भावनाओं के अरण्य में कभी धूप कभी छाँव से गुजरना
फिर थोड़ी धूप थोड़ी छाँव किसी को देना
आसान नहीं होता !
कभी जलन होती है
कभी सिहरन
… कई बार होता है एक सन्नाटा और अचानक कोई आहट
सोच के दरवाज़े खुलते बंद होते रहते हैं …
ब्लॉग जगत में लिखी पढी जा रही पोस्टों , उनमें दर्ज़ की जा रही टिप्पणियां ,बहस ,विमर्श ..सबको समेट कर तैयार है बुलेटिन ... ब्लॉग बुलेटिन ...
3 टिप्पणियाँ:
BAHUT HEE ACCHI RACHNA, JEEWAN TO DHUP CHAAWN HAI
सोच के दरवाज़े खुलते बंद होते रहते हैं … और आती जाती रहती हैं यादें ... अनगिनत |
खुलते रहें बंद होते रहें जाम नहीं हों सोच के दरवाजे बस :)
सुंदर प्रस्तुति ।
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