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शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

गहरे पानी पैठने की ज़रूरत है ..... आधार, अस्तित्व , प्रेम , निराकरण , प्रश्न -उत्तर .... एक कवि , एक लेखक ... सबकुछ देता है ...


एक सजग पाठक और बेपरवाह लेखक..कविता-कहानी-संगीत-फिल्म और न जाने किस-किस चीज़ के लिए दीवानगी..टीवी-आकाशवाणी में प्रस्तोता..वसुधा,पहल,वागर्थ,साक्षात्कार आदि पत्रिकाओं में वर्षों पहले कविताएँ/समीक्षा प्रकाशित..आवारगी प्रधान लक्षण..
बेबाक , स्पष्ट , उन्मुक्त आकाश में उड़ते पंछी से भाव में यह परिचय है विमलेन्दु जी का .
ब्लॉग

उत्तम पुरुष


11 मार्च, 2011 को इस ब्लॉग का निर्माण करते हुए विमलेन्दु जी ने लिखा -
" यह ब्लॉग मैने कला-संस्कृति-साहित्य और जीवन-शैली पर अपने और आपके विचार साझा करने के लिए शुरू किया है.यद्यपि ऐसे मंचों की कोई कमी नहीं है, फिर भी हर नयी साझेदारी कुछ नया देती है-इसी विश्वास के साथ मेरा यह विनम्र प्रयास है. आप सब का सहयोग इस ब्लॉग को जीवंत बनायेगा.."
हर व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण होता है , सामाजिक, पारिवारिक जीवन के लिए एक ख़ास नज़रिया .... इसी नज़रिए के अंतर्गत है यह आलेख

................
होली एक ऐसा त्योहार है , जो रंगों से भरपूर खुशियाँ दे जाता है और उसके आने से पहले रंग भरे ख्याल

इस होली में

आसमान मे भरना

अपने मनचाहे रंग

बादलों को रंगना सांवला

हवा को रंगना सफेद

तुम रंगना धूप को सुनहरा

पृथ्वी को रंगना हरा

चाँद को ज़रा उजला रंगना

और तारों को रंगना चमकीला

दिशाओं को रंगना नीला.


देखना..! इस होली में

मैं इन्द्रदनुष बन जाऊँगा."


गाम्भीर्य और किंचित मुस्कान - दोनों का सहज समावेश है इस ब्लॉग पर ....
पाठक को बाँध लेती हैं रचनाएँ -

अक्षांशों और देशांतर के जाल में
मेरी स्थिति
इन दिनों कुछ इस तरह है
कि लोग मुझे
पराजित और उदास कहते है.

मैं यहां एक निर्द्वन्द्व प्रतीक्षा में
बीत रहा हूँ
और वहाँ तुम
एक दुर्निवार व्याकुलता में गतिशील हो.

हमारे पास समय और
दूरी का
एक सीधा सा सवाल है
चुनौती सिर्फ इतनी है
कि इसे हल करने के लिए
हमें अपने गुरुकुलों को छोड़ना होगा.

इस समय यहाँ रात के
ग्यारह बजकर पैंतालीस मिनट हुए हैं
आकाश साफ है
और सप्तऋषि अपनी जगहों पर अटल
न जाने किस मंत्रणा में लीन हैं.

यह कर्क रेखा
जो मेरे शहर के थोड़ा बांये से गुजरती है
तुम्हारे शहर से बस ज़रा सा ही दायें तो है.

यहां मेरे चारों तरफ
हवा है,आकाश है, अकेलापन और उम्मीद है.

अगर यही चीज़ें
तुम्हारे आस पास भी हैं
तो देशकाल और वातावरण के तर्क से
हम कितने पास हैं...
देखो तो...!


शाम को छत पर टहलती लड़कियाँ
किसी और समय की लड़कियों से
होती है अलग.

टहलते-टहलते
ज़रा सी एड़ी उठा
होकर थोड़ा बेचैन
देखतीं बार बार--
कि आ रहा होगा
तीन दुर्गम पहाड़ियों को करता पराजित
उनका राजकुमार
लेकर दुर्लभ फल.

सूरज उतर रहा होता है उस वक़्त
भीतर उनके
चाँद निकल रहा होता है
स्वप्नलोक के किसी दूत सा
उनके अपने आकाश में.

जुमलों से पीछा छुड़ा
वे निकल भागती हैं वेदों से
और छुप जाती हैं
मोनालिसा की मुस्कान में.

न जाने कहाँ कहाँ से निकल
आ जाती हैं वे छत पर.

सड़क से गुज़रते हुए
छत की ओर देखने पर
आकाश के करीब दिखती हैं
शाम को छत पर टहलती लड़कियाँ...."

मेरी नज़रों से जब ऐसे ब्लॉग गुजरते हैं तो वे मेरे लिए किसी ग्रन्थ से कम नहीं होते ... यूँ ही लिख जाना कुछ और होता है , पर इस तरह लिखना ज़िन्दगी के हर गह्वर से गुजरकर , जीकर, सोचकर ही लिख पाता है एक कवि , एक लेखक , एक गीतकार ....

शाम के धुँधलके मे
अधेड़ औरत का साइकिल सीखना
सिर्फ़ हवा से बातें करने की
आदिम इच्छा से भरी होना ही नहीं है.

वह ज़रूर
भूख और रोटी के बीच की
अनिवार्य दूरी
तय कर लेने की जल्दी में होगी.

गड़बड़ा रहा होगा
दो पहियों पर संतुलन
जिसे ठीक कर लेने की
हड़बड़ी में ही
खुल गया होगा जूड़ा
लहराये होंगे आधे सफेद बाल
जो यकीनन धूप में नहीं हुए हैं.

कि ठंड शुरू होने से पहले ही
दिन भर की धूप
बुन डालने की जल्दी में
उलझ गया होगा ऊन
तब शरारती बच्चे की पहुँच से दूर
बाकी बचा गोला
आसमान पर रख
घूम कर गोल गोल चाँद
दूर करना चाहती है उलझन.

कल उसे बुनना होगा
कुछ फूल कुछ पत्तियों वाला
गर्म स्वेटर
पूरे घर के लिए.
...................................

इच्छाओं के अनन्त में

तुम्हारी थोड़ी सी अनुपस्थिति में


जीवन के खुले और बन्द पृष्ठों के मध्य का फर्क -


गहरे पानी पैठने की ज़रूरत है ..... आधार, अस्तित्व , प्रेम , निराकरण , प्रश्न -उत्तर .... एक कवि , एक लेखक ... सबकुछ देता
है ...

संभवामि युगे युगे !.... सच है , कृष्ण आरम्भ , कृष्ण मार्ग , कृष्ण - अनगिनत पगडंडियाँ . पगडंडियाँ बनती जाती हैं बढ़ने के

लिए ....

एक विस्तार हैं कृष्ण - बाल सुलभता से लेकर एक रहस्य तक . उस रहस्य कुण्ड से जिसने जो पाया वह कहता और लिखता गया .......

पर विराट को कौन बाँध पाया है !!!

6 टिप्पणियाँ:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आपकी पारखी नज़र से कोई भी नगीना छिपा नहीं रह सकता.. एक और नायाब शख्सियत से परिचय करवाया आपने!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

विमलेन्दु जी से परिचय करवाने के लिए आपका आभार रश्मि दीदी !

Aharnishsagar ने कहा…

अगर यही चीज़ें
तुम्हारे आस पास भी हैं
तो देशकाल और वातावरण के तर्क से
हम कितने पास हैं...
देखो तो...!


सुन्दर ..और गहरी सोच ..!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

विमलेन्दु जी से परिचय करवाना अच्छा लगा,,,,

सदा ने कहा…

विमलेन्‍दु जी ... के बारे में बिल्‍कुल सच कहा है आपने ... उनकी रचनाओं से प्रथम परिचय आपकी लेखनी ने कराया ... आभार आपका
विमलेन्‍दु जी को बधाई

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर परिचय का आभार..

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