यह महज एक प्रतियोगिता नहीं है, ब्लॉग, ब्लॉगर की पहचान, उन सुनहरे दिनों को लौटाने के अथक प्रयास की एक मजबूत कड़ी है। आपकी उपस्थिति,आपकी सराहना ब्लॉगरों के चेहरे पर एक खोई मुस्कान लौटाएगी और तय है कि वार्षिक अवलोकन तक हम कई ब्लॉग्स में प्राणप्रतिष्ठा कर पाएंगे।
"जीवन के सफर में कितने फूल और उनके साथ काँटों का सुख भी मिलता है. उनको चुन लिया और फिर कहीं फूलों के साथ और कहीं काँटों के बीच फूल की कोमलता सब को पिरो लिया और थमा दिया . सारे अहसास अपने होते हैं, चाहे वे दूसरों ने किये हों. उनको महसूस करने की जरूरत होती है और कभी तो कोई अपने अहसासों को थमा कर चल देता है और उनको रूप कोई और देता है. फिर महसूस सब करते हैं.कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है" इतनी सशक्त ख्यालोंवाली रेखा श्रीवास्तव जी आज अपनी एक छोटी सी कहानी के साथ हमारे साथ हैं।
पहले मेरी माँ है
रानू को समझ न आया कि आज माँ को ये लोग क्या कर रहीं हैं । कभी अच्छी साड़ी नानी के यहाँ से लाईं तो बुआ ने छीन ली । रात दिन काम में लगी रहने वाली माँ आज लेटी क्यों है?
पापा को लोग घेर कर बैठे थे । हर बात में माँ को झिड़कने वाले पापा चुप कैसे हैं ? वह माँ के पास जाकर हिलाने लगा - "उठो माँ तुम सोई क्यों हो?"
बुआ ने हाथ पकड़ कर खींच लिया - "दूर रहो , तेरी माँ भगवान के घर चली गई है ।"
"किसने भेजा है? पापा ने , दादी ने या आपने ?"
"बेटा कोई भेजता नहीं , अपने आप चला जाता है आदमी ।"
"झूठ , झूठ , सब झूठ कह रहे हो ।" वह आठ साल का बच्चा अपनी माँ को तिरस्कृत ही देखता आ रहा था । माँ कुछ कहती तो पापा कहते -"पहले मेरी माँ है , उनके विषय में कुछ न सुनूँगा ।"
वह दौड़कर पापा के पास गया और झकझोरते हुए बोला - " पापा आपने मेरी माँ को क्यों भगवान के पास भेज दिया ? माँ से हमेशा कहते थे कि पहले मेरी माँ है , तो अपनी माँ को पहले क्यों नहीं भेजा ?"
वापस दौड़कर माँ के पास आया और शव के ऊपर गिर कर चीख चीख कर रोने लगा ।
26 टिप्पणियाँ:
दिल को छू लेने वाली मार्मिक कहानी
" पापा आपने मेरी माँ को क्यों भगवान के पास भेज दिया ? माँ से हमेशा कहते थे कि पहले मेरी माँ है ,
बेहद मार्मिक...
सादर
सादर प्रणाम दीदी को
कई अनमोल हीरे हैं ब्लॉग जगत में
ओह ! सच हैं एक स्त्री को माँ के रूप में जो सम्मान प्यार मिल पता हैं वो पत्नी के रूप में ज्यादातर नहीं | लोग भूल क्यों जाते हैं पत्नी भी उनके बच्चे की माँ हैं |
ओह, बहुत मार्मिक
मर्मस्पर्शी ...
आह!
जहाँ स्त्री ही स्त्री के दुःख को समझ नहीं पाती, कैसी विडम्बना है उस समाज की..कोमल बचपन की पीड़ा को व्यक्त करती मार्मिक कहानी
मर्मस्पर्शी कहानी
बहुत मार्मिक लघुकथा ।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06 -07-2019) को '' साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्य है " (चर्चा अंक- 3388) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
मार्मिक!
मर्मस्पर्शी कहानी ।
मार्मिक और संवेदनशील
रेखा दी के रचना संसार से देर से जुड़ा, लेकिन जब जुड़ा तो एक जीवन भर का नाता हो जैसे। इनके आलेख और कहानियाँ सरोकार से जुड़ी होती हैं और हमेशा एक सोच को प्रेरित करती हैं।
प्रस्तुत कहानी एक बिल्कुल नए रूप में अपनी बात कहती है। झकझोरकर रख देती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यह लघुकथा कोई मार्मिक दृश्य प्रस्तुत करने के लिए नहीं लिखी गई है, बल्कि अनेक परिवारों में पल रहे दोहरे मानदण्डों को उजागर करती है, उस मासूम बच्चे के सवाल के रूप में, जिसका दुर्भाग्यवश किसी के पास कोई जवाब नहीं!
बहुत अच्छी लघुकथा...!
माँ !!
बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना !
मार्मिक रचना.
सादर प्रणाम रेखा माँ
मार्मिक और संवेदनशील बहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा...!
मन को मथती हुई और सोयी हुई संवेदना को झकझोरती हुई हृदय विदारक कहानी ! एक बूँद में जैसे समूचा सागर ! थोड़े से शब्द वजूद को निमिष मात्र में स्तब्ध कर गए ! बहुत सुन्दर !
दिल को छूती सुंदर लघुकथा।
मर्मस्पर्शी लघुकथा.... शुभकामनाएं दी
मर्मस्पर्शी लघुकथा.... शुभकामनाएं दी
बहुत ही मार्मिक कहानी। कथासागर से परिचय होना अच्छा लगा। आदरणीया रेखाजी की कई कहानियाँ पढ़ गई हूँ। बहुत अच्छी कहानियाँ हैं आपके ब्लॉग पर। सादर।
मार्मिक लघुकथा!
बहुत बधाई आ. रेखा जी!
~सादर
अनिता ललित
उफ, दर्दनाक !
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