ग़ज़ल की शाम हो या घनी धूप, दिल कहीं खो जाता है गुमनाम प्रतिध्वनियों में। आँखें बंद हो जाती हैं, और पूरी प्रकृति गुनगुनाने लगती है। आजमाया होगा, एक बार फिर आजमा लीजिये दिगंबर नासवा जी के साथ ...
कुल्लेदार पठानी पगड़ी, एक पजामा रक्खा है
छड़ी टीक की, गांधी चश्मा, कोट पुराना रक्खा है
कुछ बचपन की यादें, कंचे, लट्टू, चूड़ी के टुकड़े
परछत्ती के मर्तबान में ढेर खजाना रक्खा है
टूटे घुटने, चलना मुश्किल, पर वादा है लौटूंगा
मेरी आँखों में देखो तुम स्वप्न सुहाना रक्खा है
जाने किस पल छूट गई थी या मैंने ही छोड़ी थी
बुग्नी जिसमें पाई, पाई, आना, आना रक्खा है
मुद्दत से मैं गया नहीं हूँ उस आँगन की चौखट पर
लस्सी का जग, तवे पे अब तक, एक पराँठा रक्खा है
नींद यकीनन आ जाएगी सर के नीचे रक्खो तो
माँ की खुशबू में लिपटा जो एक सिराना रक्खा है
अक्स मेरा भी दिख जाएगा उस दीवार की फोटो में
गहरी सी आँखों में जिसके एक फ़साना रक्खा है
मिल जाएगी पुश्तैनी घर में मिल कर जो ढूंढेंगे
पीढ़ी दर पीढ़ी से संभला एक ज़माना रक्खा है
53 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन रचना
शानदार ग़ज़ल
एक-एक शेर भावुक करता हुआ
व्वाहहहहह
बेहतरीन ग़ज़ल
सादर
बेहतरीन ग़ज़ल।
किसी जमाने बाद ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।
बहुत बढ़िया..
वाह ! दिगम्बर जी के ब्लॉग पर भी गजलों का एक पूरा खजाना रखा है, बचपन की यादों को याद करके किसका मन खिल नहीं जाता, फिर ये यादें जो एक पूरी पीढ़ी को उस काल में ले जाती हैं जब खेल के साधन कंचे और लट्टू हुआ करते थे वीडियो गेम्स नहीं..
नासवा जी के ब्लॉग पर एक से एक बेहतरीन ग़ज़लों का खजाना और इस ग़ज़ल में तो पूरा ज़माना ही रख दिया । बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
निरंतर और बढ़िया लेखन
मिल जाएगी पुश्तैनी घर में मिल कर जो ढूंढेंगे
पीढ़ी दर पीढ़ी से संभला एक ज़माना रक्खा है
वाह ! क्या बात है ! हर घर में एक ज़माना रखा होता है कोई ढूँढने वाला भी तो हो ! सब अपनी ही कहानियों में मसरूफ हैं ! हर शेर बेशकीमती ! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल !
दिगंबर सर के 'फैनों' की लिस्ट बड़ी लंबी है....
मैं भी हूँ जी इस लिस्ट में....
किसी कोने में होगा नाम अदना सा हमारा भी !!!
मिल जाएगी पुश्तैनी घर में मिल कर जो ढूंढेंगे
पीढ़ी दर पीढ़ी से संभला एक ज़माना रक्खा है
शानदार ग़ज़ल ......दिगंबर नासवा जी को तो हमेशा पढ़ा करती थी .......वाकई वो ज़माना याद आ गया और लगा जैसे ये शेर उसी के लिए तो लिखा गया है जैसे ब्लॉग हमारा पुश्तैनी मकान ही तो है :) :)
कुछ बचपन की यादें, कंचे, लट्टू, चूड़ी के टुकड़े
परछत्ती के मर्तबान में ढेर खजाना रक्खा है
जहाँ बचपन के साथ ... ये खज़ाना भी हो तो क्या कहने
अद्भुद सृजन एवम उम्दा प्रस्तुति के लिए
बधाई सहित शुभकामनाएं
नासवा जी की बेहतरीन गज़लों में से है यह ग़ज़ल ...एक एक शेर शानदार.
यादों और दिल को सहलाती रचना ...शानदार ग़ज़ल ..
नासवा जी को पढते हुये आज दस साल हो गये. इनकी ग़ज़लें बहुत ही सरल और अर्थवान होती हैं. जब ये रूमानी ग़ज़ल लिखते हैं तो हर शखस को अपना महबूब याद आ जाता है और जब बचपन की यादें शेयर करते हैं तो अपना बचपन पुकारने लगता है. इन्होंने नज़्में भी लिखी हैं, लेकिन ग़ज़लों में इनका चमत्कार बस मुग्ध करता है.
टूटे घुटने, चलना मुश्किल, पर वादा है लौटूंगा
मेरी आँखों में देखो तुम स्वप्न सुहाना रक्खा है...वाह.. ! बहुत बढ़िया
बेहतरीन अंक दिगंबर जी की बेहतरीन ग़ज़ल के साथ
आभार आपका ... अच्छा लगा आपको देख कर ब्लॉग पर
बहुत आभार
शुक्रिया यशोदा जी
जी सही कह रहे हैं आप ... ब्लॉग यादों का पिटारा है
शुक्रिया जी
आप बचपन की यादों को स्पर्श कर सके तो ये प्रयास सफल ही है ...
आपकी प्रशंसा शब्दों से बहुत आगे है ...
बहुत आभार आपका
जी सच है आपकी बात आज के दौर के हिसाब से ... और चलना भी है ज़माने के साथ ही ... आभार आपका
आपकी रचनाओं का तो मैं भी फ़ैन हूँ ... आभार आपका ...
जी सही बात है आपकी ... इस घर को भी सभी ने सम्भालना है और ये ज़रूर सम्भलेगा ...
बहुत आभार सदा जी ...
बहुत आभार शिखा जी ..।
आभार निशा जी ...
ये आपका स्नेह है सलिल जी ... सफ़र इसी प्रेम में बीत जाए तो जीवन सवाल हो जाता है ... आपका आभार है बहुत बहुत ...
बहुत आभार आपका ...
आभार अनुराधा जी ...
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति !
आपकी रचना हमेशा की तरह बेमिसाल... बहुत अच्छा लग रहा है फिर से ब्लॉग पर इतनी रौनक देखकर... शुभकामनाएं
आपकी रचना हमेशा की तरह बेमिसाल... बहुत अच्छा लग रहा है फिर से ब्लॉग पर इतनी रौनक देखकर... शुभकामनाएं
आपकी रचना दिल को छू गई !
लाजवाब
आभार संध्या जी ... सच में रौनक़ है ब्लॉग पर आज
आभार आपका
बहुत शुक्रिया
जी शुक्रिया आपका
ग़ज़ल का एक- एक शेर ऐसे लगता है जैसे हमारे बीते दिनों की याद दिला रहा है। क़रीब ला रहा है। शानदार।
🙏🙏🙏
अर्थपूर्ण और बेहतरीन।
मुद्दत से मैं गया नहीं हूँ उस आँगन की चौखट पर
लस्सी का जग, तवे पे अब तक, एक पराँठा रक्खा है...वाह्ह
वाह !!!आदरणीय दिगम्बर जी को पढना एक नितांत रूहानी अनुभव है | उनकी रचनाएँ हिन्दी बसाहित्य जगत में ग़जल विधा को नित नयी प्राण वायु देती हैं | ये रचना तो कमाल है , बेमिसाल है | हार्दिक शुभकामनायें दिगम्बर जी |
में दिगम्बर जी की लगभग हर रचना पढ़ती हूं। उनकी हर रचना अपने आप मे अनूठी होती हैं।
Aadhar Disha ji
शुक्रिया प्रीति जी
बहुत आभार आपका रेणु जी ...
आभार ज्योति जी ...
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!