रेणु
रचनात्मकता के छोटे से प्रयास के रूप में ब्लॉग लेखन | मूलतः पढना ही सर्वोपरि |
चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा
भला ! कैसे पहुँच पाऊँगी मैं ?पर ''इक रोज मिलूंगी तुमसे ''
कह जी को बहलाऊंगी मैं | !!
मौन साधना तुम मेरी ,
मनमीत ! तुमसा कहाँ कोई प्यारा ?
मन -क्षितिज पर स्थिर हुआ -
तुम्हारी प्रीत का झिलमिल तारा ;
इक पल भी तुम्हे भूल भला
कैसे सहज जी पाऊँगी मैं ?
जगती आँखों के सपने तुम संग -
देखूं !कहाँ अधिकार मेरा ?
फिर भी पग -पग संग आयेगा -
ये करुणा का उपहार मेरा ;
ले ख्वाब तुम्हारे आँखों में -
हर रात यूँ ही सो जाऊंगी मैं -
एकांत भिगोते नयन - निर्झर -
सुनो ! मनमीत तुम्हारे हैं ,
मेरे पास कहाँ कुछ था -
सब गीत तुम्हारे हैं ;
इस दिव्य , अपरिभाषित प्यार को
रच गीतों में अमर कर जाऊंगी मैं !!
तुम ! वाणी रूप और शब्द रूप ,
तुम ! स्नेही मन- सखा मेरे ;
बांधे रखते स्नेह - डोर में -
तुम्हारे सम्मोहन के घेरे ;
थाम इन्हें जीवन-पार कहीं -
आ तुममें मिल जाऊंगी मैं -
चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा -
भला ! कैसे पहुँच पाऊँगी मैं ?
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अनिता ललित
प्यारी बेटियाँ
https://boondboondlamhe-anita. blogspot.com/2016/09/blog- post_24.html
भोर सी सुहानी होती हैं बेटियाँ !
पाँव पड़ते ही जिनके
हो जाता है घर में उजाला,
सूरज की किरणों सी-
बिछ जाती हैं,
ढक लेती हैं,
हर अँधेरे कोने को
अपनी सुनहरी आभा से !
रिमझिम बूँदों सी होती हैं बेटियाँ !
मचलती, थिरकती, गुनगुनाती
भिगोती, मन लुभाती,
मिटा देती हैं थकन
और आँगन का सूनापन,
अपनी चंचल किलकारियों
और अंतहीन
मख़मली बातों से !
मंदिर की घंटियों सी होती हैं बेटियाँ !
गूँजती रहती है जिनकी बातें
कानों में,
और थपथपाती हैं
दिलों के द्वार,
लेकर मन में
चंदन की सुगंध,
कर देती हैं पावन
हर उस शय को
जो होती है उनके आसपास
अपने स्नेहिल स्पर्श से !
माँ की दुआओं सी होती हैं बेटियाँ!
जो रहती हैं बन कर परछाई
पिता और भाई के साथ !
बचाती हैं हर संकट से उन्हें,
संभालती हैं
हर मुश्किल घड़ी में ,
देकर मज़बूत सहारा
अपने विश्वास का,
थामती हैं, भरमाती हैं
अपनी मासूम संवेदनाओं से !
चोट पर मलहम सी होती हैं बेटियाँ!
खींच लेती हैं
हर दर्द को ,
सहलाती हैं प्यार से,
धोती हैं अपने आँसुओं से
उस ज़ख़्म को,
जो दिखता नहीं किसी को
पर महसूस करती हैं वो
अपनी आत्मा की गहराई से !
शीतल चाँदनी सी होती हैं बेटियाँ !
देती हैं सुक़ून,
ग़म के घने बादलों को
हटाकर,
मिटाकर अँधेरी-स्याह रातों की
कालिमा,
उबारती हैं,
देती हैं हिम्मत
अपने मासूम आश्वासनों
और स्निग्ध,
निश्छल मुस्कानों से !
घर का उल्लास होती हैं बेटियाँ,
हर दिल की आस होती है बेटियाँ,
पूजा की ज्योत होती हैं बेटियाँ,
बरसता है ईश्वर का नूर सदा उस दर पर,
हँसती-खिलखिलाती हैं जिस घर में प्यारी बेटियाँ !!!
नाच-नाच के
थक गयी जब मैं
बैठ़ गई सुस्ताने
पेड़ की छाँव में
पलक झपकते पेड़
पेड़ ही न रहा
मजबूरन कंक्रीट के जंगलों में
छाया की तलाश में
भटक रही हूँ
समय पंख लगा
उड़ गया पल भर में
हताश मैं
अंधी गली के
कोने में पड़ी
जीवन का
चिन्तन कर रही हूँ
एक एक करके
यादों की परत हटाते हुए
देखो तो मैं मूरख
अपने आप से ही
बात कर-करके
कभी आँखों में नमी
और कभी चेहरे पर हँसी
बिखरा रही हूँ
हठ़ात सडाँध का एक झोंका
मुझे हकीक़त के
दायरे में खींच लाता है
मैं सोच रही हूँ
आयेगा एक दिन ऐसा ही
सभी के जीवन में
फिर भी
भविष्य के लिये
वर्तमान को
दांव पर लगते देख
घबरा रही हूँ मैं
स्वयं की जैसी गति देख
सभी गतिमान की
बेचैन हुई जा रही हूँ मैं
तरक्की की अंधी दौड़ में
भागते-भागते
जीवन की सच्चाई से
रूबरू होकर
फिर से पेड़ की छाँव
तलाश रही हूँ मैं
कठपुतली सा मुझे
नचा-नचा के तू न थका पर
भोर सी सुहानी होती हैं बेटियाँ !
पाँव पड़ते ही जिनके
हो जाता है घर में उजाला,
सूरज की किरणों सी-
बिछ जाती हैं,
ढक लेती हैं,
हर अँधेरे कोने को
अपनी सुनहरी आभा से !
रिमझिम बूँदों सी होती हैं बेटियाँ !
मचलती, थिरकती, गुनगुनाती
भिगोती, मन लुभाती,
मिटा देती हैं थकन
और आँगन का सूनापन,
अपनी चंचल किलकारियों
और अंतहीन
मख़मली बातों से !
मंदिर की घंटियों सी होती हैं बेटियाँ !
गूँजती रहती है जिनकी बातें
कानों में,
और थपथपाती हैं
दिलों के द्वार,
लेकर मन में
चंदन की सुगंध,
कर देती हैं पावन
हर उस शय को
जो होती है उनके आसपास
अपने स्नेहिल स्पर्श से !
माँ की दुआओं सी होती हैं बेटियाँ!
जो रहती हैं बन कर परछाई
पिता और भाई के साथ !
बचाती हैं हर संकट से उन्हें,
संभालती हैं
हर मुश्किल घड़ी में ,
देकर मज़बूत सहारा
अपने विश्वास का,
थामती हैं, भरमाती हैं
अपनी मासूम संवेदनाओं से !
चोट पर मलहम सी होती हैं बेटियाँ!
खींच लेती हैं
हर दर्द को ,
सहलाती हैं प्यार से,
धोती हैं अपने आँसुओं से
उस ज़ख़्म को,
जो दिखता नहीं किसी को
पर महसूस करती हैं वो
अपनी आत्मा की गहराई से !
शीतल चाँदनी सी होती हैं बेटियाँ !
देती हैं सुक़ून,
ग़म के घने बादलों को
हटाकर,
मिटाकर अँधेरी-स्याह रातों की
कालिमा,
उबारती हैं,
देती हैं हिम्मत
अपने मासूम आश्वासनों
और स्निग्ध,
निश्छल मुस्कानों से !
घर का उल्लास होती हैं बेटियाँ,
हर दिल की आस होती है बेटियाँ,
पूजा की ज्योत होती हैं बेटियाँ,
बरसता है ईश्वर का नूर सदा उस दर पर,
हँसती-खिलखिलाती हैं जिस घर में प्यारी बेटियाँ !!!
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हे भगीरथ ! सुनो,
तुम्हारे याचना, वंदना से
द्रवित ,क्षरित मैं
अवगुंठन को तोड़
प्रबल प्रवाह के साथ
निकली थी,,,
तुम्हारी अनुनय,विनय,प्रार्थना से
ध्यानलीन शान्त स्थितिप्रज्ञ
भोले शम्भू महादेव ने जटाओं को खोल
थाम लिया मेरा वेग,
उन्माद,निनाद, उल्लास ,में,
मैं भागीरथी ,,,
शिव की जटाओं में
संकुचित, सिमट
जब निकली
तुम्हारी अनुचरी बन
चल पड़ी
तारने तुम्हारे पुरखे
सगर- पुत्रों की भस्म ।
हे भगीरथ,मैंने वचन निभाया
भस्मीभूत तुम्हारे पुरखे
स्वर्गगामी हुये ।
तारिणी,जान्हवी,सुरसरि बना
मेरी वलय को तोड़
मेरी छाती पर चढ़
लील लेना चाहते हैं
मनुपुत्र ।
कह दो इन्हें
हिमाचल सुता हूँ मैं
जब प्रलयंकर रूप धर
लील जाऊंगी तुम्हारे दम्भ
मिटा दूंगी तुम्हारा अहंकार
बनाते रहोगे बांध,,
पाटते रहोगे मेरे पाट
बांधते रहो,
कल्प भर में जलप्लावित कर
समा लुंगी धरती को ।
देखते रहना किसी पर्वत के
उतंग शिखर से
किंकर्तव्यविमूढ़,,,,,।
तुम्हारे याचना, वंदना से
द्रवित ,क्षरित मैं
अवगुंठन को तोड़
प्रबल प्रवाह के साथ
निकली थी,,,
तुम्हारी अनुनय,विनय,प्रार्थना से
ध्यानलीन शान्त स्थितिप्रज्ञ
भोले शम्भू महादेव ने जटाओं को खोल
थाम लिया मेरा वेग,
उन्माद,निनाद, उल्लास ,में,
मैं भागीरथी ,,,
शिव की जटाओं में
संकुचित, सिमट
जब निकली
तुम्हारी अनुचरी बन
चल पड़ी
तारने तुम्हारे पुरखे
सगर- पुत्रों की भस्म ।
हे भगीरथ,मैंने वचन निभाया
भस्मीभूत तुम्हारे पुरखे
स्वर्गगामी हुये ।
तारिणी,जान्हवी,सुरसरि बना
मेरी वलय को तोड़
मेरी छाती पर चढ़
लील लेना चाहते हैं
मनुपुत्र ।
कह दो इन्हें
हिमाचल सुता हूँ मैं
जब प्रलयंकर रूप धर
लील जाऊंगी तुम्हारे दम्भ
मिटा दूंगी तुम्हारा अहंकार
बनाते रहोगे बांध,,
पाटते रहोगे मेरे पाट
बांधते रहो,
कल्प भर में जलप्लावित कर
समा लुंगी धरती को ।
देखते रहना किसी पर्वत के
उतंग शिखर से
किंकर्तव्यविमूढ़,,,,,।
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ऐसा कुछ लिखने की चाहत जो किसी की जिंदगी बदल पाए ...मन के अनछुए उस कोने को छू पाए जो इक कवि अक्सर छूना चाहता है ...काश अपनी लेखनी को कवि-काव्य के उस भाव को लिखने की कला आ जाये ....फिलहाल आपको हमारे मन का गुबार खूब मिलेगा यहाँ ...जो समाज में यत्र तत्र बिखरा है ..| दिल में कुछ तो है, जो सिसकता है, कराहता है ....दिल को झकझोर जाता है और बस कलम चल पड़ती है |
सविता मिश्रा जी की रचना
थक गयी जब मैं
बैठ़ गई सुस्ताने
पेड़ की छाँव में
पलक झपकते पेड़
पेड़ ही न रहा
मजबूरन कंक्रीट के जंगलों में
छाया की तलाश में
भटक रही हूँ
समय पंख लगा
उड़ गया पल भर में
हताश मैं
अंधी गली के
कोने में पड़ी
जीवन का
चिन्तन कर रही हूँ
एक एक करके
यादों की परत हटाते हुए
देखो तो मैं मूरख
अपने आप से ही
बात कर-करके
कभी आँखों में नमी
और कभी चेहरे पर हँसी
बिखरा रही हूँ
हठ़ात सडाँध का एक झोंका
मुझे हकीक़त के
दायरे में खींच लाता है
मैं सोच रही हूँ
आयेगा एक दिन ऐसा ही
सभी के जीवन में
फिर भी
भविष्य के लिये
वर्तमान को
दांव पर लगते देख
घबरा रही हूँ मैं
स्वयं की जैसी गति देख
सभी गतिमान की
बेचैन हुई जा रही हूँ मैं
तरक्की की अंधी दौड़ में
भागते-भागते
जीवन की सच्चाई से
रूबरू होकर
फिर से पेड़ की छाँव
तलाश रही हूँ मैं
कठपुतली सा मुझे
नचा-नचा के तू न थका पर
नाच-नाच के थक गयी हूँ मैं |
11 टिप्पणियाँ:
सभी को शुभकामनाएं !
सभी उम्दा रचनाकार अनेकानेक विधाओं के लेखन में निपुण
हार्दिक बधाई असीम शुभकामनाओं के संग
सभी की प्रस्तुति ...शानदार 👌
बहुत सुंदर बुलेटिन सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
व्वाहहहह..
आज हम महिलाओं का वर्चस्व..
बेहतरीन लेखन...
सभी को शुभकामनाएँ...
सादर..
माँ की दुआओं सी होती हैं बेटियाँ!
जो रहती हैं बन कर परछाई
पिता और भाई के साथ !
बचाती हैं हर संकट से उन्हें,
संभालती हैं
हर मुश्किल घड़ी में ,
देकर मज़बूत सहारा
अपने विश्वास का,
थामती हैं, भरमाती हैं
अपनी मासूम संवेदनाओं से !
अहा 👌👌 सुंदर भावों का संगम ....अनिता ललित जी को इस बेहतरीन सृजन के लिये बधाई के साथ-साथ सभी रचनाकारों को अनंत शुभकामनाएं ....
आपका अत्यंत आभार प्रस्तुति एवम चयन के लिये।
एट से बढकर एक रचनाएं...
सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएंं ।
आदरणीय रश्मि जी और शिवम् जी आप दोनों की हृदय से आभारी हूँ कि ब्लॉग बुलेटिन के मंच पर तीनो विदुषी सखियों से मंच साझा करने का दुर्लभ अवसर प्रदान किया | तीनो सखियों प्रिय सविता मिश्रा जी , प्रिय अनिता ललित जी और प्रिय रेनू सिंह जी के ब्लॉग पर जाकर बहुत अच्छा लगा | सभी को हार्दिक शुभकामनायें और बधाई | सभी पाठकों का हार्दिक आभार जिन्होंने रचना को पढ़ा | ब्लॉग बुलेटिन को पुनः आभार |
सखी रेणु सिंह जी के ब्लॉग पर टिप्पणी दिख नहीं रही \ उनके लिए ये टिप्पणी यहाँ भी डाल रही हूँ |
प्रिय रेनू जी , आपकी रचना को पढ़ और ब्लॉग को देखकर बहुत प्रसन्नता हुई |दूसरी रचनाएँ भी देखी , मुझे बहुत पसंद आया आपका लेखन | सधेऔर परिपक्व भावों से भरे सुंदर लेखन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | ब्लॉग बुलेटिन को आभार , जिनके सौजन्य से आपके ब्लॉग तक पहुँच पाई| सस्नेह —
हार्दिक आभार,,आपका स्नेह बस यूं ही बना रहे
चारों अच्छी रचनाएँ !!
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!