एक लकीर खींची थीसामने, और पूछ रही थी वह -
तैयार हो दौड़ने के लिए ?
उसने बड़े रोचक अंदाज में उसे देखा, और कहा -
पंख दे दो, तो उड़के भी दिखा सकती हूँ ...
समय ने पंख दिए, या विभा जी ने खुद गढ़ लिए, जो भी हो, आज उनका परिचय क्षेत्र बड़ा है, कार्यक्षेत्र बड़ा है, ... जितना कहूँ, कम होगा।
आज इस प्रतियोगिता में उनकी एक लघुकथा -
तन पर भारीपन महसूस करते अधजगी प्रमिला की आँख पूरी तरह खुल गयी। भादो की अंधेरिया रात और कोठरी में की बुझी बत्ती में भी उसे उस भारी चीज का एहसास उसके गन्ध से हो रहा था, "कौन है ?" सजग होकर परे हटाने की असफल प्रयास करती पूछी।
"मैं! मुझे भूल गई?"
" तुझे इस जन्म में कैसे भूल सकती हूँ.. तेरे गन्ध को भली-भांति पहचानती हूँ..!"
"फिर धकिया क्यों रही है?"
"सोच-समझने की कोशिश कर रही हूँ, तुझे मेरी याद इतने वर्षों के बाद क्यों और कैसे आई?"
"मैं तेरा पति हूँ!"
"तब याद नहीं रहा, जब दुनिया मुझे बाँझ कहती रही और मेरा इलाज होता रहा.. तेरे इलाज के लिए जब कहती तो कई-कई इल्ज़ाम मुझपर तुमदोनों माँ-बेटे लगा देते!"
"इससे हमारा रिश्ता तो नहीं बदल गया या तुझपर से मेरा हक़ खत्म हो गया?"
"हाँ! हाँ.. बदल गया हमारा रिश्ता.. खत्म हो गया मुझपर से तेरा हक़..," चिल्ला पड़ी प्रमिला,"जब तूने दूसरी शादी कर ली और उससे भी बच्चा नहीं हुआ तो तूने अपना इलाज करवाया और उससे बेटी हुई।"
"तुझे भी जरूरत महसूस होती होगी?"
"जिस औरत को तन की दासता मजबूर कर देती है, वह कोठे पर बैठी रह जाती है।"
"तुझे बेटा हो जाएगा! तेरा ज्यादा मान बढ़ जाएगा..!"
"तेरी इतनी औकात कि तू मुझे अब लालच में फँसा सके..!" पूरी ताकत लगा कर परे धकेलती है और पिछवाड़े पर पुरजोर लात लगा कमरे से बाहर करती हुई चिल्लाती है, "दोबारा कोशिश नहीं करना, वरना काली हो जाऊँगी..!"
38 टिप्पणियाँ:
बहुत गहरी बात कही कहानी के माध्यम से विभा जी आपने ...इसी को कहते हैं अपने दम पर जीना 👌👌
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
वाह ! बहुत बढिया जी..
समाज की दोहरी मानसिकता पर प्रकाश डालती उम्दा कहानी ।
बेहतरीन..
शुभकामनाएँ..
सादर नमन..
आपकी प्रेरणादायक लघुकथाएँ अमूल्य है दी।
सामान्य दैनिक जीवन से उद्धरित सूक्ष्म अवलोकन सराहनीय होती है।
शुभकामनाएँ और अशेष बधाईयाँ दी।
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं बहना
सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छूटकी
हार्दिक आभार आपका
जिंदगी तेरे कितने अफसाने .......
प्रेरणादायक लघुकथा !
सस्नेहाशीष संग शुक्रिया बबुआ
ब्लॉग जगत से मिला अनोखा भाई
प्यारी दिदिया😍
और लेखन तो जीवन के हर पहलू से जुड़ा... बाँटते रहिएगा अपने अनुभव का खज़ाना हम सब में। शुभकामनाएं व बधाई हो दी
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार बहना
अपना सम्मान बचाये रखना किसी भी रिश्ते में आवश्यक है.
साहसिक कहानी.
बेहतरीन लघु कथा ।
हार्दिक आभार आपका
अखंड सौभाग्यशाली रहें
सदा सस्नेहाशीष की आकांक्षी
हार्दिक आभार आपका
बहुत अच्छी प्रस्तुतियां रही ब्लॉग रत्न सम्मान प्रतियोगिता की ! निश्चित ही ब्लॉगर को इससे प्रोत्साहन मिलता है
समाज के एक ऐसे भी चेहरे का पर्दाफाश और परिवर्तन की अंगड़ाई की आहट!
विभा दी की साहित्य रचना, साहित्यिक गतिविधियाँ और साहित्यिक आयोजनों से कौन अपरिचित है। साहित्य की मुख्य धारा में लगभग सभी विधाओं में इन्होंने अपना योगदान दिया है। इनि हर रचना एक।सोच को जन्म देती है।
प्रस्तुत कथा में विभा दी ने बड़े ही घिनौने मुद्दे को उठाया है किसका परिणाम सदा से स्त्री को उलाहना या प्रताड़ना के रूप में उठाना पड़ा है। इस मुद्दे के विरुद्ध एक प्रतीकात्मक क्रांति के स्वर का घोष करती है यह कथा।
बहुत ही गहरी बात कही आपने आदरणीय विभा जी ।यही तो हमारे समाज की दोहरी मानसिकता है ,कमी हमेशा स्त्री में ही ढूँढी जाती है ...। ढेरों शुभकामनाओं सह 🙏
जी सहमत
हार्दिक आभार आपका
जी
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
मेरा सौभाग्य है कि आप जैसा सरल सुलझा सहज अनुज इस जगत में मिला
सस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार आपका
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग बहुत बहुत धन्यवाद आपका
यूँ हीं सदा ऊँगली थामे रखियेगा..
प्रेरणादायक लघुकथा ... विभारानी श्रीवास्तव यानी मेरी बड़ी माँ कहे या ताई जी ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ नाम है ( विभारानी श्रीवास्तव -- सोच का सृजन यानी जीने का जरिया ) विभारानी जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है एक से बढ़कर एक हाइकू लिखने की कला में माहिर कुछ भी लिखे पर हर शब्द दिल को छूता है हमेशा ही उनकी कलम जब जब चलती है शब्द बनते चले जाते है ...शब्द ऐसे जो और पाठक को अपनी और खीचते है और मैं क्या सभी विभा जी के लेखन की तारीफ करते है
समाज का कोई भी तबका हो बच्चे ना होने पर पहली निगाह स्त्री पर ही उठती हैं और उसके सारे इलाज के बाद ही पति का नंबर आता हैं | कभी सूना नहीं पति के लाईलाज बीमारी होने पर बच्चे के लिए पत्नी को दूसरे विवाह को कहा गया हो | अपना आत्मसम्मान कभी नहीं छोड़ने की सीख देने वाली अच्छी कहानी |
पुत्तर जी...
पंख दे दो, तो उड़के भी दिखा सकती हूँ ...
समय ने पंख दिए, या विभा जी ने खुद गढ़ लिए, जो भी हो, आज उनका परिचय क्षेत्र बड़ा है, कार्यक्षेत्र बड़ा है, ... जितना कहूँ, कम होगा।
जिस विधा में भी देखा आप हमेशा श्रेष्ठ रहीं हैं ....और हम सबकी प्रेरणास्रोत भी .... वंदन 🙏🙏
इतने साहस को जो जुटा सके , वहीं अपने अस्तित्व को पूरा मान दे सकेगा, नहीं तो निरपराध बांझ का भार उठाये जीती रहेगी । बहुत सुंदर संदेश ।
सस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार बिटिया
सदा सस्नेहाशीष की आकांक्षी
हार्दिक आभार आपका
बहुत सुंदर कहानी दीदी
जय मां काली! अंतिम पंक्ति पूरी तरह से धारदार है। महिलाओं में इतनी शक्ति आनी ही चाहिए।
सम्माननीया को सम्मानित कर सम्मान भी धन्य हो जाता है। बहुत बहुत बधाई दीदी!
विभा दी,नारी जीवन के एक ऐसे पहलू को आपने छुआ हैं जिसमें ज्यादातर नारियों की गलती न होने पर भी उन्हें ही दोषी माना जाता हैं। बहुत सुंदर कहानी दी।
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