सुषमा वर्मा - सपनों की एक सुराही है। रोज सुबह सपनों की घूंट लेती है और आहुति' लिखती हैं। प्रेम में सराबोर व्यक्ति इस दुनिया से अलग होता है और मुझे यह ख्वाबोंवाली ब्लॉगर ऐसी ही लगती है, खुद देख लीजिये उसकी आहुति -
क्यों की तुम महान बनाना चाहते थे...
तुम खुद को संयम में,
बांध कर जीना चाहते थे,
क्यों कि तुम इक मिशाल बनाना चाहते थे...
मुझे नही पता कि,
तुम्हे तकलीफ हुई थी या नही...
पर तुम मुझे तकलीफ में छोड़ कर,
मुझे नजरअंदाज करके,
छोड़ कर चले गये...क्यों कि
इक आदर्श बनाना चाहते थे...
तुम्हे दिखाना था कि,
तुम किस तरह सब कुछ..
छोड़ सकते हो,
तुम्हे सभी को बताना था कि,
ये दुनिया....ये समाज तुम्हारे लिए,
कितना मायने रखता है....
मैने कोई शिकायत नही की तुमसे,
तुम्हारी हर नाराजगी पर चुप हो गयी..
तो तुमने खुद को योद्धा मान लिया...
मैंने प्यार में तुम्हे सर्वस्व अर्पित कर,
तुम्हारे सजदे में,
अपना सर झुका दिया...
तो तुमने खुद को महात्मा मान लिया....
तुम्हारी हर मुश्किल में,
मैं ढाल बन कर खड़ी रही,
तुम्हारी हर कमजोरी में,
तुम्हारा संबल बनी रही...
तो तुमने इसे मेरी जरुरत मान लिया....
तुम गलत थे...
हाँ मेरे लिए तुम महान,आदर्श,योद्धा,महात्मा,
सब कुछ थे..
कभी खुद को मेरी नजरो से देखते...
पर तुमने खुद को,
हमेशा दुनिया की नजरों से देखा...
इसलिए मेरी नजरो में,
तुम्हारे लिए जो सम्मान,जो प्यार था...
तुम देख ही नही पाये...
मैं जब भी कमजोर पड़ी,
तुम्हारे साथ के लिए गिड़गिड़ाई,
तो तुमने इसे...
अपनी जीत मान लिया......
मैं तो सिर्फ इक रिश्ते को,
निभाने की हर भरकस कोशिश कर रही थी,
पर अफ़सोस तुमने,
इसे भी मेरी जरुरत समझ लिया....
पर सच तो ये है...
तुम तो हार तभी गये थे,
जब तुम्हारी वजह से,
मेरी आँखों में आंसू थे....!!!
16 टिप्पणियाँ:
हमेशा हौसले से परिपूर्ण उड़ान भरती
सुंदर सार्थक लेखन
हार्दिक बधाई
सुंदर भावाभिव्यक्ति !
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14 -07-2019) को "ज़ालिमों से पुकार मत करना" (चर्चा अंक- 3396) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
वाह मैंने पहली बार जी पढ़ा सुषमाजी को।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
गहन भाव लिए ।
मैं तो सिर्फ इक रिश्ते को,
निभाने की हर भरकस कोशिश कर रही थी,
पर अफ़सोस तुमने,
इसे भी मेरी जरुरत समझ लिया....
सही कहारिश्ते तोड़कर जीने वाले हमेशा हारे ही होते हैं...
वाह!!!बहुत ही लाजवाब रचना ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
पर सच तो ये है...
तुम तो हार तभी गये थे,
जब तुम्हारी वजह से,
मेरी आँखों में आंसू थे....!!!
बेहतरीन..
सादर..
बहुत खूब
इतनी खूबसूरत भावाव्यक्ति... गजब लिखा है रश्मि जी
सुषमाजी का ब्लॉग मैंने पूरा नहीं तो आधा तो जरूर पढ़ा है। उनकी रचनाएँ अक्सर चर्चामंच पर आती हैं। हालांकि कुछ पर मैंने टिप्पणी देने की कोशिश भी की परंतु सफलता नहीं मिली। यहाँ दी गई उनकी रचना मन को छू गई।
बहुत गहरी मन को अंदर तक झकझोर गई आपकी अनुपम कृति।
मनोभावों को बहुत सुंदर शब्द चित्र दिया आपने।
अनुपम /अभिनव।।
कोमल भावनाओं को उकेरती सुंदर रचना
अनुपम कृति।
सुषमा दी, हर नारी व्यथा को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं आपने।
सुंदर एवं भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई सुषमा वर्मा जी!
~सादर
अनिता ललित
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