प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
कभी भी अकेलेपन का एहसास सताए तो घर की सारी लाइट्स बंद करके हॉरर फ़िल्म देखो।
कसम से कभी अकेलापन महसूस नहीं होगा, हर वक़्त लगेगा कोई पीछे खड़ा है!
सादर आपका
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किताबों की दुनिया -198
नीरज गोस्वामी at नीरज
"तशरीफ़ लाइए हुज़ूर" ख़िदमदगार फर्शी सलाम करता हुआ हर आने वाले को बड़े अदब से
अंदर आने का इशारा कर रहा था। दिल्ली जो अब पुरानी दिल्ली कहलाती है में इस
बड़ी सी हवेली, जिसके बाहर ये ख़िदमतगार खड़ा था, को फूलों से सजाया गया था। आने
जाने वाले लोग बड़ी हसरत से इसे देखते हुए निकल रहे थे क्यूंकि इसमें सिर्फ वो
ही जा पा रहे थे जिनके पास एक तो पहनने के सलीक़ेदार कपडे थे और दूसरे हाथ में
वो रुक्का था जिसमें उनके तशरीफ़ लाने की गुज़ारिश की गयी थी ,उस रुक्के को आज
की भाषा में एंट्री पास कहते हैं। जिस गली में ये हवेली थी उसे भी सजाया गया
था। ये तामझाम देख कर इस बात का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि कोई खास... more »
गए थे नमाज़ बख्शवाने....रोज़े गले पड़ गए !!
SKT at Tyagi Uwaach
बड़ा शोर सुनते थे की इक्कीसवीं सदी में विज्ञान ने ये तरक्की कर ली,वो तरक्की
कर ली। हम नहीं मानते! हमें तो लगता है कि जिस जगह हम पचास-साठ साल पहले थे, आज
भी वहीं खड़े हैं। नज़ला जुकाम हो तो पहले भी हकीम वैद्य जी जड़ी-बूटियों का
काढ़ा पीने की सलाह दिया करते थे। आज के पढे लिखे डाक्टर भी सर्दी खांसी में
गोलियां लिखने के बाद भी नमक के पानी के गरारे दिन में पाँच वक़्त करने की
ताकीद करते हैं। भला कोई इनसे पूछे, भले मानुषों! अगर गरारे ही लिखने थे तो
फिर ये तीन-चार गोलियां क्यों लिख रहे हो। और अगर गोलियां इतनी ही जरूरी थीं
तो फिर गरारों के बदले एक और गोली क्यों नहीं लिख देते! सालों-साल डाक्टरी... more »
प्रेम-किस्से ...
Digamber Naswa at स्वप्न मेरे ...
यूं ही हवा में नहीं बनते प्रेम-किस्से
शहर की रंग-बिरंगी इमारतों से ये नहीं निकलते
न ही शराबी मद-मस्त आँखों से छलकते हैं
ज़ीने पे चड़ते थके क़दमों की आहट से ये नहीं जागते
बनावटी चेहरों की तेज रफ़्तार के पीछे छिपी फाइलों के बीच
दम तोड़ देते हैं ये किस्से
कि यूं ही हवा में नहीं बनते प्रेम-किस्से
पनपने को अंकुर प्रेम का
जितना ज़रूरी है दो पवित्र आँखों का मिलन
उतनी ही जरूरी है तुम्हारी धूप की चुभन
जरूरी हैं मेरे सांसों की नमी भी
उसे आकार देने को
कि यूं ही हवा में नहीं बनते प्रेम-किस्से
प्रेम-किस्से आसमान से भी नहीं टपकते
ज़रुरी होता है प्रेम का इंद्र-धनुष बनने से पहले
आसमान... more »
ब्लॉग क्या है? इसके कितने प्रकार है।
दिनेश प्रजापति at अपना अंतर्जाल
[image: ब्लॉग क्या है?]
ब्लॉग क्या है?
नमस्कार मित्रों, आज बात करते हैं ब्लॉग के बारे में, इस आलेख में जानेंगे की
ब्लॉग क्या है? ब्लॉग किसे कहते हैं? और ब्लॉग के कितने प्रकार होते हैं?
एक ब्लॉग, जानकारी या चर्चा हेतु तेयार की गयी वेबसाइट है जो की डिस्क्रिट
प्रविष्ठियां (अलग-अलग), जिन्हें पोस्ट भी कहा जाता है, से मिलकर बनी होती है
तथा जो आमतौर पर रिवर्स क्रानिकल यानि जो पोस्ट हाल ही में की गई है वो पोस्ट
सबसे ऊपर के रूप में दिखाई जाती है।
सन 2009 तक ब्लॉगस आमतौर पर एक ही व्यक्ति का काम होता था, कभी कभार इसे एक
समूह वाले, एक ही विषय पर वार्तालाप करने के लिए उपयोग में लेते थे, अभी हाल... more »
कौवा नजर आता नहीं..
अरुण कुमार निगम at अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
449.श्रद्धा। मुक्तक
पंकज भूषण पाठक at मुसाफ़िर...अल्फ़ाज़ों का
589. अनुभूतियाँ
डॉ. जेन्नी शबनम at लम्हों का सफ़र
अनुभूतियाँ
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कुछ अनुभूतियाँ
आकाश के माथे का चुम्बन है
कुछ अनुभूतियाँ
सूरज की ऊर्जा का आलिंगन है
हर चाहना हर कामना
अद्भूत अनोखा अँसुवन है
न क्षीण न स्थाई कुछ
मगर ये भाव
सहज अनोखा बन्धन है।
- जेन्नी शबनम (8. 10. 2018)
रविकर के दोहे
रविकर at रविकर-पुंज
स्वर
अपनों से होना खफा, बेशक है अधिकार।
मान मनाने से मगर, यदि अपनों से प्यार।।
बड़ा वक्त से कब कहाँ, कोई भी कविराज।
कहाँ जिन्दगी सी गजब, कोई कविता आज।।
अर्थ पिता से ले समझ, होता क्या संघर्ष।
संस्कार माँ दे रही, दे बलिदान सहर्ष।।
इश्क सरिस होता नहीं, रविकर घर का काम।
दिन-प्रति-दिन करना पड़े, हो आराम हराम।।
ईश-कथा सी जन-व्यथा, रविकर आदि न अन्त।
करते यद्यपि कोशिशें, हम जीवनपर्यन्त।।
उठे धुँआ अंतस जले, सहकर दर्द-विछोह।
लेकिन मुस्काते अधर, करते दिल से द्रोह।|
आपेक्षा यदि अत्यधिक, सके उपेक्षा तोड़।
चादर यदि जाये सिकुड़, कुढ़ मत, घुटने मोड़।।
आत्मा भटके, तन मरे, कल-परसों की बात।
तन भटके, आत्मा ... more »
ये धरती
चीख चीख कर
कहती है
मत काटो गला
पेड़ पौधों का
उनको बढ़ने दो
उनके हरे पत्तों को
धूप में चमकने और
बरसात में नहाने दो
अपने कंक्रीट में
थोड़ी सी जगह
इन्हें भी दो
ताकि ये अपनी
जवानी और बुढ़ापा
जी सके
ये ही तुम्हें
साँस लेने लायक
रखते हैं
तुम्हारा पेट भरते हैं
अपने दिमाग का
इस तरह इस्तेमाल
न करो की एक दिन
प्यास हो पर पानी नहीं
भूख हो पर अनाज नहीं
फेफड़े हों पर ऑक्सिजन नहीं
अपने बच्चों के लिए
कुछ छोड़ कर जाना हो तो
प्रकृति का उपहार दे कर जाओ
#रेवा
#प्रकृति
ये धरती
श्रुतिकीर्ति
*श्रुतिकीर्ति*
अहा ! इन्ही खुशियों भरे पलों की प्रतीक्षा थी हम सब को ... हमारी अयोध्या के
प्रत्येक कण को । दिल करता है इन पलों के प्रत्येक अंश को जी भर देखने ,संजो
लेने में मेरी ये दो आँखें असमर्थ हो रही हैं ,तो बस पूरे शरीर को आँखें बना
लूँ !
भैया राम का राजतिलक ,साथ में सीता दीदी अपने तीनों देवरों के साथ ... कितना
मनोहर है ये सब ।
अरे ये उधर से कैसी फुसफुसाहट आ रही है ... रुको सुनूँ तो क्या बात है ! राज
परिवार का अर्थ सिर्फ राजसी शान का उपभोग ही नहीं है ,अपितु सबका मन जानना भी
है ... प्रत्येक पल सजग रहना और जानना होता है सबके मन को ... और पता है इस
तरह की फुसफुसाहट बिनबोले ही बहु... more »
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा - दुष्यंत कुमार
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा
यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन सुन कर तो लगता है
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा
कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उस के बारे में
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा
चलो अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ हो... more »
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अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
12 टिप्पणियाँ:
बढ़िया बुलेटिन।
सभी लिंक बढ़िया, मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए धन्यवाद।
आभार शिवम् जी, बढ़िया पढ़वाने का!
सुंदर रोचक उपयोगी लिंक्स। मुझे भी स्थान देने के लिए आभार महोदय।
बेहतरीन प्रस्तुति बेहतरीन संकलन
बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
शानदार प्रस्तुति
सादर
वाह ...
अच्छा बुलेटिन है आज का ...
आभार मुझे भी शामिल करने के लिए ...
शानदार प्रस्तुति हमेशा की तरह....अरुण कुमार जी की कविताए पहुचने के लिए धन्यवाद,
मेरे ब्लॉग को शामिल करने हेतु धन्यवाद |
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
आप सब का बहुत बहुत आभार |
आभार मित्र ||
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!