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शनिवार, 1 सितंबर 2018

सबकुछ बनावटी लगता है



ज़िन्दगी बदली है,
वक़्त बदला है 
या हम !
जो भी हो, 
सबकुछ बनावटी लगता है,
अपना हँसना,
कुछ कहना भी  ... उड़ते बादलों सा लगता है। 


9 टिप्पणियाँ:

sangita ने कहा…

सशक्त लेखन, बदलते हुए वक्त के साथ कदमताल मिलाकर चलते हुए बहुत कुछ पीछे रह जाता है और नयेपन को अनायास स्वीकार तो कर लेते हैं पर अपनाने में वक्त लगता है, और सब कृत्रिम लगता है।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बनावटी लगता नहीं है बनावटी है। आभार ।

deepa joshi ने कहा…

It is really very nice

Abhilasha ने कहा…

बेहतरीन रचना 🙏

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहतरीन बुलेटिन प्रस्तुति

Anita ने कहा…

प्रकृति से दूर जा रहे इंसान को कृत्रिमता का अनुभव स्वाभाविक है..पठनीय पोस्ट्स से सजा बुलेटिन, आभार !

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बेहतरीन बुलेटिन|

संजय भास्‍कर ने कहा…

सशक्त बेहतरीन बुलेटिन !!

Unknown ने कहा…

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