प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
प्रणाम |
आज से 125 साल पहले 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो पार्लियामेंट आफ रिलीजन में भाषण दिया था, उसे आज भी दुनिया भुला नहीं
पाती। इसे रोमा रोलां ने 'ज्वाला की जबान' बताया था। इस भाषण से दुनिया के
तमाम पंथ आज भी सबक ले सकते हैं। इस अकेली घटना ने पश्चिम में भारत की एक
ऐसी छवि बना दी, जो आजादी से पहले और इसके बाद सैकड़ों राजदूत मिलकर भी नहीं
बना सके। स्वामी विवेकाननंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति
के देश के रूप में देखा जाने लगा। अमेरिकी प्रेस ने विवेकानंद को उस धर्म
संसद की महानतम विभूति बताया था। उस समय अभिभूत अमेरिकी मीडिया ने स्वामी
विवेकानंद के बारे में लिखा था, 'उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है
कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी
मूर्खता कर रहे थे।'
यह
ऐसे समय हुआ, जब ब्रिटिश शासकों और ईसाई मिशनरियों का एक वर्ग भारत की
अवमानना और पाश्चात्य संस्कृति की श्रेष्ठता साबित करने में लगा हुआ था।
उदाहरण के लिए 19वीं सदी के अंत में अधिकारी से मिशनरी बने रिचर्ड टेंपल ने
'मिशनरी सोसायटी इन न्यूयार्क' को संबोधित करते हुए कहा था- भारत एक ऐसा
मजबूत दुर्ग है, जिसे ढहाने के लिए भारी गोलाबारी की जा रही है। हम झटकों
पर झटके दे रहे हैं, धमाके पर धमाके कर रहे हैं और इन सबका परिणाम
उल्लेखनीय नहीं है, लेकिन आखिरकार यह मजबूत इमारत भरभराकर गिरेगी ही। हमें
पूरी उम्मीद है कि किसी दिन भारत का असभ्य पंथ सही राह पर आ जाएगा।
सादर आपका
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बदलना भविष्य का ...
नरम नेता चुनो और गुलामी का आनन्द लो
बोलती कहानियाँ: बेचैनी (लघुकथा)
बीहड़- इक याद
यमुनोत्री – गंगोत्री यात्रा
पुत्रीरत्न
ग्रुप यात्रा: नेलांग यात्रा और गंगोत्री भ्रमण
फ़रेब
"जल”
586. चाँद रोज़ जलता है
मैं आई तेरे संग सजना
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अब आज्ञा दीजिए ...
जय हिन्द !!!
6 टिप्पणियाँ:
सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई बेहतरीन रचनाएं सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को बुलेटिन प्रस्तुति का हिस्सा बनाने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय
स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक संबोधन की १२५ वीं वर्षगांठ शिकागो विश्व सम्मेलन हर भारतीय के गौरव की अनुभूति के क्षणों से सजी प्रस्तावना और सुन्दर ब्लॉग लिंक्स . इस बुलेटिन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से धन्यवाद 🙏 .
यह ऐतिहासिक संबोधन हर भारतीय के गौरव की अनुभूति के क्षण हैं। इससकी 125 वीं वर्षगाँठ पर उद्धृत कर अपनी प्रबुद्ध सांस्कृतिक धरोहर को पुनः पटल के माध्यम से आम जन के समक्ष प्रस्तुत करना सराहनीय है। पटल के संयोजक बधाई के पात्र है। इस अवसर पर मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार।
हमें बीहड़ में गुम होती अपने विरासत की रक्षा हेतु सचेष्ट होना ही होगा।
बेहतरीनत रचनाएँ ...
आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
आप सब का बहुत बहुत आभार |
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