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सोमवार, 7 सितंबर 2015

ख़ास एहसास से भरे ब्लॉग बुलेटिन



भावनाओं के अरण्य में कभी धूप कभी छाँव से गुजरना 
फिर थोड़ी धूप थोड़ी छाँव किसी को देना 
आसान नहीं होता !
कभी जलन होती है 
कभी सिहरन 
… कई बार होता है एक सन्नाटा और अचानक कोई आहट 
सोच के दरवाज़े खुलते बंद होते रहते हैं  … 



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3 टिप्पणियाँ:

Dr. Vandana Sharma ने कहा…

BAHUT HEE ACCHI RACHNA, JEEWAN TO DHUP CHAAWN HAI

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सोच के दरवाज़े खुलते बंद होते रहते हैं … और आती जाती रहती हैं यादें ... अनगिनत |

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

खुलते रहें बंद होते रहें जाम नहीं हों सोच के दरवाजे बस :)
सुंदर प्रस्तुति ।

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