चटकारें तीखी।
गुझिया , घेवर और पकौडी,
सत्तू से वो भरी कचौडी।
मुह में रस सारे भर आये,
तुमने पढ़ ली एक कविता ............. कविता तो गीली लकड़ी के धुएं से भी निकलती है , क्योंकि कवि की आँखें कविता है , उसका दिल और दिमाग कविता है ...
लोग कहते हैं कि मोह बंधन में डालता है जबकि प्रेम मुक्त करता है. प्रेम और मोह यानि कमजोरी की व्याख्या कवि की कलम से -
प्रेम और मोह....
माँ का प्रेम बड़ा निच्छल है,
पिता का प्रेम भी कम तो नही।
आँचल में है माँ के ममता,
पर नमी पिता की कम तो नही।
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है मोह जो माँ का व्याकुल है,
मुझको पाने को आकुल है।
वो हहर सा मुझ बिन जाती है,
आंखों से नीर बहाती है।
पर अद्भुत धीर पिता का है,
वो देता है, बस देता है।
कभी प्यार मुझे, फटकार मुझे,
कभी दुआ और दवा मुझे ।....
आक्रोश में सहजता , मन के दावानल के मध्य शीतलता तभी होती है , जब रिश्तों का अर्थ समझ में आता है . रिश्ते हैं तो व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग नज़र आता है और तूफानों का भी उसे खौफ नहीं होता .
पिता...
शैतान को खौफ है उससे,
खुदा भी रंज रखता है।
इस मिटटी की दुनिया में,
वो ही महफूज रहता है।
कब्र पर नाम खुदते हैं,
गलत पिता के।
मौत होती है औलाद की,
पिता उसकी रगों में बहता है।
भाई....
जब भी मुझे शक हुआ,
खुदा की इबादत पर।
भगवान् के अस्तित्व पर।
देखा तुझे और,
यकीं हो आया।
कम से कम सच था,
लक्ष्मण और भरत का होना।
बहना.....
क्या मिलता है,
इक्यावन रुपये में?
रोरी चन्दन के टीके,
एक रसमलाई,
एक रेशमी धागा।
अरबों दुआएं,
करोडों बालाएं।
बहन की मुस्कान,
और वो इक्यावन,
रुपये तहे हुए,
बटुए में।
के भैया को,
कस्ट न हो ,
राहखर्च का।
माँ.....
दिया दिखाना दिनकर को,
मना है।
मशाल ले चलना पूनम को,
मना है।
अग्नि से पवित्र उम्मीद करना,
मना है।
तो कैसे लिखूं,
तुम्हारे बारे में माँ??
मैं.....
आदि हूँ, अनंत हूँ।
साधनारत संत हूँ।
जब भी गिरा धरा पर,
यूँ अकड़ कर खडा हो गया।
तारों को दी चुनौती,
पर्वतों से बड़ा हो गया.
कितनी ही चुनौतियां हैं जीवन की , समय की , प्रेम की , विश्वास की , ...... एक आत्मशक्ति है अविनाश का यह ब्लॉग उनकी कलम से -
ठूँठ..............................
स्थिति है कि किसे चुनूँ , किसे विस्मृत करूँ ? ! शब्द भावों के हर पृष्ठ अपनी महत्ता बताते हैं . फिर भी भावों के कुछ पन्ने हाथ पकड़ लेते हैं , आँखें और मन उसके प्रभाव में कुछ देर ठिठके से ... भूल जाते हैं कि आगे भी बढ़ना है . जैसे ,
सिर्फ रक्तयुक्त को ही,
दर्द नहीं होता सदा.
कभी-कभी कलम भी,
बासाख्ता रोती है.
रुंधे गले में सभी,
शब्द अटक जाते हैं.
किसी भी ताप से,
पिघलती नहीं स्याही.
उसका तो रोना भी,
चाव से पढ़ लेंगे सभी.
वाहवाही अवसान की,
अदभुत है, अजीब है.
......................................... अदभुत और सोच से परे तो यह भी है कि कोई कलम के दर्द का भी सहयात्री हो !
शायद इन शब्दों की ताकत शिराओं में बहती है , जिससे यह ब्लॉग अपने आप में एक आशीर्वचन संग्रह सा है -
वस्तुतः रोज ही,
होते हैं उत्पन्न.
मेरे ही ह्रदय में,
आत्मा से मेरी.
अधिकतर तो टकरा कर,
तोड़ देते हैं दम.
ह्रदय की मजबूत,
स्पन्दनहीन दीवारों से.
पर कुछ रिस जाते हैं,
धमनियों-शिराओं से.
और कुछ जाते हैं भाग,
श्वास नलिकाओं से.
कुछ निकलते हैं,
फट कर पोरों से.
भरे भारी सी टीस,
बन कर करुण गीत.
साथ निकल जाते हैं,
कुछ साँस से मेरी.
बन के क्षितिज,
धरा का प्रेम-विचार.
बन के पारे कुछ,
आँखों से बह जाते हैं.
कुछ याद की मानिंद,
कोरों में ही रह जाते हैं.
कुछ रहते हैं सदा,
कानों में गुंजित मेरे.
मैत्री की डोर बन,
पिता के संस्कार.
पर कुछ बहते हैं,
हर क्षण शिराओं में.
अम्मा की आशीष के,
ये शब्द बहुत बलवान हैं....
पिता! तुम बूढ़े नहीं हो रहे।
नहीं घट रही है तुम्हारी,
डेसिबल आंकने की क्षमता।
सिक्स बाई सिक्स देखने भर ज्योति,
अभी भी है नेत्रों में।
किंचित अधिक ही हो गई है।
तुम छोड़ सकते हो एक और रोटी,
खींच सकते हो साइकिल,
और दसेक मील।
गदरा उठती है भिनसारे,
कुछ और तुम्हारी केशराशि।
फिरा सकते हो अकेले हेंगा तुम,
निश्चय ही हल चला सकते हो।
नहीं सकुचा रही तुम्हारी छाती।
आज भी नहीं जीतता है जनेऊ।
नहीं टूटते रोयें तुम्हारे।
कलाईयों का बल नहीं थमा,
स्कंध विपन्न नहीं हो पाए हैं।
पिता! नहीं उगे गड्ढे तुम्हे।
नेत्र ज्योतित हैं पुंज-पुलकित।
दंतपंक्ति आज्ञाकारी छात्रों की भांति,
सुन्दर पुष्ट प्रयत्नशील हैं।
रुक्म ललाट नहीं भेद पाए हैं,
झुर्रियों के समवेत प्रहार।
यह मैं नहीं कहता तुमसे,
तुम मौन बोलते-पढ़ते आए हो।
ममता नेह आँचल टपकन,
हहरते लहरते मन के बीच,
मौन बैठे पिता, तुम जानते हो,
आयु नहीं होती उसकी,
आकाश कभी बूढा नहीं होता।...............
अविनाश चन्द्र के उदगार पर्वत से अटल, अविचल लगते हैं .... पूरी काव्य-यात्रा में एक संजीवनी सी शक्ति महसूस होती है .......
तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011 , २७ अगस्त को इस सम्मान से उन्हें सम्मानित किया जायेगा
20 टिप्पणियाँ:
अविनाश जी को हार्दिक बधाइयाँ।
congratulations.........
वाह बेहद उम्दा ब्लॉग और ब्लॉगर से परिचय हुआ ... आभार दीदी आपका !
अविनाश जी को बहुत२ बधाई,,,,,
रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
अविनाश जी को नियमित पढ़ता हूँ और बहुत प्रभावित हूँ..सम्मान के लिये ढेरों बधाईयाँ..
अविनाश जी को बधाई....
आपका बहुत शुक्रिया दी.
सादर
अनु
सार्थक चयन.......नो ओब्जेक्शन....:-)
अविनाश जी अनुज हैं मेरे!! और मेरे लिए वो सदा ही सर्वश्रेष्ठ कवि थे, हैं और रहेंगे!! इनकी कविता में छिपे भाव और शब्दों की मिठास और पवित्रता (जिसे लोग क्लिष्ठ भी कहते हैं) अद्भुत है और 'कवि' शब्द की सार्थकता को सिद्ध करती है!!
भाई अविनाश, बधाई और शुभकामनाएं!!
आज की सुबह बहुत खुशगवार हो गई है, मेरी ही नहीं बहुतों की| बहुत बहुत बहुत ढेर सी बधाईयां..
बहुत बढ़िया। अविनाश जी को ढेर सारी बधाई..
अंतिम कविता तो सर्व-श्रेष्ठ है ....बधाई ...
--सीधे सीधे ..अभिधा में लिखी गयी रचनाएँ दूरस्थ सन्देश देती हैं भाव सम्प्रेषण करती हैं ...न शब्दों की क्लिष्टता , न अनावश्यक व्यंजना व अलंकारिकता... इन कविताओं को श्रेष्ठ बनाती है...
अविनाश को बहुत समय से पढ़ रही हूँ .... उसकी हर रचना प्रभावित करती है ..... इस प्रस्तुति के लिए आभार
बधाई हो अविनाश भाई।
अविनाशजी की रचनाएँ प्रभावित करती हैं !
he truly deserves
badhai.......
उभरते कवि अविनाश चन्द्र मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं। इस युवा कवि की रचनायें पढने के बाद कविर्मनीषी शब्द का अर्थ आसानी से समझ आता है।
अविनाश जी को बहुत - बहुत बधाई ... इस परिचय एवं प्रस्तुति के लिए आपका आभार
अलिनाश को आशीर्वाद देने के लिए ेे बाबा े् अविनाश भी हाज़िर हैं
बहुत बहुत बधाई....
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!