कुछ रचनाएँ शेष रह गई हैं, जिसे मैं हफ्ते भर का अतिरिक्त समय लेकर प्रकाशित करुँगी। अब कोई नई प्रविष्टि नहीं ले पाऊँगी।
अरुण चंद्र रॉय जी को भी सब जानते हैं और उनकी कलम ने सबको बाँधा है। यह कविता उनके कोमल मन का परिचय देती है।
बहुत याद आ रही है
कील पर टंगी
बाबूजी की कमीज़
शर्ट की जेब
होती थी भारी
सारा भार सहती थी
कील अकेले
होती थी
राशन की सूची
जिसे बाबूजी
हफ्तों टाल मटोल करते रहते थे
माँ के चीखने चिल्लाने के बाद भी
तरह तरह के बहाने बनाया करते थे बाबूजी
फिर इधर उधर से पैसों का जुगाड़ होने के बाद
आता था राशन
कील गवाह थी
उन सारे बहानो का
बहानो का भार जो बाबूजी के दिल पर पड़ता था
उसकी भी गवाह थी
कील
बाबूजी के जेब में
होती थी
दादा जी की चिट्ठी
चिट्ठी में दुआओं के साथ
उनकी जरूरतों का लेखा जोखा
जिन्हें कभी पूरा कर पाते थे बाबूजी
कभी नहीं भी
कील सब जानती थी
कील
उस दिन बहुत
खुश थी
जब बाबूजी की जेब में था
मेरे परीक्षा-परिणाम की कतरन
जिसे सबके सोने के बाद
गर्व से दिखाया था उन्होंने
माँ को
नींद से जगा कर
कील उस दिन भी
खुश थी
जिस दिन बाबूजी ने
बांची थी मेरी पहली कविता
माँ को
फिर से नींद से जगा कर
बाबूजी की जेब में
जब होती थी
डॉक्टर की पर्ची
जांच की रिपोर्ट
उदास हो जाती थी
कील
माँ से पहले
ठुकने के बाद
सबसे ज्यादा खुश थी
कील
जब बाबूजी लाये थे
शायद पहली बार
माँ के लिए बिछुवे
अपनी आखिरी तनख्वाह से
आज
बाबूजी नहीं हैं
उनकी कमीज़ भी नहीं है
लेकिन कील है
अब भी
माँ के दिल में
चुभी हुई
हमारे दिल में भी ।
11 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर ! अंदर तक भिगो गयी
आह्ह
वाहः
गज़ब का लेखन
बहुत सजीव लेखन
कुछ यादें कभी धूमिल नहीं होती ..जीवंत रचना
इंसान चला जाता है लेकिन उसकी यादें कभी नहीं जाती हैं,
बहुत अच्छी मर्मस्पर्शी रचना
अरुण जी बेशक उम्र में मुझसे छोटे हैं, पर कविताएँ रचना, किसी निर्जीव वस्तु का मानवीकरण कर उसको शब्दों में ढालना इनसे सीखा है। आज भी मैं मानता हूँ अरुण जी प्रकाशन से इतर सिर्फ कवि होते तो समाज को अपने संवेदनशीलता से ज्यादा दे पाते। शुभकामनाएं अरुण जी । अरुण जी की ये कविता अपने आप में सर्वश्रेष्ठ है।
कीलें कितना वजन सहती है दर्द का तो खुशियों का भी...हमारी स्मृतियों में पिता की याद बन कर...
अच्छी कविता
अरुण जी एक बहुत ही संवेदनशील रचनाकार हैं। इनकी कविताएँ दिल को छूती है और इनके आलेख विचारोत्तेजक होते हैं। इनकी कविताओं में प्रयुक्त बिम्ब हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से उठाए हुए होते हैं, चाहे वो व्यक्ति हो या वस्तु और दोनों के सामंजस्य से एक नया समीकरण गढ़ना, अरुण जी का चमत्कार है।
इस कविता के माध्यम से मेरा इनसे परिचय हुआ और जब तक वो सक्रिय रहे मैं इनकी कविताओं को पढ़ता रहा और गुनता रहा! रिश्तों की धुरी एक कील भी हो सकती है जो दिल में चुभ जाए, वो सिर्फ अरुण जी ही देख सकते हैं।
बहुत खूब!
दिल को छूती कविताएँ संवेदनशील रचनाकार
आज
बाबूजी नहीं हैं
उनकी कमीज़ भी नहीं है
लेकिन कील है
अब भी
माँ के दिल में
चुभी हुई
हमारे दिल में भी । बेहद हृदयस्पर्शी रचना
अद्भुत .. दिल को छूने वाली रचना
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