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मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

राष्ट्रीय बीमारी का राष्ट्रीय उपचार - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

भारत का राष्ट्रीय पक्षी: मोर

भारत का राष्ट्रीय प्राणी: बाघ

भारत की राष्ट्रीय बीमारी: अंदर से अच्छा नहीं लग रहा...

और ...

भारत का राष्ट्रीय उपचार: थोड़ी देर सो लो फिर अच्छा लगेगा!

😉

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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" भाग्य विधाता "- कौन ??

अपने पुराने ठूठों को नहीं हटा पाई कांग्रेस तो आज उल्लू बैठेंगे ही

लातों के भूत।

बनना नेता था, बन लेखक गया

अथ रसगुल्ला कथा

दादासाहब फालके की १४९ वीं जयंती

आज श्रमिक दिवस है..

“भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ६: हाफ मैरेथॉन का नशा!

क्या वैदिक गणित विद्यालयों में पढाया जाना चाहिए ?

घृणा

फिर चल दिये हम कहाँ, तुम कहाँ...

वो अब मुस्कुराने लगी

सभी को कुछ तलाश है

रफूगिरी

वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास❤

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस - 29 अप्रैल - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज 29 अप्रैल है ... आज का दिन अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है |

कब से हुई शुरुआत 
 
अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई। यूनेस्को के अंतरराष्ट्रीय थिएटर इंस्टिट्यूट की अंतरराष्ट्रीय डांस कमेटी ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया। एक महान रिफॉर्मर जीन जार्ज नावेरे के जन्म की स्मृति में यह दिन अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
 
मनाने का उद्देश्य 

अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस को पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाना था। साथ ही लोगों का ध्यान विश्वस्तर पर इस ओर आकर्षित करना था। जिससे लोगों में नृत्य के प्रति जागरुकता फैले। साथ ही सरकार द्वारा पूरे विश्व में भारतीय नृत्य को शिक्षा की सभी प्रणालियों में एक उचित जगह उपलब्ध कराना था। सन 2005 में नृत्य दिवस को प्राथमिक शिक्षा के रूप में केंद्रित किया गया। विद्यालयों में बच्चों द्वारा नृत्य पर कई निबंध व चित्र भी बनाए गए। 2007 में
अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस को बच्चों को समर्पित किया गया था |

इन्हीं शुरुआती प्रयासों के कारण आज हर वर्ष विभिन्न नृत्य प्रतियोगिताओं में विभिन्न आयु वर्ग के लोग पूरे उत्साह से भाग लेते हैं |

सादर आपका 
 शिवम् मिश्रा


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अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस (29.04.2019 ) पर हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह

जब तक देर है, तब तक तो अंधेर का रहना तय ही है !

546. मन उदास है

मेरी अंगुली की स्याही ही मेरा लोकतंत्र है

वो प्यार के शुरुआती दिन थे

ख़त हवा में अध्-जले जलते रहे ...

निष्ठा और समर्पण

खजुराहो की कामुक मूर्तियाँ - 1

नेवल बेस म्यूजियम ...अमित कुमार श्रीवास्तव

तुझमें ही...

उम्र के साथ आधुनिक ज्ञानी बनने का शौक चढ़ ही जाता है-अध्यात्मिक चिंत्तन

डिप्रेशन

युग परिवर्तन

अधूरा प्रणय बंध

परवरिश- ऐसे निकाले बच्चों के मन का डर

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अब आज्ञा दीजिए ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 28 अप्रैल 2019

सरदार हरि सिंह नलवा और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
सरदार हरि सिंह नलवा
सरदार हरि सिंह नलवा (अंग्रेज़ी: Hari Singh Nalwa, जन्म- 28 अप्रॅल, 1791, गुजरांवाला, पंजाब; मृत्यु- 30 अप्रैल, 1837), महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे। जिस एक व्यक्ति का भय पठानों और अफ़ग़ानियों के मन में, पेशावर से लेकर काबुल तक, सबसे अधिक था; उस शख्सियत का नाम जनरल हरि सिंह नलवा था। सिख फौज के सबसे बड़े जनरल हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लोहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले इस्लामिक आक्रमणों से देश को मुक्त किया। 1831 में जमरौद की जंग में लड़ते हुए शहीद हुए। नोशेरा के युद्ध में हरि सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह की सेना का कुशल नेतृत्व किया था। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना दुनिया के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है।


आज सरदार हरि सिंह नलवा जी की 228वीं जयंती पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 













आज की बुलेटिन में बस इतना कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ...  अभिनन्दन।। 

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

यमराज से पंगा - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम  |

यमलोक के दरवाजे पर दस्तक हुई तो यमराज ने जाकर दरवाजा खोला।

उन्होंने बाहर झांका तो एक मानव को सामने खड़ा पाया। यमराज ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि वह एकाएक गायब हो गया।

यमराज चौंके और फिर दरवाज़ा बंद कर लिया। यमराज अभी वापस मुड़े ही थे कि फिर दस्तक हुई। उन्होंने फिर दरवाजा खोला। उसी मानव को फिर सामने मौजूद पाया, लेकिन वह आया और फिर गायब हो गया।

ऐसा तीन-चार बार हुआ तो यमराज अपना धैर्य खो बैठे और अबकी बार उसे पकड़ ही लिया और पूछा, "क्या बात है भाई, क्या ये आना-जाना लगा रखा है। मुझसे पंगा ले रहे हो?"

मानव ने बड़ी सहजता पूर्वक जवाब दिया, "अरे नहीं महाराज, दरअसल मैं तो वैंटीलेटर पर हूं और यह डॉक्टर लोग ही हैं जो आपसे मस्ती कर रहे हैं।"


सादर आपका
 शिवम् मिश्रा

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897-सपनों की करुण पुकार !

बनारस की गलियाँ-9(कर्फ्यू)

♥♥♥दो घड़ी प्यार... ♥♥♥♥

“भाग दौड़" भरी ज़िन्दगी ५: सिंहगढ़ पर रनिंग!

"मतदान जन की शान"

मनमनोरम छंद

काज़ीरंगा नेशनल पार्क , दुनिया का सबसे ज्यादा हरा भरा पार्क --

समझौता एक्सप्रेस: न्याय की गाड़ी पटरी से कैसे उतरी?- धीरेश सैनी

नेहरु जी की बिटिया और हमारी माँ

भारत की नाक तेरी जय हो

२७ अप्रैल समर्पित है बॉलीवुड के दो दिग्गजों को

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

122वां जन्म दिवस - नितिन बोस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
नितिन बोस
नितिन बोस (अंग्रेज़ी: Nitin Bose, जन्म- 26 अप्रैल, 1897, कलकत्ता; मृत्यु- 14 अप्रैल, 1986) भारतीय सिनेमा के प्रारंभिक समर्थकों में से एक, प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक, छायाकार और लेखक थे। वे कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के प्रसिद्ध 'न्यू थियेटर्स' के पीछे की ताकत थे। वर्ष 1935 में उनकी बंगाली फ़िल्म 'भाग्य चक्र' में उन्होंने फ़िल्मों का पार्श्वगायन से परिचय करवाया था। बाद में यह फ़िल्म हिन्दी में 'धूप छाँव' नाम से बनाई गई। नितिन बोस ने अपने सिने कैरियर में छह मूक फ़िल्मों सहित 50 से भी अधिक फ़िल्मों का निर्देशन और छायांकन किया। उन्हे के. एल. सहगल और उत्तम कुमार के कैरियर को शुरू करने का श्रेय दिया जाता है। बाद में नितिन जी मुंबई आ गये थे और यहाँ फ़िल्म निर्देशन किया। उनकी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक 'गंगा जमुना' को हिन्दी सिनेमा की सबसे बड़ी फ़िल्मों में से एक माना जाता है। उनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1977 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। नितिन बोस की फ़िल्म 'गंगा जमुना' का प्रसिद्ध गीत "इंसाफ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चलके" ऐसा ही एक गीत था, जिसने नई पीढ़ी को उसके दायित्वों का अहसास कराया।



आज महान फ़िल्मकार नितिन बोस जी के 122वें जन्म दिवस पर हम सब उन्हें याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 



~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 











आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर। ... अभिनन्दन।।

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

पप्पू इन संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

संस्कृत की क्लास मे गुरूजी ने पूछा, "पप्पू, इस श्लोक का अर्थ बताओ। 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"

पप्पू: राधिका शायद रस्ते में फल बेचने का काम कर रही है।

गुरू जी: मूर्ख, ये अर्थ नही होता है। चल इसका अर्थ बता, 'बहुनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुन'।

पप्पू: मेरी बहू के कई बच्चे पैदा हो चुके हैं, सभी का जन्म चार जून को हुआ है।

गुरू जी: अरे गधे, संस्कृत पढता है कि घास चरता है। अब इसका अर्थ बता, 'दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा'।

पप्पू: दक्षिण में खडे होकर लक्ष्मण बोला जनक आज कल तो तू बहुत मजे में है।

गुरू जी :अरे पागल, तुझे 1 भी श्लोक का अर्थ नही मालूम है क्या?

पप्पू: मालूम है ना।

गुरु जी: तो आखिरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का सही सही अर्थ बताना, 'हे पार्थ त्वया चापि मम चापि!' क्या अर्थ है जल्दी से बता?

पप्पू: महाभारत के युद्ध मे श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कह रहे हैं कि...

गुरू जी उत्साहित होकर बीच में ही कहते हैं, "हाँ, शाबाश, बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से?

पप्पू: भगवान बोले, 'अर्जुन तू भी चाय पी ले, मैं भी चाय पी लेता हूँ। फिर युद्ध करेंगे'।

गुरू जी बेहोश!

सादर आपका

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राम जन्मभूमि अयोध्या

अकेलेपन की वेदना

मौजों सा बचपन

हे साईं... साईं वंदना

‘वैदिक गणित’ क्या सचमुच वैदिक है

मन खिन्न हुआ

लक्ष्यहीन कहाँ चले - शिवबहादुर सिंह भदौरिया

अखबार, टीवी न्यूज मोदी की इन 15 बातों को घोल नहीं पाते, सिर्फ औपचारिक रूप से पहुंचाते, इसलिए चुना नया जॉनर...

वेदना

तन्हा पेड़... बाल कविता

आखिर साध्वी से परहेज़ क्यों है ?

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अब आज्ञा दीजिए ...

जय हिन्द !!!

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

90वां जन्म दिवस - 'शम्मी आंटी' जी और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
शम्मी
शम्मी (अंग्रेज़ी: Shammi, मूल नाम- नरगिस रबाड़ी, जन्म: 24 अप्रैल, 1929, गुजरात - मृत्यु: 6 मार्च, 2018) भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री हैं, जो दो सौ से अधिक हिंदी फ़िल्मों में अभिनय कर चुकी हैं। क़रीब साढ़े छह दशक पहले उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। शुरुआती दौर में कई फ़िल्मों में नायिका और सहनायिका के तौर पर नज़र आने के बाद उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की ओर रुख किया। इस लम्बे अंतराल में उनकी अभिनय यात्रा बिना किसी विराम के लगातार जारी रही। ये उनके जादुई व्यक्तित्व और मधुर व्यवहार का ही असर है कि आज समूचा सिने जगत उन्हें प्यार और सम्मान से 'शम्मी आंटी' कहकर बुलाता है। उनका वास्तविक नाम नरगिस रबाड़ी था। 

शम्मी का जन्म 24 अप्रैल, 1929 को गुजरात के नारगोल संजान में अपने नाना के घर हुआ था। पारसी माता-पिता की संतान शम्मी आंटी कुछ ही महिनों की थीं जब उनके पिता परिवार को साथ लेकर मुम्बई चले आए थे। बकौल शम्मी आंटी, फ़िल्मी दुनिया से उनके परिवार का दूर-दूर तक का सम्बन्ध नहीं था। घर में पारसी-पुरोहित पिता और गृहिणी मां के अलावा एक बड़ी बहन मणि रबाड़ी थीं जिन्होंने आगे चलकर न सिर्फ़ फ़ैशन डिज़ाईनिंग की दुनिया में नाम कमाया, बल्कि अपनी कला के दम पर उस ज़माने में राष्ट्रपति-पुरस्कार भी हासिल किया था।

फ़िल्मी सफ़र 

फ़िल्मों में शम्मी आंटी का आना सिर्फ़ एक संयोग था, हालांकि रिश्तेदारी-बिरादरी में उनके इस क़दम का उस वक़्त विरोध भी बहुत हुआ था। जब वो सिर्फ़ तीन साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया। आय का कोई साधन था नहीं, इसलिए दोनों बेटियों के पालन-पोषण के लिए उनकी मां को बहुत तक़लीफ़ें सहनी पड़ीं। जब वो दोनों थोड़ी बड़ी हुईं तो उन्हें अपनी पढ़ाई का ख़र्च ख़ुद उठाने के लिए टाटा की खिलौना फैक्ट्री में काम करना पड़ा। बड़ी बहन पीपुल्स थिएटर की सक्रिय सदस्या थीं इसलिए उनके साथ नाटकों की रिहर्सल में शम्मी आंटी का भी अक्सर आना-जाना होता था, जहां उनकी मुलाक़ात महबूब ख़ान के सहायक चिमनकांत गांधी से हुई थी।

धारावाहिक निर्माण

आशा पारेख के साथ मिलकर शम्मी आंटी ने ‘बाजे पायल’, ‘कोरा क़ागज़’, ‘कंगन’ और ‘कुछ पल साथ तुम्हारा’ जैसे धारावाहिकों का निर्माण भी किया और आज भी दोनों अभिनेत्रियां बहुत अच्छी दोस्त रही हैं। अपने अब तक के कॅरियर में क़रीब दो सौ फ़िल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाने के साथ ही उन्हें ‘देख भाई देख’, ‘श्रीमान श्रीमती’, ‘कभी ये कभी वो’ जैसे कई टी. वी. धारावाहिकों में भी अभिनय किया। ‘सहारा वन’ चैनल के धारावाहिक ‘घर एक सपना’ में वो आलोक नाथ की मां की भूमिका में नज़र आयी थीं।

1950 के दशक में शम्मी आंटी ने ‘बाग़ी’, ‘आग का दरिया’, ‘मुन्ना’, ‘रुखसाना’, ‘पहली झलक’, ‘लगन’, ‘बंदिश’, 'मुसाफ़िरखाना', ‘आज़ाद’ और 'दिल अपना और प्रीत परायी' जैसी कई फ़िल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायीं। अब तक की उनकी अन्तिम फ़िल्म ‘शिरीन फ़रहाद की तो निकल पड़ी’ है जो साल 2012 में प्रदर्शित हुई थी।

6 मार्च, 2018 ई. को मुंबई में 88 वर्ष की आयु में शम्मी आंटी जी का निधन हो गया।  


आज शम्मी आंटी जी के 90वें जन्म दिवस पर हम सब उनके यादगार किरदारों और उनके अभिनय कौशल को याद करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।

~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

23 अप्रैल - विश्व पुस्तक दिवस - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |


हर साल 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को हर साल इस मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन करता है और विश्व पुस्तक दिवस की थीम तैयार करता है। इसकी मदद से यूनेस्को लोगों के बीच किताब पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना चाहता है। चूंकि किताबी दुनिया में कॉपीराइट एक अहम मुद्दा है, इसलिए विश्व पुस्तक दिवस पर इस पर भी जोर दिया जाता है। इसी वजह से दुनिया के कई हिस्सों में इसे विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है। 

इतिहास

पहला विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल, 1995 को मनाया गया था। यूनेस्को ने यही तारीख तय की थी। इस तारीख के साथ खास बात यह है कि विलियम शेक्सपीयर समेत कई महान लेखकों की पुण्यतिथि और पैदाइश की सालगिरह है। विलियम शेक्सपीयर का निधन 23 अप्रैल, 1616 को हुआ था। स्पेन के विख्यात लेखकत मिगेल डे सरवांटिस (Miguel de Cervantes) का निधन भी इसी दिन हुआ था।  

23 अप्रैल को ही क्यों?

इसे 23 अप्रैल को मनाने का विचार स्पेन की एक परंपरा से आया। स्पेन में हर साल 23 अप्रैल को 'रोज डे' मनाया जाता है। इस दिन लोग प्यार के इजहार के तौर पर एक-दूसरे को फूल देते हैं। 1926 में जब मिगेल डे सरवांटिस का निधन हुआ तो उस साल स्पेन के लोगों ने महान लेखक की याद में फूल की जगह किताबें बांटीं। स्पेन में यह परंपरा जारी रही जिससे विश्व पुस्तक दिवस मनाने का आइडिया आया। 

कैसे मनाया जाता है?

दुनिया के अलग-अलग देशों में इस दिन को अपने हिसाब से मनाया जाता है। कहीं मुफ्त में किताबें बांटी जाती हैं तो कहीं प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है।

 सादर आपका

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विश्व पुस्तक दिवस .....

क़िताबों की दुनिया - डॉ शरद सिंह ( विश्व पुस्तक दिवस पर ग़ज़ल )

सफ़र देहरादून का (गढ़वाल संस्मरण)

धरती को ब्याह रचाने दो

स्व॰ सत्यजित रे जी की २७ वीं पुण्यतिथि

मोदी बिना जैसे देश में विकास हुआ नहीं

आदतन रो लेता हूँ अब...

क्यों जलालत का जहर पीने को बेचैन है केजरीवाल ?

जादुई चिराग

दोहे "विश्व पुस्तक दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

इन्सॉल्वेंसी में खाता

धरती

मच्छर मारेगा हाथी को - अ रीमा भारती फैन फिक्शन #6

क्या हमारे नायक छलिया हैं ( कड़वा सच ) डॉ लोक सेतिया

'ये कविताओं के पंख फ़ैलाने के दिन हैं '

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

टूथ ब्रश की रिटायरमेंट - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक बार एक कॉन्फ्रेंस चल रही थी, जहाँ पर दुनिया भर से अलग अलग देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे थे। संचालक ने सभी से एक सवाल पूछा कि टूथ ब्रश कितने समय के बाद रिटायर हो जाता है?

सब ने अलग अलग जवाब दिए। किसी ने कहा, एक हफ्ता, किसी ने एक महीना, किसी ने दो महीने तो किसी ने तीन महीने।

अब बारी आई हिंदुस्तानी प्रतिनिधि की। जब उनसे यह सवाल पूछा तो उन्होंने इसका जवाब कुछ यूँ दिया, "हिंदुस्तान में टूथ ब्रश कभी रिटायर नहीं होता। क्योंकि सब से पहले तो टूथ ब्रश दाँत साफ़ करने के काम आता है, फिर उसका इस्तेमाल बाल में रंग लगाने के लिए होता है, उसके बाद मशीन की सफाई करने के काम आता है और जब उसके बाल पूरी तरह से टूट जायें तो उसका इस्तेमाल पजामे में नाड़ा डालने के लिए किया जाता है। इस तरह टूथ ब्रश कभी भी रिटायर नहीं होता।"

सादर आपका 

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घुमक्कड़ी और स्वास्थ्य --

आज़म , अब्दुल्ला , आम्रपाली , अनारकली और जयाप्रदा की ख़ाकी चड्ढी का चुनाव

विश्व पृथ्वी दिवस

पिता-सुता

पंडरपुर का बिठोबा मंदिर - रुक्मणि के साथ पूजे जाते है कृष्ण

अप्पम - स्टू

दुनिया जिसे कहते हैं..

अपने इतिहास को जानना भी जरुरी है

"गर्मी की छुट्टियाँ"

कल्पना के पंख

मेरी निगाह में रहता है वो ज़माने से ...

लघुकथा : परिवर्तन

गालियों की वापसी ....

बेचारा

हिमाचल में सात दिन --अन्तिम भाग -- यादों के उजाले

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

रविवार, 21 अप्रैल 2019

जोकर, मुखौटा और लोग - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज का विचार :-

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

सूरदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
Surdas.jpg
सूरदास (अंग्रेज़ी:Surdas) हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उनका जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 विक्रमी के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 विक्रमी के आसपास मानी जाती है।[1]सूरदास जी के पिता रामदास गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी अष्टछाप कवियों में एक थे। सूरदास जी की मृत्यु गोवर्धन के पास पारसौली ग्राम में 1563 ईस्वी में हुई।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

हनुमान जयंती की हार्दिक मंगलकामनाएँ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज हनुमान जयंती है ... 


भूत पिशाच निकट नहीं आवे.
महावीर जब नाम सुनावे.
नासाये रोग हरे सब पीरा.
जपत निरंतर हनुमत वीरा!

 


ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को हनुमान जयंती की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!

सादर आपका 
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याद आई एक कहानी भूली बिसरी

व्याकुल पथिक at व्याकुल पथिक

संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ

राष्ट्र प्रेम

Rekha Joshi at Ocean of Bliss

श्रीनाथद्वारा, नंदनंदन जी का मंदिर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा

लहरों से डरता हुआ तैराक ...


साध्वी प्रज्ञा पर काफ़ी सवालों के जवाब तो लिब्रल्स को भी देने हैं

देवांशु निगम at अगड़म बगड़म स्वाहा....

अमिया के टिकोरे सी तुम

Sadhana Vaid at Sudhinama

आज इंसान बड़ा परेशान है

Rahul Upadhyaya at उधेड़-बुन

आखिर ऐसा हुआ क्यों ?

ज्योति सिंह at काव्यांजलि

गिरगिट के रंगो से भरा नीरस चुनाव

राम त्यागी at मेरी आवाज

नेता और जन समस्या

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!! 

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

विश्व धरोहर दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |


विश्व धरोहर दिवस अथवा विश्व विरासत दिवस ,(World Heritage Day) प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को मनाया जाता है,इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य भी यह है कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाइ जा सके।

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को की पहल पर एक अंतर्राष्ट्रीय संधि की गई जो कि विश्व के सांस्कृतिक प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण के हेतु प्रतिबद्ध है| यह संधि सन 1972 में लागू की गई प्रारंभ में मुख्यता तीन श्रेणियों में धरोहर स्थलों को शामिल किया गया पहला वह धरोहर स्थल जो प्राकृतिक रूप से संबद्ध हो अर्थात प्राकृतिक धरोहर स्थल दूसरे सांस्कृतिक धरोहर स्थल और तीसरा मिश्रित धरोहर स्थल| 

वर्ष 1982 में इकोमार्क नामक संस्था ने ट्यूनिशिया में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया तथा उस सम्मेलन में यह भी बात उठी कि विश्व भर में इसी प्रकार के दिवस का आयोजन किया जाना चाहिए | यूनेस्को के महासम्मेलन में इसके अनुमोदन के पश्चात 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई | इस से पूर्व 18 अप्रैल को विश्व स्मारक तथा पुरातत्व स्थल दिवस के रूप में मनाए जाने की परंपरा थी| 

सादर आपका

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अब न्याय होगा?

मैं समाना चाहती हूँ

ग़ालिब की हवेली और गली कासिम जान

उत्तरआधुनिकता (पोस्टमॉडर्निज़्म) के बारे में नोट्स : शिवप्रसाद जोशी

भगवाधारी राजनीति से दूर रहें

अर्थ नहीं है

भक्ति और शक्ति के बेजोड़ संगम हैं हनुमान

धर्म

इन छुट्टियों में हिमाचल में तीर्थन वैली जाइए

घड़ियाली आँसू अब बहाये जायेंगे ...

बेटियां

संवेदना की नम धरा पर – साधना वैद : समीर लाल ’समीर’ की नज़र में

पीड़ा

एक आवाज़ मेरे कानों से ... (नज़्म) - डॉ शरद सिंह

१८ अप्रैल का दिन समर्पित है आज़ादी के परवानों को

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

मिडिल क्लास बोर नहीं होता - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज का विचार :-

मिडिल क्लास होना भी एक गौरव की बात है!
 

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

क्लास में टीचर: सुनो बच्चो कल तुम लोगों का ग्रुप फोटो लिया जायेगा। सब लोग अपने-अपने घर से 50 रुपये ले कर आना।

पप्पू, बंटी से: साला ये सब टीचर लोगों की मिली-भगत होती है। एक फोटो के 20 रुपये लगते हैं और हम लोगों से 50-50 रुपये लिए जा रहे हैं, मतलब एक बच्चे से 30 रुपये बचेंगे। अब अपनी ही क्लास में 60 बच्चे हैं तो 60 x 30 = 1800 रुपये, खुली लूट मचा रखी है इन लोगों ने। फिर हमारे पैसों से यह सब स्टाफ रूम में बैठ कर समोसे खाएंगे। चल भाई घर चलते हैं, कल मम्मी से 50 रुपये लेकर आना।

घर जाकर पप्पू अपनी मम्मी से: मम्मी कल स्कूल में ग्रुप फोटो लेना है तो टीचर ने 100 रुपये मंगवाए हैं।

सादर आपका 
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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

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